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Thursday, 29 August 2013

खाद्य या यूपीए-सुरक्षा बिल!



जब संसद के मॉनसून सत्र के पहले सरकार अध्यादेश लायी तो वृंदा करात ने कहा था, हम उसके समर्थक हैं, पर आपत्तियां भी हैं. हम चाहते हैं कि इस पर संसद में बहस हो. खाद्य सुरक्षा सबके लिए एक समान हो. मुलायम सिंह ने कहा था, यह किसान विरोधी है. नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी कि मुख्यमंत्रियों से बात कीजिए. पर लगता है उन्होंने अपनी ही पार्टी के नेताओं से बात नहीं की. भाजपा के नेता इन दिनों अलग-अलग सुर में हैं. बिल पर संसद में जो बहस हुई, उसमें ज्यादातर दलों ने इसे ‘चुनाव सुरक्षा विधेयक’ मान कर ही अपने विचार रखे.
बिल पास होने के अगले दिन रुपया डॉलर के मुकाबले 66 की सीमा पार कर गया. मंगलवार को राज्यसभा में वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि रुपये की कीमत केवल बाहरी कारणों से नहीं गिरी. अंदरूनी कारण भी हैं. 2008 की मंदी के वक्त हमने गलतियां कीं और राजस्व घाटे पर ध्यान नहीं दिया. चालू खाते के असंतुलन को नहीं रोका.

बहरहाल खाद्य सुरक्षा पर कोई भी पार्टी खुद को जन-विरोधी साबित नहीं करेगी. पर इसे लेकर अर्थशास्त्रीय दृष्टियां दो प्रकार की हैं. एक कहती है कि अंतत: इसकी कीमत गरीब जनता चुकायेगी. भ्रष्टाचार की एक और लहर का भी खतरा है. किसानों के समर्थन मूल्य में कटौती होगी. तंगहाल सरकार कम कीमत पर अनाज खरीदेगी. खुले बाजार में अनाज कम जायेगा, तो उसकी कीमत बढ़ेगी. किसान के इनपुट महंगे होंगे और आउटपुट सस्ता. पैसे की कमी से आर्थिक संवृद्धि के उपाय कम होंगे, आधारभूत ढांचे का विकास नहीं होगा. ग्रोथ रुकने से रोजगार घटेंगे. शहरी विकास प्रभावित होगा. यह नजरिया कहता है कि गरीबों को भोजन नहीं, पुष्टाहार की जरूरत है. उसके लिए अलग किस्म के हस्तक्षेप की जरूरत है. कांग्रेस मानती है कि यह कार्यक्रम ‘गेम चेंजर’ है. यानी चुनाव जिताने का मंत्र. विपक्ष मानता है कि दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के पहले इसकी घोषणा करके सरकार प्रचारात्मक लाभ लेना चाहती है. वृंदा करात कहती हैं कि सरकार चार साल से सोयी थी. जयललिता, ममता बनर्जी, नवीन पटनायक, रमन सिंह और शिवराज सिंह इसे केंद्र-राज्य संबंधों के लिए अहितकर भी मानते हैं. इसमें राज्य सरकारों को न केवल लाभार्थियों की पहचान करनी है, इसके खर्च में हिस्सा भी बंटाना है. जयललिता कहती हैं कि सामाजिक सुरक्षा का मसला राज्य सरकारों के अधीन रहना चाहिए. दरअसल यूपी, बिहार तथा कुछ अन्य पिछड़े इलाकों को छोड़ दें, तो राज्य सरकारें अपने साधनों के आधार पर खाद्य सुरक्षा की योजनाएं चला भी रहीं है. अकाली दल कहता है कि इससे बेहतर हमारी ‘आटा-दाल’ स्कीम है, जो हम 2007 से चला रहे हैं. छत्तीसगढ़ 90 फीसदी नागरिकों को सस्ता अनाज देता है. मध्य प्रदेश में भी यह स्कीम है. तमिलनाडु, केरल, आंध्र, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, ओड़िशा में भी सार्वजनिक वितरण प्रणाली काम कर रही हैं. राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) ने सभी नागरिकों को कवर करनेवाली योजना बनायी थी, पर सरकार ने लागू करने की हिम्मत नहीं दिखायी. अब जब यह कानून पास हो गया है, तो इसके उपबंधों की व्यावहारिकता की परीक्षा होगी. देखना यह है कि इस कानून में लोगों की शिकायतों की सुनवाई की व्यवस्था किस तरह काम करेगी?

