राजनाथ सिंह 'सूर्य'
हमारा दावा था कि राजनीतिक आजादी अधूरी है जब तक आर्थिक आजादी नहीं आ जाती। आर्थिक गुलामी के कारण हमारी राजनीतिक आजादी भी खतरे में पड़ गई है, यह अंतर्राष्ट्रीय मामलों में हमारी सरकार के व्यवहार से स्पष्ट है। वित्त मंत्री भी मदद मांगने के लिए अभी तो सिर्फ अमेरिका में ही घूम रहे हैं, कल कहां कहां जायेंगे इसका अनुमान लगाया जा सकता है। कुशासन का हाल यह है कि भारत सरकार का एक मंत्रालय यह भी नहीं जानता कि दूसरा मंत्रालय क्या कर रहा है। भूटान को गैस आपूर्ति के मामले में तेल और विदेश मंत्रालय के बीच विवाद इसका नवीनतम उदाहरण है।
कांग्रेस भी यही कर रही है। सोनिया गांधी द्वारा कुछ वर्ष पूर्व 'मौत का सौदागर' की टिप्पणी के बाद कांग्रेस विरोधी भाजपा को झूठा नीच कहते कहते अब बच्चा बच्चा राम का... की अभिव्यक्ति पर उतर आई है। यह वह कांग्रेस है जिसने अपनी महिला मुवक्किल के चीरहरण प्रयास का प्रकरण सामने आने पर एक प्रवक्ता का न केवल उस पद से हटा दिया था बल्कि लोकपाल संबंधी संसदीय समिति के अध्यक्ष पद से भी इस्तीफा दिलवा दिया था। उस घृणित घटना के पटाक्षेप होने में सभी ने भलाई समझी इसलिए कुछ महीने बाद उस नेता को फिर से प्रवक्ता के रूप में टेलीविजन पर पेश किए जाने पर भी किसी ने सवाल नहीं उठाए। क्योंकि सभ्य समाज में इस प्रकार की घटनाओं को चर्चाहीन रखना ही श्रेयस्कर माना जाता है। लेकिन भाजपा द्वारा अपने एक मंत्री को किसी ऐसी ही घटना के कारण मंत्री पद और पार्टी दोनों से निकाल दिए जाने के बाद जेल भेज दिया गया। फिर भी कांग्रेस ने मध्य प्रदेश विधानसभा में अपने नेताओं से और केंद्रीय स्तर पर दिग्विजय सिंह द्वारा जैसी प्रतिक्रिया व्यक्त कराई है वह गलत है।
इस संदर्भ में एक और तथ्य का संज्ञान लेना आवश्यक है। केंद्रीय मंत्री और कांग्रस नेता रहमान खान ने कहा है कि वह मुस्लिम युवकों को आतंकवादी होने के फर्जी आरोप में गिरफ्तार किए जाने पर चिंतित हैं और प्रधानमंत्री के लिए एक ज्ञापन तैयार कर रहे हैं कि बिना मुकदमा चलाये इन युवकों की जल्द रिहाई की जाये। शायद उन्हें उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव की सरकार द्वारा 'आतंकी' घटना को अंजाम देने के आरोपियों से मुकदमा वापिस लेने के प्रयास से प्रेरणा मिली हो। लेकिन क्या उनका प्रयास सफल हो पाया। जानते हुए भी कि जो मामला अदालत में है उसके चलते रहने या समाप्त होने का निर्णय केवल न्यायालय ही कर सकता है, मुस्लिम मतदाताओं को गुमराह करने के लिए ऐसा प्रयास किया गया था। जो हश्र अखिलेश के प्रयास का हुआ वही रहमान के प्रयास का भी होने वाला है, इससे भी महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या केवल मुस्लिम युवक ही 'फर्जी' मामलों में बंद हैं कोई हिंदू नहीं बंद है? तो सरकारी तौर पर केवल मुसलमानों के लिए ऐसा प्रयास क्यों?
यह बात सर्विवदित है सबसे अधिक आतंकी होने के आरोप में लोग महाराष्ट्र में ही बंद हैं जो एकमात्र राज्य है जहां 'मकोका' के तहत किसी को भी अनिश्चितकाल के लिए न्यायालीय सुविधा से वंचित रखा जा सकता है। पोटा कानून हटाने के बाद केंद्र सरकार ने महाराष्ट्र का मकोका कायम रहने दिया तथा किसी भी अन्य राज्य को ऐसा कानून बनाने की मंजूरी देने से इंकार कर दिया।
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