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Sunday, 7 July 2013

हमले के लिए नीतीश सरकार है जिम्मेदार?



दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल की साढ़े आठ महीने पहले अपने प्रेस रिलीज में पुणे के चर्चित जर्मन बेकरी धमाकों के गिरफ्तार आरोपियों के हवाले से दावा किया गया था कि बिहार का बोधगया मंदिर भी उनके निशाने पर था.दिल्ली पुलिस के पुलिस कमिश्नर नीरज कुमार ने कहा था कि जर्मन बेकरी धमाकों के गिरफ्तार आरोपियों ने माना है कि उनके निशाने पर बोधगया मंदिर है. लेकिन सवाल है कि आखिर इतनी साफ खबर के बाद भी क्या वाकई बिहार की सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रही? बड़ी बात ये है कि पिछले साल पुणे में हुए सीरियल ब्लास्ट के आरोप में गिरफ्तार इमरान,  इरफान,  असद, फिरोज और सैयद मकबूल ने बोधगया की रेकी करने की बात भी कबूली थी और इनके पास से वहां का नक्शा भी बरामद किया गया था. आरोपियों ने पूछताछ में ये भी बताया था कि म्यांमार में मुस्लिमों के खिलाफ हो रही हिंसा के विरोध में हमले की तैयारी थी.  म्यांमार में बौद्ध धर्म को मानने वालों की संख्या ज्यादा है इसलिए महाबोधि मंदिर को निशाना बनाया जाना था. इसके बाद दिल्ली पुलिस, बिहार पुलिस और सेंट्रल एजेंसियों की एक टीम ने वहां जाकर सुरक्षा व्यवस्था का जायजा भी लिया था और बाकायादा जनवरी के महीने में एक मॉक ड्रील भी की गई. बिहार सरकार ने माना है कि उसे अलर्ट मिला था लेकिन किया क्या? इस पर एडीजी कानून व्यवस्था एसके भारद्वाज का कहना है कि  एलर्ट मिला था और इसके बाद मंदिर की सुरक्षा बढ़ाई भी गई थी. उनका कहना है कि मंदिर के बाहर की व्यवस्था की ज़िम्मेदारी उनकी थी और अंदर ज़िम्मेदारी मंदिर प्रशासन की है.

वैसे ऐसा ही अलर्ट पंद्रह दिन पहले एनआईए ने भी जारी किया था और 3 दिन पहले तो डीआईजी ने सुरक्षा चाक चौबंद होने का दावा भी किया था लेकिन फिर भी धमाका होकर रहा. उधर केंद्र का गृह मंत्रालय भी अलर्ट के बावजूद सुरक्षा में चूक से जुड़े सवाल टालने में जुटा हुआ है. गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे का कहना है कि  अलर्ट जारी किया गया था लेकिन किस दिन हमला होगा ऐसी कोई जानकारी नहीं थी. गृह सचिव अनिल गोस्वामी का कहना है कि कुल नौ धमाके हुए, दो जिंदा बम मिले और बमों में अमोनियम नाइट्रेट इस्तेमाल हुआ है. मंदिर के अंदर और बाहर हुए धमाके में 2 लोग ज़ख़्मी हुए.

सुरक्षा विशेषज्ञों की मानें तो सुबह-सुबह धमाके करने के पीछे आतंकियों की मंशा किसी की जान लेने की बजाय महज अपना पैगाम मंदिर प्रशासन और सरकार तक पहुंचाने की हो सकती है. लेकिन इतना तो साफ लगता है कि खुफ़िया एजेंसियों की दी जानकारी को हल्के में लिया गया और शायद जानबूझकर इंतजार किया गया एक बड़े धमाके का?

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