सांसदों के रात्रिभोज में मोदी शामिल हुए



भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह द्वारा पार्टी सांसदों के लिए गुरुवार को आयोजित रात्रि भोज में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी स्टार अतिथि थे। भोज के दौरान गुजरात के मुख्यमंत्री और पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी एक ही टेबल पर बैठे थे और दोनों को एक-दूसरे से गर्मजोशी से बात करते देखा गया। पार्टी सांसदों के लिए भाजपा अध्यक्ष द्वारा दिए जाने वाले वार्षिक रात्रि भोज में मोदी एकमात्र विशेष आमंत्रित अतिथि थे।

जहां मोदी जल्दी पहुंच गए और अतिथियों से बातचीत करते देखे गए, वहीं आडवाणी लोकसभा में भूमि अधिग्रहण विधेयक पर मतदान में हिस्सा लेने के बाद रात 10 बजे के बाद पहुंचे। सूत्रों ने बताया कि वह मोदी के साथ एक ही टेबल पर बैठे थे। बल्कि भाजपा की चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष मोदी के बिल्कुल बगल में बैठे थे और दोनों एक-दूसरे से बातचीत कर रहे थे। टेबल पर राजनाथ के साथ लोकसभा और राज्यसभा में क्रमश: विपक्ष के नेता सुषमा स्वराज और अरुण जेटली भी बैठे थे। आडवाणी ने मोदी को भाजपा को चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाए जाने पर पार्टी के प्रमुख पदों से इस्तीफा दे दिया था। बाद में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के हस्तक्षेप करने के बाद आडवाणी ने इस्तीफा वापस लिया था। रात्रिभोज में तकरीबन 200 भाजपा सांसदों ने हिस्सा लिया।

