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Sunday, 23 June 2013

शाह-मिस्त्री आमने-सामने





भाजपा के अमित शाह को टक्कर देने के लिए कांग्रेस ने मधुसूदन मिस्त्री को उत्तर प्रदेश का प्रभार सौंपा है। दोनों गुजरात से आते हैं और उत्तर प्रदेश में एक-दूसरे के खिलाफ चुनावी ताल ठोंकेंगे। मधुसूदन मिस्त्री गुजरात से आते है। नरेन्द्र मोदी पर हमलावर रहते हैं। पिछड़े वर्ग से आते हैं। कर्नाटक में कांग्रेस को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। और हाल ही में देशभर का दौरा कर एक रिपोर्ट राहुल गांधी को सौंपी है लोकसभा के सीटों के आंकलन पर। यानि राहुल के विश्वासपात्रों में से एक है मुधूसूदन मिस्त्री। अब  राहुल ने उन्हें उत्तरप्रदेश की जिम्मेदारी सौंप कर साफ कर दिया है की वह नरेन्द्र मोदी से मुकाबले का  नेतृत्व खुद करेंगे। यानि मोदी के अमित शाह के सामने राहुल के मधुसूदन मिस्त्री। चुनाव नजदीक आते  आते बयानों के तीखे तीर चलने की अब आगाज हो जाएगा।
वर्तमान सियासी हालात को देखकर यह साफ लग रहा है कि भाजपा नरेंद्र मोदी के नेतृत्व पर किसी तरह का समझौता नहीं करने के मूड में है। नरेंद्र मोदी को यह पता है कि दिल्ली में ताजपोशी के लिए उत्तर प्रदेश में बड़ी जीत जरूरी है। उन्?होंने अमित शाह को पिछले दिनों उत्तर प्रदेश भेजकर चुनावी तैयारियों का जायजा लिया। ऐसी खबर भी है कि नरेंद्र मोदी को लखनऊ या वाराणसी से चुनाव लड़वाया जा सकता है। इसके लिए अमित शाह माहौल भी बना रहे हैं। भाजपा के मिशन यूपी से कांग्रेस भी सतर्क हो गई है। कांग्रेस ने मोदी और अमित शाह की काट के लिए चतुर चुनावी रणनीतिकार मधुसूदन मिस्त्री को यूपी का प्रभारी नियुक्?त कर चुनौती देने की कोशिश की है। अभी हाल ही में कांग्रेस को कर्नाटक में शानदार जीत दिलाने वाले मधुसूदन मिस्त्री के बारे में कहा जा रहा है कि कांग्रेस में उनसे बेहतरीन संगठनकर्ता कोई नहीं है।
यह भी संयोग ही है कि दोनों ही दलों ने पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश के नेताओं के हाथ से प्रदेश का प्रभार लेकर गुजरात के नेताओं को सौंपा है। बीजेपी में इससे पहले उत्तर प्रदेश के प्रभारी नरेंद्र सिंह तोमर थे, जो फिलहाल मध्य प्रदेश में पार्टी के अध्यक्ष हैं। कांग्रेस के प्रभारी दिग्विजय सिंह थे जिन्हें अब दक्षिण के सूबों का प्रभार दे भेजा गया है। कांग्रेस के इस ऐलान के बाद अगले चुनाव को लेकर उत्तर प्रदेश में दो गुजरातियों की जंग बेहद दिलचस्?प होने की उम्?मीद है।
सच तो यह भी है कि 2014 की जंग के मद्देनजर एक तरफ नरेंद्र मोदी हैं, जिन्हें भाजपा का अघोषित पीएम उम्मीदवार माना जाता है, दूसरी तरफ राहुल गांधी कांग्रेस के बड़े चेहरे हैं। सवाल यह है कि क्या कांग्रेस मोदी बनाम राहुल जंग की तैयार कर रही है। राष्ट्रीय कार्यकारिणी में सबसे बड़ा बदलाव राहुल के करीबी माने जाने वाले मधुसूदन मिस्त्री हैं। उन्हें उत्तर प्रदेश प्रभारी और केंद्रीय चुनाव समिति का अध्यक्ष बनाया गया है। कांग्रेस की नई कार्यकारिणी में अलग-अलग इलाकों के प्रतिनिधित्व का ख्याल रखा गया है तो जातीय समीकरण को बरकरार रखते हुए उसे धार देने की कोशिश की गई है।