नरेंद्र मोदी को लेकर भारतीय जनता पार्टी में कुछ दिन चली अंतरकलह से भले ही कांग्रेस की बांछे खिल गई हों और ममता ने क्षेत्रीय दलों के गठजोड़ का सपना बुना हों लेकिन इस पूरे प्रकरण पर उपहासात्मक, निंदात्मक टिप्पणियों ने यह जता दिया है कि असलियत में नरेंद्र मोदी से सभी आंतकित हैं। ऐसा नहीं होता तो राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के शरद पवार यह नहीं कहते कि मोदी गर्म हवा से भरा गुब्बारा है। ऐसा कहते हुए उन्होने चालीस साल के राजनीतिक अनुभव को दांव पर लगाते हुए भविष्यवाणी की है कि यह गुब्बारा जल्दी ही पिचक जाने वाला हैं। ऐसे ही दूसरी पार्टी के अंदरूनी मामले में कांग्रेस नेता दिलचस्पी लेते हुए मोदी की तुलना हिटलर या पोल पोट से करते और इन नेताओं में उन्हें लोकतंत्र का शत्रु बताने की होड़ मचती। भाजपा में और उससे बाहर नरेंद्र मोदी को भाजपा चुनाव समिति का अध्यक्ष बनाए जाने पर हुई प्रतिक्रिया के दो रूप हैं। भाजपा में जो कुछ हुआ वह दुखद था लेकिन बाहर उसे जिस नजरिए से देखा गया उसमें एक पार्टी में बेवजह खिंची विभाजन रेखा पर सहानुभूति जताने का भाव कम, नरेंद्र मोदी को भविष्य की एक बड़ी चुनौती के रूप में देखने की आशंका ज्यादा थी। और यह आशंका या दुश्चिंता लगातार बढ़ने वाली है क्योंकि नरेंद्र मोदी ने भाजपा चुनाव समिति की कमान संभालते ही आलोचनात्मक टिप्पणियों पर जवाब देने की बजाए रणनीति बनानी शुरू कर दी है। गुजरात में अपनी सक्रियता कम कर आम चुनाव की तैयारी में जुट जाने के लिए वे उपमुख्यमंत्री की नियुक्ति करने और हाल फिलहाल सात केबिनेट व नौ राज्य मंत्रियों के अपेक्षाकृत छोटे से मंत्रिमंडल से सरकार चलाने की व्यवस्था को बदल कर मंत्रिमंडल का विस्तार करने की सोच रहे हैं ताकि कई कई विभाग संभाल रहे मंत्रियों का बोझ कम हो। खुद नरेंद्र मोदी के पास ही सामान्य प्रशासन, प्रशासनिक सुधार व प्रशिक्षण, उद्योग, गृह, पर्यावरण, सूचना व टेक्नोलाजी जैसे विभागों के अलावा ढेरों विभाग हैं। जानकारों के अनुसार ज्यादा समय गुजरात से बाहर रहने के बनते प्रोग्राम से नरेंद्र मोदी राज्य में वैकल्पिक सेनापति की जरूरत महसूस कर रहे हैं। दावेदार कई हैं। राजस्व मंत्री आनंदी पटेल मोदी की खास विश्वास पात्र हैं और उन्हें ज्यादातर विधायकों व मंत्रियों का समर्थन हासिल है। ऊर्जा व उद्योग मंत्री सौरभ पटेल को मोदी की ‘उद्योग मित्र’ की छवि निखारने का श्रेय जाता है। राज्य की राजनीति के जानकारों का मानना है कि नरेंद्र मोदी के बाद उनके गुजरात का मुख्यमंत्री बनने के ज्यादा आसार हैं। पूर्व गृह मंत्री अमित शाह मोदी के दाएं हाथ है। फर्जी मुठभेड़ कांड में दागी होने की वजह से मोदी उन्हें गुजरात में कोई जिम्मेदारी देने की बजाए उनकी प्रबंध कुशलता का इस्तेमाल राष्ट्रीय चुनाव अभियान में ज्यादा पसंद करेंगे। वित्त विभाग समेत स्वास्थ्य, चिकित्सा शिक्षा, परिवहन व परिवार कल्याण जैसे कई महत्वपूर्ण विभाग संभालने वाले नितिन पटेल के फिलहाल उपमुख्यमंत्री बनने की संभावना ज्यादा जताई जा रही है। पिछले साल दिसंबर में उनसे वरिष्ठ वजु बाला को विधानसभा अध्यक्ष बना कर नितिन को वित्त विभाग सौंपा जाना राज्य की राजनीति में उनके बढ़ते कद का प्रमाण है। पर संकट अपनों से नरेंद्र मोदी की पहली चुनौती निश्चित रूप से पार्टी में उभरी गुटबाजी को खत्म करने की होगी। अपनी महत्वाकांक्षा के एक बार फिर ढह जाने से आहत लालकृष्ण आडवाणी की पीड़ा अपनी जगह है लेकिन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) ने काफी पहले से उन्हें और पार्टी को संकेत दे दिया था कि नरेंद्र मोदी को 2014 के चुनाव की कमान संभालने के लिए तैयार किया जाए। आरएसएस से आडवाणी का दुराव जगजाहिर है। उनके समर्थकों की अब सफाई है कि वे मोदी को महत्व दिए जाने से नहीं, बल्कि भाजपा की फैसला करने की प्रक्रिया में आरएसएस की दखलंदाजी से नाराज हुए। ऐसा ही आरोप आडवाणी ने सितंबर 2005 में चेन्नई में हुई पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में तब लगाया था जब जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष घोषित करने के उनके बयान पर हुई फजीहत के बाद आरएसएस ने उन पर पार्टी का अध्यक्ष पद छोड़ने का दबाव बनाया था। सन्ा 2007 के आम चुनाव में भाजपा की हार के बाद लोकसभा में विपक्ष के नेता पद से इस्तीफा देने के दबाव को भी आडवाणी ने संघ की दखलंदाजी माना। सुषमा स्वराज ने उनकी जगह ली लेकिन आडवाणी जिद करके भाजपा संसदीय दल के अध्यक्ष का नया पद गठित करने और उस पर काबिज होने में सफल हो गए। 2011 में जब आडवाणी ने जन चेतना यात्रा निकाली तो आरएसएस ने उन पर यह घोषित करने का दबाव बनाया था कि वे नए नेताओं को मौका देने के लिए प्रधानमंत्री पद की दौड़ से खुद को अलग कर रहे हैं। यह इस बात का संकेत था कि आरएसएस 2014 के चुनाव में आडवाणी को कमान देने के पक्ष में नहीं है। इसकी पुष्टि इसी साल जनवरी में जयपुर में हुए आरएसएस के सम्मेलन में हो गई। आडवाणी उस सम्मेलन में जाने वाले थे लेकिन सम्मेलन की पूर्व संध्या पर भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह के जरिए उन्हें यह संदेश भिजवा दिया गया कि वे आमंत्रित नहीं हैं। राजनाथ सिंह कार्यकारिणी की बैठक के अलावा आरएसएस की सर्वोच्च नीति निर्धारक इकाई अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में शामिल हुए। और तभी उन्हें आरएसएस की यह राय बता दी गई कि मोदी को 2014 के चुनाव की कमान दी जाए। शायद राजनाथ सिंह इस फैसले को ठीक से अमल में नहीं ला पाए, तभी यह अप्रिय तमाशा हुआ। बहरहाल ‘सुलह’ हो जाने और गोवा बैठक के दौरान अपनी ‘निष्ठा’ का संकेत देने वाले कुछ नेताओं के बदले सुर के बावजूद इतना तय है कि आडवाणी की कथित उपेक्षा से आहत कुछ नेता अभी भी पृथ्वीराज रोड के आडवाणी के आवास की परिक्रमा कर रहे हैं। इनमें लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज, पूर्व नागरिक उड्डयन मंत्री अनंत कुमार, वकील से राजनीतिज्ञ बने रवि शंकर प्रसाद, मध्यप्रदेश के मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान, दिल्ली की पूर्व मेयर आरती मेहरा आदि के नाम लिए जा रहे हैं। शत्रुघ्न सिन्हा, वरुण गांधी, वेंकैया नायडू, जसवंत सिंह, उमा भारती और अब तटस्थ हो गए यशवंत सिन्हा भी आडवाणी समर्थक माने जाते हैं। पार्टी में नरेंद्र मोदी का अपना ‘कुनबा’ भी कोई छोटा नहीं है, बल्कि कई मायनों में काफी वजनदार है। राजनाथसिंह उन्हे सर्वाधिक लोकप्रिय मानते है। अरूण जेतली भाजपा के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के दिनों से मोदी के मित्र रहे हैं। 2002 के गुजरात दंगों से आहत तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने जब राजधर्म का पालन न करने पर मोदी को मुख्यमंत्री पद से हटाने की राय जता दी थी, तब मोदी को बचाने वालों में जेटली भी थे। गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पार्रिकर मोदी के प्रशंसक और समर्थक हैं। वे कई बार मोदी को क्षेत्रीय क्षत्रप कहे जाने पर नाराजगी भी जता चुके हैं। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने कभी भी शिवराज सिंह चौहान की तरह खुद को नरेंद्र मोदी का प्रतिस्पर्धी होने को नकारा। बल्कि वे मोदी की कार्यशैली के कई अंशों को अपनाते भी रहे हैं। राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, सीपी ठाकुर आदि मोदी के समर्थन में शुरू से रहे हैं। भाजपा उपाध्यक्ष स्मृति ईरानी तो कह ही चुकी हैं- ‘हम सभी जानते हैं कि देश क्या चाहता है? यह भी हमें पता है कि पार्टी किसे चाहती है?’ विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष अशोक सिंघल ने तो आडवाणी को सलाह दी है कि उन्हें मोदी का सहयोग व समर्थन करना चाहिए। आरएसएस के वरिष्ठ नेता सुरेश सोनी ने संघ व मोदी के बीच रिश्ते बनाने में अहम भूमिका निभाई है।
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Sunday, 30 June 2013
अब कौन रोकेगा नरेंद्र मोदी को?
नरेंद्र मोदी को लेकर भारतीय जनता पार्टी में कुछ दिन चली अंतरकलह से भले ही कांग्रेस की बांछे खिल गई हों और ममता ने क्षेत्रीय दलों के गठजोड़ का सपना बुना हों लेकिन इस पूरे प्रकरण पर उपहासात्मक, निंदात्मक टिप्पणियों ने यह जता दिया है कि असलियत में नरेंद्र मोदी से सभी आंतकित हैं। ऐसा नहीं होता तो राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के शरद पवार यह नहीं कहते कि मोदी गर्म हवा से भरा गुब्बारा है। ऐसा कहते हुए उन्होने चालीस साल के राजनीतिक अनुभव को दांव पर लगाते हुए भविष्यवाणी की है कि यह गुब्बारा जल्दी ही पिचक जाने वाला हैं। ऐसे ही दूसरी पार्टी के अंदरूनी मामले में कांग्रेस नेता दिलचस्पी लेते हुए मोदी की तुलना हिटलर या पोल पोट से करते और इन नेताओं में उन्हें लोकतंत्र का शत्रु बताने की होड़ मचती। भाजपा में और उससे बाहर नरेंद्र मोदी को भाजपा चुनाव समिति का अध्यक्ष बनाए जाने पर हुई प्रतिक्रिया के दो रूप हैं। भाजपा में जो कुछ हुआ वह दुखद था लेकिन बाहर उसे जिस नजरिए से देखा गया उसमें एक पार्टी में बेवजह खिंची विभाजन रेखा पर सहानुभूति जताने का भाव कम, नरेंद्र मोदी को भविष्य की एक बड़ी चुनौती के रूप में देखने की आशंका ज्यादा थी। और यह आशंका या दुश्चिंता लगातार बढ़ने वाली है क्योंकि नरेंद्र मोदी ने भाजपा चुनाव समिति की कमान संभालते ही आलोचनात्मक टिप्पणियों पर जवाब देने की बजाए रणनीति बनानी शुरू कर दी है। गुजरात में अपनी सक्रियता कम कर आम चुनाव की तैयारी में जुट जाने के लिए वे उपमुख्यमंत्री की नियुक्ति करने और हाल फिलहाल सात केबिनेट व नौ राज्य मंत्रियों के अपेक्षाकृत छोटे से मंत्रिमंडल से सरकार चलाने की व्यवस्था को बदल कर मंत्रिमंडल का विस्तार करने की सोच रहे हैं ताकि कई कई विभाग संभाल रहे मंत्रियों का बोझ कम हो। खुद नरेंद्र मोदी के पास ही सामान्य प्रशासन, प्रशासनिक सुधार व प्रशिक्षण, उद्योग, गृह, पर्यावरण, सूचना व टेक्नोलाजी जैसे विभागों के अलावा ढेरों विभाग हैं। जानकारों के अनुसार ज्यादा समय गुजरात से बाहर रहने के बनते प्रोग्राम से नरेंद्र मोदी राज्य में वैकल्पिक सेनापति की जरूरत महसूस कर रहे हैं। दावेदार कई हैं। राजस्व मंत्री आनंदी पटेल मोदी की खास विश्वास पात्र हैं और उन्हें ज्यादातर विधायकों व मंत्रियों का समर्थन हासिल है। ऊर्जा व उद्योग मंत्री सौरभ पटेल को मोदी की ‘उद्योग मित्र’ की छवि निखारने का श्रेय जाता है। राज्य की राजनीति के जानकारों का मानना है कि नरेंद्र मोदी के बाद उनके गुजरात का मुख्यमंत्री बनने के ज्यादा आसार हैं। पूर्व गृह मंत्री अमित शाह मोदी के दाएं हाथ है। फर्जी मुठभेड़ कांड में दागी होने की वजह से मोदी उन्हें गुजरात में कोई जिम्मेदारी देने की बजाए उनकी प्रबंध कुशलता का इस्तेमाल राष्ट्रीय चुनाव अभियान में ज्यादा पसंद करेंगे। वित्त विभाग समेत स्वास्थ्य, चिकित्सा शिक्षा, परिवहन व परिवार कल्याण जैसे कई महत्वपूर्ण विभाग संभालने वाले नितिन पटेल के फिलहाल उपमुख्यमंत्री बनने की संभावना ज्यादा जताई जा रही है। पिछले साल दिसंबर में उनसे वरिष्ठ वजु बाला को विधानसभा अध्यक्ष बना कर नितिन को वित्त विभाग सौंपा जाना राज्य की राजनीति में उनके बढ़ते कद का प्रमाण है। पर संकट अपनों से नरेंद्र मोदी की पहली चुनौती निश्चित रूप से पार्टी में उभरी गुटबाजी को खत्म करने की होगी। अपनी महत्वाकांक्षा के एक बार फिर ढह जाने से आहत लालकृष्ण आडवाणी की पीड़ा अपनी जगह है लेकिन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) ने काफी पहले से उन्हें और पार्टी को संकेत दे दिया था कि नरेंद्र मोदी को 2014 के चुनाव की कमान संभालने के लिए तैयार किया जाए। आरएसएस से आडवाणी का दुराव जगजाहिर है। उनके समर्थकों की अब सफाई है कि वे मोदी को महत्व दिए जाने से नहीं, बल्कि भाजपा की फैसला करने की प्रक्रिया में आरएसएस की दखलंदाजी से नाराज हुए। ऐसा ही आरोप आडवाणी ने सितंबर 2005 में चेन्नई में हुई पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में तब लगाया था जब जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष घोषित करने के उनके बयान पर हुई फजीहत के बाद आरएसएस ने उन पर पार्टी का अध्यक्ष पद छोड़ने का दबाव बनाया था। सन्ा 2007 के आम चुनाव में भाजपा की हार के बाद लोकसभा में विपक्ष के नेता पद से इस्तीफा देने के दबाव को भी आडवाणी ने संघ की दखलंदाजी माना। सुषमा स्वराज ने उनकी जगह ली लेकिन आडवाणी जिद करके भाजपा संसदीय दल के अध्यक्ष का नया पद गठित करने और उस पर काबिज होने में सफल हो गए। 2011 में जब आडवाणी ने जन चेतना यात्रा निकाली तो आरएसएस ने उन पर यह घोषित करने का दबाव बनाया था कि वे नए नेताओं को मौका देने के लिए प्रधानमंत्री पद की दौड़ से खुद को अलग कर रहे हैं। यह इस बात का संकेत था कि आरएसएस 2014 के चुनाव में आडवाणी को कमान देने के पक्ष में नहीं है। इसकी पुष्टि इसी साल जनवरी में जयपुर में हुए आरएसएस के सम्मेलन में हो गई। आडवाणी उस सम्मेलन में जाने वाले थे लेकिन सम्मेलन की पूर्व संध्या पर भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह के जरिए उन्हें यह संदेश भिजवा दिया गया कि वे आमंत्रित नहीं हैं। राजनाथ सिंह कार्यकारिणी की बैठक के अलावा आरएसएस की सर्वोच्च नीति निर्धारक इकाई अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में शामिल हुए। और तभी उन्हें आरएसएस की यह राय बता दी गई कि मोदी को 2014 के चुनाव की कमान दी जाए। शायद राजनाथ सिंह इस फैसले को ठीक से अमल में नहीं ला पाए, तभी यह अप्रिय तमाशा हुआ। बहरहाल ‘सुलह’ हो जाने और गोवा बैठक के दौरान अपनी ‘निष्ठा’ का संकेत देने वाले कुछ नेताओं के बदले सुर के बावजूद इतना तय है कि आडवाणी की कथित उपेक्षा से आहत कुछ नेता अभी भी पृथ्वीराज रोड के आडवाणी के आवास की परिक्रमा कर रहे हैं। इनमें लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज, पूर्व नागरिक उड्डयन मंत्री अनंत कुमार, वकील से राजनीतिज्ञ बने रवि शंकर प्रसाद, मध्यप्रदेश के मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान, दिल्ली की पूर्व मेयर आरती मेहरा आदि के नाम लिए जा रहे हैं। शत्रुघ्न सिन्हा, वरुण गांधी, वेंकैया नायडू, जसवंत सिंह, उमा भारती और अब तटस्थ हो गए यशवंत सिन्हा भी आडवाणी समर्थक माने जाते हैं। पार्टी में नरेंद्र मोदी का अपना ‘कुनबा’ भी कोई छोटा नहीं है, बल्कि कई मायनों में काफी वजनदार है। राजनाथसिंह उन्हे सर्वाधिक लोकप्रिय मानते है। अरूण जेतली भाजपा के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के दिनों से मोदी के मित्र रहे हैं। 2002 के गुजरात दंगों से आहत तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने जब राजधर्म का पालन न करने पर मोदी को मुख्यमंत्री पद से हटाने की राय जता दी थी, तब मोदी को बचाने वालों में जेटली भी थे। गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पार्रिकर मोदी के प्रशंसक और समर्थक हैं। वे कई बार मोदी को क्षेत्रीय क्षत्रप कहे जाने पर नाराजगी भी जता चुके हैं। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने कभी भी शिवराज सिंह चौहान की तरह खुद को नरेंद्र मोदी का प्रतिस्पर्धी होने को नकारा। बल्कि वे मोदी की कार्यशैली के कई अंशों को अपनाते भी रहे हैं। राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, सीपी ठाकुर आदि मोदी के समर्थन में शुरू से रहे हैं। भाजपा उपाध्यक्ष स्मृति ईरानी तो कह ही चुकी हैं- ‘हम सभी जानते हैं कि देश क्या चाहता है? यह भी हमें पता है कि पार्टी किसे चाहती है?’ विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष अशोक सिंघल ने तो आडवाणी को सलाह दी है कि उन्हें मोदी का सहयोग व समर्थन करना चाहिए। आरएसएस के वरिष्ठ नेता सुरेश सोनी ने संघ व मोदी के बीच रिश्ते बनाने में अहम भूमिका निभाई है।
