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Sunday, 2 June 2013

'घर के भेदी' ने कराया नक्सली हमला ?




 छत्तीसगढ़ नक्सली हमले की जांच कर रही राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को प्राथमिक जांच में इस बात के पक्के सबूत मिले हैं कि किसी 'घर के भेदीÓ ने हमले में अहम भूमिका निभाई है। हालांकि खुफिया सिस्टम की नाकामी और सुरक्षा व्यवस्था में कमी भी एक मुख्य वजह रही थी। एजेंसी को आशंका है कि हमले में जिंदा बचे विधायक कबासी लखमा की भी हत्या हो सकती है।
घर का भेदी : एनआईए के एक सीनियर अधिकारी के मुताबिक, प्राथमिक जांच में पता चला है कि कांग्रेसी नेताओं के काफिले में शामिल कोई 'शख्सÓ नक्सलियों के संपर्क में था। सटीक सूचना के कारण ही नक्सली दिनदहाड़े इतना बड़ा हमला करने में कामयाब रहे। सूत्रों का कहना है कि इस बात के पुख्ता सबूत मिले हैं कि हमले में घर के ही भेदी ने अहम भूमिका निभाई है।
जांच एजेंसी की टीम ने हमले के दिन के पूरे कॉल डिटेल खंगाले हैं। इन्हीं के आधार पर इस बात का दावा किया जा रहा है। गौरतलब है कि इस हमले में छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नंद कुमार पटेल और सीनियर आदिवासी नेता महेंद कर्मा सहित 28 लोग मारे गए थे और करीब 30 लोग घायल हुए थे।
लखमा की हो सकती है हत्या : सूत्रों के मुताबिक, इस हमले में नक्सलियों द्वारा छोड़े गए कोंटा के विधायक कबासी लखमा सहित चार कांग्रेसी नेता संदेह के दायरे में हैं। इनमें एक नेता ने काफिले को बीच में ही छोड़ दिया था। एक को पांव में गोली लगी है और एक ने हमले के दौरान छिपकर अपनी जान बचा ली। सूत्रों का कहना है कि हमले में विधायक कबासी लखमा एक 'महत्वपूर्ण कड़ीÓ हैं।
उनसे भी पूछताछ की जाएगी। एनआईए अफसरों का मानना है कि कबासी लखमा की सुरक्षा मजबूत की जानी चाहिए। संदेह है कि उनकी भी हत्या की जा सकती है।
सुरक्षा में खामी : प्राथमिक जांच में एनआईए को सुरक्षा व्यवस्था में बड़ी खामियों के बारे में भी पता लगा है। एनआईए के अफसर इस तर्क से सहमत नहीं हैं कि राज्य खुफिया ब्यूरो ने 25 को ही अलर्ट जारी किया था।
एक सीनियर अधिकारी के मुताबिक, स्थानीय पुलिस के स्तर पर भयंकर लापरवाही बरती गई है। स्थानीय प्रशासन ने न तो अलर्ट को गंभीरता से लिया और न ही नेताओं को आगाह किया। इस मामले में इंटेलिजेंस ब्यूरो और एनटीआरओ पर भी उंगलियां उठ रही हैं। अगर राज्य सरकार के खुफिया तंत्र ने सही कदम नहीं उठाए तो राज्य में मौजूद इंटेलिजेंस ब्यूरो के अफसर तो नेताओं को आगाह कर सकते थे। सूत्रों के मुताबिक, इस इलाके में टोही विमानों द्वारा हवाई निगरानी कराने वाली संस्था की भूमिका पर भी सवाल उठा है।नक्सलियों ने महाराष्ट्र को बनाया 'वाररूमÓ
मुबंई। समाजवाद के थोथे सिद्धांतों की आड़ में निर्दोषों और सुरक्षाबलों को निशाना बनाने वाले नक्सलियों ने महाराष्ट्र को एक तरह का 'वाररूमÓ बना लिया है। छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में वारदात को अंजाम देने के बाद नक्सली गढ़चिरौली के जंगलों में आकर छिप जाते हैं, वहीं बुद्धिजीवी माओवादियों को रणनीति बनाने के लिए सांस्कृतिक और शैक्षणिक रूप से समृद्ध शहर पुणे रास आ रहा है। खुद गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ऐसे संकेत दे चुके हैं।
विदर्भ क्षेत्र का गढ़चिरौली जिला छत्तीसगढ़ व आंध्रप्रदेश से सटा है। जिले का कुछ हिस्सा कर्नाटक से भी मिलता है। यही कारण है कि छत्तीसगढ़-आंध्र में बड़ी वारदात को अंजाम देने के बाद नक्सली गढ़चिरौली आ जाते हैं, जहां पहले से सक्रिय दलम (दस्ते) इन मेहमानों को सुरक्षित ठिकाना एवं अन्य सुविधाएं प्रदान करते हैं। मामला शांत होने के बाद नक्सली अपने राज्य में लौट जाते हैं।पुलिस सूत्रों के अनुसार, गढ़चिरौली में नक्सलियों के 16 दल सक्रिय हैं। इनमें से चार-पांच गश्त करके पुलिस एवं अन्य गतिविधियों की खबर रखते हैं। तीन-चार छापामार युद्ध (हमला करके भागने) में माहिर हैं। बाकी सुरक्षित ठिकानों पर नए ऑपरेशन के आदेश का इंतजार करते हैं। जानकारों के अनुसार, पुणे 15 वर्षों से माओवादी बुद्धिजीवियों का गढ़ है। 10-12 वर्ष पूर्व प्रभात रोड की एक इमारत से भारी मात्रा में हथियार बरामद हुए थे। उसके बाद से ही पुलिस सचेत हो गई। वह कुछ संदिग्ध सामाजिक संगठनों पर भी निगाह रखती है। बताया जाता है कि पुणे स्थित माओवादी केंद्रों से ही गढ़चिरौली में सक्रिय दलम को आर्थिक मदद भी पहुंचाई जाती है। केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे खुद ही संकेतों में पुणे में नक्सलियों की मौजूदगी की तस्दीक कर चुके हैं। गृह मंत्री बनने के अगले ही दिन पुणे में हुए धमाकों पर शिंदे ने नक्सली गतिविधि का संदेह जताया था।हमले में विधायक कबासी लखमा एक 'महत्वपूर्ण कड़ीÓ हैं। उनसे भी पूछताछ की जाएगी। एनआईए अफसरों का मानना है कि कबासी लखमा की सुरक्षा मजबूत की जानी चाहिए। संदेह है कि उनकी भी हत्या की जा सकती है।
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर बस्तर क्षेत्र की जीरम घाटी में हुए नक्सली हमले में नेशनल इंटेलिजेंस एजेंसी (एनआईए) ने नक्सलियों पर मामला दर्ज कर लिया है। मामले का ट्रॉयल जिला न्यायालय में चलेगा और इंटेलीजेंस आईजी मुकेश गुप्ता इसके नोडल अधिकारी होंगे। एनआईए की टीम ने हमले के समय काफिले में रहे प्रदेश कांग्रेस सचिव विवेक वाजपेयी से भी मामले की जानकारी ली और बयान भी दर्ज किया।
विगत 25 मई को बस्तर में सुकमा से लौटते समय कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा के काफिले पर नक्सलियों ने घेराबंदी कर हमला कर दिया था, इस मामले में केंद्रीय गृह मंत्रालय के आदेश पर नेशनल इंटेलिजेंस एजेंसी ने नक्सली हमले की जांच शुरू कर दी है। एनआईए ने नक्सलियों के खिलाफ धारा 341, 147, 148, 149, 307, 302, 427, 395, 396, 120 बी, 25-27 आर्म्स एक्ट के साथ ही विस्फोटक अधिनियम की 3-5 और गैरकानूनी कार्य प्रतिषेध अधिनियम की धारा 38 (2) व 39 (2) के तहत मामला दर्ज किया है। एनआईए की टीम घटना के बाद से लगातार घटनास्थल जीरम घाटी और आसपास के क्षेत्रों में साक्ष्य जुटाने में जुटी हुई है।