बीजेपी में यूपी का प्रभार मोदी के करीबी अमित शाह को मिला है। शख्सियत की जंग में मोदी छा जाने का हुनर जानते हैं, लिहाजा कांग्रेस मोदी बनाम राहुल की जंग सिरे से खारिज कर देती है। खुद राहुल गांधी भी मोदी पर बयान देने से बचते हैं। ये उनकी बाजीगरी का खास पहलू है। माना जा रहा है कुशल चुनाव प्रबंधन और प्रशासनिक काबलियत वाले मोदी को कांग्रेस बारीक स्तर पर तैयार रणनीति से पछाड़ना चाहती है। राहुल इसके लिए देश भर में दौरे कर रहे हैं। संगठन में ऐसे चेहरों को पहचानने की कोशिश में हैं, जिन पर जीत की बाजी लगाई जा सके। इस मकसद में मोदी की वजह से होने वाला संभावित जातीय ध्रुवीकरण भी कांग्रेस का मददगार बनेगा।
इसमें उत्तर प्रदेश सबसे बड़ा किरदार है, जहां 80 लोकसभा सीटें हैं। यही वजह है कि फेरबदल की बाजी से राहुल ने छुपा हुआ पत्ता बाहर निकाला है। मधुसूदन मिस्त्री को उत्तर प्रदेश और केंद्रीय चुनाव समिति का प्रभारी बनाया गया है। हाल ही में कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस की जीत से मधुसूदन मिस्त्री को नई पहचान मिली है। उनसे यूपी में भी कमाल दोहराने की उम्मीद की जा रही है। हालांकि, उत्तर प्रदेश में न कांग्रेस की चुनौती आसान है, न मधुसूदन मिस्त्री की। भाजपा की तरफ से उत्तर प्रदेश में नरेंद्र मोदी के खास सिपहसलार अमित शाह सामने हैं। दिलचस्प है कि उनके मुकाबले के लिए उतरे मधुसूदन मिस्त्री भी गुजरात के साबरकांठा से लोकसभा सदस्य रहे हैं।
2012 में गुजरात विधानसभा चुनाव में मोदी की जीत के बावजूद मिस्त्री की अगुवाई में साबरकांठा में कांग्रेस को शानदार जीत मिली। उन्हें मोदी के सिपहसलार अमित शाह की जोड़ का चुनावी रणनीतिकार माना जाता है। खास बात यह है कि अगर मोदी संघ से हैं तो राहुल का दांव बन चुके मिस्त्री के भी संघ से रिश्ते रहे हैं। वो संघ के स्वयंसेवक रहे गुजरात के पूर्व सीएम शंकर सिंह वाघेला के साथ बीजेपी से अलग हुए थे। यानी बीजेपी और संघ की रणनीति को करीब से जानने वाले मिस्त्री, मोदी-अमित शाह के दांवपेंच समझ कर उसकी काट तैयार कर सकते हैं। पिछड़े वर्ग से आने वाले मधुसूदन मिस्त्री की पृष्ठभूमि एनजीओ की भी रही है, जो आम आदमी के कांग्रेस के नारे के करीब है। उत्तर प्रदेश की इस जंग का सच यह भी है कि भाजपा और कांग्रेस उत्तर प्रदेश में तीसरे और चौथे नंबर की पार्टियां हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि राहुल की बाजी अमित शाह की रणनीति की काट से ज्यादा कांग्रेस को चुनावी सफलता दिलाने पर टिकी है।
2012 के विधानसभा चुनाव में गांधी परिवार के गढ़ अमेठी और रायबरेली में भी उसे हार मिली। रायबरेली की पांच सीटों में उसे एक भी सीट नहीं मिली। अमेठी की पांच सीटों में उसे 2 सीट मिलीं जबकि 2007 के विधानसभा चुनाव में दोनों जगह से वो 7 विधानसभा सीट जीतने में कामयाब हुई थी। अमेठी लोकसभा क्षेत्र सुल्तानपुर जिले में आता है, जहां भाजपा के वरुण गांधी हाल ही में रैलियां कर अपने इरादे दिखा चुके हैं। वहीं, अमित शाह को यकीन है कि भाजपा का भविष्य उत्तर प्रदेश ही बनाएगा।
गौर करने योग्य यह भी है कि अमित शाह जोश में हैं। सच यह भी है कि उत्तर प्रदेश को वे राहुल से बेहतर नहीं जानते। 2004 से सियासत में उतरने के बाद इस बाजीगर ने उत्तर प्रदेश का चप्पा-चप्पा छाना है। यूथ कांग्रेस और एनएसयूआई जैसे संगठन के जरिए वे जमीनी स्तर पर कांग्रेस को खड़ा कर रहे हैं, जिसके नतीजे 2014 में दिख सकते हैं।




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