संकट में देश, विदेश में नेता
कहते हैं कि जब रोम जल रहा था, तो नीरो (राजा) वंशी बजा रहा था। उत्तराखंड में भयावह तबाही के दौरान कांग्रेस की ओर से प्रधानमंत्री पद के संभावित उम्मीदवार, जो गरीबों के घरों में रहने और खाने के लिए जाने जाते हैं, पता नहीं कहां चले गये थे और अब नरेन्द्र मोदी के उत्तराखंड दौरे के बाद प्रकट हो गये हैं।
इसी तरह छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में नक्सलियों ने जब राज्य के प्रमुख कांग्रेसी नेताओं की निर्मम हत्या की, तब गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे अमेरिका में थे। उनका स्वदेश आगमन एक सप्ताह बाद हुआ। उनकी सफाई थी कि आंख के जिस डॉक्टर को दिखाना था, वे एक सप्ताह बाद लौटने वाले थे। इसलिए मेरा तब तक रहना जरूरी था। यद्यपि गृहमंत्री या किसी अन्य शासनाधिकारी से यह अपेक्षा नहीं की जाती कि किसी आपदा के समय वह अपनी निजी सुविधा के लिए दायित्व निर्वहन को इस सतही तरीके से लें।
तो क्या यह समझा जाए कि राहुल गांधी में 'नीरो' के समान संवेदनशून्यता है, जिसने इतनी बड़ी आपदा का समय पर संज्ञान लेना उचित नहीं समझा। जहां सभी राजनीतिक दल, राज्य सरकारें, सांसद, विधायक, सामाजिक और स्वयंसेवी संगठन अपने सामर्थ्य के अनुसार बचाव कार्य और सहायता में लगे हैं, वहीं कांग्रेस का उपाध्यक्ष कहां घूम रहा है, इसका किसी को पता नहीं था। वे कम से कम अपनी पार्टी के लोगों का तो आह्वान कर ही सकते थे कि वे जी जान से बचाव और सहायता कार्य में जुटें! बहरहाल, अब वह औपचारिकता पूरी करने के लिए उत्तराखंड पहुंच गये हैं।
हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान में यह आम चलन है, जो व्यक्ति सत्ताच्युत हुआ वह पुनः सत्ता में आने की पूरी विश्वसनीयता तक विदेश में ही रहता है। (पता नहीं मुशर्रफ ने कैसे गलती कर दी)। हमारे देश में भी एक राजनीतिक घराने पर विपक्ष लगातार आरोप लगाता रहा है कि उसका प्रमुख सत्ता से बाहर रहते समय शायद ही कभी स्वदेश में देखा जाता हो। वह कश्मीर का अब्दुल्ला परिवार है।
पाकिस्तान के जो हुक्मरान विदेशों में जा बसते हैं, उनके पास इतनी संपत्ति कहां से आती है, इसका पता तो इस बात से ही लगता है कि दुनिया भर के जितने राजनीतिक लोगों का धन स्विस बैंक में जमा है, उसमें सबसे अधिक पाकिस्तानी हैं। एक लेखक ने तो व्यंग्य में यहां तक कह डाला है कि अमेरिका को पाकिस्तान को दी जाने वाली सहायता उसके हुक्मरानों के नाम सीधे स्विस बैंक में जमा कर देनी चाहिए।
कांग्रेस ने भी 2009 के चुनाव में सौ दिन में महंगाई कम करने और उतने ही समय में स्विस बैंक खाताधारियों का खुलासा करने का वचन दिया था। जो हालत महंगाई की उससे निपटने की प्रयासों से बनी हुई है, वैसी ही स्थिति स्विस बैंक के खातेदारों की जानकारी देने के बारे में भी है। यह आश्चर्य की बात है कि सूचना का अधिकार देने वाली सरकार इस सूचना को छिपा रही है। सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा के एक बिल्डर कंपनी से संबंध-अनुबंध की जानकारी भी सार्वजनिक हित में नहीं होगी, ऐसा कहकर वह बड़े भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग पर पर्दा डाल रही है।
केन्द्र सरकार का विश्वास न गांधीवाद में है न ही समाजवाद में। वह तो खुलकर बाजारवाद में टूट पड़ी है, जहां सौदेबाजी से काम चलता है। केवल आर्थिक क्षेत्रों में ही नहीं, बल्कि राजनीतिक क्षेत्र में भी ऐसी सौदेबाजी दिखाई देती है। अभी कांग्रेस की सौदेबाजी उत्तर प्रदेश के दो राजनीतिक दलों- सपा और बसपा के साथ चल रही थी। हाल ही में उसने बिहार को भी इस दायरे में ले लिया है। शरद यादव चाहे जितना समाजवादियों के गैर कांग्रेसवाद का ढिंढोरा पीटें, उन्हें अपने राजनीतिक अस्तित्व के लिए नीतीश कुमार से समझौता करना ही पड़ा है। सौदेबाजी की शक्ति ही संभवतः कांग्रेस उपाध्यक्ष की बेपरवाही का मूल है।
अल्पसंख्यकों के विजन डॉक्यूमेंट पर मोदी ने भी लगाई मुहर
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने की स्थिति में मतों के संभावित ध्रुवीकरण को रोकने तथा अल्पसंख्यक समुदायों में भाजपा की स्वीकार्यता बढ़ाने के मद्देनजर अल्पसंख्यकों पर लाए जा रहे विजन डाक्यूमेंट (दृष्टिकोण पत्र) को लेकर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की ‘पूरी रजामंदी’ है। ऐसा भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा का कहना है।
पार्टी के अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष अब्दुल रशीद अंसारी ने से कहा, ‘अल्पसंख्यकों के उत्थान को लेकर लाए जा रहे इस विजन डाक्यूमेंट की पहल करने से पहले हमने नरेंद्र मोदी और पार्टी के दूसरे शीर्ष नेताओं से बात की। इसे लेकर मोदी और पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह की पूरी रजामंदी है।’ इस विजन डाक्यूमेंट को बनाने के लिए पार्टी उपाध्यक्ष मुख्तार अब्बास नकवी की अध्यक्षता में एक कार्य समूह गठित किया गया है। इसमें पार्टी प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन और खुद अंसारी शामिल हैं।
अंसारी ने कहा, ‘हमारी इस कोशिश और कांग्रेस के दावों में सबसे बड़ा फर्क है कि वो तुष्टीकरण करते हैं, जबकि हम वास्तव में अल्पसंख्यकों की समस्याओं को सामने लाकर उत्थान का रास्ता दिखाना चाहते हैं।’ उन्होंने कहा, ‘इसमें मुख्य रूप से मुसलमानों के शैक्षणिक और आर्थिक विकास पर जोर दिया जाएगा। इसे हम अगस्त तक लोगों के सामने लाना चाहते हैं।’ माना जा रहा है कि मोदी के प्रधानमंत्री के उम्मीदवार बनने की स्थिति में मतों के संभावित ध्रुवीकरण को रोकने तथा अल्पसंख्यकों में पार्टी की छवि को स्वीकार्य बनाने की कोशिश के तहत भाजपा ने यह पहल की है।
अंसारी ने कहा, ‘ऐसा बिल्कुल नहीं है कि हमारी पार्टी को अभी अल्पसंख्यकों की याद आई है। हम हमेशा से सभी के विकास की बात करते हैं। परंतु हमारी और दूसरे दलों की भाषा में अंतर होता है। वे तुष्टीकरण करते हैं, जबकि हम उनके विकास के वास्तविक मुद्दों पर जोर देते हैं। सच्चर कमेटी की रिपोर्ट 2006 में आई थी और वह कागजों तक ही सिमटकर रह गई है।’
गुजरात हज समिति के अध्यक्ष और भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के राष्ट्रीय सचिव सूफी एमके चिश्ती इससे इत्तेफाक नहीं रखते कि मोदी के प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनने से मतों का ध्रुवीकरण होगा। चिश्ती का दावा है, ‘नरेंद्र मोदी के शासनकाल में गुजरात के भीतर मुसलमानों का विकास हुआ है। उनके नेतृत्व में गुजरात के स्थानीय निकायों में 200 से अधिक मुसलमान जीते और राज्य में हमें मुसलमानों ने बड़े पैमाने पर वोट दिया। अब पूरे देश में हमें अल्पसंख्यक स्वीकार करेंगे। विजन डॉक्यूमेंट से पूरी स्थिति साफ हो जाएगी कि हम अल्संख्यकों के लिए क्या करने वाले हैं।’
यह पहला मौका है जब अल्पसंख्यकों को केंद्र में रखकर भाजपा कोई दस्तावेज पेश करने वाली है। हाल के दिनों में उसने अल्पसंख्यकों तक पहुंच बनाने का प्रयास तेज किया है। इसी क्रम में पहले जयपुर और फिर दिल्ली में अल्पसंख्यक सम्मेलन का आयोजन किया गया।
पार्टी के अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष अब्दुल रशीद अंसारी ने से कहा, ‘अल्पसंख्यकों के उत्थान को लेकर लाए जा रहे इस विजन डाक्यूमेंट की पहल करने से पहले हमने नरेंद्र मोदी और पार्टी के दूसरे शीर्ष नेताओं से बात की। इसे लेकर मोदी और पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह की पूरी रजामंदी है।’ इस विजन डाक्यूमेंट को बनाने के लिए पार्टी उपाध्यक्ष मुख्तार अब्बास नकवी की अध्यक्षता में एक कार्य समूह गठित किया गया है। इसमें पार्टी प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन और खुद अंसारी शामिल हैं।
अंसारी ने कहा, ‘हमारी इस कोशिश और कांग्रेस के दावों में सबसे बड़ा फर्क है कि वो तुष्टीकरण करते हैं, जबकि हम वास्तव में अल्पसंख्यकों की समस्याओं को सामने लाकर उत्थान का रास्ता दिखाना चाहते हैं।’ उन्होंने कहा, ‘इसमें मुख्य रूप से मुसलमानों के शैक्षणिक और आर्थिक विकास पर जोर दिया जाएगा। इसे हम अगस्त तक लोगों के सामने लाना चाहते हैं।’ माना जा रहा है कि मोदी के प्रधानमंत्री के उम्मीदवार बनने की स्थिति में मतों के संभावित ध्रुवीकरण को रोकने तथा अल्पसंख्यकों में पार्टी की छवि को स्वीकार्य बनाने की कोशिश के तहत भाजपा ने यह पहल की है।
अंसारी ने कहा, ‘ऐसा बिल्कुल नहीं है कि हमारी पार्टी को अभी अल्पसंख्यकों की याद आई है। हम हमेशा से सभी के विकास की बात करते हैं। परंतु हमारी और दूसरे दलों की भाषा में अंतर होता है। वे तुष्टीकरण करते हैं, जबकि हम उनके विकास के वास्तविक मुद्दों पर जोर देते हैं। सच्चर कमेटी की रिपोर्ट 2006 में आई थी और वह कागजों तक ही सिमटकर रह गई है।’
गुजरात हज समिति के अध्यक्ष और भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के राष्ट्रीय सचिव सूफी एमके चिश्ती इससे इत्तेफाक नहीं रखते कि मोदी के प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनने से मतों का ध्रुवीकरण होगा। चिश्ती का दावा है, ‘नरेंद्र मोदी के शासनकाल में गुजरात के भीतर मुसलमानों का विकास हुआ है। उनके नेतृत्व में गुजरात के स्थानीय निकायों में 200 से अधिक मुसलमान जीते और राज्य में हमें मुसलमानों ने बड़े पैमाने पर वोट दिया। अब पूरे देश में हमें अल्पसंख्यक स्वीकार करेंगे। विजन डॉक्यूमेंट से पूरी स्थिति साफ हो जाएगी कि हम अल्संख्यकों के लिए क्या करने वाले हैं।’
यह पहला मौका है जब अल्पसंख्यकों को केंद्र में रखकर भाजपा कोई दस्तावेज पेश करने वाली है। हाल के दिनों में उसने अल्पसंख्यकों तक पहुंच बनाने का प्रयास तेज किया है। इसी क्रम में पहले जयपुर और फिर दिल्ली में अल्पसंख्यक सम्मेलन का आयोजन किया गया।
कुछ उपायों से टल सकती थी आपदाः उमा
भाजपा उपाध्यक्ष उमा भारती ने कहा है कि उत्तराखण्ड में बारिश और बाढ़ की वजह से मची तबाही मानवीय भूलों का नतीजा है और इसे कुछ उपाय करके टाला जा सकता था। उमा ने आज कहा, ‘‘मुझे लगता है कि भारी बारिश के कारण उत्तराखण्ड में जो तबाही मची उसे रोका तो नहीं जा सकता था, लेकिन अगर समय रहते कुछ उपाय कर लिए जाते तो लोगों की कीमती जानें जरूर बचाई जा सकती थीं।’’ उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड में 14 जून को बारिश का सिलसिला शुरू हुआ, जो अगले तीन दिन तक जारी रहा। इस दौरान इतना पानी गिरा कि केदारनाथ धाम के ऊपर स्थित गांधी सरोवर पानी से लबालब भर गया और उससे पानी बह निकला। उमा का कहना है कि यदि बारिश शुरू होने के बाद खतरे को भांपकर समय रहते कदम उठाए जाते और तीर्थयात्रियों को केदारनाथ एवं अन्य धार्मिक स्थलों से इन तीन दिनों में सुरक्षित निकाल लिया जाता, तो बड़ी तादाद में मौतें टाली जा सकती थीं।
साध्वी उमा ने कहा कि उत्तराखण्ड के श्रीनगर में पनबिजली परियोजना निर्माण के लिए प्राचीन एवं ऐतिहासिक धारी माता मंदिर विस्थापित किया जाना था और मंदिर से तीन दिन पहले ही धारी माता की मूर्ति हटाई गई थी, जिसके बाद इस पर्वतीय राज्य में प्रलय जैसी स्थिति निर्मित हुई। भाजपा उपाध्यक्ष ने कहा हालांकि वह यह नहीं कहना चाहतीं कि धारी माता मंदिर विस्थापन की वजह से यह तबाही आई, लेकिन परंपरागत रूप से माना जाता है कि धारी माता, चारों धाम की यात्रा करने वाले श्रद्धालुओं और उत्तराखण्ड की जनता की रक्षक माता हैं। उन्होंने कहा कि धारी माता मंदिर विस्थापन के खिलाफ अन्य लोगों के साथ उन्होंने भी अभियान चलाया था, लेकिन उनकी आवाज नहीं सुनी गई। उन्होंने कहा कि हो सकता है कि ‘बिजली माफिया’ के दबाव में यह कदम उठाया गया हो, जो वहां मंदिर की जगह एक बड़ा ऊर्जा संयंत्र स्थापित करना चाहता था। उमा ने कहा कि उत्तराखण्ड में कई नदियां हैं और वहां के पर्यावरण एवं लोगों के हिसाब से केवल एक अथवा दो मेगावाट की छोटी पनबिजली परियोजनाएं ही अच्छी हैं। हालाकि यह भी एक संभावना हो सकती है कि ये छोटी परियोजनाएं, प्रभावशाली बिजली माफिया के लिए लाभकारी साबित नहीं हो रही थी और वे वहां बड़ी और लाभकारी बिजली परियोजना लगाना चाहते हों।
विजन डाक्यूमेंट को मोदी की रजामंदी
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने की स्थिति में मतों के संभावित ध्रुवीकरण को रोकने तथा अल्पसंख्यक समुदायों में भाजपा की स्वीकार्यता बढ़ाने के मद्देनजर अल्पसंख्यकों पर लाए जा रहे विजन डाक्यूमेंट (दृष्टिकोण पत्र) को लेकर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की पूरी रजामंदी है. ऐसा भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा का कहना है.
पार्टी के अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष अब्दुल रशीद अंसारी ने कहा, अल्पसंख्यकों के उत्थान को लेकर लाये जा रहे इस विजन डाक्यूमेंट की पहल करने से पहले हमने नरेंद्र मोदी और पार्टी के दूसरे शीर्ष नेताओं से बात की. इसे लेकर मोदी और पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह की पूरी रजामंदी है. इस विजन डाक्यूमेंट को बनाने के लिए पार्टी उपाध्यक्ष मुख्तार अब्बास नकवी की अध्यक्षता में एक कार्य समूह गठित किया गया है. इसमें पार्टी प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन और खुद अंसारी शामिल हैं.
अंसारी ने कहा, हमारी इस कोशिश और कांग्रेस के दावों में सबसे बड़ा फर्क है कि वो तुष्टीकरण करते हैं, जबकि हम वास्तव में अल्पसंख्यकों की समस्याओं को सामने लाकर उत्थान का रास्ता दिखाना चाहते हैं. उन्होंने कहा, इसमें मुख्य रुप से मुसलमानों के शैक्षणिक और आर्थिक विकास पर जोर दिया जाएगा. इसे हम अगस्त तक लोगों के सामने लाना चाहते हैं.
माना जा रहा है कि मोदी के प्रधानमंत्री के उम्मीदवार बनने की स्थिति में मतों के संभावित ध्रुवीकरण को रोकने तथा अल्पसंख्यकों में पार्टी की छवि को स्वीकार्य बनाने की कोशिश के तहत भाजपा ने यह पहल की है.
Saturday, 29 June 2013
क्या 40 लाख रुपये में नहीं लड़ा जा सकता चुनाव
विजय विद्रोही
बीजेपी नेता और महाराष्ट्र के बीड से सांसद गोपीनाथ मुंडे का बड़बोलापन उन पर भारी पड़ सकता है. मुंडे का कहना है कि उन्होंने अपने पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान आठ करोड़ रुपये खर्च किये थे. चुनाव आयोग ने यह सीमा चालीस लाख तय की है.
आयोग ने मुंडे से उनका पक्ष जानने का फैसला किया है और आरोप सही पाए जाने पर मुंडे की लोकसभा से सदस्यता तो जाएगी ही साथ ही अगले तीन सालों तक उनके चुनाव लड़ने पर रोक भी लगाई जा सकती है. लेकिन बड़ा सवाल यही है कि क्या वास्तव मे चालीस लाख रुपये में लोक सभा का चुनाव लड़ा जा सकता है.चालीस लाख में चुनाव लड़ना असंभव है-एक लोकसभा सीट में लगभग छह से आठ विधान सभा क्षेत्र आते हैं. अगर विधानसभा के लिए चुनाव आयोग ने 25 लाख की सीमा तय की है तो ऐसे में लोकसभा के लिए डेढ से दो करोड़ रुपये रखे जाने चाहिए. एक लोकसभा क्षेत्र में आमतौर पर दस से पंद्रह लाख वोटर होते हैं.
क्या आज की तारीख में मंहगाई के इस दौर में चालीस लाख रुपये में दस बारह लाख वोटरों तक पहुंचा जा सकता है. वो दिन गये जब कार्यकर्ता अपनी जेब से पैसा लगाया करते थे. अब पेट्रोल से लेकर चाय नाश्ते तक के पैसे देने पड़ते हैं. इलाके में जगह जगह कार्यालय खोलने पड़ते हैं. वहां दरी, कनात, कुर्सियों की जरुरत पड़ती है, कार्यकर्ता बैठाने पड़ते हैं. रोज का चाय नाश्ते का खर्चा ही हजारों में पहुंचता है.
