विगत कुछ वर्षों से मीडिया में यह सवाल लगातार उठता रहा है कि वाजपेयी-आडवाणी के बाद भाजपा और एनडीए गठबंधन का अगला नेता कौन होगा ? यद्यपि यह सवाल अप्रासांगिक नहीं है फिर भी इसका जवाब न तो नैराश्य पैदा करने वाला है न ही उतना जटिल जितना मीडिया द्वारा प्रस्तुत किया जाता रहा है। भाजपा में कई कुशल राजनीतिक नेतृत्व की क्षमतावाले नेता हैं जो पार्टी और एनडीए गठबंधन को संभालने का कौशल बखूबी रखते हैं। मीडिया में यह सवाल अक्सर उठाया जाता रहा है कि 2014 के चुनाव में विपक्ष की ओर से प्रधानमंत्री पद का दावेदार कौन होगा, साथ ही भाजपा में ऐसे किसी प्रभावशाली नेता के नहीं होने का निष्कर्ष भी निकाल जाता रहा है। दूसरों के वजूद पर सवाल उठाकर खुद की सुविधानुसार जवाब तलाशने की इस सतही प्रक्रिया पर टिप्पणी नहीं करते हुए भी इतना तो कहा ही जा सकता है कि भाजपा में नरेंद्र मोदी के रूप में एक ऐसा नेता मौजूद है जिसका सामना बाकी सभी दलों के नेता एकजुट होकर भी करने से कतराते हैं। हकीकत तो यह है कि नरेंद्र मोदी न सिर्फ भाजपा बल्कि देश के भी भविष्य नजर आते हैं।
दरअसल यूपीए सरकार के गठन के बाद से ही बहुत ही अतार्किक ढंग से ह्यसेकुलर मीडियाह्य यह साबित करना चाहती है कि वाजपेयी-आडवाणी के बाद भाजपा की दूसरी पंक्ति के किसी नेता में पार्टी या सरकार की बागडोर संभालने की क्षमता ही नहीं है। छद्म धर्मनिरपेक्ष राजनीति की कोख से निकला कथित सेकुलर मीडिया ऐसे प्रायोजित विषयों पर चिंतन महज अपने बौद्धिक विलास के लिए ही नहीं करता वरन् जनता को गुमराह करने की एक राजनीतिक साजिश के तहत भी करता है। स्वघोषित सेकुलर मीडिया अक्सर इस बेतुकी बहस को न सिर्फ छेड़ता रहा है बल्कि अपनी तरफ से यह निष्कर्ष भी देता रहा है कि भाजपा में देश की कमान संभालने वाला कोई नेता ही नहीं है। कुछ दिन पहले एक वरिष्ठ पत्रकार ने भाजपा कक् तीन सुयोग्य नेताओं, जिनमें नरेन्द्र मोदी सहित सुषमा स्वराज और अरुण जेटली भी शामिल थे, की तमाम योग्यताओं और उपलब्धियों का बखान करने के बाद भी उन्हें एनडीए कक् नेता कक् रूप में बेतुकक् ढंग से खारिज कर दिया था। इतना ही नहीं इस पत्रकार ने नरेंद्र मोदी कक् तमाम सांगठनिक गुणों, नेतृत्व क्षमता और कुशल प्रशासनिक कौशल का बखान करते हुए भी जिस काल्पनिक संभावना कक् आधार पर उन्हें खारिज किया, वह हास्यास्पद ही प्रतीत होता है। इस विश्लेषक-पत्रकार ने एनडीए कक् एक सहयोगी क्ष़ेत्रीय क्ष़त्रप को अपनी तरफ से सरसरी तौर पर 2014 कक् प्रधानमंत्री पद का सुयोग्य चेहरा बताया, जो इस समस्त आकलन के ह्यप्रायोजितह्य होने कक् विश्वास को और बढ़ाता है।
सुषमा स्वराज की यदि बात की जाय तो इस ह्यवोट कैचरह्य नेत्री में राजनीति कक् वे तमाम गुण मौजूद हैं जिनकी भाजपा, संघ और हिन्दुत्व अवधारणा के धुर विरोधी भी सराहना करते हैं। यह तर्क ही हास्यास्पद है कि उनका महिला होना संघ कक् पुरुष प्रधान परिवेश में उनकी योग्यता पर भारी है। लोकसभा में उनका विपक्ष का नेता होना तथा पार्टी और संसद में महत्वपूर्ण प्रोफाइल उनके हाथ में ही होना उक्त पत्रकार की भ्रामक अवधारणा को खारिज करता है। संघ पर इस तरह का भ्रामक आक्षेप लगाने वालों को यह भी देखना चाहिए कि संघ की राजनीति ने ही वसुंधरा राजे और उमा भारती कक् रूप में दो