Sunday, 25 August 2013

मंदी और मंदिर



प्रेम शुक्ल

१९९१ में मनमोहन ने रुपया गिराया था, अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए। उस गिरावट में भारत का अर्थतंत्र ऐसा फंसा कि कांग्रेस के हार की ‘हैट्रिक’ हुई थी। पर तब जिन लोगों ने भाजपा को वोट दिया था वह वोट रुपए को मजबूत करने की बजाय राममंदिर के भव्य निर्माण की जनाकांक्षा समेटे हुए था। रुपए के गिरने के साल भर बाद बाबरी गिरी थी। बाबरी के गिरने से हिंदू उत्साहित हुआ था। आज रुपया इतना गिरा है कि आम आदमी उसे उसे उठानेवाले को तलाश रहा है। अब आम रामभक्त अयोध्या में ८४ कोसी परिक्रमा के बाद भी भव्य राममंदिर के निर्माण के प्रति आश्वस्त नहीं। मंदिर निर्माण के लिए जिन आंखों ने २१ साल इंतजार कर लिया वे आंखें कुछ साल और इंतजार की रोशनी रखती हैं, पर क्या शक्तिशाली रुपए का निर्माण होगा? क्या नरेंद्र मोदी रुपए को डॉलर की मजबूती दे पाएंगे? यदि हां, तो समझो राममंदिर के भव्य निर्माण में भले विलंब हो ‘रामराज’ दूर नहीं होगा। क्या ‘रामराज’ लाने की योजना राजनाथ सिंह बनवा पाएंगे? यदि हां, तो फिर कण-कण में रामलला स्वयं विराजमान हो जाएंगे।
मनमोहनी मुक्तमंडी
क्या हिंदुस्तान को मुक्तमंडी बनाने के शिल्पकार डॉ. मनमोहन सिंह आर्थिक तारणहार की मसीहाई से गिरकर देश को बर्बाद करने वाले खलनायक बनने की कगार पर हैं? बीते ५ वर्षों के कार्यकाल में उन्होंने घोटालों और अराजकता का इतना बड़ा बोझ अपने सिर पर लाद लिया है कि उनकी मुक्तमंडी के सारे समर्थक भी अब उनसे कन्नी काटने लगे हैं। जो सोनिया गांधी ५ साल पहले दुनिया के सबसे टिकाऊ राजनैतिक खानदान को सत्ता के साहिल पर उतारने के लिए मनमोहन सिंह को सबसे कामयाब पतवार मानती थीं, वह भी अब उनसे किनारा काटने की उचित युक्ति की तलाश में हैं। बीते ३ साल उन्होंने मनमोहन सिंह सरकार की बांझ विरासत और राहुल गांधी के अनिश्चत भविष्य की कशमकश में ही बिताए हैं।
सशक्त विपक्ष की नामौजूदगी
आज किसी भी कांग्रेसी का नार्कोटेस्ट करा लिया जाए तो उसके मुंह से यही सच बाहर आएगा कि आज कांग्रेस मनमोहन सिंह की बर्बादी और बेहयाई की विरासत राहुल गांधी के अनिश्चय और अनिच्छा के दोपाट में पिसने को मजबूर है। उसे इससे उबारे कौन? सोनिया गांधी से कांग्रेसी अपेक्षा पाल रहे थे कि हो न हो ऐन मौके पर वह प्रियंका गांधी को चुनाव की फंसी बाजी में तुरुप के एक्के की तरह उतार सकती हैं। पर इस तुरुप के एक्के का दांव भी दामाद रॉबर्ट वड्रा पर लगे भूखंड घोटाले के चलते संदिग्ध है। घपले-घोटाले और अर्थव्यवस्था के निकले दिवाले के बीच भी अगर कांग्रेस किसी कारण आशा की रोशनी देख पाती है तो उसका एकमेव कारण है सशक्त विपक्ष की नामौजूदगी। बीते साल  भर की कवायद के बाद भारतीय जनता पार्टी नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद की दावेदारी में ‘फर्स्ट अमंग इक्वल्स’ यानी समान अवसर में प्रथम वाली श्रेणी तक तो ला पाई है, पर आज भी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के लौहपुरुष लालकृष्ण आडवाणी के माथे पर चढ़ती त्यौरियों से नरेंद्र मोदी का सेंसेक्स डांवाडोल हो जाता है।
फिर आम आदमी के मन में सवाल भी खड़ा होता है कि क्या सचमुच नरेंद्र मोदी कांग्रेसी डॉ. मनमोहन सिंह द्वारा सौंपी गई बर्बाद अर्थव्यवस्था से देश को उबार पाएंगे? उनकी अर्थनीति क्या होगी जिससे रुपया फिर से मजबूत हो जाए? बेरोजगारी घटे, महंगाई नियंत्रित हो, वृद्धि दर में इजाफा हो। कृषि क्षेत्र का कल्याण हो, उद्योगधंधे फिर से चलने लगें। निवेशकों का विश्वास बढ़े। चालू खाते का घाटा सचमुच घटे। हम आए दिन सोशल मीडिया पर ‘नमो-नमो’  का जाप सुनकर खुश जरूर होते हैं, पर अभी तक हमें वह तिलिस्मी चिराग नजर नहीं आया है जिससे चरमराई अर्थव्यवस्था के पटरी पर आने की आशा जाग सके। अब तक मोदीवाद जिस अर्थतंत्र का पैरोकार नजर आ रहा है वह तो मनमोहनी मुक्तमंडी से अलग नजर नहीं आता। भले मेरी बातें कसैली लगें पर अब तक जो दिखाई  दे रहा है उसमें साफ नजर आता है कि मनमोहनी पूंजीवाद सट्टावाद का शिकार होकर ऐसे दौर में पहुंच चुका है जिस पर अब विश्वस्तरीय अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह का कोई नियंत्रण शेष नहीं। पूंजीवाद के मुनाफावादी मल्टीनेशनल मुनाफाखोरों ने दशक-दो दशक पहले जो दुर्दशा मैक्सिको, ब्रिटेन, मलयेशिया, हांगकांग इंडोनेशिया आदि की की थी लगभग वही दुर्दशा आज ‘राइजिंग इंडिया’ की कर दी है।
ढहता रुपया
रुपया सरपट ढहता जा रहा है। मोदी के पास क्या कोई विकल्प है जिससे हिंदुस्तान को बचाया जा सके? यदि सचमुच मोदी और उनकी  अंतर्राष्ट्रीय ब्रांडिंग कंपनी ‘एपको’ यह विकल्प अगले छह महीनों में देश को समझा सके तो इस देश का मध्यवर्ग भाजपा को १८२ के अब तक के अधिकतम लोकसभा सीटों के आगे पहुंचा सकता है। क्या मोदी के रणनीतिकार इस दांव को आजमाएंगे? या फिर १९९० वाले भाजपा के पुराने फॉर्मूले पर ही सीटों के इजाफे का दारोमदार छोड़ा जाएगा? १९९० में भाजपा का विस्तार रामजन्मभूमि के मुद्दे पर हुआ था। आज जब मैं यह लिख रहा हूं तब एक बार फिर मुलायम सिंह यादव के पुत्र अखिलेश सिंह यादव की सरकार ने अयोध्या के जनपद फैजाबाद को सील कर रखा है। विश्व हिंदू परिषद के संत-महंत चातुर्मास में अयोध्या की ८४ कोस परिक्रमा पर अड़े हुए हैं। सोशल मीडिया में एक बार फिर मुलायम सिंह यादव को मुल्ला कहा जा रहा है। मोहम्मद आजम खां को धिक्कारा जा रहा है। कांग्रेस प्रवक्ता इसे सपा-भाजपा की नूरा कुश्ती करार दे रहे हैं।
हिंदूवादियों की शक-सुबहा