बैनर पोस्टर छपवाना, अखबारों और टीवी पर विज्ञापन, इन सब कामों में पैसा खर्च होता है. कम से कम पंद्रह बीस दिन तो जम कर प्रचार करना पड़ता है. कम से कम एक दर्जन टोलियां बनानी पड़ती है जो दिन रात चुनाव प्रचार में जुटी रहें.इन सब पर भी डीजल, खाने पीने आदि के तमाम खर्चे होते हैं. यह वो खर्चे हैं जो साफ नजर आते हैं. कभी कभी किसी निर्दलीय को विरोधी के वोट काटने के लिए खड़ा करना पड़ता है उसका खर्च उठाना पड़ता है. कभी निर्दलीय को बैठाने के लिए पैसा खर्च करना पड़ता है. बाकी तो आप जानते ही हैं कि शाम की दवा की भी व्यवस्था करनी पड़ती है. कार्यकर्ता भी शाम की दवा मांगता है और वोटर भी. यह सच है कि पार्टी भी पैसा देती है लेकिन चालीस लाख रुपयों में चुनाव शायद लड़ा नहीं जा सकता. सवाल उठता है कि अगर चालीस लाख में चुनाव नहीं लड़ा जा सकता तो फिर राजनीतिक दल चुनाव आयोग से सीमा बढ़ाने की सिफारिश क्यों नहीं करते.
चुनाव आयोग सख्त हुआ है. वो हर जगह पोस्टर बैनर लगाने की इजाजत नहीं देता. कारवां में चलने वाली गाड़ियों की संख्या भी सीमित की गई हैं. अगर आपने काम किया है, विकास करवाया है, अपने सांसद कोष की पाई पाई जनता के लिए खर्च की है तो फिर आप को क्यों जन सम्पर्क पर पैसा पानी की तरह बहाना चाहिए. अगर आप बड़े राष्ट्रीय दल से हैं तो तय है कि आप की पार्टी को लोग जानते हैं, चुनाव चिन्ह पहचानते हैं और राष्ट्रीय नेताओं के दौरे भी होते रहने से जनता के बीच आप चर्चा में सदा रहते हैं. ऐसे में क्यों पैसा ज्यादा खर्च होना चाहिए. जगह जगह चुनाव कार्यालय खोलने के बजाय उनकी संख्या सीमित कर सकते हैं. कार्यालय कार्यकर्ता के घर पर भी खोला जा सकता है अगर आपने अपने कार्यकर्ता को पूरे पांच साल ख्याल रखा है तो. अगर आपने वास्तव में विकास करवाया है तो आपको न तो निर्दलीय खरीदने की जरुरत है और न ही उनको बैठाने या लड़ाने की. अगर आपने अपने क्षेत्र में काम करवाए हैं तो आपको न शराब बंटवाने की जरुरत है और न ही कोई अन्य लालच देने की.
यह लगभग तय है कि चालीस लाख में चुनाव लड़ा नहीं जा सकता. कहने वाले तो यहां तक कहते हैं कि इस से ज्यादा पैसा तो कालेज के चुनावों में खर्च हो जाता है. जब से पंचायतों को सरकारी पैसा मिलने लगा है तब से सरपंच के चुनाव में ही एक एक करोड़ रुपए खर्च होने की खबरें आती रहती है. चुनाव आयोग पेड न्यूज से परेशान है. यह सब चालीस लाख की सीमा बांधने से ही हो रहा है. पैसा ज्यादा खर्च होता है नेता इधर उधर से पैसा लेते हैं और सत्ता में आने के बाद पैसा वापस करने में भ्रष्टाचार होता है. मददगारों को ठेके दिए जाते हैं, कुछ अन्य काम उन्हें दिया जाता है. चुनाव खर्च का पैसा जुटाने में गड़बड़ी की जाती हैं. चुनाव सुधार पर जोर नहीं दिया जाता. गोपीनाथ मुंडे ने अनजाने में जो सच सामने रखा है उसपर आगे बहस की तगड़ी गुंजायश हैं.
मंहगाई की मार
मंहगाई की मार झेल रही अमता जनता को किसी भी मोर्चे पर राहत के संकेत नहीं मिल रहे हैं। तेल कंपनियों ने पेट्रोल की कीमत 1.82 रुपये प्रति लीटर बढ़ दिया है। तेल कंपनियों ने इस बढ़ोतरी के पीछे लगातार कमजोर होते रुपये का हवाला दिया है। बढ़ी कीमतें आधी रात से लागू हो गई हैं। कांग्रेस और महंगाई का एक-दूसरे के प्रतिरूप है। कांग्रेस जब-जब सत्ता में आई है तब-तब महंगाई ने पिछले रिकार्डों को तोड़कर नए रिकार्ड कायम करने का काम किया है। कांग्रेस पार्टी महंगाई और घोटाले का नए नए रिकॉर्ड प्रतिदीन इसलिए बना रही है की अब कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ बचा ही नहीं है वह जान रही है की अब जनता उसके बहकावे में कभी नहीं आने वाली है इसलिए कांग्रेस और अनैतिकता की हर हद दिन प्रतिदिन पार कर रही है/
एक आदमी बहुत परेसान अवस्था में अपने पुरोहित के पास गया और कहा पंडित जी कोई उपाय बताइए पंडित जी कहे की तुम्हारे ऊपर शनि रुष्ट है तुम सोने के घड़े में जल रख कर शनिवार के दिन दान करो सब ठीक हो जायेगा उसने कहा पंडित जी इतना धन मेरे पास नहीं है तब पंडित जी कहे की चाँदी का बर्तन लेलो उसने कहा पंडित जी मेरे पास इतना धन भी नहीं है कोई और उपाय बताइए पंडित जी क्रमश ताम्बा ,फूल,पीतल, अलमुनियम और अंत में पंडित जी कहे की मिटटी का घड़ा लेलो उसने कहा पंडित जी मेरे पास इतना धन भी नहीं है की हम मिटटी का घड़ा ले सके पंडित जी कहे जाओ जजमान अब तुम्हारा शनि देव कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते क्योंकि तुम्हारे पास कुछ है ही नहीं/
ठीक उसी आदमी की तरह अब कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ बचा ही नहीं है कुछ बेशरम मतदाता आज भी हैं जो कांग्रेस कुछ भी करे वोट उसी को देंगे लेकिन कांग्रेस पुनः अब सत्ता में नहीं लौट सकती है दुर्भाग्य से अगर लौट गयी तो जमीन के अन्दर खनीज सम्पदा बेच चुकी है आसमान में तरंगे बेच दी है और इस बार समुद्र पर्वत नदी तालाब वन सहित भारत को भी बेच देगी इसलिए या तो कांग्रेस को सुधरना होगा या तो जनता कांग्रेस को सुधारे...
कंपनियों का कहना है कि रुपये की कमजोरी के चलते उनको भारी घाटा हो रहा है। वहीं अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में भी लगातार उछाल देखा जा रहा है। रुपये की कमजोरी की वजह से कच्चा तेल आयात करना काफी महंगा पड़ रहा है। जिसके चलते पेट्रोल की कीमतों को बढ़ाने का फैसला लिया गया है। इससे पहले 15 जून को पेट्रोल के दाम में 2 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी रुपए की कमजोरी के चलते ही की गई थी। कंपनियां पीएनजी और सीएनजी के दाम पहले ही बढ़ा चुकी हैं।
1 जून को ही बढ़े थे पेट्रोल के दाम
सरकारी ऑयल मार्केटिंग कंपनियों ने पेट्रोल की कीमत 0.75 रुपये प्रति लीटर और डीजल की कीमत 0.5 रुपये प्रति लीटर से बढ़ाने का फैसला किया है। वहीं, बिना सब्सिडी वाले रसोई गैस सिलेंडर 45 रुपये सस्ता हुआ है। अब दिल्ली में 1 लीटर पेट्रोल के लिए 63.99 रुपये और डीजल के लिए 50.26 रुपये चुकाने होंगे। वहीं, मुंबई में पेट्रोल की कीमत 70.68 रुपये प्रति लीटर और डीजल की कीमत 56.66 रुपये हो जाएगी। 3 महीनों में पहली बार पेट्रोल के दाम बढ़ाए गए हैं। इंडियन ऑयल का कहना है कि अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये में लगातार आ रही कमजोरी की वजह से पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ाने का फैसला किया गया है। इंडियन ऑयल के मुताबिक कीमतें बढ़ाने के बाद भी डीजल पर 4.87 रुपये प्रति लीटर का घाटा हो रहा है। केरोसीन पर 27.75 रुपये प्रति लीटर और रसोई गैस पर 334.5 रुपये प्रति सिलेंडर का नुकसान हो रहा है।
वह भी एक दौर था, जब जेब में सौ के कुछ नोट होते थे और कई दिनों तक का गुजारा चल जाता था। यूं कहें तो जिंदगी शान से कटती थी। अभी कल की ही बात लगती है, जब सब्जियां, पेट्रोल व अन्य रोजमर्रे की जिंदगी से जुड़ी चीजों के दाम आम आदमी की पहुंच के अंदर थे। लेकिन विगत कुछ सालों में स्थिति एकदम उलट सी गई है। हर एक छोटी सी चीज के लिए भी लम्बी चैड़ी प्लैनिंग करनी पड़ती है। डर लगा रहता है कि व्यर्थ का खर्च पूरे महीने का बजट न बिगाड़ दे!
आखिर ऐसी स्थिति आई कैसे? जवाब है बेलगाम होती महंगाई। बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि पहले मुट्ठी भर पैसे लेकर लोग बाज़ार जाते और झोले भर कर सामान घर लाते थे। लेकिन अब स्थिति बिल्कुल बदल सी गई है। आलम यह है कि झोले भर कर पैसे हों तब जाकर कहीं मुट्ठी भर का सामान आ पाता है। कुल मिलाकर इस बढ़ती महंगाई ने आम आदमी को उसके सोंच में बदलाव लाने पर मजबूर कर दिया है। छोटी मोटी नौकरियां कर रहे लोगों के कई शौक तो अब महज सपने रह गए हैं। हर कदम पर लोगों को हालात से समझौता करना पड़ता है।
चीन की चाल है उत्तराखंड आपदा
उत्तर प्रदेश में गोरखपुर सदर के सांसद और गोरखनाथ पीठ के उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ ने उत्तराखंड में आई तबाही को चीन की एक बड़ी साजिश करार देते हुए इसकी जांच करने की मांग की है। योगी उत्तराखंड में गोरखनाथ मंदिर और हिंदू युवा वाहिनी द्वारा चलाए जा रहे राहत कार्यो का निरीक्षण कर गोरखपुर लौटे हैं। उन्होंने मीडिया से कहा कि कि प्रथम दृष्टया यह एक प्राकृतिक आपदा थी, लेकिन इसके पीछे चीन की साजिश से इनकार नहीं किया जा सकता।
योगी ने वर्ष 1998-99 के दौरान हिमाचल प्रदेश में आई इसी तरह की तबाही का हवाला दते हुए कहा कि चीन इस तरह की हरकतें पहले भी कर चुका है। कोई आश्चर्य नहीं कि उसने केदारनाथ से ऊपर पहाड़ियों में प्राकृतिक संसाधनों से छेड़छाड़ कर प्राकृतिक आपदा जैसे हालात पैदा कर दिए हों। वैसे भी केदारनाथ धाम से थोड़ी ऊंचाई पर वासुकी झील स्थित है, जहां कोई भी छेड़छाड़ होने से आपदा जैसे हालात पैदा हो सकते हैं।
योगी ने उत्तराखंड में हुए हादसे में मौतों की संख्या बढ़ने के लिए उत्तराखंड सरकार द्वारा बरती गई कथित लापरवाही को जिम्मेदार करार दिया है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को चार दिनों तक हादसे के बारे में पता ही नहीं चला और पता चला तो उसने तुरंत बचाव और राहत कार्य क्यों नहीं शुरू कराए? उत्तराखंड से लौटे योगी ने उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार को भी आड़े हाथों लिया और कहा कि सबसे ज्यादा इसी प्रदेश के लोग इस हादसे का शिकार हुए हैं, फिर भी प्रदेश के मुख्यमंत्री के पास समय नहीं है कि एक बार वहां जाकर राहत और बचाव कार्यो की निगरानी और समीक्षा करें। योगी ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार के पास अपने लोगों के मृत होने या लापता होने का आंकड़ा ही नहीं है। इसी तरह उत्तराखंड सरकार दावा कर रही है कि उसने 99 हजार लोगों को बचाया है। यदि बचाया है तो सरकार उनकी सूची क्यों नहीं उपलब्ध करा रही है?
सांसद ने सेना द्वारा किए जा रहे बचाव कार्यो की सराहना करते हुए कहा कि अगर चार दिन बाद सेना नहीं लगती तो स्थिति और भी भयावह हो सकती थी। वार्ता के दौरान भाजपा सांसद ने कहा कि गोरखपुर और उसके आसपास यानी पूर्वाचल के जितने भी लोग हादसे के शिकार हुए हैं या लापता हुए हैं, उनकी सूची हिंदू युवा वाहिनी की ओर से तैयार की जा रही है। ऐसे श्रद्धालुओं के परिजन गोरखनाथ मंदिर में आकर उनका फोटो विवरण दे दें। गोरखनाथ मंदिर और हिंदू युवा वाहिनी के जो भी कार्यकर्ता उत्तराखंड में मौजूद हैं, वे उनके लापता परिजनों को ढूंढने की पूरी कोशिश करेंगे।
योगी ने वर्ष 1998-99 के दौरान हिमाचल प्रदेश में आई इसी तरह की तबाही का हवाला दते हुए कहा कि चीन इस तरह की हरकतें पहले भी कर चुका है। कोई आश्चर्य नहीं कि उसने केदारनाथ से ऊपर पहाड़ियों में प्राकृतिक संसाधनों से छेड़छाड़ कर प्राकृतिक आपदा जैसे हालात पैदा कर दिए हों। वैसे भी केदारनाथ धाम से थोड़ी ऊंचाई पर वासुकी झील स्थित है, जहां कोई भी छेड़छाड़ होने से आपदा जैसे हालात पैदा हो सकते हैं।
योगी ने उत्तराखंड में हुए हादसे में मौतों की संख्या बढ़ने के लिए उत्तराखंड सरकार द्वारा बरती गई कथित लापरवाही को जिम्मेदार करार दिया है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को चार दिनों तक हादसे के बारे में पता ही नहीं चला और पता चला तो उसने तुरंत बचाव और राहत कार्य क्यों नहीं शुरू कराए? उत्तराखंड से लौटे योगी ने उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार को भी आड़े हाथों लिया और कहा कि सबसे ज्यादा इसी प्रदेश के लोग इस हादसे का शिकार हुए हैं, फिर भी प्रदेश के मुख्यमंत्री के पास समय नहीं है कि एक बार वहां जाकर राहत और बचाव कार्यो की निगरानी और समीक्षा करें। योगी ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार के पास अपने लोगों के मृत होने या लापता होने का आंकड़ा ही नहीं है। इसी तरह उत्तराखंड सरकार दावा कर रही है कि उसने 99 हजार लोगों को बचाया है। यदि बचाया है तो सरकार उनकी सूची क्यों नहीं उपलब्ध करा रही है?
सांसद ने सेना द्वारा किए जा रहे बचाव कार्यो की सराहना करते हुए कहा कि अगर चार दिन बाद सेना नहीं लगती तो स्थिति और भी भयावह हो सकती थी। वार्ता के दौरान भाजपा सांसद ने कहा कि गोरखपुर और उसके आसपास यानी पूर्वाचल के जितने भी लोग हादसे के शिकार हुए हैं या लापता हुए हैं, उनकी सूची हिंदू युवा वाहिनी की ओर से तैयार की जा रही है। ऐसे श्रद्धालुओं के परिजन गोरखनाथ मंदिर में आकर उनका फोटो विवरण दे दें। गोरखनाथ मंदिर और हिंदू युवा वाहिनी के जो भी कार्यकर्ता उत्तराखंड में मौजूद हैं, वे उनके लापता परिजनों को ढूंढने की पूरी कोशिश करेंगे।
Friday, 28 June 2013
मोदी को फंसाने का प्रयास कर रही कांग्रेस
भाजपा ने आज कांग्रेस पर आरोप लगाया कि वह गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रति ‘‘मनोविकारात्मक घृणा’’ रखती है और इशरत जहां एवं सोहराबुद्दीन कथित फर्जी मुठभेड़ मामले में वह उन्हें जिस तरह झूठा फंसाने का प्रयास कर रही है, उससे यह बात इंगित होती है। उसने कहा कि सीबीआई को स्वायत्तता देने संबंधी कैबिनेट के प्रस्ताव से साबित हो गया है कि सरकार की मंशा उसे वास्तविक स्वतंत्रता देने की नहीं है।
पार्टी के वरिष्ठ नेता रविशंकर प्रसाद ने यहां कहा, ‘‘कांग्रेस नरेन्द्र मोदी के प्रति मनोविकारात्मक घृणा का भाव रखती है, हालांकि लोग उनकी ‘अद्वितीय ईमानदारी’ और शासन के ‘शानदार रिकार्ड’ के लिए उन्हें बेहद पसंद करते हैं।’’ उन्होंने आरोप लगाया कि चुनावों में लगातार हारते जाने के बावजूद कांग्रेस मोदी को ‘‘संदिग्ध, कपटपूर्ण और झूठी गवाहियों’ के जरिए दोषी ठहराने के लिए सीबीआई को साधन के रूप में इस्तेमाल कर रही है। राज्यसभा में भाजपा के उपनेता प्रसाद ने कहा कि उच्चतम न्यायालय तक ने कहा है कि सीबीआई का दुरुपयोग हो रहा है और वह अपने आकाओं के पिंजरे में बंद तोते की तरह है।
पार्टी के प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने कहा, शीर्ष अदालत के कहने पर केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने सीबीआई को स्वायत्तता देने संबंधी जिस प्रस्ताव को गुरुवार को मंजूर किया है उससे ‘‘एक बार पुन: इस जांच एजेंसी को वास्तविक स्वतंत्रता देने का उद्देश्य पूर्ण होता नहीं दिख रहा है।’’
प्रसाद ने कहा सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव की यह पैनी टिप्पणी जांच एजेंसी के राजनीतिक दुरुपयोग की सारी पोल खोल देती है जिसमें कहा गया है कि जब भी वह (मुलायम) सरकार के खिलाफ कड़ा रुख अपनाते हैं, सीबीआई उनके विरुद्ध मामले बना देती है। भाजपा नेता ने कहा कि इशरत जहां और सोहराबुद्दीन मुठभेड़ मामले में सीबीआई अपना रुख लगातार बदलती रही है। उन्होंने कहा कि गुजरात के पूर्व गृह राज्य मंत्री अमित शाह के विरुद्ध षडयंत्र का अलग तरह का आरोप हैं तो गुलाब चंद कटारिया (राजस्थान के पूर्व गृह मंत्री) के खिलाफ उससे एकदम अलग आरोप हैं। भाजपा नेता ने कहा कि लश्कर ए तैयबा आतंकी संगठन ने अपनी वेबसाइट पर सार्वजनिक रूप से इशरत जहां को ‘‘शहीद’’ कहा है और फिर अचानक उसमें बदलाव कर दिया गया। उन्होंने कहा, ‘‘निंदनीय बात यह है कि आईबी जैसे संगठनों को भी नहीं बख्शा जा रहा है। सीबीआई का इस्तेमाल यह रह गया है कि भ्रष्टाचार के पुख्ता सुबूत होने के बावजूद कांग्रेस के मंत्रियों को बचाया जाए और कोई भी सुबूत नहीं होने पर भी मोदी को फंसाया जाए।’’ उन्होंने आगाह किया कि जनता सब देख रही है और चुनावों में इसका करारा जवाब देगी।
मैंने चुनाव में खर्च किए 8 करोड़, जो करना है करें: मुंडे
बीजेपी नेता गोपीनाथ मुंडे का एक बयान उनपर भारी पड़ सकता है। गोपीनाथ मुंडे ने एक सभा के दौरान कहा कि उन्होंने चुनाव में 8 करोड़ रुपये खर्च किए। मुंडे ने ये भी कहा कि अगर इस कबूलनामे के चलते उन पर कोई कानूनी कार्रवाई होती है तो उन्हें कोई परवाह नहीं है। वैसे भी अब लोकसभा चुनाव होने में बस कुछ ही महीने बचे हैं। गौरतलब है कि एक सांसद के लिए चुनाव खर्च की सीमा सिर्फ 40 लाख रुपये है।
मुंडे ने गुरुवार को नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में एक सभा में कहा कि पहले चुनाव में मैंने महज कुछ हजार रुपये खर्च किए, लेकिन पिछले चुनाव में 8 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े। अब कोई चुनाव आयोग या इनकम टैक्स का अधिकारी यहां है और सुन रहा है तो सुन ले। वैसे भी अब कुछ ही महीने बचे हैं।
मुंडे के बयान के बाद कांग्रेस ने हमला बोल दिया है। कांग्रेस नेता सत्यव्रत चतुर्वेदी ने कहा कि मुंडे ने देश के नियम औऱ कानून का उल्लंघन किया है। चुनाव आयोग को कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए। चतुर्वेदी ने कहा कि अपने चुनाव के बाद मुंडे ने अपना अकाउंट जमा किया होगा, जो नियमानुसार हर सांसद को करना होता है। अगर उन्होंने ये आकड़े नहीं बताए थे तो उनके ऊपर आपराधिक कार्रवाई की जानी चाहिए।
वहीं सूचना प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने कहा कि गोपीनाथ मुंडे पर चुनाव को आयोग को संज्ञान लेना होगा। ये चुनाव आयोग को देखना होगा कि कोई उम्मीदवार कितना खर्च करना है। मुंडे 25 लाख की लिमिट को कई बार पार कर चुके हैं। अगर मुंडे जी ने कहा है कि उन्होंने खर्च ज्यादा किया है तो चुनाव आयोग तय करे उसे क्या करना है।
Thursday, 27 June 2013
भाजपा के सुशासन को रेखांकित किया जाये:मोदी
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज महाराष्ट्र भाजपा इकाई के नेताओं से कांग्रेस के भ्रष्टाचार को उजागर करने और भाजपा शासित राज्यों के सुशासन को रेखांकित करने को कहा. मोदी ने भाजपा की प्रदेश इकाई की कोर कमिटि से कहा, ‘‘भाजपा को मतदाता केंद्रित होना चाहिए. अब हमें लोगों के पास जाना है और कांग्रेस के भ्रष्टाचार और भाजपा शासित राज्यों में बेहतर प्रशासन के बारे में बताना है.’’ भाजपा की चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाये जाने के बाद मोदी पहली बार महाराष्ट्र आए हैं.
