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Wednesday, 12 June 2013

नयी सरकार का दावा पेश करेंगे नीतीश




बिहार की राजनीति में अब एक नया भूचाल आने वाला है। सत्ता के गलियारों में बह रही बयार को आधार मानें तो आगामी रविवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने पद से इस्तीफ़ा देंगे और संभव है कि ठीक एक दिन बाद वे राज्यपाल से मिलकर उनके समक्ष नये सिरे से दोबारा अपनी दावेदारी प्रस्तुत करेंगे।
बताते चलें कि भाजपा में मोदी युग के शुरु होने से जदयू में कोलाहल मचा है। बताया जा रहा है कि इससे पार्टी की धर्मनिरपेक्ष छवि धूमिल हुई है। इस स्थिति से निबटने के लिए जदयू की कोर कमेटी की बैठक शुक्रवार अथवा शनिवार को होगी और बताया जा रहा है कि इस बैठक का मूल एजेंडा गठबंधन का सवाल रहेगा। हालांकि अभी से ही जदयू ने अपनी सारी ताकत को समेटना शुरु कर दिया है। उल्लेखनीय है कि विधानसभा में जदयू के पास विधायकों की पर्याप्त संख्या है और अगर वह भाजपा को सत्ता से बाहर भी कर देगी तब भी वह सता के लिए सबसे बड़ी दावेदार होगी। पटना के राजनीतिक गलियारों में सत्ता परिवर्तन के प्रयास तेज हो गए हैं। जदयू खेमे में भी विधायकों को एकजुट किया जा रहा है ताकि समय आने पर कठोर फ़ैसला लिया जा सके। बताया जा रहा है कि भाजपा खेमे के कुछ भारी भरकम विधायक और मंत्री भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कंट्रोल में हैं। जबकि भाजपा खेमे में भी विधायकों की गोलबंदी तेज हो गयी है। सूत्रों की मानें तो जदयू के करीब दो दर्ज्न विधायक भाजपा खेमे में आने को तैयार हैं। सत्ता का जो फ़ार्मूला भाजपा द्वारा आजमाया जा रहा है उसके अनुसार सुशील मोदी सूबे की कमान संभालेंगे। वही जदयू से आने वाले एक मंत्री को उपमुख्यमंत्री की जिम्मेवारी दी जाएगी। हालांकि अभी तक दोनों खेमों में केवल जोर आजमाइश की जा रही है। इस पूरे मामले में असली तस्वीर संभवतः आगामी रविवार को स्पष्ट हो सकेगी। मिली जानकारी के अनुसार रविवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने दल के सभी विधायकों के साथ विशेष बैठक करेंगे और उसी दिन यह तय होगा कि भाजपा के साथ अब उनका गठबंधन रहेगा या नहीं।
हालांकि खुद जनता दल युनाइटेड के लिए एनडीए से दूर जाना इतना आसान नहीं होगा क्योंकि जदयू में कई नेता ऐसे हैं जो एनडीए में रहने का समर्थन करते हैं। लेकिन गोवा की बैठक में जिस तरह से मोदी के जरिए संघ परिवार द्वारा उग्र हिन्दुत्व के रास्ते पर आगे बढ़ने की मंशा प्रकट की गई है उससे अब जदयू के आलाकमान भी हैरान हैं। केसी त्यागी तो बयान देकर कल ही कह दिया था कि भाजपा के भीतर जो हो रहा है वह ठीक नहीं है। खबर है कि अब शरद यादव भी नीतीश की हां में हां मिलाने के लिए तैयार हो गये हैं। शरद यादव से जुड़े सूत्रों का कहना है कि कुछ समय पहले दिल्ली में जदयू की जो राष्ट्रीय कार्यकारिणी हुई थी उसमें शरद और नीतीश में एक किस्म का समझौता भी हो गया था कि अगर भाजपा मोदी को आगे करती है तो जदयू स्वतंत्र होकर अपना निर्णय ले लेगी।
उस वक्त जदयू को भरोसा था कि राजनाथ सिंह के रहते कम से कम भाजपा के भीतर नरेन्द्र मोदी के हाथ में नेतृत्व की कमान नहीं सौंपी जाएगी और मित्र केसी त्यागी का कुछ राजनीतिक कर्ज उतारने की कोशिश राजनाथ सिंह जरूर करेंगे। लेकिन खुद राजनाथ सिंह ने ही गोवा में माला पहनाकर नरेन्द्र मोदी को चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष घोषित कर दिया जिससे जदयू के दिल्ली कैम्प में भी हड़बड़ी साफ दिखाई दे रही है। इसी मौके का फायदा नीतीश कुमार उठा रहे हैं और उस दिशा में आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं जिस दिशा में वे पहले ही जाना चाहते थे।
