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Sunday, 25 August 2013

भोजन या वोटों का जुगाड़ है फूड बिल?



दिल्ली में कुछ दिन पहले सोनिया गांधी ने खाद्य सुरक्षा योजना का उद्घाटन किया था। इसके तहत गरीबों को सस्ता अनाज मिलेगा। लेकिन सवाल ये है कि क्या दिल्ली के गरीबों को इसका लाभ मिल पाएगा? इस महत्वकांक्षी योजना को लेकर आखिर वो क्या सोचते हैं जिनके लिए ये पूरी कवायद की जा रही है। क्या सचमुच खाद् सुरक्षा योजना गरीबों को फायदा पहुंचाने की गंभीर कोशिश है या फिर महज वोट बटोरने का जरिया?
आईबीएन7 इस सवाल का जवाब ढूंढने जा पहुंचा गरीबों की बस्ती में। राजधानी दिल्ली में यमुना किनारे बनी झुग्गियों में लगभग 5 हजार लोग रहते हैं। ये या तो मजदूर हैं या फिर सब्जी, फल-फूल बेचकर गुजर बसर करने वाले। दिनभर की कड़ी मेहनत के बाद डेढ़ से 2 सौ रुपए ही कमा पाते हैं। 15 -20 सालों से ये परिवार इन्हीं झुग्गियों में रहते हैं और ये वो लोग हैं जिनके लिए सरकार खाद्य सुरक्षा कानून बनाने की कवायद में जुटी है। दिल्ली की शीला सरकार तो जल्द-जल्द से ये योजना लागू करना चाहती है। इस योजना के तहत सरकार इन लोगों को हर महीने प्रति व्यक्ति 5 किलो राशन देने की बात कर रही है। सवाल ये कि क्या इससे इनका गुजारा हो पाएगा?
गरीब बस्तियों में रहनेवाली शीला से एक सवाल पूछा गया तो उसने कहा कि चार किलो गेंहूं और एक किलो चावल में नहीं खा सकते हैं। गौरतलब है कि झुग्गियों में रहनेवाले लोग सिर्फ गरीब नहीं हैं। बल्कि ये वोटर भी हैं और ये वो लोग हैं जो ईमानदारी से पोलिंग बूथ पहुंचते हैं। इसे इत्तेफाक कहिए या राजनीति, मगर इस साल के अंत तक दिल्ली में चुनाव भी हैं तो क्या 2 रुपए किलो गेंहूं और 3 रुपए किलो चावल का वायदा गरीब की भूख मिटाने का हिस्सा है या फिर महज ये वोट के जुगाड़ का किस्सा है? खैर ये तो वक्त ही बताएगा मगर हमने ये सवाल झुग्गी के बाशिंदों से पूछा कि ये अनाज उनके पेट तक पहुंचेगा?
झुग्गी में रहनेवाली शकुंतला ने बताया कि जब जरूरत होती है तो आते हैं। ये सब चुनाव को लेकर हो रहा है वोट चाहिए तो आ रहे हैं। अब इस जवाब के बाद ये तय करना बड़ा मुश्किल होता है कि किसकी भूख हावी हो रही है? बहरहाल, उम्मीद तो अच्छे की ही करनी चाहिए।

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