क्या सचमुच रामलला विश्वास कर पाएंगे कि विहिप वाले सचमुच उनका भव्य मंदिर बनाने के लिए कृतसंकल्प हैं? आम हिंदूवादियों के मन में भी भव्य राममंदिर के निर्माण के प्रति विहिप के संकल्प को लेकर शक-सुबहा होना लाजिमी है। १९९२ में बाबरी विध्वंस के १० साल बाद २००२ में अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में आखिरी बार परमहंस रामचंद्र दास के नेतृत्व में राममंदिर आंदोलन हुआ था। अब तो शायद राम भक्तों को यह भी याद दिलाना पड़ेगा कि उसी आंदोलन से लौटती साबरमती एक्सप्रेस के कोच में गोधरा में आग लगाई गई थी। जिसकी प्रतिक्रिया में गुजरात में दंगे हुए थे। जिन दंगों के दाग धोने की अपेक्षा बीते ११ वर्षों में तमाम भाजपा नेताओं ने भी पाली है।
आम हिंदू के मन में सवाल
आम हिंदू के मन में सवाल है कि विहिप को ८४ कोस की परिक्रमा के लिए १९९२-२०१३ तक २१ वर्षों का समय क्यों लगा? १९९८ से २००२ तक यानी पूरे ४ वर्षों तक उत्तर प्रदेश और केन्द्र में भाजपा का शासन था। अशोक सिंघल या प्रवीण तोगड़िया के मन में भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह के रामभक्त होने में रंचमात्र संदेह होने का कोई कारण नहीं। फिर उस अवधि में ८४ कोसी परिक्रमा कर रामलला का भव्य मंदिर बनाने का अभियान क्यों नहीं हुआ? हम यह सवाल पूछ रहे हैं सो स्वाभाविक है कि हमारे हिंदुत्व पर भी कुछ लोग संदेह करें पर इस संदेह से ज्यादा जरूरी है उन सवालों का जवाब जो हिंदू समाज जानना चाहता होगा। जब परमहंस रामचंद्र दास दिवंगत हुए तो उनकी चिता पर स्वयं अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि अयोध्या में रामलला के भव्य मंदिर का निर्माण होकर रहेगा। ११ वर्ष बीत गए स्वर्ग में परमहंस इंतजार कर रहे होंगे कब भाजपावाले अटल बिहारी वाजपेयी के शुभ संकल्प को पूरा करेंगे? इस ८४ कोस की परिक्रमा का फैसला प्रयाग के जिस धर्म संसद में हुआ वहां मौजूद संतों ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को कुंभ स्नान का निमंत्रण दिया था। हम लोग आज भी खुल्लमखुल्ला सद्भावना यात्रा में सिर पर गोल टोपी न लगाने के नरेंद्र मोदी के फैसले के समर्थन में भिड़ जाया करते हैं। पर आज दिन तक यह रहस्य नहीं समझ पाए कि आखिर कुंभ नहाने के निमंत्रण पर नरेंद्र मोदी ने गौर क्यों नहीं किया? माना कि उनको पाप प्रक्षालन की कोई जरूरत नहीं और वे बेहद पुण्यवान हैं, पर इस सच्चाई से भी कोई इंकार नहीं कर सकता कि अगर नमो वुंâभ में डुबकी लगा आते तो आज ८४ कोस की परिक्रमा पर निकले संत समाज के मन में राममंदिर निर्माण को लेकर बेहतर दृढ़ विश्वास होता। कुंभ बीता।
राम मंदिर का क्या?
भाजपा की नई राष्ट्रीय कार्यकारिणी बनी। नरेंद्र मोदी के परमप्रिय सिपहसालार अमित शाह को राष्ट्रीय महासचिव की नियुक्ति के साथ-साथ उत्तर प्रदेश का सांगठनिक दायित्व मिला। अमित शाह पहली बार उत्तर प्रदेश के दौरे पर गए तो प्रदेशाध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी के साथ उनका अयोध्या दौरा हुआ। अमित शाह और लक्ष्मीकांत वाजपेयी दोनों ने मीडिया के समक्ष कहा कि भाजपा राममंदिर का भव्य निर्माण कराना चाहती है। ये खबर अभी जवान भी नहीं हुई थी कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह का जो बयान आया उसका संदेश यही था कि राम मंदिर मुद्दा भाजपा के एजेंडे में नहीं। राजनाथ सिंह कुंभ स्नान कर आए थे और उत्तर प्रदेश की राजनीति की उनकी समझ को लेकर शक करने का कोई मतलब नहीं। तो क्या मान लिया जाए कि राममंदिर मुद्दे में अब भाजपा को जिताने का दम नहीं या फिर भाजपा राममंदिर मुद्दे को राजनीति से बहुत ऊंचा मानती है। यदि राममंदिर मुद्दा सचमुच बहुत ऊंचा है तो भव्य राममंदिर के निर्माण की कार्ययोजना क्या?
८४ कोसी परिक्रमा
इस बयान के कुछ दिन बाद रामजन्मभूमि न्यास समिति के अध्यक्ष  महंत नृत्य गोपालदास के सम्मान में अयोध्या में उत्सव आयोजित था। उस कार्यक्रम में नरेंद्र मोदी को निमंत्रित किए जाने की बात फिर सुर्खियों में आई। पूर्वनिर्धारित कार्यक्रमों के चलते नरेंद्र मोदी फिर अयोध्या नहीं गए। सो, विहिप की नीतियों का कट्टर समर्थन करने की पूरी इच्छा होने के चलते यह सवाल तो बनता है कि नरेंद्र मोदी यानी हमारे भावी कट्टर हिंदू प्रधानमंत्री क्या अयोध्या में भव्य मंदिर निर्माण के पक्ष में हैं? क्या विहिप की परिक्रमा को उनका नैतिक समर्थन प्राप्त है? या फिर बीते दशक भर में जिस तरह उनके और गुजरात विहिप के बीच में मतांतर रहा है वह कायम है। यदि मोदी यह मानते हों कि रामजन्मभूमि आंदोलन से भाजपा को दूरी बनाए रखनी चाहिए तो फिर उत्तर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी क्या केन्द्रीय नेतृत्व को विश्वास में लिए बिना ही विहिप की ८४ कोसी परिक्रमा को रोज समर्थन देनेवाला बयान जारी कर रहे हैं। भाजपा में अगर कोई केन्द्रीय नेतृत्व की नीतियों से हट कर बयान देता है तो उसके प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन यह दारोगानुमा बयान देने में जरा भी देर नहीं करते कि ‘पार्टी अध्यक्ष उक्त नेता के बयान पर उचित कार्यवाही करेंगे।’ अब तक मेरी नजर लक्ष्मीकांत वाजपेयी के इस ‘सांपद्रायिक’ वक्तव्य पर शाहनवाज हुसैन के किसी बयान पर नहीं गई है।
उद्धव ठाकरे का जवाब
हमने बात शुरू की थी मनमोहन की मुक्तमंडी के महामंदी में फांस से। जब शिवसेना के पक्षप्रमुख उद्धव ठाकरे दिल्ली दौरे पर गए थे तब उनसे एक पत्रकार ने सवाल पूछा कि अयोध्या में राममंदिर के भव्य निर्माण पर शिवसेना की क्या भूमिका है? शिवसेना पक्ष प्रमुख का जवाब था- ‘राममंदिर तो बनना चाहिए, पर उससे कहीं ज्यादा जरूरी है आम आदमी के रोजी-रोटी का सवाल।’ मुक्तमंडी के विफल होने से, रुपए के धराशाई होने से आम आदमी की रोटी का सवाल जटिल हो रहा है। बाबरी के गिरने से हिंदुस्तान को उतना नुकसान नहीं हुआ था जितना रुपए के गिरने से होने जा रहा है।