हाल में ही महराजगंज लोकसभा चुनाव में भी समझा जाता है कि नरेन्द्र मोदी ने सीधा हस्तक्षेप करके जदयू उम्मीदवार को हरवाने की पहल की थी। इसके पहले नीतीश को ही औकात में लाने के लिए लालू के घायल होने पर नरेन्द्र मोदी उनके स्वास्थ्य का हाल चाल भी ले चुके थे। संघ के भीतर भी नरेन्द्र मोदी ने यह बात करीब करीब मनवाने में कामयाबी हासिल कर ली है कि अगर भाजपा और एनडीए में चुनना होगा तो वह किसका चुनाव करेगी? जाहिर है, भाजपा की कीमत पर संघ एनडीए को बनाये रखने की कोशिश तो कभी नहीं करेगा। इसके अलावा भाजपा की बिहार इकाई भी बार बार भाजपा पर दबाव बना रही है कि अगर नरेन्द्र मोदी के नाम के साथ बिहार में आगे बढ़ा जाए तो बिहार में भाजपा जदयू के बराबर आ सकती है।
नीतीश कुमार भी भाजपा की इन योजनाओं से अनजान नहीं है। और नीतीश कुमार के लिए यह ऐसा वक्त है जब वे भाजपा पर कहीं से निर्भर भी नहीं है। बिहार विधानसभा में बहुमत के लिए किसी दल को 122 सीटें चाहिए। बीते विधानसभा चुनाव में राजद के खाते में 115 सीटें आई थीं। इस लिहाज से वे अपने बूते बहुमत से महज 7 सीटें दूर हैं। राज्य में कांग्रेस और लोक जनशक्ति पार्टी के पास क्रमश: 4 और 3 सीटें हैं। इसके अलावा 6 निर्दलीय हैं। इसलिए अगर नीतीश कुमार एनडीए से अलग होते भी हैं तो उन्हें फिलहार प्रदेश में कोई घाटा नहीं होनेवाला है बल्कि कांग्रेस के करीब पहुंचकर वे राज्य के लिए और बेहतर सरकारी अनुदान जुटाने में कामयाब हो जाएंगे। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि नीतीश के अलग होने से राज्य में भाजपा को कोई नुकसान होनेवाला है।
राज्य की तहकीकात के बाद हकीकत तो यह सामने आती रही है कि अगर भाजपा जदयू से दूर हो जाती है तो दिल्ली की राजनीति में भले ही कोई नफा नुकसान हो लेकिन राज्य में भाजपा मोदी फैक्टर के कारण जबर्दस्त फायदा उठा सकती है। बीते विधानसभा चुनाव में भी वोट शेयर के मामले में भले ही नीतीश के वोटों के ज्यादा बढ़ोत्तरी हुई हो लेकिन सीटों के मामले में भाजपा ज्यादा फायदे में रही थी। 141 सीटों पर चुनाव लड़कर अगर नीतीश को 115 सीटें हासिल हुई थीं तो 102 सीटों पर चुनाव लड़कर भाजपा ने 91 सीटों पर जीत हासिल की थी। भाजपा को राज्य में सीधे सीधे 36 सीटों का फायदा पहुंचा था। फिर, राज्य में गठबंधन के प्रबल पक्षकार छोटे मोदी भी बहुत देर तक अपना विरोध जारी रख पायेंगे लगता नहीं है। हालांकि छोटे मोदी इस वक्त बिहार के उपमुख्यमंत्री के साथ साथ वित्त मंत्री भी हैं। इसलिए बड़े मोदी के दबाव में अगर छोटे मोदी की कुर्बानी देकर भी भाजपा को आगे बढ़ना पड़ा तो वह इस वक्त इससे भी नहीं हिचकेगी। ऐसी स्थिति में छोटे मोदी को बड़े मोदी और बड़े भाई नीतीश के बीच किसी एक को चुनना होगा।
फिलहाल, नफे नुकसान का यह आंकलन दोनों ही तरफ से लंबे समय से चल रहा है, और अब तीसरे मोर्चे की तरफ बढ़ते तीन मुख्यमंत्रियों की रजामंदी के साथ ही कोई बड़ी पहल हो जाए तो बड़ा आश्चर्य नहीं होगा। अगर बिहार में जदयू और भाजपा अलग होते हैं तो नीतीश को विशेष राज्य का दर्जा भले ही मिल जाए लेकिन राजनीतिक रूप से कोई विशेष फायदा नहीं होगा। ऐसी स्थिति में भाजपा भी किसी घाटे में नहीं रहेगी। घाटे में अगर कोई रहेगा तो उसका नाम होगा लालू प्रसाद यादव और उनकी राजद। बिहार में दोनों दलों ने संयुक्त रूप से जो राजनीतिक पहुंच कायम कर ली है, उसमें अलग होने के बाद वे पक्ष विपक्ष बन जाएंगे और पहले ही रसातल में जा चुके लालू को इसका सबसे अधिक खामियाजा भुगतना पड़ेगा।

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