महिला मुख्यमंत्री भी दिया है। इसकक् विपरीत यदि कांग्रेस की लगभग 6 दशक कक् कार्यकाल को देखा जाए तो दिल्ली की वर्तमान मुख्यमंत्री शीला दीक्षित कक् अलावा कांग्रेस की महिला मुख्यमंत्रियों कक् नाम ढूंढने कक् लिए दिमाग पर खासा जोर देना पड़ता है, इसलिए संघ आधारित राजनीति में महिला नेत्री की स्वीकार्यता पर आक्षेप करना नितांत बेमानी है। इसकक् अलावा शिवराज सिंह चैहान, रमण सिंह, आदि नेताओं ने भी अपनी योग्यता और कुशल प्रशासनिक क्षमता को साबित किया है।
अब अगर बात नरेंद्र मोदी की बात की जाए तो एक पंक्ति में इतना ही कहना काफी होगा कि, ह्यनरेंद्र मोदी-बस नाम ही काफी हैह्ण। यह आज की भारतीय राजनीति की सबसे बड़ी सच्चाई है कि नरेंद्र मोदी के विराट व्यक्तित्व कक् आगे कथित सेकुलर राजनीति कक् तमाम बड़े चेहरे बौने ही दिखते हैं। बाकी दलों और नेताओं की तो बात ही छोड़ें, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, यूपीए अध्यक्षा सोनिया गांधी, कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी और कांग्रेस नेत्री-इन-वेटिंग-प्रियंका गांधी कोई भी नरेंद्र मोदी का सामना करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। यह स्थिति तब है जब सेकुलर मीडिया प्रायोजित रूप से (चुनावों के समय में तो और भी अधिक) मोदी कक् खिलाफ साम-दाम-दण्ड-भेद की पूरी कला से अपनी संपूर्ण ताकत झोंक देता है। 2002 के बाद तो मीडिया ने नरेंद्र मोदी को जिस शिद्दत से हमेशा कठघरे में खड़ा किया है वह भी अपने आप में एक मिसाल ही है। मजे की बात है कि मीडिया और राजनीति के तमाम प्रपंचों के बाद भी न सिर्फ मोदी हर बार अधिक मजबूती से उभरे हैं बल्कि अब वे हिंदू गौरव कक् प्रतीक भी बन गए हैं। ऐसा नाम जिस पर पूरे देश का हर तबका, चाहे अल्पसंख्यक ही क्यों न हो, विश्वास और आस्था रखने लगा है।
नरेंद्र मोदी राजनीति का एक ऐसा ब्रांड बन गए हैं जिनकी टीआरपी राजनीति से लेकर मीडिया तक सबसे अधिक है। राजनीति में तो हर छोटा- बड़ा नेता नरेंद्र मोदी पर टिप्पणी कर अपने को न सिर्फ चर्चा में बनाए रखता है बल्कि खास वोट बैंक की राजनीति साधने में भी लगा रहता है। मीडिया की स्थिति इस मामले में बहुत विचित्र सी दिखती है। एक तरफ सेकुलर मीडिया मोदी के खिलाफ हर दुष्प्रचार को हवा देता है, उन्हें अल्पसंख्यकों, खासकर मुसलमानों के लिए खलनायक कक् तौर पर प्रस्तुत करता है तथा किसी नेता या समाजसेवी के मुख से मोदी की तारीफ सुनने पर भी आग-बबूला हो जाता है और उन्हें भी कटघरा में खींच लाता है तोे दूसरी तरफ मीडिया की मजबूरी है कि वह नरेंंद्र मोदी की प्रशासनिक क्षमता, विकास कार्यों और उनके प्रति अल्पसंख्यकों में बन रही सकारात्मक धारणा को भी नजरअंदाज नहीं कर सकता है। मोदी का जादू न सिर्फ गुजरात में चला है बल्कि उनके करिश्माई व्यक्तित्व का ही कमाल है कि उनके खिलाफ मीडिया का धारदार तेवर भी कुंद पड़ने लगा है। कमोबेश यही स्थिति राजनीतिज्ञों की भी है। मोदी और हिंदुत्व के धुर विरोधी वामपंथी पार्टी कक् एक नेता ने तो अमेरिका तक में मोदी की तारीफ कर दी थी। अलग बात है कि पार्टी और मीडिया कक् दबाव का खामियाजा उन्हें भारत आकर भुगतना पड़ा। और तो और यह मोदी का जादू ही है कि सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह तक को उनकी तारीफ करनी पड़ी है। कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी ने तो कुछ दिन पहले मोदी की तुलना चीन के महान नेता माओत्से-तुंग से करकक् अनजाने में ही यह स्थापित कर दिया कि न सिर्फ भाजपा बल्कि देश का भविष्य भी नरेंद्र मोदी के ही हाथों में है।