भोजन या वोटों का जुगाड़ है फूड बिल?



दिल्ली में कुछ दिन पहले सोनिया गांधी ने खाद्य सुरक्षा योजना का उद्घाटन किया था। इसके तहत गरीबों को सस्ता अनाज मिलेगा। लेकिन सवाल ये है कि क्या दिल्ली के गरीबों को इसका लाभ मिल पाएगा? इस महत्वकांक्षी योजना को लेकर आखिर वो क्या सोचते हैं जिनके लिए ये पूरी कवायद की जा रही है। क्या सचमुच खाद् सुरक्षा योजना गरीबों को फायदा पहुंचाने की गंभीर कोशिश है या फिर महज वोट बटोरने का जरिया?
आईबीएन7 इस सवाल का जवाब ढूंढने जा पहुंचा गरीबों की बस्ती में। राजधानी दिल्ली में यमुना किनारे बनी झुग्गियों में लगभग 5 हजार लोग रहते हैं। ये या तो मजदूर हैं या फिर सब्जी, फल-फूल बेचकर गुजर बसर करने वाले। दिनभर की कड़ी मेहनत के बाद डेढ़ से 2 सौ रुपए ही कमा पाते हैं। 15 -20 सालों से ये परिवार इन्हीं झुग्गियों में रहते हैं और ये वो लोग हैं जिनके लिए सरकार खाद्य सुरक्षा कानून बनाने की कवायद में जुटी है। दिल्ली की शीला सरकार तो जल्द-जल्द से ये योजना लागू करना चाहती है। इस योजना के तहत सरकार इन लोगों को हर महीने प्रति व्यक्ति 5 किलो राशन देने की बात कर रही है। सवाल ये कि क्या इससे इनका गुजारा हो पाएगा?
गरीब बस्तियों में रहनेवाली शीला से एक सवाल पूछा गया तो उसने कहा कि चार किलो गेंहूं और एक किलो चावल में नहीं खा सकते हैं। गौरतलब है कि झुग्गियों में रहनेवाले लोग सिर्फ गरीब नहीं हैं। बल्कि ये वोटर भी हैं और ये वो लोग हैं जो ईमानदारी से पोलिंग बूथ पहुंचते हैं। इसे इत्तेफाक कहिए या राजनीति, मगर इस साल के अंत तक दिल्ली में चुनाव भी हैं तो क्या 2 रुपए किलो गेंहूं और 3 रुपए किलो चावल का वायदा गरीब की भूख मिटाने का हिस्सा है या फिर महज ये वोट के जुगाड़ का किस्सा है? खैर ये तो वक्त ही बताएगा मगर हमने ये सवाल झुग्गी के बाशिंदों से पूछा कि ये अनाज उनके पेट तक पहुंचेगा?
झुग्गी में रहनेवाली शकुंतला ने बताया कि जब जरूरत होती है तो आते हैं। ये सब चुनाव को लेकर हो रहा है वोट चाहिए तो आ रहे हैं। अब इस जवाब के बाद ये तय करना बड़ा मुश्किल होता है कि किसकी भूख हावी हो रही है? बहरहाल, उम्मीद तो अच्छे की ही करनी चाहिए।

Thursday, 22 August 2013

होगा आदिवासियों का भला ?