घटना को अंजाम देने वाले नक्सलियों और संदेहियों की पहचान करने के साथ ही षड्यंत्रकारियों का नाम सामने आने के बाद एनआईए की टीम उन्हें हिरासत में लेकर पूछताछ करेगी। इस कार्रवाई के लिए उन्हें न्यायालयीन प्रक्रिया से भी गुजरना पड़ेगा। एनआईए के गठन के समय से ही तय हो चुका है कि प्रदेश के लिए एनआईए की विशेष अदालत बिलासपुर जिला कोर्ट में होगी और जिला न्यायाधीश उनके मामलों की सुनवाई करेंगे। प्रदेश में उनके नोडल अधिकारी आईजी इंटेलीजेंस मुकेश गुप्ता होंगे। एनआईए ने प्रदेश भर में दरभा की जीरम घाटी नक्सली कांड के रूप में पहला मामला दर्ज किया है।
लिहाजा, इस प्रकरण का ट्रायल जिला कोर्ट में चलेगा। इसी सिलसिले में मामले की सुनवाई, आरोपियों की गिरफ्तारी, रिमांड लेने संबंधित आवेदन बीते दिनों जिला कोर्ट में पेश किए गए हैं। न्यायालीयन कामकाज निपटाने के लिए एनआईए को शहर में दफ्तर की आवश्यकता भी होगी, इसके लिए टीम ने ऑफिस के लिए जगह उपलब्ध कराने कहा है। स्थानीय अधिकारी दफ्तर के लिए राज्य शासन से अधिकृत आदेश का इंतजार कर रहे हैं।

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