कुछ राजनीतिक दल और मीडिया का एक वर्ग नरेंद्र मोदी को 2002 के दंगों के बाद खलनायक बताकर लगभग एक दशक से मुसलमानों के बीच भय का माहौल बनाने के प्रयासों में अभी भी जुटा है। 2002 के दंगों में मोदी की कथित भूमिका को लेकर जिस तरह उन्हें कठघरे में खींचा जाता रहा है सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित एसआईटी ने उस मामले में भी उन्हें क्लीन चिट दे दी है। यह साबित करता है कि किस तरह प्रायोजित रूप से उन्हें निशाना पर रखा जाता रहा है। सबसे महत्वपूर्ण है अमेरिका ने भी उनके विकास कार्यों की तारीफ करते हुए अपनी अन्दरूनी रिर्पोट में उन्हें 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए प्रधानमंत्री पद का सबसे बड़ा दावेदार माना है। इतना ही नहीं अमेरिका की नजर में मोदी कॉंग्रेस के युवराज राहुल गॉंधी पर बहुत भारी हैं। यही है मोदी की शख्सियत। एसआईटी रिर्पोट के बाद भाजपा और संघ ने भी इस सन्दर्भ में सकारात्मक संकेत दिए हैं जो पार्टी और देश के लिए शुभ संदेश माना जा रहा है।
देश की जनता अब अतीत में जीना नहीं चाहती। इतने सालों में बहुत पानी बह चुका है और गुजरात ने विकास का जो नया अध्याय लिखा है उसका अनुकरण केंद्र और दूसरे राज्यों की सरकारें भी कर रही हैं। मुसलमानों में भी मोदी कक् विकास मॉडल की बहुत चर्चा है और गुजरात कक् मुसलमान तो खासकर मोदी को विकास पुरुष कक् रूप में ही देखते हैं। नरेंद्र मोदी के प्रशासनिक क्षमता और विकास के प्रति प्रतिबद्धता को उनके विरोधी भी मानते हैं। पीडीपी की अध्यक्षा मेहबूबा मुफ्ती ने भी इस तथ्य का जिक्र है कि किस तरह गुजरात के बाहर के अल्पसंख्यक उद्योगपतियों को भी गुजरात में उद्योग लगाने की सहूलियत बिना नौकरशाही के तामझाम में फंसे आसानी से मिल जाती है। नैनो के संयंत्र स्थापना में उद्योगपति रतन टाटा के अनुभव को पूरा देश जानता है।
जिन लोगों कक् मन में यह सवाल है कि वाजपेयी-आडवाणी कक् बाद भाजपा का नेता कौन, उन्हें इसका जवाब वाजपेयी कक् प्रधानमंत्री रहते ही मिल गया था जब दिल्ली कक् शाही ईमाम ने 2004 के लोकसभा चुनाव में भाजपा कक् समर्थन में फतवा जारी किया था। उस वक्त गुजरात का जख़्म भी हरा था और पार्टी में नरेंद्र मोदी का कद भी बढ़ा था। मोदी कक् लगातार तीन बार मुख्यमंत्री बने रहना इस बात का पुख्ता सबूत है कि मोदी ही भाजपा और भारत कक् भविष्य हैं। कुछ दिन पहले देवबंद के पूर्व वाइस चांसलर ने भी तमाम विरोधों कक् बावजूद मोदी की तारीफ की और अपनी बात पर अंत तक डटे भी रहे। मोदी को कट्टर हिन्दू चेहरा बताने वाले राजनीतिज्ञों और मीडिया को अपने विकास और भाईचारे का संदेश देकर मोदी बहुत सौम्य तरीकक् से उन्हें चित कर देते हैं। मोदी का यह तर्क वाकई में लाजवाब है कि जिस तरीके से गुजरात का विकास हो रहा है, हर गांव में पानी जा रहा है, हर गांव में पक्की सड़कें हैं तो क्या उस पर यह लिखा होगा कि यह हिन्दू या मुसलमान कक् लिए है ?
