बीजेपी और जेडीयू का 17 साल पुराना गठबंधन टूट के कगार पर है। मोदी को बीजेपी चुनाव अभियान की कमान सौंपे जाने से नाराज जेडीयू नेताओं के बयान बेहद तीखे हो गए हैं। माना जा रहा है कि जल्द ही नीतीश कुमार बिहार में बीजेपी से गठबंधन तोड़ सकते हैं। खबर ये भी है कि जेडीयू सरकार बचाने के लिए निर्दलियों के संपर्क में है। उधर बीजेपी ने भी आपात स्थिति पर विचार के लिए पटना में बैठक की है। सवाल है कि क्या 2014 से पहले एनडीए बिखर जाएगा।
सच तो यही है कि जदयू और भाजपा के रिश्ते अब कुछ दिनों के रह गए हैं। मोदी को लेकर उनके घोर विरोधी माने जाने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अब तक मुंह नहीं खोला है, परंतु दोनों दलों के कई नेता आमने-सामने नजर आ रहे हैं। भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के इस्तीफे से लेकर उनके मनाए जाने तक के घटनाक्रम को देखा जाए, तो यह साफ हो गया है कि मोदी को लेकर भाजपा अब पीछे नहीं हटने जा रही है। जदयू के नेता और मंत्री श्याम रजक कहते हैं कि गोवा में जो कुछ हुआ, हम सभी लोग इससे दुखी हैं। पार्टी ने अपनी राय पहले ही जाहिर कर दी है, इसमें पीछे हटने और आगे बढ़ने का प्रश्न कहां है? दूसरी ओर, राज्य के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी का कहना है कि हम लोगों की भरपूर कोशिश होगी कि गठबंधन का पालन किया जाए। हालांकि, राजनीति में तमाम विकल्प खुले रहते हैं। भाजपा ने हर स्तर पर खुद को तैयार रखा है। नरेंद्र मोदी को चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाए जाने से चुनाव में बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद है।
कहा तो यह भी जा रहा है कि पूरी तैयारी हो चुकी है, केवल और केवल घोषणा बाकी है। 17 साल से साथ रही जदयू एनडीए छोड़ने का पटकथा लिख चुकी है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और शरद यादव भाजपा के शीर्ष नेताओं से लगातार संपर्क में हैं, लेकिन लगता है कि भाजपा के शीर्ष नेताओं की ‘मान मनौव्वल’ भी काम नहीं आ रही है। सेवा यात्रा पर 13 जून को कटिहार रवाना होने से पहले पटना एयरपोर्ट पर मीडिया से बातचीत में नीतीश कुमार ने बताया कि 12 जून की रात भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह और आज सुबह मुरली मनोहर जोशी ने उन्?हें फोन किया था। हालांकि, उन्होंने यह नहीं बताया कि उनकी इन दोनों नेताओं से क्या बात हुई? गौर करने योग्य यह भी है कि इससे पहले लालकृष्ण आडवाणी ने भी नीतीश कुमार को फोन किया था। भाजपा के पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी ने जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव से भी भेंट की थी।
जदयू-भाजपा के संबंध से इत्तर बात की जाए, तो पूर्वी भारत के पिछड़ेपन के बहाने पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडीशा और झारखंड के चार राजनीतिक दलों ने नए मोर्चेबंदी की तैयारी करनी शुरू कर दी है। तृणमूल कांग्रेस, जदयू, बीजद और झारखंड विकास मोर्चा फिलहाल क्षेत्रीय विकास के मुद्दे पर साथ आएंगे। बाद में यह गोलबंदी यूपीए और एनडीए से अलग एक सियासी फ्रंट में तब्दील हो सकती है। जदयू के राज्यसभा सांसद के.सी. त्यागी का कहना है कि हम पूर्वी भारत के चार राज्यों के पिछड़ेपन को दूर करने, इन्हें विशेष राज्य का दर्जा दिलाने और विकास के अन्य मसलों पर साझा लड़ाई के लिए एक मोर्चा बना सकते हैं। क्या तीसरा मोर्चा बनेगा या नहीं? इस सवाल पर त्यागी का कहना था कि हमने ममता से भी यही कहा है कि अभी तो हम एनडीए में हैं। गौर करने योग्य यह भीे है कि जदयू नेता त्यागी जिस समय कोलकाता में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात कर रहे थे, उसी समय तृणमूल कांग्रेस नेता ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और ओडीशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से फोन पर बात की। झारखंड विकास मोर्चा के बाबूलाल मरांडी से उनकी पहले ही बात हो चुकी है। दरअसल, ये सभी दल मुद्दे के आधार पर साथ आने को तैयार हैं। जदयू ने सियासी फ्रंट के लिए एनडीए से आधिकारिक रूप से अलग होने तक इंतजार करने का फैसला किया है।
जदयू से जुड़े लोगों का कहना है कि गठबंधन से अलग होने के बाद सरकार बनाने में कोई दिक्कत नहीं आएगी। 243 सदस्यीय बिहार विधानसभा में जदयू के 118 विधायक हैं, जबकि भाजपा के 91, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के 22 और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) और लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के एक-एक और निर्दलीय विधायकों की संख्या छह हैं। बहुमत के लिए 122 का आंकड़ा जरूरी है। राजनीतिक प्रेक्षक इस बात की ओर भी इशारा कर रहे हैं कि जदयू-भाजपा गठबंधन टूटने की स्थिति में राजद में फूट पड़ सकती है। जदयू के कई रणनीतिकार राजद के विधायकों से लगातार संपर्क में हैं। राजद विधायकों को कई प्रकार के प्रलोभन दिए जा सकते हैं। जाहिर है नीतीश को समर्थन देकर 4 निर्दलीय मंत्री पद की मलाई की खातिर नीतीश का हाथ थामने को तैयार हो जाएंगे। यह कहने की आवश्यकता नहीं कि जिस दिन सत्ता का यह अंकगणित बन गया, उस दिन नीतीश कुमार ठीक उसी तरह भाजपा को डंप करेंगे, जैसे ओडीशा में नवीन पटनायक ने किया था। जाहिर है भाजपा तिलमिलाई हुई है। कोई नीतीश को नसीहत दे रहा है, कोई धमका रहा है, तो कोई नैतिकता के आधार पर इस्तीफा मांग रहा है। क्या वाकई में भाजपा चाहती है कि नीतीश से पिंड छूटे?
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