सच्चर कमेटी की तर्ज पर आदिवासियों के उत्थान के लिए भी एक कमेटी का गठन कर दिया है। लेकिन, यह एक ईमानदार पहल कदमी के बजाय छलावा ज्यादा लगती है। एक ऐसा छलावा, जो शुरुआत में झूठी उम्मीदें पैदा करता है। देश मेंअनुसूचित जनजातियों के सामाजिक-आर्थिक उत्थान व विकास के लिए केन्द्र सरकार ने एक उच्चस्तरीय समिति के गठन का फैसला किया है। आदिवासी समुदायों के विकास के लिए आवश्यक परिस्थितियों को केन्द्र में रखते हुए प्रस्तावित उच्च स्तरीय समिति मुख्यत: इस वर्ग की सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक व स्वास्थ्य आदि की स्थितियों का गहन अध्ययन कर एक रिपोर्ट तैयार करेगी। इसके आधार पर आदिवासी समुदाय के सम्पूर्ण भावी विकास की रूपरेखा तैयार की जा सकेगी।
उच्चस्तरीय समिति अनुसूचित जनजातियों के लिए नीतियों के निर्धारण का सुझाव देगी। यह उच्च स्तरीय समिति आदिवासी मामलों के मंत्रालय के अधीन रहेगी। प्रोफेसर वर्जीनियस खाखा की अध्यक्षता में इस समिति के अन्य सदस्य हैं, डॉ. उषा रामनाथन्, डॉ. जोसेफ बारा, डॉ. के.के. मिश्रा, डॉ. अभय बंग, व सुश्री सुशीला बसंत। आदिवासी मंत्रालय के सचिव इस समिति के सदस्य सचिव होंगे, जबकि सूत्रों की मानें तो राष्ट्रीय सलाहाकार परिषद की पूर्व सदस्य व सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा राय इस समिति की प्रमुख कर्ता-धर्ता होंगी। आदिवासी समुदायों की सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक व स्वास्थ्यगत स्थितियों का विहंगम अध्ययन कर उच्च स्तरीय समिति नौ महीनों के भीतर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी। केंद्र व राज्य सरकार के विभिन्न विभागों से आदिवासियों की दशा पर आधिकारिक आंकड़े जुटाने के साथ ही यह समिति विशेष रूप से राज्य, क्षेत्र व जिला स्तरों पर उनकी दशा-दिशा जानने-समझने के लिए प्रकाशित लेखों, शोधपत्रों, आंकड़ों, साहित्य आदि का गहन अध्ययन करेगी।
कोई हैरत की बात नहीं यदि आदिवासियों की स्थिति सुधारने के लिए बनाई गई कमेटी की रिपोर्ट भी इसी अंजाम को प्राप्त हो। आखिर ऐसा क्या है, जो आदिवासियों की हालत के बारे में छिपा हो। उनकी समस्याएं जगजाहिर हैं और उनके समाधान तलाशने के लिए नया शोध नहीं करना होगा। वैसे भी कमेटी उपलब्ध जानकारियों तथा आंकड़ों के पर ही निष्कर्ष निकालेगी और सिफारिश करेगी। उसे कुछ भी नया नहीं करना है। वह ये काम तीन महीने में भी कर सकती थी, जिसके लिए उसे नौ महीने दिए गए हैं।