पार्टी प्रवक्ता प्रकाश जावडेकर ने कहा कि 1999 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 18 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल हुई थी जबकि शिवसेना ने 15 सीटें जीती थीं. उन्होंने कहा, ‘‘इस बार हमारी तैयारी इस आंकड़े को पार करने पर होनी चाहिए.’’बैठक से पहले, जावड़ेकर ने कहा कि मोदी सभी राज्यों में पार्टी की चुनावी तैयारी की समीक्षा कर रहे हैं. वह लोकसभा चुनाव और गठबंधन बनाने जैसे विषयों पर चर्चा करेंगे.
जावड़ेकर ने कहा, ‘‘ महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा गठबंधन हमेशा से मजबूत रहा है. हमारा प्रयास मुम्बई, पुणे और मराठवाड़ा में सीटों पर जीत दर्ज करना है जहां पार्टी 2009 में पराजित हुई थी.’’ प्रदेश भाजपा इकाई के अध्यक्ष देवेन्द्र फड़नवीस ने कहा कि मोदी ने सरदार पटेल की ‘एकता की प्रतिमा’ के बारे में बात की जो गुजरात में बनाई जायेगी और यह भी कि किस तरह से देश के सात लाख गांवों से किसानों के इस्तेमालशुदा लोहे को राज्य में प्रतिमा के निर्माण के लिए लाया जायेगा.
बंद कमरे में हुई इस बैठक में महाराष्ट्र मामलों के प्रभारी और पार्टी महासचिव राजीव प्रताप रुडी, पार्टी प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर, लोकसभा में पार्टी के उपनेता गोपीनाथ मुंडे, प्रदेश इकाई के अध्यक्ष देवेन्द्र फड़नवीस, विधानसभा में विपक्ष के नेता एकनाथ खडसे के अलावा विनोद तावड़े आदि मौजूद थे. बैठक में हालांकि नितिन गडकरी मौजूद नहीं थे. गडकरी के करीबी सूत्रों ने बताया कि गडकरी को नर्वे यात्रा के संबंध में वीजा संबंधी साक्षात्कार के लिए दिल्ली जाना पड़ा. ‘‘उन्होंने (गडकरी) औपचारिकताएं पूरी कर ली है और मुम्बई वापस लौट रहे हैं जहां वे मोदी के साथ एक पुस्तक के लोकार्पण समारोह में हिस्सा लेंगे. मोदी ने राज्य में वर्तमान राजनीतिक स्थिति, पार्टी के संगठनात्मक विषयों और शिव सेना से गठबंधन जैसे विषयों पर चर्चा की.
बैठक में शामिल होने वाले भाजपा की राज्य इकाई के प्रमुख नेताओं में प्रदेश अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महासचिव, कोषाध्यक्ष,संगठन सचिव और महाराष्ट्र प्रदेश इकाई के कई नेता शामिल हैं. बैठक में अन्य आमंत्रित सदस्यों में पार्टी के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष एवं राज्यसभा सांसद पीयूष गोयन, पूर्व सांसद किरीट सोमैया और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुधीर मुगन्तीवरी शामिल है. बहरहाल, जावड़ेकर ने आरोप लगाया कि गाजे बाजे के साथ कांग्रेस की ओर से उत्तराखंड में राहत के नाम पर जो ट्रक भेजा गया था, वह रिषीकेश में खड़ा है क्योंकि ट्रक के चालक को पेट्रोल खरीदने के लिए पैसा नहीं दिया गया. उन्होंने कहा, ‘‘ इससे कांग्रेस की सही मंशा स्पष्ट होती है.’’
लाशों पर कारोबार कर रहा है गांधी परिवार
कांग्रेस पार्टी का यह कैसा आपदा प्रबंधन है? एक तरफ सोनिया गांधी उत्तराखंड का हवाई दौरा करती है. कांग्रेस के नेता प्रेस में बड़ी शान से यह बताते हैं कि उत्तराखंड में आपदा प्रबंधन मैडम सोनिया गांधी की देखरेख में चल रहा है. लेकिन एक शर्मनाक खुलासा यह है कि सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाडरा की कंपनी जिंदा लोगों को बचाने के लिए दो लाख और लाशों को ले जाने के लिए एक एक लाख रुपये वसूल कर रही है.
दरअसल, राबर्ड वाडरा की एक कंपनी है. इसका नाम है ब्लू ब्रीज ट्रेडिंग प्राइवेट लिमिटेड. यह कंपनी बद्रीनाथ-केदारनाथ में हवाई सेवाएं देता है. इस कंपनी का रजिस्ट्रेशन नंबर U52100DL2007PTC170055 है. इस कंपनी के दो डायरेक्टर्स हैं, एक तो राबर्ड वाड्रा है और दूसरी इनकी मां मौरीन वाडरा है. 1 नंवबर 2007 से लेकर 4 जनवरी 2015 तक राबर्ड वाड्रा इस कंपनी के डायरेक्टर बने रहेंगे. इस कंपनी का नाम पहली तब उजागर हुआ था जब राबर्ड वाड्रा के लैंड डील के बारे में डीएनए अखबार ने सनसनीखेज खुलासा किया था.
राहुल नाम के एक पत्रकार ने यह खुलासा किया है कि सोनिया गांधी के दामाद की यह कंपनी उत्तलराखंड में जिंदा लोगों को निकालने के लिए दो लाख रुपये और लाशों को निकालने के लिए एक लाख रुपये का चार्ज वहां फंसे लोगों से वसूल रही है. कई बेवसाइट पर ये खबर आ चुकी है लेकिन इस खबरों का कांग्रेस पार्टी ने न तो कोई खंडन किया है और न ही अब तक कोई प्रतिक्रिया आई है.
क्या राबर्ट वाड्रा आपदा प्रबंधन के नाम पर व्यवसाय कर रहा है? क्या यह कंपनी उसकी नहीं है? क्या इस तरह के अमानवीय कंपनियों को भारत में आपरेट करने की अनुमति दी जा सकती है? देश के बड़े बड़े चैनलों के बड़े बड़े रिपोर्टर हवाई सफर कर इस आपदा को कवर कर रहे हैं क्या उनकी आंखों पर पट्टी बंधी है या फिर नाम गांधी या वाड्रा का नाम सुनकर ही इनके हाथ पांव ठंडे पड़ जाते हैं? मीडिया ने अब तक इस पर कोई तहकीकात क्यों नहीं की? सच क्यों नहीं बताया? या फिर यह मान लिया जाए कि देश के राजनीतिक परिवारों को देशवासियों की लाशों पर पैसे कमाने की आजादी है?
Wednesday, 26 June 2013
शिंदे ने डाले नीतीश पर डोरे
कांग्रेस और जनता दल (यू) के बीच भविष्य में तालमेल या गठबंधन के कयासों के बीच केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा कि उनकी पार्टी हमेशा धर्मनिरपेक्षता के साथ रही है और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अच्छे इंसान हैं. शिंदे ने यहां पत्रकारों से कहा, ‘‘जब भी धर्मनिरपेक्षता या किसी धर्मनिरपेक्ष राज्य की बात होती है, कांग्रेस उसके साथ है. यह धर्मनिरपेक्ष शक्तियों का फर्ज है कि वे एक दूसरे की मदद करें.’’केंद्रीय गृहमंत्री ने भाजपा की तरफ इशारा करते हुए कहा, ‘‘जातिवादी और सांप्रदायिक शक्तियां देश नहीं चला सकतीं. सिर्फ धर्मनिरपेक्ष संस्थाएं राष्ट्र को चला सकती हैं.’’ शिंदे ने नीतीश कुमार के बारे में कहा कि वह एक अच्छे इंसान हैं और लंबे समय से मैं उन्हें जानता हूं. उन्होंने कहा, ‘‘जब मैं सांसद था, वह (नीतीश) रेलमंत्री थे. शिंदे और कुमार दोनों विमान से नेपाल की सीमा से लगे सुपौल शहर जा रहे हैं जहां एसएसबी भर्ती प्रशिक्षण केंद्र का शिलान्यास किया जाएगा और 552 किलोमीटर लंबी भारत नेपाल सीमा सड़क का निर्माण कार्य शुरु किया जाएगा.
जब शिंदे पत्रकारों से बातें कर रहे थे, मुख्यमंत्री हवाई अड्डे पर मौजूद थे. लेकिन दोनों एक साथ नहीं थे. उल्लेखनीय है कि जब से कांग्रेस के चार विधायकों ने 19 जून के विश्वास मत प्रस्ताव पर नीतीश कुमार के पक्ष में मतदान किया, कांग्रेस और जद (यू) के बीच भविष्य में रिश्ते बनने के कयास लगाए जाने लगे हैं. कांग्रेन ने पार्टी उपाध्यक्ष की सलाह पर 2009 के संसदीय चुनाव में बिहार में अपने पुराने मित्र लालू प्रसाद के राष्ट्रीय जनता दल से चुनावी रिश्ता तोड़ा है और तब से वह सभी चुनाव अपने बल पर लड़ रही है. बहरहाल, कांग्रेस के प्रदर्शन में गिरावट आई है और यह महाराजगंज उपचुनाव के नतीजे से दिख रहा है जिसमें कांग्रेस प्रत्याशी की जमानत जब्त हो गई.
मोदी और राहुल साथ-साथ है
देश में होने वाले चुनावी सर्वे न स़िर्फ भ्रामक हैं, बल्कि उन्हें
राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है. सर्वे रिपोर्ट्स में
नरेंद्र मोदी को एनडीए का ट्रम्प कार्ड और प्रधानमंत्री पद का सबसे बेहतर
उम्मीदवार बताया जा रहा है. साथ ही यह भी बताया जा रहा है कि अगर नरेंद्र
मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बने, तो भाजपा को सबसे ज़्यादा सीटें
मिलेंगी. समझने वाली बात यह है कि मोदी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार
बनने से सबसे ज़्यादा फ़ायदा कांग्रेस पार्टी को ही होगा. मोदी की वजह से
मुलायम सिंह यादव, लालू यादव, ममता बनर्जी एवं तमाम सेकुलर पार्टियों को भी
फ़ायदा होने वाला है और नुकसान केवल भारतीय जनता पार्टी को होगा.
मीडिया एवं इंटरनेट पर नरेंद्र मोदी के गुणगान और उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने को लेकर एक आंधी चल रही है. सर्वे रिपोर्ट्स के जरिए कौन इस आग को हवा दे रहा है, ऐसा किस प्रयोजन से हो रहा है, यह कहना मुश्किल है, लेकिन इतना ज़रूर कहा जा सकता है कि इन सर्वे रिपोर्ट्स का फ़ायदा स्वयं नरेंद्र मोदी और कांग्रेस पार्टी को हो रहा है.
नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनने से कांग्रेस को एक और फ़ायदा होगा. यह फ़ायदा चुनाव परिणाम आने के बाद गठबंधन बनाने में होने वाला है. समझने वाली बात यह है कि न तो कांग्रेस और न ही भारतीय जनता पार्टी को बहुमत मिलने वाला है. अगर किसी को बहुमत मिल भी जाए, तो उसे मिरेकल ही माना जाएगा, लेकिन फिलहाल दोनों ही पार्टियों को लगता है कि किसी भी सूरत में दोनों में से किसी को भी बहुमत नहीं मिलने वाला है.
लोकसभा चुनाव को अभी क़रीब एक साल बाकी है, लेकिन सर्वे का खेल शुरू हो गया है. चुनाव सर्वे कराने वाली कई पेशेवर एजेंसियां लोगों को यह बताने में जुट गई हैं कि 2014 के लोकसभा चुनाव में किस पार्टी को कितनी सीटें मिलने वाली हैं. सर्वे करने वाली उक्त एजेंसियां यह काम मुफ्त में नहीं करतीं, बल्कि वे सर्वे कराने के पैसे लेती हैं, जिसे टीवी चैनलों पर दिखाया जाता है. कुछ एजेंसियां टीवी चैनलों के साथ मिलकर सर्वे करती हैं, लेकिन यह स़िर्फ नाम के लिए होता है. ऐसे सर्वे के बारे में टीवी चैनलों के रिपोर्टरों और एडिटरों को पता भी नहीं होता है कि उनके चैनल द्वारा कोई सर्वे कराया जा रहा है. सबसे पहला सवाल यह उठता है कि अभी से मीडिया में सर्वे का जो खेल शुरू हो गया है, उसे कौन करा रहा है? सर्वे कराने वाली एजेंसियों एवं टीवी चैनलों को पैसे कौन दे रहा है? अगर कोई उन्हें पैसे दे रहा है, तो उसका मकसद क्या है? इनसे किसे फ़ायदा हो रहा है और किसे नुकसान हो रहा है? आख़िर इन चुनावी सर्वे का राज क्या है?
सबसे पहले देखते हैं कि 2014 के चुनाव के लिए किए गए इन सर्वे के निष्कर्ष क्या हैं. एबीपी न्यूज का दावा है कि उसके सर्वे के मुताबिक, देश का मूड मोदी के साथ है और 48 फ़ीसद लोग मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं. एबीपी न्यूज पर दिखाया जाने वाला यह सर्वे नेल्शन नामक कंपनी ने किया है. एबीपी न्यूज ने दावा किया है कि उसका यह निष्कर्ष देश के 21 राज्यों में किए गए सर्वे का परिणाम है. हिंदुस्तान टाइम्स की तरफ़ से भी एक सर्वे आया. वैसे लोगों में यह धारणा है कि यह ग्रुप कांग्रेस पार्टी के नज़दीक है, फिर भी इसमें प्रकाशित सर्वे के मुताबिक, 38 फ़ीसद लोग मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं. एक और अहम सर्वे इंडिया टुडे ग्रुप ने देश के सामने रखा है.
इस ग्रुप में कई सारे चैनल, समाचारपत्र एवं पत्रिकाएं शामिल हैं, जिनमें सबसे अहम आजतक न्यूज चैनल है. इनके मुताबिक भी नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद की दौड़ में सबसे आगे हैं. इंटरनेट पर भी अगर आप 2014 के चुनाव को लेकर सर्वे ढूंढने जाएं, तो वहां कुकरमुत्ते की तरह फैले सैकड़ों सर्वे मिल जाएंगे. मजे की बात यह है कि हर सर्वे को कई समाचारपत्रों एवं पत्रिकाओं में जगह मिली. इनमें से किस पर विश्वास किया जाए और किस पर नहीं, यह एक कठिन सवाल है.
कुछ और रोचक सर्वे के बारे में बताता हूं. एक सर्वे लेन्स ऑन न्यूज ने भी कराया. यह सर्वे स़िर्फ उत्तर प्रदेश में किया गया. इसके मुताबिक, अगर मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया जाता है, तो उत्तर प्रदेश में भाजपा को 47 सीटें मिल सकती हैं. कुछ सर्वे ऐसे भी हैं, जो यह बताते हैं कि देश का 70 फ़ीसद युवा मोदी के पक्ष में हैं. अब तक हुए सभी सर्वे का अगर निष्कर्ष निकाला जाए, तो दो बातें मुख्य तौर पर सामने आती हैं.
पहली यह कि लोग वर्तमान सरकार से नाराज़ हैं और कांग्रेस पार्टी फिर से चुनाव नहीं जीत सकती. दूसरी जो सबसे महत्वपूर्ण है और वह यह कि देश का बहुमत नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहता है. मतलब यह है कि इन सभी सर्वे रिपोर्ट के जरिए भाजपा को संदेश दिया जा रहा है कि कांग्रेस से नाराज़गी का मतलब यह नहीं है कि लोग भाजपा की सरकार लाना चाहते हैं, बल्कि वे अगली सरकार के रूप में मोदी के नेतृत्व वाली सरकार चाहते हैं. अब सवाल यह उठता है कि क्या इन सर्वे पर भरोसा किया जाना चाहिए? क्या कोई सर्वे एक साल बाद होने वाले चुनावों के बारे में पूर्वानुमान लगा सकता है?
इन सवालों का सीधा जवाब है, नहीं. यही वजह है कि कोई भी सर्वे सही नहीं साबित होता है और अगर कोई हो भी जाता है, तो वह महज एक अपवाद है या तुक्के में सच साबित हो जाता है. पहला सवाल तो इन सर्वे की विश्वसनीयता पर उठता है. इन सर्वे का परिणाम उसके मुताबिक तैयार किया जाता है, जो इन्हें कराता है और सर्वे करने वाली एजेंसी को पैसे देता है. ऐसा देखा गया है कि ज़्यादातर राजनीतिक दल अपनी रणनीति तय करने के लिए चुनावी सर्वे कराते हैं और कभी-कभी ये चुनावी सर्वे राजनीतिक दलों की रणनीति का हिस्सा होते हैं, जो कि अपने पक्ष में माहौल बनाने और अफवाह फैलाने के माध्यम के रूप में इस्तेमाल होते हैं. अब सवाल यह है कि क्या ये चुनावी सर्वे किसी रणनीति का हिस्सा हैं और अगर हैं, तो ये कहां से संचालित हो रहे हैं?
