नरेंद्र मोदी को लेकर भारतीय जनता पार्टी में कुछ दिन चली अंतरकलह से
भले ही कांग्रेस की बांछे खिल गई हों और ममता ने क्षेत्रीय दलों के गठजोड़
का सपना बुना हों लेकिन इस पूरे प्रकरण पर उपहासात्मक, निंदात्मक
टिप्पणियों ने यह जता दिया है कि असलियत में नरेंद्र मोदी से सभी आंतकित
हैं। ऐसा नहीं होता तो राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के शरद पवार यह नहीं
कहते कि मोदी गर्म हवा से भरा गुब्बारा है।
ऐसा कहते हुए उन्होने चालीस साल के राजनीतिक अनुभव को दांव पर लगाते हुए भविष्यवाणी की है कि यह गुब्बारा जल्दी ही पिचक जाने वाला हैं। ऐसे ही दूसरी पार्टी के अंदरूनी मामले में कांग्रेस नेता दिलचस्पी लेते हुए मोदी की तुलना हिटलर या पोल पोट से करते और इन नेताओं में उन्हें लोकतंत्र का शत्रु बताने की होड़ मचती।
भाजपा में और उससे बाहर नरेंद्र मोदी को भाजपा चुनाव समिति का अध्यक्ष बनाए जाने पर हुई प्रतिक्रिया के दो रूप हैं। भाजपा में जो कुछ हुआ वह दुखद था लेकिन बाहर उसे जिस नजरिए से देखा गया उसमें एक पार्टी में बेवजह खिंची विभाजन रेखा पर सहानुभूति जताने का भाव कम, नरेंद्र मोदी को भविष्य की एक बड़ी चुनौती के रूप में देखने की आशंका ज्यादा थी।
और यह आशंका या दुश्चिंता लगातार बढ़ने वाली है क्योंकि नरेंद्र मोदी ने भाजपा चुनाव समिति की कमान संभालते ही आलोचनात्मक टिप्पणियों पर जवाब देने की बजाए रणनीति बनानी शुरू कर दी है। गुजरात में अपनी सक्रियता कम कर आम चुनाव की तैयारी में जुट जाने के लिए वे उपमुख्यमंत्री की नियुक्ति करने और हाल फिलहाल सात केबिनेट व नौ राज्य मंत्रियों के अपेक्षाकृत छोटे से मंत्रिमंडल से सरकार चलाने की व्यवस्था को बदल कर मंत्रिमंडल का विस्तार करने की सोच रहे हैं ताकि कई कई विभाग संभाल रहे मंत्रियों का बोझ कम हो। खुद नरेंद्र मोदी के पास ही सामान्य प्रशासन, प्रशासनिक सुधार व प्रशिक्षण, उद्योग, गृह, पर्यावरण, सूचना व टेक्नोलाजी जैसे विभागों के अलावा ढेरों विभाग हैं।
जानकारों के अनुसार ज्यादा समय गुजरात से बाहर रहने के बनते प्रोग्राम से नरेंद्र मोदी राज्य में वैकल्पिक सेनापति की जरूरत महसूस कर रहे हैं। दावेदार कई हैं। राजस्व मंत्री आनंदी पटेल मोदी की खास विश्वास पात्र हैं और उन्हें ज्यादातर विधायकों व मंत्रियों का समर्थन हासिल है। ऊर्जा व उद्योग मंत्री सौरभ पटेल को मोदी की ‘उद्योग मित्र’ की छवि निखारने का श्रेय जाता है। राज्य की राजनीति के जानकारों का मानना है कि नरेंद्र मोदी के बाद उनके गुजरात का मुख्यमंत्री बनने के ज्यादा आसार हैं। पूर्व गृह मंत्री अमित शाह मोदी के दाएं हाथ है। फर्जी मुठभेड़ कांड में दागी होने की वजह से मोदी उन्हें गुजरात में कोई जिम्मेदारी देने की बजाए उनकी प्रबंध कुशलता का इस्तेमाल राष्ट्रीय चुनाव अभियान में ज्यादा पसंद करेंगे।