वास्तव में सरकार अगर समचमुच में ईमानदार होती, तो इस कवायद में वह उन लोगों को शामिल करती जो जल, जंगल और जमीन से जुड़े मसलों पर वर्षों से काम कर रहे हैं। वे जमीनी हकीकत से उसे रूबरू करवा देते। सरकारी कार्यक्रमों और नीतियों में कहां क्या खोट हैं, उनसे बेहतर कौन बता सकता है। लेकिन वह ऐसा नहीं करेगी, क्योंकि ये उसके लिए खतरनाक हो सकता है। उनके जरिए वह भयानक तस्वीर सामने आ सकती है, जिससे वह मुंह चुराती रही है। दरअसल, कांग्रेस इस बात से घबराई हुई है कि उसकी छवि आदिवासी विरोधी बनती जा रही है। देश भर में यह धारणा मजबूत हो रही है कि उसे आदिवासियों की कोई चिंता नहीं है और वह बहुराष्ट्रीय कंपनियों एवं कॉरपोरेट जगत के हितों के लिए काम कर रही है। यह उसकी वर्तमान एवं भावी राजनीति के लिए बहुत ही नुकसानदेह है। पहले ही वह आदिवासियों में अपना जनाधार गंवाती जा रही है और भाजपा का प्रभाव उनमें बढ़ता जा रहा है। ऐसे में अगर उसने समय रहते कुछ न किया तो वह सिमटती चली जाएगी। इसी चिंता के चलते कमेटी का तिलिस्म रचा जा रहा है। दिलचस्प बात यह है कि वह उन नीतियों को बदलने के बारे में नहीं सोचती, जिनसे उसके जनाधार का क्षरण हो रहा है।  उच्च स्तरीय समिति अपने कार्य को तय समय-सीमा के भीतर सम्पन्न कर सके, इसके लिए सरकार के विभिन्न मंत्रालय व एजेंसियां अपना सम्पूर्ण सहयोग देंगी। आदिवासियों व उनसे संबंधित मुद्दों पर भूरिया समिति, मुंगेकर समिति व राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग द्वारा प्रदत्त जो भी रिपोर्ट सरकार के पास हैं, वे इस उच्च स्तरीय समिति को उपलब्ध कराई जाएंगी। आदिवासी मामलों से संबंधित मौजूदा आंकड़े भी इस समिति को दिए जाएंगे।
जनजातिय मामलों के मंत्रालय ने सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण पर गठित स्थायी समिति की जनजातियों के लिए चलाई जा रही शैक्षिणिक उत्थान योजनाओं से संबंधित रिपोर्ट में राज्य सरकारों की दायित्वहीनता एवं केन्द्र सरकार निष्क्रियता साफ झलक रही है। समिति ने अपने प्रतिवेदन में कहा है कि जनजातियों के शैक्षणिक उत्थान के लिए चलाई जा रही एकलव्य मॉडर्न रिहायशी स्कूलों की स्थापना की परियोजना के अंतर्गत मंत्रालय ने विभिन्न राज्यों के लिए 100 स्कूल मंजूर किये थे, उनमे से केवल 79 स्कूल ही कार्यरत है । शेष 21 स्कूल शुरु ही नही हुए यहां तक कि उनमें से चार स्कूल जनजाति बहुल आसाम एवं मेद्यालय से दूसरे राज्यों मे स्थान्तरित कर दिये गये। कमेटी ने पाया की राज्य सरकारों की गैर जिम्मेदारी एवं उदासीनता के कारण यह स्कूल स्थापना का कार्य समय से नही हो सका और अब कहा है कि मंत्रालय अनिर्मित सभी स्कूलो को 2 वर्ष के भीतर शुरु करने के लिए राज्य सरकारों को आवश्यक निर्देश जारी करें। समिति ने कहा है कि 2004.05 से 2007.08 में मंत्रालय द्वारा उत्तर -मैट्रिक छात्रवृत्ति के लिए अरुणाचल प्रदेश, बिहार, दमन दीव के लिए जो वित्तीय मदद नही दी गई उसे तुरंत जारी किया जाये। कमिटी मंत्रालय के इस जवाब से असंतुष्ट थी कि संबंधित राज्य द्वारा वित्तीय मांगो के प्रस्ताव नही भेजे थे। कमेटी के सामने सरकार ने अपने जवाब में कहा था, मंत्रालय ने 2007-08 के दोहराने संबंधित राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों को कई बार लिखित स्मृति पत्र भी भेज चुकि है लेकिन राज्य सरकारों ने आवश्यक कार्यवाही नही कि, इसे कमेटी ने खारिज कर दिया तथा कहा कि मंत्रालय को आदिवासी छात्रों के लिए राज्य सरकारों पर आवश्यक दवाब बनाये ताकि उच्च शिक्षा में उनकी भागीदारी सुनिश्चित हो सके। एवं इन कारणों का भी पता लगाये जिनके कारण राज्य सरकारे समय-समय पर प्रतिवेदन क्यों नही दे पाती है। शत प्रतिशत केन्द्र सरकार द्वारा संचालित उत्तर मैट्रिक छात्रवृति योजना के ठीक क्रियान्वयन नही होने के पीछे सरकार का तर्क है की वित्तीय रुप से पिछड़े अनुश्चिित जनजाति के छात्र छात्रवृति के लिए आवेदन नही करते है इसे कमेटी ने सिरे से खारिज कर दिया तथ टालने के रवैये की कड़ी आलोचना की है। स्थयी समिति ने अपनी अगली सिफारिश के संदर्भ में मंत्रालय से आये जवाब मे कि असम, झारखंड, छत्तीसगढ़, जम्मू-कश्मीर, मध्यप्रदेश, तमिलनाडु, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड़ से इस छात्रवृति पर खर्च एवं उपयोग प्रमाण पत्र नही मिलने के कारण इनकी वित्त पूर्ति पर रोक लगा दी गई थी लेकिन कमेटी ने इससे नाराजगी जताते हुए कहा कि इसके खच्र का सुनिश्चित करते हुए यह ध्यान दिया जाये कि निर्धारित योजना का पैसा उसी योजना पर खर्च किया जाये किसी अन्य योजना मे यह डाइवर्ट नही किया जाएं। 2004-05, 2005-06 और 2006-07 में अप ग्रेजुएशन आफ मेरिट आफ एसटी स्टूडेंट स्कीम के अंतर्गत लाभार्थियों की संख्या कई राज्यों में नही के बराबर है एवं 2007-08 में उत्तर प्रदेश में तो इस योजना के अंतर्गत किसी को भी लाभ नही दिया गया यह दशा मंत्रालय की अनदेखी एवं राज्य सरकारों की जनजातियों के शैक्षणिक विकास के प्रति उदासीनता को उजागर करती है।