समझने वाली बात यह है कि कोई भी सर्वे स़िर्फ सर्वे करने के वक्त जनता का मूड बता सकता है. राजनीति एक गत्यात्मक और सक्रिय प्रक्रिया है. इसमें एक पल में माहौल बदल जाता है. एक बयान से हार और जीत का ़फैसला हो जाता है. एक छोटी सी भूल चुनाव नतीजे पर प्रभाव डाल देती है. जीत हार में बदल सकती है और कभी-कभी हारा हुआ प्रत्याशी जीत सकता है. राजनीति में किसी एक घटना से न केवल संपूर्ण वातावरण बदल जाता है, बल्कि जनता का मूड बदल सकता है, उसका फैसला बदल सकता है.
किस मुद्दे पर जनता का मूड कितना बदलेगा, यह कोई भी सर्वे न तो माप सकता है और न ही इसकी भविष्यवाणी कर सकता है. 2014 में अभी देर है. अभी कई राजनीतिक खेल होने बाकी हैं. 2014 का चुनाव किन-किन मुद्दों पर लड़ा जाएगा, यह अभी तय नहीं है. अभी तो यह भी तय नहीं है कि किस मुद्दे का कितना असर होगा. सबसे मजेदार बात यह है कि इन सर्वे रिपोर्ट्स में महंगाई और भ्रष्टाचार जैसे अहम मुद्दों के असर के बारे में नहीं बताया गया है. जिस तरह से हर दिन घोटालों का पर्दाफाश हो रहा है, उससे तो यही लगता है कि देश का राजनीतिक वातावरण बिल्कुल अस्थिर है. इसलिए किसी भी सर्वे में यह क्षमता ही नहीं है कि वह एक साल आगे की भविष्यवाणी कर सके.
जिस तरह से ये सर्वे चुनाव से पहले ही मोदी को प्रधानमंत्री घोषित करने में लगे हुए हैं, इसमें एक मेथॉडोलाजिकल एरर (प्रणाली संबंधी दोष) है. भारत में मतदाता प्रधानमंत्री को नहीं चुनते, वे स़िर्फ अपने सांसद को चुनते हैं. सांसद को चुनते वक्त लोग प्रत्याशियों की प्रामाणिकता आंकते हैं. पार्टी और प्रधानमंत्री साधारण मतदाताओं के दिमाग में नहीं होते हैं. दूसरी बात यह कि जिस तरह से राजनीतिक दल लोगों को शराब देकर, पैसे देकर और दूसरे किस्म के प्रलोभन देकर वोट लेते हैं, यह वास्तविकता सर्वे रिपोर्ट्स में शामिल नहीं होती है.
वैसे भी प्रधानमंत्री कौन होगा, यह चुनाव के बाद संसद में पार्टियों की सदस्य संख्या देखकर ही तय होता है. यह भी नहीं भूलना चाहिए कि भारतीय राजनीति का एक चमत्कारिक पहलू भी है. इस देश में प्रधानमंत्री कौन बनेगा, यह खुद प्रधानमंत्री बनने वाले को भी नहीं पता होता है. मोरारजी देसाई से लेकर मनमोहन सिंह तक कई उदाहरण हमारे सामने हैं. इसलिए जब बड़े-बड़े मीडिया समूह चुनाव से एक साल पहले से ही नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री नियुक्त करने पर आमादा हैं, तो इसमें ज़रूर कोई बात है.
इसमें कोई शक नहीं कि मोदी प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं. वह चाहते हैं कि भाजपा उन्हें जल्द से जल्द प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दे, लेकिन पार्टी के अंदर खेमेबाजी है और भविष्य को लेकर चिंता भी है. चिंता की वजह यह है कि भाजपा के रणनीतिकार जानते हैं कि पार्टी को बहुमत नहीं मिलने वाला है और मोदी को सामने रखकर गठबंधन बनाना भी कठिन है, क्योंकि न तो नए साथी मिलेंगे और जो पुराने सहयोगी हैं, वे भी एनडीए से बाहर चले जाएंगे. इसलिए भारतीय जनता पार्टी मोदी का नाम घोषित करने में झिझक रही है. वहीं, कांग्रेस पार्टी वास्तविकता से वाकिफ है.
लोगों में कांग्रेस के प्रति नाराज़गी है, वह चुनाव नहीं जीत सकती. कांग्रेस के रणनीतिकारों को पता है कि 2014 का लोकसभा चुनाव जीतने का एकमात्र उपाय नरेंद्र मोदी हैं. अगर मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया जाता है, तो कांग्रेस पार्टी फिर से सरकार बनाने की स्थिति में आ जाएगी. इस तर्क में सच्चाई है, क्योंकि मोदी के सामने आते ही मुस्लिम वोटों का अभूतपूर्व धु्रवीकरण होगा, जिसका फ़ायदा कई राज्यों में सीधे कांग्रेस को मिलेगा और कई राज्यों में उसके साथ जुड़े यूपीए की सहयोगी पार्टियों को मिलेगा. इसलिए भारतीय जनता पार्टी से ज़्यादा कांग्रेस पार्टी चाहती है कि नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया जाए.
नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनने से कांग्रेस को एक और फ़ायदा होगा. यह फ़ायदा चुनाव परिणाम आने के बाद गठबंधन बनाने में होने वाला है. समझने वाली बात यह है कि न तो कांग्रेस और न ही भारतीय जनता पार्टी को बहुमत मिलने वाला है. अगर किसी को बहुमत मिल भी जाए, तो उसे मिरेकल ही माना जाएगा, लेकिन फिलहाल दोनों ही पार्टियों को लगता है कि किसी भी सूरत में दोनों में से किसी को भी बहुमत नहीं मिलने वाला है. इसलिए सरकार बनाने के लिए गठबंधन बनाना पड़ेगा.
सरकार भी उसी की बनेगी, जो सबसे बड़ा गठबंधन बनाने में सफल होगा. नरेंद्र मोदी अगर प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे, तब भारतीय जनता पार्टी को गठबंधन बनाने में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है. वहीं कांग्रेस पार्टी को बैठे-बिठाए समर्थन मिल जाएगा, क्योंकि मुलायम सिंह यादव, मायावती, रामविलास पासवान, नवीन पटनायक, चंद्रबाबू नायडू, लालू यादव, नीतीश कुमार एवं शरद यादव के सामने दूसरा कोई रास्ता ही नहीं होगा.
मीडिया एवं इंटरनेट पर नरेंद्र मोदी के गुणगान और उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने को लेकर एक आंधी चल रही है. सर्वे रिपोर्ट्स के जरिए कौन इस आग को हवा दे रहा है, ऐसा किस प्रयोजन से हो रहा है, यह कहना मुश्किल है, लेकिन इतना ज़रूर कहा जा सकता है कि इन सर्वे रिपोर्ट्स का फ़ायदा स्वयं नरेंद्र मोदी और कांग्रेस पार्टी को हो रहा है.
नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनने से कांग्रेस को एक और फ़ायदा होगा. यह फ़ायदा चुनाव परिणाम आने के बाद गठबंधन बनाने में होने वाला है. समझने वाली बात यह है कि न तो कांग्रेस और न ही भारतीय जनता पार्टी को बहुमत मिलने वाला है. अगर किसी को बहुमत मिल भी जाए, तो उसे मिरेकल ही माना जाएगा, लेकिन फिलहाल दोनों ही पार्टियों को लगता है कि किसी भी सूरत में दोनों में से किसी को भी बहुमत नहीं मिलने वाला है.
लोकसभा चुनाव को अभी क़रीब एक साल बाकी है, लेकिन सर्वे का खेल शुरू हो गया है. चुनाव सर्वे कराने वाली कई पेशेवर एजेंसियां लोगों को यह बताने में जुट गई हैं कि 2014 के लोकसभा चुनाव में किस पार्टी को कितनी सीटें मिलने वाली हैं. सर्वे करने वाली उक्त एजेंसियां यह काम मुफ्त में नहीं करतीं, बल्कि वे सर्वे कराने के पैसे लेती हैं, जिसे टीवी चैनलों पर दिखाया जाता है. कुछ एजेंसियां टीवी चैनलों के साथ मिलकर सर्वे करती हैं, लेकिन यह स़िर्फ नाम के लिए होता है. ऐसे सर्वे के बारे में टीवी चैनलों के रिपोर्टरों और एडिटरों को पता भी नहीं होता है कि उनके चैनल द्वारा कोई सर्वे कराया जा रहा है. सबसे पहला सवाल यह उठता है कि अभी से मीडिया में सर्वे का जो खेल शुरू हो गया है, उसे कौन करा रहा है? सर्वे कराने वाली एजेंसियों एवं टीवी चैनलों को पैसे कौन दे रहा है? अगर कोई उन्हें पैसे दे रहा है, तो उसका मकसद क्या है? इनसे किसे फ़ायदा हो रहा है और किसे नुकसान हो रहा है? आख़िर इन चुनावी सर्वे का राज क्या है?
सबसे पहले देखते हैं कि 2014 के चुनाव के लिए किए गए इन सर्वे के निष्कर्ष क्या हैं. एबीपी न्यूज का दावा है कि उसके सर्वे के मुताबिक, देश का मूड मोदी के साथ है और 48 फ़ीसद लोग मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं. एबीपी न्यूज पर दिखाया जाने वाला यह सर्वे नेल्शन नामक कंपनी ने किया है. एबीपी न्यूज ने दावा किया है कि उसका यह निष्कर्ष देश के 21 राज्यों में किए गए सर्वे का परिणाम है. हिंदुस्तान टाइम्स की तरफ़ से भी एक सर्वे आया. वैसे लोगों में यह धारणा है कि यह ग्रुप कांग्रेस पार्टी के नज़दीक है, फिर भी इसमें प्रकाशित सर्वे के मुताबिक, 38 फ़ीसद लोग मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं. एक और अहम सर्वे इंडिया टुडे ग्रुप ने देश के सामने रखा है.
इस ग्रुप में कई सारे चैनल, समाचारपत्र एवं पत्रिकाएं शामिल हैं, जिनमें सबसे अहम आजतक न्यूज चैनल है. इनके मुताबिक भी नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद की दौड़ में सबसे आगे हैं. इंटरनेट पर भी अगर आप 2014 के चुनाव को लेकर सर्वे ढूंढने जाएं, तो वहां कुकरमुत्ते की तरह फैले सैकड़ों सर्वे मिल जाएंगे. मजे की बात यह है कि हर सर्वे को कई समाचारपत्रों एवं पत्रिकाओं में जगह मिली. इनमें से किस पर विश्वास किया जाए और किस पर नहीं, यह एक कठिन सवाल है.
कुछ और रोचक सर्वे के बारे में बताता हूं. एक सर्वे लेन्स ऑन न्यूज ने भी कराया. यह सर्वे स़िर्फ उत्तर प्रदेश में किया गया. इसके मुताबिक, अगर मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया जाता है, तो उत्तर प्रदेश में भाजपा को 47 सीटें मिल सकती हैं. कुछ सर्वे ऐसे भी हैं, जो यह बताते हैं कि देश का 70 फ़ीसद युवा मोदी के पक्ष में हैं. अब तक हुए सभी सर्वे का अगर निष्कर्ष निकाला जाए, तो दो बातें मुख्य तौर पर सामने आती हैं.
पहली यह कि लोग वर्तमान सरकार से नाराज़ हैं और कांग्रेस पार्टी फिर से चुनाव नहीं जीत सकती. दूसरी जो सबसे महत्वपूर्ण है और वह यह कि देश का बहुमत नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहता है. मतलब यह है कि इन सभी सर्वे रिपोर्ट के जरिए भाजपा को संदेश दिया जा रहा है कि कांग्रेस से नाराज़गी का मतलब यह नहीं है कि लोग भाजपा की सरकार लाना चाहते हैं, बल्कि वे अगली सरकार के रूप में मोदी के नेतृत्व वाली सरकार चाहते हैं. अब सवाल यह उठता है कि क्या इन सर्वे पर भरोसा किया जाना चाहिए? क्या कोई सर्वे एक साल बाद होने वाले चुनावों के बारे में पूर्वानुमान लगा सकता है?
इन सवालों का सीधा जवाब है, नहीं. यही वजह है कि कोई भी सर्वे सही नहीं साबित होता है और अगर कोई हो भी जाता है, तो वह महज एक अपवाद है या तुक्के में सच साबित हो जाता है. पहला सवाल तो इन सर्वे की विश्वसनीयता पर उठता है. इन सर्वे का परिणाम उसके मुताबिक तैयार किया जाता है, जो इन्हें कराता है और सर्वे करने वाली एजेंसी को पैसे देता है. ऐसा देखा गया है कि ज़्यादातर राजनीतिक दल अपनी रणनीति तय करने के लिए चुनावी सर्वे कराते हैं और कभी-कभी ये चुनावी सर्वे राजनीतिक दलों की रणनीति का हिस्सा होते हैं, जो कि अपने पक्ष में माहौल बनाने और अफवाह फैलाने के माध्यम के रूप में इस्तेमाल होते हैं. अब सवाल यह है कि क्या ये चुनावी सर्वे किसी रणनीति का हिस्सा हैं और अगर हैं, तो ये कहां से संचालित हो रहे हैं?
समझने वाली बात यह है कि कोई भी सर्वे स़िर्फ सर्वे करने के वक्त जनता का मूड बता सकता है. राजनीति एक गत्यात्मक और सक्रिय प्रक्रिया है. इसमें एक पल में माहौल बदल जाता है. एक बयान से हार और जीत का ़फैसला हो जाता है. एक छोटी सी भूल चुनाव नतीजे पर प्रभाव डाल देती है. जीत हार में बदल सकती है और कभी-कभी हारा हुआ प्रत्याशी जीत सकता है. राजनीति में किसी एक घटना से न केवल संपूर्ण वातावरण बदल जाता है, बल्कि जनता का मूड बदल सकता है, उसका फैसला बदल सकता है.
किस मुद्दे पर जनता का मूड कितना बदलेगा, यह कोई भी सर्वे न तो माप सकता है और न ही इसकी भविष्यवाणी कर सकता है. 2014 में अभी देर है. अभी कई राजनीतिक खेल होने बाकी हैं. 2014 का चुनाव किन-किन मुद्दों पर लड़ा जाएगा, यह अभी तय नहीं है. अभी तो यह भी तय नहीं है कि किस मुद्दे का कितना असर होगा. सबसे मजेदार बात यह है कि इन सर्वे रिपोर्ट्स में महंगाई और भ्रष्टाचार जैसे अहम मुद्दों के असर के बारे में नहीं बताया गया है. जिस तरह से हर दिन घोटालों का पर्दाफाश हो रहा है, उससे तो यही लगता है कि देश का राजनीतिक वातावरण बिल्कुल अस्थिर है. इसलिए किसी भी सर्वे में यह क्षमता ही नहीं है कि वह एक साल आगे की भविष्यवाणी कर सके.
जिस तरह से ये सर्वे चुनाव से पहले ही मोदी को प्रधानमंत्री घोषित करने में लगे हुए हैं, इसमें एक मेथॉडोलाजिकल एरर (प्रणाली संबंधी दोष) है. भारत में मतदाता प्रधानमंत्री को नहीं चुनते, वे स़िर्फ अपने सांसद को चुनते हैं. सांसद को चुनते वक्त लोग प्रत्याशियों की प्रामाणिकता आंकते हैं. पार्टी और प्रधानमंत्री साधारण मतदाताओं के दिमाग में नहीं होते हैं. दूसरी बात यह कि जिस तरह से राजनीतिक दल लोगों को शराब देकर, पैसे देकर और दूसरे किस्म के प्रलोभन देकर वोट लेते हैं, यह वास्तविकता सर्वे रिपोर्ट्स में शामिल नहीं होती है.
वैसे भी प्रधानमंत्री कौन होगा, यह चुनाव के बाद संसद में पार्टियों की सदस्य संख्या देखकर ही तय होता है. यह भी नहीं भूलना चाहिए कि भारतीय राजनीति का एक चमत्कारिक पहलू भी है. इस देश में प्रधानमंत्री कौन बनेगा, यह खुद प्रधानमंत्री बनने वाले को भी नहीं पता होता है. मोरारजी देसाई से लेकर मनमोहन सिंह तक कई उदाहरण हमारे सामने हैं. इसलिए जब बड़े-बड़े मीडिया समूह चुनाव से एक साल पहले से ही नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री नियुक्त करने पर आमादा हैं, तो इसमें ज़रूर कोई बात है.
इसमें कोई शक नहीं कि मोदी प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं. वह चाहते हैं कि भाजपा उन्हें जल्द से जल्द प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दे, लेकिन पार्टी के अंदर खेमेबाजी है और भविष्य को लेकर चिंता भी है. चिंता की वजह यह है कि भाजपा के रणनीतिकार जानते हैं कि पार्टी को बहुमत नहीं मिलने वाला है और मोदी को सामने रखकर गठबंधन बनाना भी कठिन है, क्योंकि न तो नए साथी मिलेंगे और जो पुराने सहयोगी हैं, वे भी एनडीए से बाहर चले जाएंगे. इसलिए भारतीय जनता पार्टी मोदी का नाम घोषित करने में झिझक रही है. वहीं, कांग्रेस पार्टी वास्तविकता से वाकिफ है.
लोगों में कांग्रेस के प्रति नाराज़गी है, वह चुनाव नहीं जीत सकती. कांग्रेस के रणनीतिकारों को पता है कि 2014 का लोकसभा चुनाव जीतने का एकमात्र उपाय नरेंद्र मोदी हैं. अगर मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया जाता है, तो कांग्रेस पार्टी फिर से सरकार बनाने की स्थिति में आ जाएगी. इस तर्क में सच्चाई है, क्योंकि मोदी के सामने आते ही मुस्लिम वोटों का अभूतपूर्व धु्रवीकरण होगा, जिसका फ़ायदा कई राज्यों में सीधे कांग्रेस को मिलेगा और कई राज्यों में उसके साथ जुड़े यूपीए की सहयोगी पार्टियों को मिलेगा. इसलिए भारतीय जनता पार्टी से ज़्यादा कांग्रेस पार्टी चाहती है कि नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया जाए.
नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनने से कांग्रेस को एक और फ़ायदा होगा. यह फ़ायदा चुनाव परिणाम आने के बाद गठबंधन बनाने में होने वाला है. समझने वाली बात यह है कि न तो कांग्रेस और न ही भारतीय जनता पार्टी को बहुमत मिलने वाला है. अगर किसी को बहुमत मिल भी जाए, तो उसे मिरेकल ही माना जाएगा, लेकिन फिलहाल दोनों ही पार्टियों को लगता है कि किसी भी सूरत में दोनों में से किसी को भी बहुमत नहीं मिलने वाला है. इसलिए सरकार बनाने के लिए गठबंधन बनाना पड़ेगा.
सरकार भी उसी की बनेगी, जो सबसे बड़ा गठबंधन बनाने में सफल होगा. नरेंद्र मोदी अगर प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे, तब भारतीय जनता पार्टी को गठबंधन बनाने में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है. वहीं कांग्रेस पार्टी को बैठे-बिठाए समर्थन मिल जाएगा, क्योंकि मुलायम सिंह यादव, मायावती, रामविलास पासवान, नवीन पटनायक, चंद्रबाबू नायडू, लालू यादव, नीतीश कुमार एवं शरद यादव के सामने दूसरा कोई रास्ता ही नहीं होगा.