वित्त विभाग समेत स्वास्थ्य, चिकित्सा शिक्षा, परिवहन व परिवार कल्याण जैसे कई महत्वपूर्ण विभाग संभालने वाले नितिन पटेल के फिलहाल उपमुख्यमंत्री बनने की संभावना ज्यादा जताई जा रही है। पिछले साल दिसंबर में उनसे वरिष्ठ वजु बाला को विधानसभा अध्यक्ष बना कर नितिन को वित्त विभाग सौंपा जाना राज्य की राजनीति में उनके बढ़ते कद का प्रमाण है।
ऐसा कहते हुए उन्होने चालीस साल के राजनीतिक अनुभव को दांव पर लगाते हुए भविष्यवाणी की है कि यह गुब्बारा जल्दी ही पिचक जाने वाला हैं। ऐसे ही दूसरी पार्टी के अंदरूनी मामले में कांग्रेस नेता दिलचस्पी लेते हुए मोदी की तुलना हिटलर या पोल पोट से करते और इन नेताओं में उन्हें लोकतंत्र का शत्रु बताने की होड़ मचती।
भाजपा में और उससे बाहर नरेंद्र मोदी को भाजपा चुनाव समिति का अध्यक्ष बनाए जाने पर हुई प्रतिक्रिया के दो रूप हैं। भाजपा में जो कुछ हुआ वह दुखद था लेकिन बाहर उसे जिस नजरिए से देखा गया उसमें एक पार्टी में बेवजह खिंची विभाजन रेखा पर सहानुभूति जताने का भाव कम, नरेंद्र मोदी को भविष्य की एक बड़ी चुनौती के रूप में देखने की आशंका ज्यादा थी।
और यह आशंका या दुश्चिंता लगातार बढ़ने वाली है क्योंकि नरेंद्र मोदी ने भाजपा चुनाव समिति की कमान संभालते ही आलोचनात्मक टिप्पणियों पर जवाब देने की बजाए रणनीति बनानी शुरू कर दी है। गुजरात में अपनी सक्रियता कम कर आम चुनाव की तैयारी में जुट जाने के लिए वे उपमुख्यमंत्री की नियुक्ति करने और हाल फिलहाल सात केबिनेट व नौ राज्य मंत्रियों के अपेक्षाकृत छोटे से मंत्रिमंडल से सरकार चलाने की व्यवस्था को बदल कर मंत्रिमंडल का विस्तार करने की सोच रहे हैं ताकि कई कई विभाग संभाल रहे मंत्रियों का बोझ कम हो। खुद नरेंद्र मोदी के पास ही सामान्य प्रशासन, प्रशासनिक सुधार व प्रशिक्षण, उद्योग, गृह, पर्यावरण, सूचना व टेक्नोलाजी जैसे विभागों के अलावा ढेरों विभाग हैं।
जानकारों के अनुसार ज्यादा समय गुजरात से बाहर रहने के बनते प्रोग्राम से नरेंद्र मोदी राज्य में वैकल्पिक सेनापति की जरूरत महसूस कर रहे हैं। दावेदार कई हैं। राजस्व मंत्री आनंदी पटेल मोदी की खास विश्वास पात्र हैं और उन्हें ज्यादातर विधायकों व मंत्रियों का समर्थन हासिल है। ऊर्जा व उद्योग मंत्री सौरभ पटेल को मोदी की ‘उद्योग मित्र’ की छवि निखारने का श्रेय जाता है। राज्य की राजनीति के जानकारों का मानना है कि नरेंद्र मोदी के बाद उनके गुजरात का मुख्यमंत्री बनने के ज्यादा आसार हैं। पूर्व गृह मंत्री अमित शाह मोदी के दाएं हाथ है। फर्जी मुठभेड़ कांड में दागी होने की वजह से मोदी उन्हें गुजरात में कोई जिम्मेदारी देने की बजाए उनकी प्रबंध कुशलता का इस्तेमाल राष्ट्रीय चुनाव अभियान में ज्यादा पसंद करेंगे।
वित्त विभाग समेत स्वास्थ्य, चिकित्सा शिक्षा, परिवहन व परिवार कल्याण जैसे कई महत्वपूर्ण विभाग संभालने वाले नितिन पटेल के फिलहाल उपमुख्यमंत्री बनने की संभावना ज्यादा जताई जा रही है। पिछले साल दिसंबर में उनसे वरिष्ठ वजु बाला को विधानसभा अध्यक्ष बना कर नितिन को वित्त विभाग सौंपा जाना राज्य की राजनीति में उनके बढ़ते कद का प्रमाण है।
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