मोदी का कद्दावर व्यक्तित्व है ही ऐसा कि जिसने भी उन पर पत्थर फेंकने की कोशिश की वह पत्थर वापस उसी आदमी कक् पास पहुंच गया। गुजरात कक् पिछले चुनाव में फिल्मी पटकथा लेखक जावेद अख्तर का लिखा भाषण ह्यइंसानियत कक् हत्यारेह्य को सोनिया ने जिस जोश के साथ हर सभा में पढ़ा वह उन पर ही भारी पड़ गया। अपने विशिष्ट अंदाज में मोदी ने उस भाषण को गुजरात कक् स्वाभिमान से जोड़कर कांग्रेस को खासी पटकनी दे दी। यही हाल पिछले विधानसभा चुनाव में बिहार का भी हुआ। अपने ही सहयोगी नीतीश कुमार ने कुछ वोटों कक् लोभ में नरेंद्र मोदी कक् बिहार आने का पुरजोर विरोध किया। जवाब उन्हें बिहार की जनता ने दिया और भाजपा को पहली बार बिहार में सबसे अधिक सीट प्राप्त हुई। भाजपा प्रत्याशियों कक् जीतने का रिकार्ड 85 प्रतिशत रहा जो नीतीश कुमार की पार्टी से काफी अधिक था। स्पष्ट है मोदी का जादू चारों ओर चल रहा है, चाहे अपने हों या विरोधी, मोदी सब पर भारी हैं।
भाजपा शीर्ष नेतृत्व को चाहिए कि प्रायोजित सेकुलर मीडिया या वोट की राजनीति कक् दबाव में आए बिना नरेंद्र मोदी को अपना अगुवा चुन ले। मोदी में वह करिश्मा है कि वह अपने कार्यकतार्ओं और वोटों को अपने पक्ष में लामबंद कर सकते हैं। मुसलमानों कक् वोट नहीं मिलने की काल्पनिक संभावनाओं को खारिज किया जाना चाहिए साथ ही अपना नेता चुनने में घटक दलों और राजनीतिक सहयोगियों की रायशुमारी को तवज्जों नहीं दिया जाना चाहिए। भाजपा को अपने सिद्धांत और राष्ट्रवाद की नीति को ही सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए। राजनीति में मित्र और शत्रु स्थायी नहीं होते इसलिए अपनी स्थिति पर ही सर्वोपरि ध्यान कक्ंद्रित किया जाना चाहिए।
याद रखना होगा कि ह्यरथयात्राह्य और आडवाणी की आम लोगों में जो छवि थी उसने ही भाजपा को राजनीति कक् शीर्ष पहुंचाया था और बाद में भाजपा की मजबूत स्थिति देखकर ही अन्य दल सहयोगी कक् रूप में सामने आए थे। आज नरेंद्र मोदी कक् प्रति वही जन धारणा है। मोदी ने अपने तीन कार्यकाल में अपने को देश और दुनिया कक् सामने साबित भी किया है। एक प्रशासक की छवि ढुलमुल नेता की नहीं ही होनी चाहिए और इस क्षेत्र में भी मोदी मजबूत नेता कक् रूप में ही उभरे हैं। इसलिए किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए यदि 2014 कक् चुनाव में भाजपा मोदी को प्रधानमंत्री पद कक् उम्मीदवार कक् रूप में प्रस्तुत करे। भविष्य मोदी का है यह सच्चाई अब सारा देश जानने लगा है।
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