400 साल तक बर्फ के नीचे दबा था केदारनाथ मंदिर
केदारनाथ मंदिर की एक और ऐसी हकीकत जिससे कम लोग ही वाकिफ होंगे। वैज्ञानिकों के मुताबिक केदारनाथ मंदिर 400 साल तक बर्फ के नीचे दबा था, लेकिन फिर भी उसे कुछ नहीं हुआ। इसीलिए जियोलॉजिस्ट और वैज्ञानिक इस बात से हैरान नहीं हैं कि ताजा जलप्रलय में केदारनाथ मंदिर बच गया। 400 साल तक बर्फ के नीचे दबा था केदारनाथ मंदिर, चार सौ साल तक ग्लेशियर से ढंका था केदारनाथ मंदिर। चार सौ साल तक ग्लेशियर के भयानक बोझ को सह चुका है केदारनाथ मंदिर। जी हां, ये कहना है देहरादून के वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों का। शायद यही वजह है कि केदारनाथ मंदिर को जल प्रलय के थपेड़ों से कोई नुकसान नहीं हुआ।
केदारनाथ मंदिर के पत्थरों पर पीली रेखाएं हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक ये निशान दरअसल ग्लेशियर के रगड़ से बने हैं। ग्लेशियर हर वक्त खिसकते रहते हैं और जब वो खिसकते हैं तो उनके साथ न सिर्फ बर्फ का वजन होता है बल्कि साथ में वो जितनी चीजें लिए चलते हैं वो भी रगड़ खाती हुई चलती हैं। अब सोचिए जब करीब 400 साल तक मंदिर ग्लेशियर से दबा रहा होगा तो इस दौरान ग्लेशियर की कितनी रगड़ इन पत्थरों ने झेली होगी। वैज्ञानिकों के मुताबिक मंदिर के अंदर की दीवारों पर भी इसके साफ निशान हैं। बाहर की ओर पत्थरों पर ये रगड़ दिखती है तो अंदर की तरफ पत्थर ज्यादा समतल हैं जैसे उन्हें पॉलिश किया गया हो।
दरअसल 1300 से लेकर 1900 ईसवीं के दौर को लिटिल आईस एज यानि छोटा हिमयुग कहा जाता है। इसकी वजह है इस दौरान धरती के एक बड़े हिस्से का एक बार फिर बर्फ से ढंक जाना। माना जाता है कि इसी दौरान केदारनाथ मंदिर और ये पूरा इलाका बर्फ से दब गया और केदारनाथ धाम का ये इलाका भी ग्लेशियर बन गया। केदारनाथ मंदिर की उम्र को लेकर कोई दस्तावेजी सबूत नहीं मिलते। इस बेहद मजबूत मंदिर को बनाया किसने इसे लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं। कुछ कहते हैं कि 1076 से लेकर 1099 विक्रमसंवत तक राज करने वाले मालवा के राजा भोज ने ये मंदिर बनवाया था। तो कुछ कहते हैं कि आठवीं शताब्दी में ये मंदिर आदिशंकराचार्य ने बनवाया था। बताया जाता है कि द्वापर युग में पांडवों ने मौजूदा केदारनाथ मंदिर के ठीक पीछे एक मंदिर बनवाया था। लेकिन वो वक्त के थपेड़े सह न सका। वैसे गढ़वाल विकास निगम के मुताबिक मंदिर आठवीं शताब्दी में आदिशंकराचार्य ने बनवाया था। यानि छोटे हिमयुग का दौर जो कि 1300 ईसवी से शुरू हुआ उससे पहले ही मंदिर बन चुका था।
वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने केदारनाथ इलाके की लाइकोनोमेट्रिक डेटिंग भी की, लाइकोनोमेट्रिक डेटिंग एक तकनीक है जिसके जरिए पत्थरों और ग्लेशियर के जरिए उस जगह की उम्र का अंदाजा लगता है। ये दरअसल उस जगह के शैवाल और कवक को मिलाकर उनके जरिए समय का अनुमान लगाने की तकनीक है। लाइकोनोमेट्रिक डेटिंग के मुताबिक छोटे हिमयुग के दौरान केदारनाथ धाम इलाके में ग्लेशियर का निर्माण 14वीं सदी के मध्य में शुरू हुआ। और इस घाटी में ग्लेशियर का बनना 1748 ईसवीं तक जारी रहा। अगर 400 साल तक ये मंदिर ग्लेशियर के बोझ को सह चुका है और सैलाब के थपेड़ों को झेलकर बच चुका है तो जाहिर है इसे बनाने की तकनीक भी बेहद खास रही होगी। जाहिर है शायद इसे बनाते वक्त इन बातों का ध्यान रखा गया होगा कि ये कहां है क्या ये बर्फ, ग्लेशियर और सैलाब के थपेड़ों को सह सकता है।
दरअसल केदारनाथ का ये पूरा इलाका चोराबरी ग्लेशियर का हिस्सा है। ये पूरा इलाका केदारनाथ धाम और मंदिर तीन तरफ से पहाड़ों से घिरा है। एक तरफ है करीब 22 हजार फीट ऊंचा केदारनाथ। दूसरी तरफ है 21,600 फीट ऊंचा खर्चकुंड। तीसरी तरफ है 22,700 फीट ऊंचा भरतकुंड। न सिर्फ तीन पहाड़ बल्कि पांच नदियों का संगम भी है यहां मंदाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णद्वरी। वैसे इसमें से कई नदियों को काल्पनिक माना जाता है। लेकिन यहां इस इलाके में मंदाकिनी का राज है यानि सर्दियों में भारी बर्फ और बारिश में जबरदस्त पानी। जब इस मंदिर की नींव रखी गई होगी तब भी शिव भाव का ध्यान रखा गया होगा। शिव जहां रक्षक हैं वहीं शिव विनाशक भी हैं। इसीलिए शिव की आराधना के इस स्थल को खास तौर पर बनाया गया। ताकि वो रक्षा भी कर सके और विनाश भी झेल सके। 85 फीट ऊंचा, 187 फीट लंबा और 80 फीट चौड़ा है केदारनाथ मंदिर। इसकी दीवारें 12 फीट मोटी हैं और बेहद मजबूत पत्थरों से बनाई गई हैं। मंदिर को 6 फीट ऊंचे चबूतरे पर खड़ा किया गया है।
ये हैरतअंगेज है कि इतने साल पहले इतने भारी पत्थरों को इतनी ऊंचाई पर लाकर, यूं तराश कर कैसे मंदिर की शक्ल दी गई होगी। जानकारों का मानना है कि केदारनाथ मंदिर को बनाने में, बड़े पत्थरों को एक दूसरे में फिट करने में इंटरलॉकिंग तकनीक का इस्तेमाल किया गया होगा। ये तकनीक ही नदी के बीचों बीच खड़े मंदिरों को भी सदियों तक अपनी जगह पर रखने में कामयाब रही है।
लेकिन ताजा जल प्रलय के बाद अब वैज्ञानिकों को इस बात का खतरा सता रहा है कि लगातार पिघलते ग्लेशियर की वजह से। ऊपर पहाड़ों में मौजूद सरोवर लगातार बढ़ते जा रहे हैं और जैसा कि केदारनाथ में हुआ। गांधी सरोवर ज्यादा पानी से फट कर नीचे सैलाब की शक्ल में आया। वैसा आगे भी हो सकता है और अगर मंदिर पहाड़ों से गिरे इस चट्टानों के लीधे ज़द में आ गया तो उसे बड़ा नुकसान हो सकता है। साथ ही ये खतरा केदारनाथ घाटी पर हमेशा के लिए मंडराता रहेगा।
Monday, 24 June 2013
एनडीए के नये संयोजक उद्धव ठाकरे ?
जनता दल युनाइटेड के एनडीए से बाहर जाने के बाद एनडीए में नये संयोजक की तलाश शुरू हो गई है। एनडीए के भीतर अब सबसे बड़े दलों में महाराष्ट्र की शिवसेना और पंजाब की अकाली दल बचे हैं। ऐसे में नये संयोजक की तलाश में शिवसेना के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे को एनडीए के नये संयोजक की जिम्मेदारी मिल सकती है। हाल में ही भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह के मुंबई दौरे के दौरान उद्धव ठाकरे से हुई मुलाकात के बाद इस बात के कयास लगाये जा रहे हैं कि दोनों नेताओं के बीच हुई सौहार्दपूर्ण मुलाकात का परिणाम एनडीए को नये संजोयक के रूप में भी मिल सकता है।
इस कयास को एक बल इससे भी मिलता है कि मोदी के एकला चलो और आडवाणी के गठबंधन की तलाश के बीच राजनाथ सिंह समविचारी दलों के साथ संबंधों को मजबूत करने में लगे हुए हैं। हालांकि महाराष्ट्र में भाजपा नेता नरेन्द्र मोदी की पहली पसंद राज ठाकरे रहे हैं लेकिन फिलहाल भाजपा शिवसेना से संबंध खराब करने की स्थिति में नहीं है। लेकिन उद्धव ठाकरे अगर एनडीए के संयोजक बनते हैं तो अन्य सेकुलर दलों के लिए रास्ता खुलेगा या बंद होगा इसका अंदाज लगाना अभी मुश्किल है।
इस कयास को एक बल इससे भी मिलता है कि मोदी के एकला चलो और आडवाणी के गठबंधन की तलाश के बीच राजनाथ सिंह समविचारी दलों के साथ संबंधों को मजबूत करने में लगे हुए हैं। हालांकि महाराष्ट्र में भाजपा नेता नरेन्द्र मोदी की पहली पसंद राज ठाकरे रहे हैं लेकिन फिलहाल भाजपा शिवसेना से संबंध खराब करने की स्थिति में नहीं है। लेकिन उद्धव ठाकरे अगर एनडीए के संयोजक बनते हैं तो अन्य सेकुलर दलों के लिए रास्ता खुलेगा या बंद होगा इसका अंदाज लगाना अभी मुश्किल है।
गुजरातियों को उड़ाकर ले गये मोदी
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी आंधी की तरह आये..और तूफ़ान की तरह गये... और उत्तराखंड से 2 दिन में 15000 गुजरातियों को निकाल ले गये.. उत्तराखंड में बरपे कुदरत के कहर के बाद अपनी स्पेशल 'रेस्क्यू टीम' संग देहरादून पहुंचे गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी 'रैंबो स्टाइल' में दो दिन में करीब 15 हजार गुजराती श्रद्धालुओं को वहां से ले गए। हालांकि इस बीच नरेन्द्र मोदी ने उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा से भी मुलाकात की और श्रीकेदारनाथ मंदिर को दोबारा बनवाने का राजनीतिक प्रस्ताव देकर कांग्रेसी नेताओं के जले पर नमक भी छिड़क दिया.
दो दिन के अपने प्रवास पर उत्तराखण्ड पहुंचे नरेन्द्र मोदी अपने साथ अपनी एक पूरी रेस्क्यू टीम लेकर आए थे. इैसमें 5 आईएएस, 1 आईपीएस, 1 आईएफएस और 2 गुजरात प्रशासनिक सेवा के आला अधिकारी थे. इसके अलावा दो डीएसपी और 5 पुलिस इंस्पेक्टर भी उनकी टीम का हिस्सा थे. देहरादून पहुंचते ही मोदी ने सबसे पहले जौली ग्रांट एयरपोर्ट पर इंतजार में बैठे 134 गुजराती तीर्थयात्रियों को अपने चार्टर्ड प्लेन से अहमदाबाद रवाना किया. इसके बाद वह करीब 1 बजे तक अपने टीम के साथ मीटिंग करते रहे.
बाढ़ से प्रभावित गुजरात के यात्रियों को देहरादून तक पहुंचाने के लिए 80 इनोवा लगाई गई थीं. इसके अलावा चार बोइंग विमानों का भी इंतजाम था. इसके अलावा शनिवार को 25 लग्जरी बसों से कई यात्रियों को दिल्ली रवाना किया गया. यह सबकुछ दिल्ली और देहरादून में तैनात दो सीनियर आईएएस अधिकारियों की देखरेख में हो रहा था. इसके अलावा हरिद्वार में भी एक मेडिकल टीम तैनात की गई थी. टिहरी में लोगों के सड़क जाम करने के कारण एक गुजराती श्रद्धालु की कार वहां फंस गई थी. मोदी की टीम के आईएएस अधिकारी ने तुरंत उसे वहां से निकलवाया.
यही नहीं गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने जब दोपहर प्रदेश सरकार के राहत अभियान में तालमेल की कमी पर नाराजगी जाहिर की, तो शाम को मोदी ने केदारनाथ के मंदिर के पुनर्निमाण इच्छा जाहिर कह बहुगुणा के जले पर नमक भी छिड़क दिया. मोदी ने बहुगुणा से मुलाकात में कहाकि वह केदारनाथ के मंदिर का आधुनिक तरीके से पुनर्निर्माण का जिम्मा लेने को तैयार हैं. उत्तराखंड बीजेपी के नेता मोदी के इस स्टाइल से बेहदृ प्रभावित हैं. वह उनकी तारीफों के पुल बांध रहे हैं. हालांकि गुजराती समाज के लोगों को वहां से निकालने तक ही मोदी वहां रुके और उन्हीं की मदद की बाकी वे सिर्फ सलाह ही देते रहे. उन्होंने कई तरह की सलाह दी, लेकिन उत्तराखंड में आई आपदा में पीड़ितों की मदद के नाम पर अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों की तर्ज पर अलग से कुछ नहीं किया.
आज केदारनाथ में होगा सैकड़ों लोगों का अंतिम संस्कार
आज केदारनाथ में सैकड़ों लोगों का सामूहिक अंतिम संस्कार किया जायेगा. इसके लिए पुरोहितों ने तैयारी शुरू कर दी है. उत्तराखंड के अधिकारी केदारनाथ में प्राकृतिक आपदा में जान गंवाने वाले लोगों के अंतिम संस्कार के लिए 50 टन लकड़ी और इतनी ही मात्रा में देसी घी का इंतजाम करने की कोशिश कर रहे है. गढ़वाल प्रशासन के अधिकारियों ने वन निगम के अधिकारियों और अन्य एजेंसियों से इतनी मात्रा में जलावन लकड़ी और खुले बाजार से घी एकत्र करने को कहा है. राज्य सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, यदि मौसम अनुमति देता है तो हम आज से केदारनाथ में अंतिम संस्कार शुरु करना चाहते हैं. सभी संबंधित अधिकारियों से इंतजाम करने को कहा गया है. अधिकारी ने कहा कि मंदिर नगर या जहां भी शव बुरी तरह सड़ रहे हैं, वहां आज से अंतिम संस्कार शुरु होगा. हालांकि अंतिम संस्कार से पहले शवों की तसवीर ली जायेगी और उनका डीएनए सैंपल भी लिया जायेगा.
बारिश और बाढ़ से सर्वाधिक प्रभावित मंदिर नगर में कितने लोग मारे गये हैं, इसका सही आंकड़ा नहीं है. बीती रात और सुबह के समय राज्य के बहुत से हिस्सों में बारिश हुई, लेकिन आज हेलीकॉप्टर अभियान शुरु होने की उम्मीद है. वहां आज भी तेज बारिश हो रही है, जिसके कारण हेलीकॉप्टर द्वारा किया जा रहा बचाव कार्य बाधित हो गया है, हालांकि जमीनी स्तर पर किये जा रहे बचाव कार्य अभी भी जारी हैं.
