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Sunday, 30 June 2013

अब कौन रोकेगा नरेंद्र मोदी को?



नरेंद्र मोदी को लेकर भारतीय जनता पार्टी में कुछ दिन चली अंतरकलह से भले ही कांग्रेस की बांछे खिल गई हों और ममता ने क्षेत्रीय दलों के गठजोड़ का सपना बुना हों लेकिन इस पूरे प्रकरण पर उपहासात्मक, निंदात्मक टिप्पणियों ने यह जता दिया है कि असलियत में नरेंद्र मोदी से सभी आंतकित हैं। ऐसा नहीं होता तो राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के शरद पवार यह नहीं कहते कि मोदी गर्म हवा से भरा गुब्बारा है। ऐसा कहते हुए उन्होने चालीस साल के राजनीतिक अनुभव को दांव पर लगाते हुए भविष्यवाणी की है कि यह गुब्बारा जल्दी ही पिचक जाने वाला हैं। ऐसे ही दूसरी पार्टी के अंदरूनी मामले में कांग्रेस नेता दिलचस्पी लेते हुए मोदी की तुलना हिटलर या पोल पोट से करते और इन नेताओं में उन्हें लोकतंत्र का शत्रु बताने की होड़ मचती। भाजपा में और उससे बाहर नरेंद्र मोदी को भाजपा चुनाव समिति का अध्यक्ष बनाए जाने पर हुई प्रतिक्रिया के दो रूप हैं। भाजपा में जो कुछ हुआ वह दुखद था लेकिन बाहर उसे जिस नजरिए से देखा गया उसमें एक पार्टी में बेवजह खिंची विभाजन रेखा पर सहानुभूति जताने का भाव कम, नरेंद्र मोदी को भविष्य की एक बड़ी चुनौती के रूप में देखने की आशंका ज्यादा थी। और यह आशंका या दुश्चिंता लगातार बढ़ने वाली है क्योंकि नरेंद्र मोदी ने भाजपा चुनाव समिति की कमान संभालते ही आलोचनात्मक टिप्पणियों पर जवाब देने की बजाए रणनीति बनानी शुरू कर दी है। गुजरात में अपनी सक्रियता कम कर आम चुनाव की तैयारी में जुट जाने के लिए वे उपमुख्यमंत्री की नियुक्ति करने और हाल फिलहाल सात केबिनेट व नौ राज्य मंत्रियों के अपेक्षाकृत छोटे से मंत्रिमंडल से सरकार चलाने की व्यवस्था को बदल कर मंत्रिमंडल का विस्तार करने की सोच रहे हैं ताकि कई कई विभाग संभाल रहे मंत्रियों का बोझ कम हो। खुद नरेंद्र मोदी के पास ही सामान्य प्रशासन, प्रशासनिक सुधार व प्रशिक्षण, उद्योग, गृह, पर्यावरण, सूचना व टेक्नोलाजी जैसे विभागों के अलावा ढेरों विभाग हैं। जानकारों के अनुसार ज्यादा समय गुजरात से बाहर रहने के बनते प्रोग्राम से नरेंद्र मोदी राज्य में वैकल्पिक सेनापति की जरूरत महसूस कर रहे हैं। दावेदार कई हैं। राजस्व मंत्री आनंदी पटेल मोदी की खास विश्वास पात्र हैं और उन्हें ज्यादातर विधायकों व मंत्रियों का समर्थन हासिल है। ऊर्जा व उद्योग मंत्री सौरभ पटेल को मोदी की ‘उद्योग मित्र’ की छवि निखारने का श्रेय जाता है। राज्य की राजनीति के जानकारों का मानना है कि नरेंद्र मोदी के बाद उनके गुजरात का मुख्यमंत्री बनने के ज्यादा आसार हैं। पूर्व गृह मंत्री अमित शाह मोदी  के दाएं हाथ है। फर्जी मुठभेड़ कांड में दागी होने की वजह से मोदी उन्हें गुजरात में कोई जिम्मेदारी देने की बजाए उनकी प्रबंध कुशलता का इस्तेमाल राष्ट्रीय चुनाव अभियान में ज्यादा पसंद करेंगे। वित्त विभाग समेत स्वास्थ्य, चिकित्सा शिक्षा, परिवहन व परिवार कल्याण जैसे कई महत्वपूर्ण विभाग संभालने वाले नितिन पटेल के फिलहाल उपमुख्यमंत्री बनने की संभावना ज्यादा जताई जा रही है। पिछले साल दिसंबर में उनसे वरिष्ठ वजु बाला को विधानसभा अध्यक्ष बना कर नितिन को वित्त विभाग सौंपा जाना राज्य की राजनीति में उनके बढ़ते कद का प्रमाण है। पर संकट अपनों से नरेंद्र मोदी की पहली चुनौती निश्चित रूप से पार्टी में उभरी गुटबाजी को खत्म करने की होगी। अपनी महत्वाकांक्षा के एक बार फिर ढह जाने से आहत लालकृष्ण आडवाणी की पीड़ा अपनी जगह है लेकिन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) ने काफी पहले से उन्हें और पार्टी को संकेत दे दिया था कि नरेंद्र मोदी को 2014 के चुनाव की कमान संभालने के लिए तैयार किया जाए। आरएसएस से आडवाणी का दुराव जगजाहिर है। उनके समर्थकों की अब सफाई है कि वे मोदी को महत्व दिए जाने से नहीं, बल्कि भाजपा की फैसला करने की प्रक्रिया में आरएसएस की दखलंदाजी से नाराज