नीतीश ने बिहार की जनता के बीच यह संदेश देने की कोशिश की है कि मोदी विरोधी स्टैंड के कारण वो भारी सेक्युलर है। लेकिन इस रुख का लाभ नीतीश को मिलेगा इसमें भारी संदेह है। उसके कई कारण है। बिहार में अभी भी मुस्लिम मतदाता लालू यादव को ज्यादा विश्वसनीय मानता है। उसका कारण है। 1990 में एलके आडवाणी के रथ को बिहार के समस्तीपुर में लालू यादव ने ही रोका था। हाल ही में महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र में हुए चुनाव में मुस्लिम मत लालू यादव को पड़े। नीतीश कुमार के लगातार नरेंद्र मोदी विरोधी स्टैंड का कोई लाभ महाराजगंज में उनकी पार्टी को नहीं मिला। उल्टे भारी नुकसान हुआ। अगड़ी जातियां नीतीश के नरेंद्र मोदी विरोधी रुख के कारण या तो शिथिल हो गई या नीतीश को सबक सिखाने के लिए राजद को वोट कर आयी।
बिहार के मुस्लिम मतदाताओं को अभी भी ये लगता है कि भाजपा से संबंध विच्छेद के बाद भी आज नहीं तो कल नीतीश कुमार फिर भाजपा से दोस्ती करेंगे। इसका कारण नीतीश कुमार की अवसरवादी राजनीति है। अपने राजनीतिक जीवन में नीतीश ने अपने फायदे के लिए अपने पुराने दोस्तों को छोड़ा नए दोस्त बनाए। मुस्लिम मतदाताओं को पता है कि नीतीश कुमार तब भी राजग के मंत्रिमंडल में मौजूद रहे जब गुजरात में भीषण दंगे हुए थे।
बिहार की जनसंख्या का भूगोल भी नीतीश कुमार के पक्ष में नहीं है। पूरे बिहार में नीतीश कुमार को भारी सफलता इसलिए मिली की कांग्रेस के परंपरागत समर्थक ऊंची जातियां जो फिलहाल भाजपा में है, वो पूरे राज्य में गठबंधन की स्थिति में नीतीश के साथ आए है। लेकिन गठबंधन टूटने की स्थिति में ऊंची जातियों की स्वाभिवक पसंद भाजपा होगी। इसमें ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत और बनिया शामिल है। महाराजगंज में भी नरेंद्र मोदी का लगातार विरोध से नाराज ऊंची जातियों ने नीतीश को सबक सिखाने के लिए राजद को वोट दिया।
लालू यादव ने इस सच्चाई को स्वीकार किया कि ऊंची जातियों का एक बड़ा तबका महाराजगंज में उन्हें वोट किया। ऊंची जातियों के हटने के बाद नीतीश को सबसे बड़ी चुनौती पिछड़े समाज से मिलेगी, जिसके वोटिंग पैटर्न को मुस्लिम मतदाता नजदीक से देख अपना वोटिंग का फैसला लेता है। बिहार में नीतीश कुमार की जाति कुर्मी सिर्फ छह जिलों में ही मजबूत स्थिति में है। जबकि लालू यादव की जाति बिहार के सभी जिलों में एक अच्छी संख्या लिए बैठे है। जिस अति पिछड़ा वोट पर नीतीश भारी विश्वास कर रहे है, वो अभी भी जिलों के स्थानीय समीकरण के हिसाब भाजपा, लालू यादव और नीतीश के बीच बंटा है। इन परिस्थितियों का लाभ लालू यादव को सबसे ज्यादा मिलेगा।
बिहार में एक सफल मुस्लिम यादव समीकरण पूरे राज्य में बनता है। जबकि कुर्मी-मुस्लिम समीकरण बिहार के छह जिलों में सिमट जाएगा। वैसे भी अगर मुस्लिम मतदाताओं को अगर यह लगेगा कि ऊंची जातियों का वोट नीतीश बजाए भाजपा की तरफ जा रहा है तो वे नीतीश को वोट देकर अपना वोट खराब नहीं करेंगे। उनकी स्वभाविक पसंद लालू यादव होंगे। दिलचस्प स्थिति दलित वोटों की है। पासवान बिरादरी पूरे राज्य में नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोल बैठा है। जबकि महादलित वोट बंट गया है। ये भाजपा, नीतीश और लालू के पास स्थानीय समीकरणों के हिसाब से जाएगा। महादलित अपने इलाके में दबंग बिरादरियों के रूख को देखते है। अगर इलाके में यादव दबंग है तो महादलित यादवों के साथ हो जाते है। अगर इलाके में ऊंची जाति के लोग दबंग है तो महादलित उनके साथ जाते है।
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