तेज बारिश के कारण भूस्खलन का खतरा बहुत बढ गया है. प्राप्त जानकारी के अनुसार रुद्रप्रयाग और गुप्तकाशी में भूस्खलन की दो छोटी घटनाएं भी हुईं हैं. बुलडोजर की मदद से रास्ता साफ किया जा रहा है. ऋषिकेश-उत्तरकाशी मार्ग पर भी भूस्खलन की घटना घटी है. सेना ने कहा है कि बद्रीनाथ में फंसे लगभग 4,500 लोगों को बचाने के प्रयास जारी हैं, जिनमें स्थानीय लोग और तीर्थयात्री शामिल हैं. आईटीबीपी के डीजी अजय चड्ढा ने कहा है कि मौसम ठीक होते ही हवाई बचाव कार्य को तेज कर दिया जायेगा. केदारनाथ मंदिर के आसपास से बरामद शवों का अंतिम संस्कार आज कर दिया जायेगा
Sunday, 23 June 2013
वायुसेना का सबसे बड़ा अभियान
भारतीय वायुसेना ने बाढ़ प्रभावित उत्तराखंड में फंसे लोगों को सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाने के लिए हेलीकाप्टर की मदद से अब तक का सबसे बड़ा बचाव अभियान चलाया है। वायुसेना के एक शीर्ष कमांडर ने आज यह बात कही। एयर कमोडोर राजेश इस्सर ने यहां कहा कि अभियान की वर्तमान रफ्तार को देखते हुए वायुसेना को लगता है कि सभी प्रभावितों को बाहर निकालने में करीब एक सप्ताह का समय लगेगा। हालांकि, समय सीमा केवल अनुमानित है क्योंकि सब कुछ इन्द्र देवता पर निर्भर करता है। वायुसेना में टास्क फोर्स कमांडर का पद भी संभाल रहे इस्सर ने कहा कि वायुसेना ने इतिहास का सबसे बड़ा हेलीकाप्टर आधारित अभियान चलाया है। यहां करीब 30 हेलीकाप्टर दिन रात उड़ान भर रहे हैं। नतीजे धीमे हैं लेकिन मौसम की बेहतर स्थिति के साथ इसमें सुधार आएगा। सत्रह जून से यहां मौजूद इस्सर ने कहा कि उन्होंने इन उड़ानों के जरिये छह हजार से अधिक लोगों को निकाला है और यह आंकड़ा हर घंटे बढ़ रहा है। वायुसेना के हेलीकाप्टर बेड़े सहित अन्य सामग्री का जिम्मा संभाल रहे एयर कमोडोर ने कहा कि केदारनाथ घाटी में फंसे सभी लोगों को निकाला जा चुका है।
एयर कमोडोर इस्सर ने कहा कि खराब मौसम हमारे लिए संकट पैदा कर रहा है लेकिन हम फिर भी छोटे से बड़े विमानों की अदला बदली कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि फंसे सभी लोगों को निकालने में करीब एक सप्ताह का समय लग सकता है लेकिन यह मौसम पर निर्भर करेगा। उन्होंने कहा कि हवाई अभियानों में अब गौरीकुंड और हरशिल तथा अन्य स्थलों पर गौर किया जा रहा है जो अब तक अछूते थे। बल ने पहले से मौजूद 90 टुकड़ियों के अलावा आज प्रभावित क्षेत्रों में 50 और पैरा कमांडो तैनात किये। ये जवान बचाव अभियानों के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षण प्राप्त हैं। इस्सर ने कहा कि हम ऐसे स्थलों पर अपने हेलीकाप्टर उतार रहे हैं जहां लोगों को उपरी क्षेत्रों से लाया गया है और उम्मीद है कि खराब मौसम की चुनौती हमारे लिए ज्यादा संकट पैदा नहीं करेगी। ‘जौली ग्रांट एयरपोर्ट’ यहां एक ऐसा स्थान है जहां वायुसेना प्रभावित क्षेत्रों से लोगों को लेकर आ रही है।
राजनाथ पहुंचे पटना
जदयू से संबंध तोड़ लिए जाने पर पहली बार बिहार पहुंचे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह के आज पटना हवाई अड्डा पहुंचने पर स्टेट हैंगर आवंटित नहीं किए जाने से नाराज भाजपा कार्यकर्ताओं ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ नारेबाजी की। राजनाथ के पटना आगमन पर उनके स्वागत के लिए हवाई अड्डे का स्टेट हैंगर परिसर नहीं उपलब्ध कराए जाने से नाराज भाजपा कार्यकर्ताओं ने नीतीश कुमार मुर्दाबाद और हाय-हाय के नारे लगाए। भाजपा के पूर्व मंत्री गिरिराज सिंह ने नीतीश सरकार के इस व्यवहार को दुखद बताते हुए कहा कि पार्टी अध्यक्ष का कार्यकर्ता सम्मेलन आयोजित करने के लिए पूर्व में जब हम लोगों ने मिलर स्कूल मैदान की मांग की तो उसमें आनाकानी की गई जबकि अधिकार रैली के समय पिछले वर्ष जदयू ने उसी मैदान को अपने कार्यकर्ताओं को ठहराने के लिए इस्तेमाल किया था।
बिहार के शिक्षा विभाग द्वारा राजनाथ के सम्मेलन के लिए मिलर स्कूल का मैदान उपलब्ध नहीं कराए जाने पर भाजपा द्वारा पटना स्थित संजय गांधी स्टेडियम में इस कार्यक्रम के लिए वैकल्पिक व्यवस्था की गयी। गिरिराज ने कहा कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के आज पटना आगमन पर पार्टी कार्यकर्ताओं की भीड जुटने के मद्देनजर उनके स्वागत के लिए पटना हवाई अड्डा के स्टेट हैंगर परिसर की मांग की गयी थी पर उसे देने से इंकार कर दिया गया। उन्होंने कहा कि बिहार में राजग शासन काल के समय और उससे पूर्व सभी राजनीतिक दलों ने स्टेट हैंगर का उपयोग किया है। गिरिराज ने राज्य सरकार के इस व्यवहार को अनुचित बताते हुए कहा कि जिस स्वस्थ राजनीति की बात मुख्यमंत्री नीतीश कुमार करते हैं यह उसके विपरीत है । प्रदेश की जनता सबकुछ देख रही है और उनसे एक-एक बात का हिसाब लेगी।
बिहार के शिक्षा विभाग द्वारा राजनाथ के सम्मेलन के लिए मिलर स्कूल का मैदान उपलब्ध नहीं कराए जाने पर भाजपा द्वारा पटना स्थित संजय गांधी स्टेडियम में इस कार्यक्रम के लिए वैकल्पिक व्यवस्था की गयी। गिरिराज ने कहा कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के आज पटना आगमन पर पार्टी कार्यकर्ताओं की भीड जुटने के मद्देनजर उनके स्वागत के लिए पटना हवाई अड्डा के स्टेट हैंगर परिसर की मांग की गयी थी पर उसे देने से इंकार कर दिया गया। उन्होंने कहा कि बिहार में राजग शासन काल के समय और उससे पूर्व सभी राजनीतिक दलों ने स्टेट हैंगर का उपयोग किया है। गिरिराज ने राज्य सरकार के इस व्यवहार को अनुचित बताते हुए कहा कि जिस स्वस्थ राजनीति की बात मुख्यमंत्री नीतीश कुमार करते हैं यह उसके विपरीत है । प्रदेश की जनता सबकुछ देख रही है और उनसे एक-एक बात का हिसाब लेगी।
शाह-मिस्त्री आमने-सामने
भाजपा के अमित शाह को टक्कर देने के लिए कांग्रेस ने मधुसूदन मिस्त्री को उत्तर प्रदेश का प्रभार सौंपा है। दोनों गुजरात से आते हैं और उत्तर प्रदेश में एक-दूसरे के खिलाफ चुनावी ताल ठोंकेंगे। मधुसूदन मिस्त्री गुजरात से आते है। नरेन्द्र मोदी पर हमलावर रहते हैं। पिछड़े वर्ग से आते हैं। कर्नाटक में कांग्रेस को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। और हाल ही में देशभर का दौरा कर एक रिपोर्ट राहुल गांधी को सौंपी है लोकसभा के सीटों के आंकलन पर। यानि राहुल के विश्वासपात्रों में से एक है मुधूसूदन मिस्त्री। अब राहुल ने उन्हें उत्तरप्रदेश की जिम्मेदारी सौंप कर साफ कर दिया है की वह नरेन्द्र मोदी से मुकाबले का नेतृत्व खुद करेंगे। यानि मोदी के अमित शाह के सामने राहुल के मधुसूदन मिस्त्री। चुनाव नजदीक आते आते बयानों के तीखे तीर चलने की अब आगाज हो जाएगा।
वर्तमान सियासी हालात को देखकर यह साफ लग रहा है कि भाजपा नरेंद्र मोदी के नेतृत्व पर किसी तरह का समझौता नहीं करने के मूड में है। नरेंद्र मोदी को यह पता है कि दिल्ली में ताजपोशी के लिए उत्तर प्रदेश में बड़ी जीत जरूरी है। उन्?होंने अमित शाह को पिछले दिनों उत्तर प्रदेश भेजकर चुनावी तैयारियों का जायजा लिया। ऐसी खबर भी है कि नरेंद्र मोदी को लखनऊ या वाराणसी से चुनाव लड़वाया जा सकता है। इसके लिए अमित शाह माहौल भी बना रहे हैं। भाजपा के मिशन यूपी से कांग्रेस भी सतर्क हो गई है। कांग्रेस ने मोदी और अमित शाह की काट के लिए चतुर चुनावी रणनीतिकार मधुसूदन मिस्त्री को यूपी का प्रभारी नियुक्?त कर चुनौती देने की कोशिश की है। अभी हाल ही में कांग्रेस को कर्नाटक में शानदार जीत दिलाने वाले मधुसूदन मिस्त्री के बारे में कहा जा रहा है कि कांग्रेस में उनसे बेहतरीन संगठनकर्ता कोई नहीं है।
यह भी संयोग ही है कि दोनों ही दलों ने पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश के नेताओं के हाथ से प्रदेश का प्रभार लेकर गुजरात के नेताओं को सौंपा है। बीजेपी में इससे पहले उत्तर प्रदेश के प्रभारी नरेंद्र सिंह तोमर थे, जो फिलहाल मध्य प्रदेश में पार्टी के अध्यक्ष हैं। कांग्रेस के प्रभारी दिग्विजय सिंह थे जिन्हें अब दक्षिण के सूबों का प्रभार दे भेजा गया है। कांग्रेस के इस ऐलान के बाद अगले चुनाव को लेकर उत्तर प्रदेश में दो गुजरातियों की जंग बेहद दिलचस्?प होने की उम्?मीद है।
सच तो यह भी है कि 2014 की जंग के मद्देनजर एक तरफ नरेंद्र मोदी हैं, जिन्हें भाजपा का अघोषित पीएम उम्मीदवार माना जाता है, दूसरी तरफ राहुल गांधी कांग्रेस के बड़े चेहरे हैं। सवाल यह है कि क्या कांग्रेस मोदी बनाम राहुल जंग की तैयार कर रही है। राष्ट्रीय कार्यकारिणी में सबसे बड़ा बदलाव राहुल के करीबी माने जाने वाले मधुसूदन मिस्त्री हैं। उन्हें उत्तर प्रदेश प्रभारी और केंद्रीय चुनाव समिति का अध्यक्ष बनाया गया है। कांग्रेस की नई कार्यकारिणी में अलग-अलग इलाकों के प्रतिनिधित्व का ख्याल रखा गया है तो जातीय समीकरण को बरकरार रखते हुए उसे धार देने की कोशिश की गई है।बीजेपी में यूपी का प्रभार मोदी के करीबी अमित शाह को मिला है। शख्सियत की जंग में मोदी छा जाने का हुनर जानते हैं, लिहाजा कांग्रेस मोदी बनाम राहुल की जंग सिरे से खारिज कर देती है। खुद राहुल गांधी भी मोदी पर बयान देने से बचते हैं। ये उनकी बाजीगरी का खास पहलू है। माना जा रहा है कुशल चुनाव प्रबंधन और प्रशासनिक काबलियत वाले मोदी को कांग्रेस बारीक स्तर पर तैयार रणनीति से पछाड़ना चाहती है। राहुल इसके लिए देश भर में दौरे कर रहे हैं। संगठन में ऐसे चेहरों को पहचानने की कोशिश में हैं, जिन पर जीत की बाजी लगाई जा सके। इस मकसद में मोदी की वजह से होने वाला संभावित जातीय ध्रुवीकरण भी कांग्रेस का मददगार बनेगा।
इसमें उत्तर प्रदेश सबसे बड़ा किरदार है, जहां 80 लोकसभा सीटें हैं। यही वजह है कि फेरबदल की बाजी से राहुल ने छुपा हुआ पत्ता बाहर निकाला है। मधुसूदन मिस्त्री को उत्तर प्रदेश और केंद्रीय चुनाव समिति का प्रभारी बनाया गया है। हाल ही में कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस की जीत से मधुसूदन मिस्त्री को नई पहचान मिली है। उनसे यूपी में भी कमाल दोहराने की उम्मीद की जा रही है। हालांकि, उत्तर प्रदेश में न कांग्रेस की चुनौती आसान है, न मधुसूदन मिस्त्री की। भाजपा की तरफ से उत्तर प्रदेश में नरेंद्र मोदी के खास सिपहसलार अमित शाह सामने हैं। दिलचस्प है कि उनके मुकाबले के लिए उतरे मधुसूदन मिस्त्री भी गुजरात के साबरकांठा से लोकसभा सदस्य रहे हैं।
2012 में गुजरात विधानसभा चुनाव में मोदी की जीत के बावजूद मिस्त्री की अगुवाई में साबरकांठा में कांग्रेस को शानदार जीत मिली। उन्हें मोदी के सिपहसलार अमित शाह की जोड़ का चुनावी रणनीतिकार माना जाता है। खास बात यह है कि अगर मोदी संघ से हैं तो राहुल का दांव बन चुके मिस्त्री के भी संघ से रिश्ते रहे हैं। वो संघ के स्वयंसेवक रहे गुजरात के पूर्व सीएम शंकर सिंह वाघेला के साथ बीजेपी से अलग हुए थे। यानी बीजेपी और संघ की रणनीति को करीब से जानने वाले मिस्त्री, मोदी-अमित शाह के दांवपेंच समझ कर उसकी काट तैयार कर सकते हैं। पिछड़े वर्ग से आने वाले मधुसूदन मिस्त्री की पृष्ठभूमि एनजीओ की भी रही है, जो आम आदमी के कांग्रेस के नारे के करीब है। उत्तर प्रदेश की इस जंग का सच यह भी है कि भाजपा और कांग्रेस उत्तर प्रदेश में तीसरे और चौथे नंबर की पार्टियां हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि राहुल की बाजी अमित शाह की रणनीति की काट से ज्यादा कांग्रेस को चुनावी सफलता दिलाने पर टिकी है।
2012 के विधानसभा चुनाव में गांधी परिवार के गढ़ अमेठी और रायबरेली में भी उसे हार मिली। रायबरेली की पांच सीटों में उसे एक भी सीट नहीं मिली। अमेठी की पांच सीटों में उसे 2 सीट मिलीं जबकि 2007 के विधानसभा चुनाव में दोनों जगह से वो 7 विधानसभा सीट जीतने में कामयाब हुई थी। अमेठी लोकसभा क्षेत्र सुल्तानपुर जिले में आता है, जहां भाजपा के वरुण गांधी हाल ही में रैलियां कर अपने इरादे दिखा चुके हैं। वहीं, अमित शाह को यकीन है कि भाजपा का भविष्य उत्तर प्रदेश ही बनाएगा।
गौर करने योग्य यह भी है कि अमित शाह जोश में हैं। सच यह भी है कि उत्तर प्रदेश को वे राहुल से बेहतर नहीं जानते। 2004 से सियासत में उतरने के बाद इस बाजीगर ने उत्तर प्रदेश का चप्पा-चप्पा छाना है। यूथ कांग्रेस और एनएसयूआई जैसे संगठन के जरिए वे जमीनी स्तर पर कांग्रेस को खड़ा कर रहे हैं, जिसके नतीजे 2014 में दिख सकते हैं।
देश में आपदा के समय कहां हैं राहुल गांधी
उत्तराखंड में कुदरत के कहर के बाद कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को लेकर अब हर जगह सवाल पूछा जा रहा है कि कहां है पप्पू? पप्पू यानी कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी।
पूर्वाचंल विकास मोर्चा ने भी कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के ऐसे मौके पर भी भारत में न होने पर सवाल उठाया है।
पूर्वाचंल विकास मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अजीत पांडेय ने सवाल किया कि देश के एक सूबे में जब इतनी बड़ी आपदा आई है तब कांग्रेस की ओर से प्रधानमंत्री के संभावित उम्मीदवार कहां हैं?
इसके पहले भी राहुल गांधी पर जनलोकपाल आंदोलन और दिल्ली में पिछले साल हुए बहुचर्चित रेप कांड के समय चले आंदोलन के दौरान भी विदेश में रहने का आरोप लगा था।
पांडेय का कहना है कि जब भी देश में कोई बड़ी विपदा आती है या किसी बड़े मुद्दे पर बहस चल रही होती है, तो वह या तो इससे निरपेक्ष बने रहते हैं या विदेश में रहते हैं।
अजीत पांडेय ने कहा कि 'जो लोग नरेंद्र मोदी पर सवाल उठाते हैं, उन्हें सोचना चाहिए कि राहुल गांधी कहां हैं। जब उत्तराखंड में इतनी बड़ी आपदा आई हुई है, तो वह देश क्यों नहीं लौटे?
अगर राहुल गांधी की विदेश में जरूरत है, तो उन्हें वहीं रहने दिया जाए। वह ऐसे भी कुछ नहीं कर सकते हैं।'
Saturday, 22 June 2013
नरेंद्र मोदी के केदारनाथ दौरे पर शिंदे ने लगाया ब्रेक
उत्तराखंड में कुदरत के कहर पर राजनीति भी शुरू हो गई है। गुजरात के
मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार रात देहरादून पहुंचे गये। मोदी प्रभावित
क्षेत्रों का जमीनी और हवाई दौरा करने के लिये गये थे, लेकिन गृह मंत्री
सुशील कुमार शिंदे ने उनके हेलीकॉप्टर को जमीन पर उतारने की इजाजत देने से
साफ इंकार कर दिया।
शिंदे ने साफ कह दिया कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के अलावा किसी भी नेता के हेलिकॉप्टर को नीचे उतरने की इजाजत नहीं दी जाएगी। मोदी ने उत्तराखंड के प्रभावित इलाकों में कैंप लगाने की बात कही थी। इससे पहले देहरादून पहुंचकर मोदी ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा था कि संकट की इस घड़ी में पूरा देश उत्तराखंड के साथ खड़ा है। हम इस संकट से निबटने में राज्य सरकार को जो भी मदद करेंगे।
मोदी ने कहा कि वह शनिवार को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा से मिलेंगे और इस स्थिति से निबटने के लिए जो भी मदद की जरूरत होगी, उसकी पेशकश करेंगे। गुजरात के मुख्यमंत्री यह सुनिश्चित करने के लिए भी यहां हैं कि उत्तराखंड में फंसे उनके राज्य के लोग अपने घर वापस पहुंच जाएं। दो चार्टर्ड विमान 747 बोइंग विमान गुजरात के तीर्थयात्रियों को निकालने के लिए अहमदाबाद की उड़ान भरेंगे। इन विमानों में 140-140 यात्री सवार हो सकते हैं।
ध्यान रहे कि सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह, राजनाथ सिंह समेत कई नेताओं ने उत्तराखंड का हवाई दौरा कर नुकसान का जायजा लिया, लेकिन मीडिया में इसकी कड़ी आलोचना हो रही है कि हजारों फीट की ऊंचाई से नेता आखिर क्या देख लेंगे। विशेषज्ञों का कहना है कि हवाई दौरों का कोई मतलब नहीं है बल्कि नेताओं को वहां फंसे लोगों को उम्मीद बंधानी चाहिये थी और उनसे मिलना चाहिये था।
ध्यान रहे कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री खुद अभी तक देहरादून से बाहर उन दुर्गम इलाकों तक नहीं गये हैं। ऐसे में मोदी अगर फंसे हुए लोगों के बीच पहुंचते और जमीनी दौरा करते तो कांग्रेस को तगड़ा झटका लगता है। जानकारों का मानना है कि मोदी का हेलीकॉप्टर नहीं उतरने देने के पीछे सिर्फ यही एक मंशा हो सकती है।
शिंदे ने साफ कह दिया कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के अलावा किसी भी नेता के हेलिकॉप्टर को नीचे उतरने की इजाजत नहीं दी जाएगी। मोदी ने उत्तराखंड के प्रभावित इलाकों में कैंप लगाने की बात कही थी। इससे पहले देहरादून पहुंचकर मोदी ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा था कि संकट की इस घड़ी में पूरा देश उत्तराखंड के साथ खड़ा है। हम इस संकट से निबटने में राज्य सरकार को जो भी मदद करेंगे।
मोदी ने कहा कि वह शनिवार को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा से मिलेंगे और इस स्थिति से निबटने के लिए जो भी मदद की जरूरत होगी, उसकी पेशकश करेंगे। गुजरात के मुख्यमंत्री यह सुनिश्चित करने के लिए भी यहां हैं कि उत्तराखंड में फंसे उनके राज्य के लोग अपने घर वापस पहुंच जाएं। दो चार्टर्ड विमान 747 बोइंग विमान गुजरात के तीर्थयात्रियों को निकालने के लिए अहमदाबाद की उड़ान भरेंगे। इन विमानों में 140-140 यात्री सवार हो सकते हैं।
ध्यान रहे कि सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह, राजनाथ सिंह समेत कई नेताओं ने उत्तराखंड का हवाई दौरा कर नुकसान का जायजा लिया, लेकिन मीडिया में इसकी कड़ी आलोचना हो रही है कि हजारों फीट की ऊंचाई से नेता आखिर क्या देख लेंगे। विशेषज्ञों का कहना है कि हवाई दौरों का कोई मतलब नहीं है बल्कि नेताओं को वहां फंसे लोगों को उम्मीद बंधानी चाहिये थी और उनसे मिलना चाहिये था।
ध्यान रहे कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री खुद अभी तक देहरादून से बाहर उन दुर्गम इलाकों तक नहीं गये हैं। ऐसे में मोदी अगर फंसे हुए लोगों के बीच पहुंचते और जमीनी दौरा करते तो कांग्रेस को तगड़ा झटका लगता है। जानकारों का मानना है कि मोदी का हेलीकॉप्टर नहीं उतरने देने के पीछे सिर्फ यही एक मंशा हो सकती है।
Friday, 21 June 2013
उमा की सुनते तो आपदा न आती
उत्तराखण्ड में आई आपदा रुक जाती, अगर उमा भारती की बात सुन ली गई होती। कम से कम उत्तराखण्ड में बड़े बुजुर्गों के हवाले से सोशल मीडिया पर वहां के नौजवान यही जानकारी प्रेसित कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर मौजूद इन लोगों का स्थानीय बुजुर्गों के हवाले से कहना है कि जो हुआ है वह प्रत्यक्ष दैवी आपदा है। दैवी आपदा का मतलब वह नहीं जो सरकार बता रही है। बल्कि दैवी आपदा का मतलब वह जो सरकार वहां कर रही है, उसके कारण ही यह आपदा आई है।
एक पहाड़ी बुजुर्ग का कहना है कि यह प्रत्यक्ष दैवी का प्रकोप है. जो लोग पहाड़ के निवासी है वो ये बात जानते है कि पहाड़ के देवी देवता कितनी जल्दी रुष्ट होते है. जिस दिन ये देवी आपदा आई, मतलब शनिवार की शाम को, उसी दिन शाम को श्रीनगर में "धारी देवी" के मंदिर को विस्थापित किया गया था. लगभग शाम को ६ बजे और केदारनाथ में जो भरी तबाही हुई वो भी लगभग ८ बजे शुरू हुई. मौसम विभाग के अनुसार जहां जून के मानसून में 70 मीमी बारिश का अनुमान होता है परन्तु वहा 300मीमी बारिश हुई, वो भी सिर्फ 30 घंटो में.