हुए। ऐसा ही आरोप आडवाणी ने सितंबर 2005 में चेन्नई में हुई पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में तब लगाया था जब जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष घोषित करने के उनके बयान पर हुई फजीहत के बाद आरएसएस ने उन पर पार्टी का अध्यक्ष पद छोड़ने का दबाव बनाया था। सन्ा 2007 के आम चुनाव में भाजपा की हार के बाद लोकसभा में विपक्ष के नेता पद से इस्तीफा देने के दबाव को भी आडवाणी ने संघ की दखलंदाजी माना। सुषमा स्वराज ने उनकी जगह ली लेकिन आडवाणी जिद करके भाजपा संसदीय दल के अध्यक्ष का नया पद गठित करने और उस पर काबिज होने में सफल हो गए। 2011 में जब आडवाणी ने जन चेतना यात्रा निकाली तो आरएसएस ने उन पर यह घोषित करने का दबाव बनाया था कि वे नए नेताओं को मौका देने के लिए प्रधानमंत्री पद की दौड़ से खुद को अलग कर रहे हैं। यह इस बात का संकेत था कि आरएसएस 2014 के चुनाव में आडवाणी को कमान देने के पक्ष में नहीं है। इसकी पुष्टि इसी साल जनवरी में जयपुर में हुए आरएसएस के सम्मेलन में हो गई। आडवाणी उस सम्मेलन में जाने वाले थे लेकिन सम्मेलन की पूर्व संध्या पर भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह के जरिए उन्हें यह संदेश भिजवा दिया गया कि वे आमंत्रित नहीं हैं। राजनाथ सिंह कार्यकारिणी की बैठक के अलावा आरएसएस की सर्वोच्च नीति निर्धारक इकाई अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में शामिल हुए। और तभी उन्हें आरएसएस की यह राय बता दी गई कि मोदी को 2014 के चुनाव की कमान दी जाए। शायद राजनाथ सिंह इस फैसले को ठीक से अमल में नहीं ला पाए, तभी यह अप्रिय तमाशा हुआ। बहरहाल ‘सुलह’ हो जाने और गोवा बैठक के दौरान अपनी ‘निष्ठा’ का संकेत देने वाले कुछ नेताओं के बदले सुर के बावजूद इतना तय है कि आडवाणी की कथित उपेक्षा से आहत कुछ नेता अभी भी पृथ्वीराज रोड के आडवाणी के आवास की परिक्रमा कर रहे हैं। इनमें लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज, पूर्व नागरिक उड्डयन मंत्री अनंत कुमार, वकील से राजनीतिज्ञ बने रवि शंकर प्रसाद, मध्यप्रदेश के मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान, दिल्ली की पूर्व मेयर आरती मेहरा आदि के नाम लिए जा रहे हैं। शत्रुघ्न सिन्हा, वरुण गांधी, वेंकैया नायडू, जसवंत सिंह, उमा भारती और अब तटस्थ हो गए यशवंत सिन्हा भी आडवाणी समर्थक माने जाते हैं। पार्टी में नरेंद्र मोदी का अपना ‘कुनबा’ भी कोई छोटा नहीं है, बल्कि कई मायनों में काफी वजनदार है। राजनाथसिंह उन्हे सर्वाधिक लोकप्रिय मानते है। अरूण जेतली भाजपा के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के दिनों से मोदी के मित्र रहे हैं। 2002 के गुजरात दंगों से आहत तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने जब राजधर्म का पालन न करने पर मोदी को मुख्यमंत्री पद से हटाने की राय जता दी थी, तब मोदी को बचाने वालों में जेटली भी थे। गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पार्रिकर मोदी के प्रशंसक और समर्थक हैं। वे कई बार मोदी को क्षेत्रीय क्षत्रप कहे जाने पर नाराजगी भी जता चुके हैं।  छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने कभी भी शिवराज सिंह चौहान की तरह खुद को नरेंद्र मोदी का प्रतिस्पर्धी होने को नकारा। बल्कि वे मोदी की कार्यशैली के कई अंशों को अपनाते भी रहे हैं। राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, सीपी ठाकुर आदि मोदी के समर्थन में शुरू से रहे हैं। भाजपा उपाध्यक्ष स्मृति ईरानी तो कह ही चुकी हैं- ‘हम सभी जानते हैं कि देश क्या चाहता है? यह भी हमें पता है कि पार्टी किसे चाहती है?’ विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष अशोक सिंघल ने तो आडवाणी को सलाह दी है कि उन्हें मोदी का सहयोग व समर्थन करना चाहिए। आरएसएस के वरिष्ठ नेता सुरेश सोनी ने संघ व मोदी के बीच रिश्ते बनाने में अहम भूमिका निभाई है।

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