Translate

Sunday, 30 June 2013

संकट में देश, विदेश में नेता


     

कहते हैं कि जब रोम जल रहा था, तो नीरो (राजा) वंशी बजा रहा था। उत्तराखंड में भयावह तबाही के दौरान कांग्रेस की ओर से प्रधानमंत्री पद के संभावित उम्मीदवार, जो गरीबों के घरों में रहने और खाने के लिए जाने जाते हैं, पता नहीं कहां चले गये थे और अब नरेन्द्र मोदी के उत्तराखंड दौरे के बाद प्रकट हो गये हैं।

इसी तरह छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में नक्सलियों ने जब राज्य के प्रमुख कांग्रेसी नेताओं की निर्मम हत्या की, तब गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे अमेरिका में थे। उनका स्वदेश आगमन एक सप्ताह बाद हुआ। उनकी सफाई थी कि आंख के जिस डॉक्टर को दिखाना था, वे एक सप्ताह बाद लौटने वाले थे। इसलिए मेरा तब तक रहना जरूरी था। यद्यपि गृहमंत्री या किसी अन्य शासनाधिकारी से यह अपेक्षा नहीं की जाती कि किसी आपदा के समय वह अपनी निजी सुविधा के लिए दायित्व निर्वहन को इस सतही तरीके से लें।

तो क्या यह समझा जाए कि राहुल गांधी में 'नीरो' के समान संवेदनशून्यता है, जिसने इतनी बड़ी आपदा का समय पर संज्ञान लेना उचित नहीं समझा। जहां सभी राजनीतिक दल, राज्य सरकारें, सांसद, विधायक, सामाजिक और स्वयंसेवी संगठन अपने सामर्थ्य के अनुसार बचाव कार्य और सहायता में लगे हैं, वहीं कांग्रेस का उपाध्यक्ष कहां घूम रहा है, इसका किसी को पता नहीं था। वे कम से कम अपनी पार्टी के लोगों का तो आह्वान कर ही सकते थे कि वे जी जान से बचाव और सहायता कार्य में जुटें! बहरहाल, अब वह औपचारिकता पूरी करने के लिए उत्तराखंड पहुंच गये हैं।


हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान में यह आम चलन है, जो व्यक्ति सत्ताच्युत हुआ वह पुनः सत्ता में आने की पूरी विश्वसनीयता तक विदेश में ही रहता है। (पता नहीं मुशर्रफ ने कैसे गलती कर दी)। हमारे देश में भी एक राजनीतिक घराने पर विपक्ष लगातार आरोप लगाता रहा है कि उसका प्रमुख सत्ता से बाहर रहते समय शायद ही कभी स्वदेश में देखा जाता हो। वह कश्मीर का अब्दुल्ला परिवार है।

पाकिस्तान के जो हुक्मरान विदेशों में जा बसते हैं, उनके पास इतनी संपत्ति कहां से आती है, इसका पता तो इस बात से ही लगता है कि दुनिया भर के जितने राजनीतिक लोगों का धन स्विस बैंक में जमा है, उसमें सबसे अधिक पाकिस्तानी हैं। एक लेखक ने तो व्यंग्य में यहां तक कह डाला है कि अमेरिका को पाकिस्तान को दी जाने वाली सहायता उसके हुक्मरानों के नाम सीधे स्विस बैंक में जमा कर देनी चाहिए।

कांग्रेस ने भी 2009 के चुनाव में सौ दिन में महंगाई कम करने और उतने ही समय में स्विस बैंक खाताधारियों का खुलासा करने का वचन दिया था। जो हालत महंगाई की उससे निपटने की प्रयासों से बनी हुई है, वैसी ही स्थिति स्विस बैंक के खातेदारों की जानकारी देने के बारे में भी है। यह आश्चर्य की बात है कि सूचना का अधिकार देने वाली सरकार इस सूचना को छिपा रही है। सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा के एक बिल्डर कंपनी से संबंध-अनुबंध की जानकारी भी सार्वजनिक हित में नहीं होगी, ऐसा कहकर वह बड़े भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग पर पर्दा डाल रही है।

केन्द्र सरकार का विश्वास न गांधीवाद में है न ही समाजवाद में। वह तो खुलकर बाजारवाद में टूट पड़ी है, जहां सौदेबाजी से काम चलता है। केवल आर्थिक क्षेत्रों में ही नहीं, बल्कि राजनीतिक क्षेत्र में भी ऐसी सौदेबाजी दिखाई देती है। अभी कांग्रेस की सौदेबाजी उत्तर प्रदेश के दो राजनीतिक दलों- सपा और बसपा के साथ चल रही थी। हाल ही में उसने बिहार को भी इस दायरे में ले लिया है। शरद यादव चाहे जितना समाजवादियों के गैर कांग्रेसवाद का ढिंढोरा पीटें, उन्हें अपने राजनीतिक अस्तित्व के लिए नीतीश कुमार से समझौता करना ही पड़ा है। सौदेबाजी की शक्ति ही संभवतः कांग्रेस उपाध्यक्ष की बेपरवाही का मूल है।

No comments:

Post a Comment