स्थानीय बुजुर्गों का कहना है कि "माँ धारी देवी बड़ी प्रत्यक्ष शक्ति है उस क्षेत्र की. वो दिन में तीन बार अपना रूप बदलती है. वहां के निवासी ये सब जानते है. किन्तु सरकार वहां पर एक बाँध बना रही है जिससे मंदिर को उठाकर कहीं और ले जाने की जरूरत थी. स्थानीय लोग दो गुटों में बंटे हुए थे. एक मंदिर को हटाना चाहता था और एक गुट नहीं. पर सरकार ने मंदिर की मूर्ति को विस्थापित कर ही दिया. जिसका परिणाम अब दुनिया के सामने है.''
धारी देवी मंदिर को वहां से न हटाने के लिए भाजपा नेता उमा भारती ने 4 महीने पहले उत्तराखंड सरकार से मंदिर नहीं हटाने को कहा था. इस संबंध में उमा भारती ने प्रधानमंत्री को भी पत्र लिखकर मंदिर को विस्थापित न करने की मांग की थी। साधू संतो ने भी धारी देवी के मंदिर को विस्थापित करने से मना किया था लेकिन सरकार ने 4 दिन पहले 16 जून को मंदिर से मूर्ति हटा दी और उत्तराखंड में उसी दिन प्रलय आ गई. पहाड़ के बुजुर्गों का मानना है कि यदि ऐसी स्थिति किसी मस्जिद या मजार को लेकर होती तो सरकार कोई दूसरा रास्ता खोजती. लेकिन धारी देवी की शक्तियों को सरकार ने जानबूझकर समझने की कोशिश नहीं की, जिसका परिणाम सबके सामने है.
धारी देवी मंदिर काली का स्वरूप है जो श्रीमद्भागवत के अनुसार 108 शक्तिपीठों में से एक और उत्तराखंड में मौजूद 26 शक्तिपीठों में शामिल हैं. धारी देवी के बारे में कहा जाता है कि धारी माता की मूर्ति ऐसी ही एक त्रासदी में बहकर यहां आई थी जिसके बाद स्थानीय लोगों ने उनका रुदन सुना। माता की शक्तियों से परिचित होने के बाद स्थानीय लोगों ने श्रीनगर से 15 किलोमीटर दूर कालियासुर में माता धारी देवी का मंदिर स्थापित कर दिया लेकिन आज तक मूर्ति के ऊपर छत नहीं पड़ सकी है. कहते हैं कि कई बार छत बनाने की कोशिश की गई लेकिन हर बार छत बनाने में नाकामयाबी ही हाथ लगी. मूर्ति स्थापित करने के बाद ऐसा पहली बार हुआ है कि उनकी मूर्ति को विस्थापित किया गया है.
हालांकि दो दिन पहले खुद उमा भारती भी यही बात बोल चुकी हैं कि जो हुआ वह धारी देवी मंदिर को विस्थापित करने का प्रकोप है. गंगा पर बुलाये गये एक सम्मेलन में बोलते हुए दिल्ली में उमा भारती ने 19 जून को कहा था कि उनको पूर्व विश्वास है कि अगर मां धारी देवी के मंदिर को विस्थापित नहीं किया गया होता तो यह आपदा कभी नहीं आती।
नरेंद्र मोदी आज जाएंगे केदारनाथ
मोदी ने कहा कि वह शनिवार को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा से मिलेंगे और इस स्थिति से निबटने के लिए जो भी मदद की जरुरत होगी, उसकी पेशकश करेंगे. मोदी शनिवार को केदारनाथ के प्रभावित क्षेत्रों में भी जाएंगे. गुजरात के मुख्यमंत्री यह सुनिश्चित करने के लिए भी यहां हैं कि उत्तराखंड में फंसे उनके राज्य के लोग अपने घर वापस पहुंच जाएं. दो चार्टर्ड विमान 747 बोइंग विमान गुजरात के तीर्थयात्रियों को निकालने के लिए अहमदाबाद की उड़ान भरेंगे. इन विमानों में 140-140 यात्री सवार हो सकते हैं.
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को कहा कि उत्तराखंड पर जो प्राकृतिक विपदा आयी है वह राष्ट्रीय आपदा जैसी है. मोदी ने शुक्रवार रात यहां पहुंचने के शीघ्र बाद संवाददाताओं से कहा, ‘‘संकट की इस घड़ी में, पूरा देश इस पर्वतीय राज्य के साथ खड़ा है. हम इस संकट से निबटने में राज्य सरकार को जो भी मदद कर सकते हैं, करेंगे.’’ भाजपा नेता वर्षा प्रभावित उत्तराखंड के प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करने यहां पहुंचे. राज्य के चार धामों खासकर केदारनाथ में भयंकर तबाही हुई हैं. केदारनाथ में भयावह स्थिति है.
Thursday, 20 June 2013
मिले भागवत और आडवाणी
भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेता लालकृष्ण आडवाणी ने आज राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत से मुलाकात की और पार्टी की मौजूदा स्थिति के संबंध में चर्चा की। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनाव अभियान की कमान सौंपे जाने से नाराज आडवाणी ने संघ प्रमुख को हाल के घटनाक्रमों के बारे में अपने विचार रखे।
पार्टी के तीन पदों से इस्तीफा देने और फिर वापस लेने के बाद आडवाणी की भागवत से यह पहली मुलाकात थी। संघ प्रमुख के रहने पर आडवाणी ने अपना इस्तीफा वापस ले लिया था। आडवाणी ने भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह को लिखे पत्र मे पार्टी के कामकाज के तरीके और उसकी दिशा पर गहरा असंतोष जताया था। सूत्रों के अनुसार आडवाणी ने इन मुद्दों पर संघ प्रमुख के साथ चर्चा की। आडवाणी अस्वस्थता के चलते कल श्री भागवत से मुलाकात नहीं कर सके थे।इससे पहले नरेंद्र मोदी ने भी दो दिन पहले आडवाणी के घऱ जाकर उनसे मुलाकात की थी। ये मुलाकात करीब एक घंटे चली। इसके अलावा मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से भी मुलाकात कर उनका हालचाल लिया था।
संघ के यहां स्थित कार्यालय केशवकुंज में दोनों नेताओं के बीच लगभग 75 मिनट तक बातचीत हुई. भाजपा के गोवा अधिवेशन में मोदी को पार्टी की चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाये जाने के कथित विरोध में 10 जून को भाजपा के सभी पदों से इस्तीफा दे देने के बाद आडवाणी की भागवत से यह पहली मुलाकात है.
इससे पहले भागवत ने ही फोन पर बातचीत करके आडवाणी को इस्तीफा वापस लेने के लिए मनाया था. उनके कहने पर उन्होंने 11 जून को इस्तीफा वापस ले लिया था. भागवत ने आडवाणी को आश्वासन दिया था कि पार्टी की कार्यप्रणाली को लेकर उनकी चिंताओं पर ध्यान दिया जायेगा.
बाद में आडवाणी ने कहा कि उन्होंने मोदी के कारण नहीं बल्कि भाजपा की कार्यप्रणाली के अंदाज के विरोध में इस्तीफा दिया था.
सूत्रों ने बताया कि आडवाणी और भागवत के बीच उक्त सभी विषयों पर चर्चा हुई. बताया जाता है कि आडवाणी संघ के संयुक्त महासचिव सुरेश सोनी और पार्टी में संघ की ओर से नियुक्त भाजपा महासचिव (संगठन) रामलाल के भी खिलाफ हैं और चाहते हैं कि उन्हें उनके पदों से हटाया जाये.
यह, हालांकि स्पष्ट नहीं हो सका है कि इस बातचीत में आडवाणी की शिकायतें किस हद तक दूर हुई हैं. आडवाणी की कल ही भागवत से मुलाकात होनी थी लेकिन उनके (आडवाणी के) अस्वस्थ होने के कारण उसे स्थगित कर दिया गया. संघ की मर्जी से ही मोदी का कद भाजपा में बढ़ाया गया है और यह निश्चित है कि इस निर्णय पर कोई पुनर्विचार नहीं होगा. आडवाणी का कहना है कि मोदी को यह नया पद दिए जाने से सहयोगी दल साथ छोड़ देंगे और राजग कमजोर होगा. मोदी के मुद्दे पर जदयू के राजग से हट जाने के चलते आडवाणी का यह तर्क मजबूत हुआ है. मोदी ने 18 जून को आडवाणी से मुलाकात करके उनकी नाराजगी दूर करने का प्रयास किया था. आडवाणी से हुई उनकी बातचीत को अच्छी बताया गया था और कहा गया था कि वह सकारात्मक नोट पर समाप्त हुई.
दिलचस्प बात यह है कि आडवाणी ने पार्टी संबंधी अपनी शिकायतें संघ के सम्मुख रखी हैं, जबकि वह हमेशा इस बात के विरोधी रहे हैं कि पार्टी का संघ सूक्ष्म प्रबंधन करे. आडवाणी से पहले भाजपा के पूर्व अध्यक्ष एम वेंकैया नायडू ने भी भागवत से भेंट की.
भ्रष्टाचार की गोंद से चिपक गयी नीतीश की पार्टी
भाजपा ने बुधवार को कहा कि कांग्रेस के समर्थन से बिहार विधानसभा में नीतीश कुमार सरकार के विश्वासमत हासिल करने ने साबित कर दिया है कि उनकी पार्टी जदयू उसी दल के षडयंत्र में फंस गई है जिसका वह आज से पहले तक विरोध करती आई है.
इसने यह भी साबित कर दिया है कि जदयू ‘भ्रष्टाचार की गोंद’ से चिपक चुकी है.पार्टी प्रवक्ता मीनाक्षी लेखी ने यहां कहा, ‘‘आज के विश्वास मत ने दिखा दिया है कि भाजपा के साथ मिलकर जदयू ने जिस कांग्रेस के खिलाफ जीत दर्ज करके सरकार बनाई आज उसी के आगे घुटने टेक दिए हैं.’’ उन्होंने कहा कि जदयू तमाम उम्र कांग्रेस को बुरा भला कहने के साथ उसका विरोध करती आई है. लेकिन बिहार विधानसभा में आज हुए विश्वास मत ने साबित कर दिया है कि वह न सिर्फ उसके बिछाए षडयंत्र में फंस गई बल्कि सत्ता में बने रहने के लिए उसके आगे घुटने टेक दिए जिससे उसे उसके कंधे का सहारा मिल जाए.
यह पूछे जाने पर कि भाजपा ने विश्वासमत के खिलाफ मत देने की बजाए विधानसभा से वाकआउट क्यों किया, लेखी ने कहा, क्योंकि हम जानते थे कि जदयू ‘‘भ्रष्टाचार के गोंद से चिपक गई है.’’ इस सवाल पर भाजपा से अलग होते ही जदयू भ्रष्ट कैसे हो गई, उन्होंने कहा, ‘‘हम अभी उसे भ्रष्ट नहीं कह रहे हैं, बल्कि यह कह रहे हैं कि वह भ्रष्टाचार की गोंद यानी कांग्रेस के साथ जा मिली है.’’
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सुविधा की राजनीति कर रहे हैं. नरेंद्र मोदी तो सिर्फ बहाना हैं. उनकी नीति है-‘भाजपा को साथ लेकर चलो, अपनी ताकत बढ़ाओ, फिर भाजपा को लात मार दो’. जिस कांग्रेस के खिलाफ लड़ाई लड़ कर उन्होंने यह मुकाम पाया है, उसी कांग्रेस के साथ उनकी दोस्ती हो गयी है. इस दोस्ती ने उन्हें जुगाड़ टेक्नोलॉजी में भी दक्ष बना दिया है. नीतीश को भाजपा बधाई देती है. ये बातें बुधवार को विधानसभा में विश्वास मत पर चली बहस के दौरान विपक्ष के नेता नंद किशोर यादव ने कहीं. चार दिन पहले तक जिस गंठबंधन सरकार में नंद किशोर यादव थे, उसी सरकार के विरोध में उन्होंने सदन में जम कर हमला बोला. उन्होंने कहा कि एनडीए के नेता के रूप में उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. पहले इस्तीफा देते और फिर जदयू विधायक दल का विश्वास मत हासिल कर मुख्यमंत्री बनते. ऐसा करने से उन्हें किसने रोका था? उन्हें डर था कि कहीं वे अपने ही विधायक दल का चुनाव हार न जाएं. भाजपा आज विश्वास मत प्रस्ताव के विरोध में सदन से वॉकआउट कर गयी. सदन में नंद किशोर यादव ने नीतीश कुमार को कांग्रेस व सीपीआइ के नये गंठबंधन की मुबारकबाद दी.
Wednesday, 19 June 2013
नीतीश ने विश्वास मत हासिल किया
बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जनता दल (युनाइटेड) सरकार ने लम्बे समय के अपने सहयोगी भारतीय जनता पार्टी से नाता तोड़ने के बाद बुधवार को विधानसभा में बहुमत साबित करते हुए विश्वास मत हासिल कर लिया. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा पेश किए गए विश्वास प्रस्ताव के पक्ष में कुल 126 विधायकों ने मतदान किया, जबकि 24 ने प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया. सदन में कुल 243 सदस्य हैं. बीजेपी के 91 सदस्यों और लोकजनशक्ति पार्टी के एक विधायक ने सदन से बहिर्गमन किया. बीजेपी से गठबंधन तोड़ देने के बावजूद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विधानसभा में विश्वास मत हासिल कर लिया है। नीतीश को बहुमत साबित करने के लिए 122 वोटों की दरकार थी लेकिन कांग्रेस और लेफ्ट के समर्थन से उन्हें सदन में 126 वोट मिले। बीजेपी ने सदन की कार्यवाही का बहिष्कार कर पहले ही नीतीश के लिए मैदान खुला छोड़ दिया था। आरजेडी (22) ने नीतीश के विश्वास प्रस्ताव के विरोध में वोट किया। विरोध में कुल 24 वोट पड़े।
विश्वास प्रस्ताव पर शुरू हुई चर्चा में भाग लेते हुए नेता प्रतिपक्ष नंदकिशोर यादव ने कहा कि वह समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर इस विश्वास प्रस्ताव के क्या मायने हैं। उन्होंने तो सरकार से विश्वासमत हासिल करने की मांग ही नहीं की है। उन्होंने मुख्यमंत्री पर जनादेश के साथ विश्वासघात करने का आरोप लगाते हुए कहा कि केवल सत्ता के कारण मूल विचारों से जेडीयू भटक गई है। इस कारण जुगाड़ तकनीक में माहिर लोग तो वोट का जुगाड़ कर ही लेंगे। ऐसे में मतदान का क्या मतलब है। असल मतदान तो जनता की अदालत में होगा। उन्होंने कहा कि बीजेपी विधायक इस मतदान में हिस्सा नहीं लेंगे। इसके साथ ही बीजेपी विधायक सदन से वॉक आउट कर गए। विधानसभा में बीजेपी के 91 विधायक हैं।
उधर, कांग्रेस विधायकों ने जेडीयू के पक्ष में वोटिंग की। इसके अलावा 4 निर्दलीय विधायक भी नीतीश को समर्थन दे रहे हैं। यानि विश्वासमत के लिए नीतीश की राह बेहद आसान हो गई। विश्वासमत पेश करते हुए नीतीश ने बीजेपी पर जमकर निशाना साधा। नीतीश ने कहा कि अब बिहार में सेकुलर सरकार चल रही है। साथ ही नीतीश ने कांग्रेस को भी समर्थन के लिए धन्यवाद दिया। नीतीश ने कहा कि बीजेपी ने 2010 के चुनाव में मोदी को प्रचार के लिए नहीं बुलाया। अगर बुलाया होता तो हमें कभी जीत नहीं मिलती।
विश्वास प्रस्ताव पर शुरू हुई चर्चा में भाग लेते हुए नेता प्रतिपक्ष नंदकिशोर यादव ने कहा कि वह समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर इस विश्वास प्रस्ताव के क्या मायने हैं। उन्होंने तो सरकार से विश्वासमत हासिल करने की मांग ही नहीं की है। उन्होंने मुख्यमंत्री पर जनादेश के साथ विश्वासघात करने का आरोप लगाते हुए कहा कि केवल सत्ता के कारण मूल विचारों से जेडीयू भटक गई है। इस कारण जुगाड़ तकनीक में माहिर लोग तो वोट का जुगाड़ कर ही लेंगे। ऐसे में मतदान का क्या मतलब है। असल मतदान तो जनता की अदालत में होगा। उन्होंने कहा कि बीजेपी विधायक इस मतदान में हिस्सा नहीं लेंगे। इसके साथ ही बीजेपी विधायक सदन से वॉक आउट कर गए। विधानसभा में बीजेपी के 91 विधायक हैं।
उधर, कांग्रेस विधायकों ने जेडीयू के पक्ष में वोटिंग की। इसके अलावा 4 निर्दलीय विधायक भी नीतीश को समर्थन दे रहे हैं। यानि विश्वासमत के लिए नीतीश की राह बेहद आसान हो गई। विश्वासमत पेश करते हुए नीतीश ने बीजेपी पर जमकर निशाना साधा। नीतीश ने कहा कि अब बिहार में सेकुलर सरकार चल रही है। साथ ही नीतीश ने कांग्रेस को भी समर्थन के लिए धन्यवाद दिया। नीतीश ने कहा कि बीजेपी ने 2010 के चुनाव में मोदी को प्रचार के लिए नहीं बुलाया। अगर बुलाया होता तो हमें कभी जीत नहीं मिलती।
कुदरत के कहर से हजारों की मौत
लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने दावा किया है कि उत्तराखंड में कुदरत के कहर से हजारों लोगों की मौत हुई है. सरकार ने उनके दावे की पुष्टि नहीं की है, लेकिन यह भी तथ्य है कि हजारों लोग अभी लापता हैं. 100 से ज्यादा लोगों के मरने की पुष्टि हो चुकी है. स्थानीय प्रशासन आशंका जता रहा है कि मरने वालों की संख्या 200 से ज्यादा हो सकती है. प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि कुदरत की क्रूरता से तबाह उत्तराखंड में पानी निकलने के बाद अब तबाही का मंजर धीरे-धीरे सामने आ रहे हैं. कई इलाकों में लाशें पड़ी हुई हैं. केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री में अभी भी करीब 73 हजार श्रद्धालु फंसे हुए हैं.
उत्तराखंड के बीजेपी नेता अजय भट्ट के हवाले से सुषमा ने कहा है कि पूरी केदारघाटी बह गई है. उन्होंने ट्वीट के जरिए यह भी दावा किया कि हजारों लोग मर गए हैं और फिर भी बचाव के कोई उपाय नहीं किए गए हैं. नेता विपक्ष ने इस बारे में गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे से बात करने और बचाव कार्यों में सेना का इस्तेमाल किए जाने की अपील करने की भी जानकारी दी. उनके अनुसार शिंदे ने हर तरह की मदद का आश्वासन दिया है.
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