केंद्र सरकार सीबीआई को आजादी देने के लिए कानून में बदलाव की तैयारी कर रही है। अब सीबीआई निदेशक की नियुक्ति अकेले सरकार नहीं करेगी। बल्कि इसका फैसला प्रधानमंत्री, देश के मुख्य न्यायाधीश और लोकसभा में विपक्ष के नेता की सहमति से होगा। ऐसे कई और बदलाव भी किए जाएंगे जिससे सीबीआई निष्पक्ष ढंग से अपना काम कर सके। ये जानकारी केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में दी है।
कोयला घोटाले में सीबीआई की तहकीकात पर जब उंगली उठाई गई तो सुप्रीम कोर्ट ने देश की इस प्रमुख जांच एजेंसी को तोता तक कह डाला। ऐसा तोता जो सरकार की बोली बोलता है। कोर्ट ने सीबीआई की आजादी को जरूरी बताते हुए सरकार से पूछा था कि इस सिलसिले में क्या कदम उठाए गए हैं। बुधवार को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर बताया कि मंत्री समूह और केंद्रीय कैबिनेट ने दिल्ली स्पेशल पुलिस इस्टैब्लिशमेंट एक्ट में बदलाव को मंजूरी दे दी है, जिससे सीबीआई संचालित होती है।
सरकार ने हलफनामे में कहा है कि सीबीआई निदेशक की नियुक्ति प्रधानमंत्री, देश के मुख्य न्यायाधीश और नेता विपक्ष की सहमति से होगा। सीबीआई निदेशक की नियुक्ति कम से कम दो साल के लिए होगी। सीबीआई निदेशक को सिर्फ राष्ट्रपति हटा सकेंगे। सीबीआई में एसपी. और उससे ऊपर रैंक के अधिकारियों की नियुक्ति सीवीसी, गृह सचिव, कार्मिक विभाग के सचिव और सीबीआई निदेशक की कमेटी करेगी।
सीबीआई के निदेशक अभियोजन की नियुक्ति सीवीसी, गृह सचिव, कानून मंत्रालय के सचिव, कार्मिक विभाग के सचिव और सीबीआई निदेशक की कमेटी करेगी। सीबीआई अधिकारियों के खिलाफ कोई भी व्यक्ति शिकायत दर्ज करा सकेगा। शिकायत की जांच सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के पूर्व जजों की कमेटी करेगी।
हालांकि कुछ लोग इस बदलाव को सिर्फ एक दिखावा बता रहे हैं। याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण कहते हैं कि नए बदलावों के बाद भी सीबीआई सरकार के अधीन ही काम करेगी। वैसे, सीबीआई कितनी स्वायत्त हो पाएगी इस पर अभी कोई आकलन करना जल्दबाजी होगा। सरकार ने जो बदलाव सुझाए हैं उनको अमलीजामा पहनाने में थोड़ा वक्त लगेगा। इन बदलावों को संसद की मंजूरी जरूरी होगी। बहरहाल, सरकार के इस हलफनामे पर सुप्रीम कोर्ट में 10 जुलाई को सुनवाई होगी।
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