फूड बिल लटका




मौजूदा संसद सत्र में खाद्य सुरक्षा बिल को हर हाल से पारित कराने के लिए बेचैन यूपीए सरकार की राह के रोड़े फिलहाल कम होते नहीं दिख रहे हैं। मंगलवार को बीजेपी ने कोयला घोटाले की फाइलें गायब होने के मुद्दे पर प्रधानमंत्री के बयान की मांग करते हुए दोनों सदनों में जमकर हांगामा काटा, जिसकी वजह से राजीव गांधी के जन्मदिन पर खाद्य सुरक्षा बिल पर लोकसभा में चर्चा शुरू करने के कांग्रेस के मंसूबों पर पानी फिर गया। कांग्रेस की कोशिश थी कि गुरुवार को इस पर बात आगे बढ़ाई जाए, लेकिन यह परवान नहीं चढ़ सकी। 11 सांसदों को निलंबित करने के संसदीय कार्यमंत्री कमलनाथ के प्रस्ताव पर भारी हंगामे की बीच लोकसभा की कार्यवाही कल तक के लिए स्थगित कर दी गई।

कांग्रेस की मुश्किल यह है कि उसे मुख्य विपक्षी पार्टी बीजेपी के साथ-साथ तेलंगाना के प्रस्ताव का विरोध कर रहे सीमांध्र के अपने सांसदों और टीडीपी से भी निपटना है। गुरुवार को संसदीय कार्यमंत्री ने लोकसभा में इस सत्र में हंगामा करने वाले टीडीपी के चार और कांग्रेस के सात सांसदों को मौजूदा सत्र की कार्यवाही से निलंबित करने का प्रस्ताव रखा, लेकिन यह दांव भी फिलहाल उल्टा पड़ता दिख रहा है। बीजेपी इन सांसदों के बचाव में आ गई और प्रस्ताव पारित नहीं हो सका।

लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने इसका विरोध करते हुए कहा कि उनकी पार्टी सांसदों के निलंबन के खिलाफ है। उन्होंने कहा, 'हम तेलंगाना राज्या बनाए जाने के पक्ष में हैं, लेकिन जिस अनुचित तरीके से कांग्रेस ने इसकी घोषणा की है उसी की वजह से इसका विरोध हो रहा है। एनडीए के शासन काल में भी राज्य बनाए गए थे लेकिन कोई विरोध की आवाज नहीं आई। कांग्रेस ने गैरजिम्मेदाराना तरीके से राज्यों का बंटवारा किया और यही वजह है कि उनके अपने सांसद भी विरोध कर रहे हैं।'

Friday, 16 August 2013

साधु यादव ने की मोदी से मुलाकात




आगामी लोकसभा चुनावों को लेकर देश में राजनीतिक सरगर्मी तेज़ हो गई है और इस बीच बिहार में कांग्रेस के नेता साधु यादव ने बीजेपी चुनाव प्रचार समिति के अध्यक्ष और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की है.साधु यादव राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के साले हैं, ऐसे में उनकी मोदी से मुलाकात खास हो जाती है. मोदी से मिलने वालों में बिहार के चर्चित नेता साधु यादव अकेले नहीं थे, बल्कि कांग्रेस के एक अन्य नेता दसई चौधरी भी उनके साथ थे. मोदी और साधु यादव की मुलाकात गांधी नगर में हुई है. साधु यादव ने अपनी मुलाकात की पुष्टि की है, लेकिन उसे शिष्टाचार मुलाकात कहा है. दोनों नेताओं के बीच करीब 45 मिनट तक बातचीत हुई. हालांकि, बातचीत क्या हुई है इसकी जानकारी नहीं मिल सकी है. अगले साल लोकसभा के चुनाव होने वाले हैं ऐसे में मोदी से साधु यादव की मुलाकात के मायने समझना बहुत मुश्किल नहीं है.

वैसे राजनीति में हर नए रिश्ते की शुरुआत शिष्टाचार मुलाकात से ही होती है.साधु के मोदी से इस मुलाकात को काफी तरजीह दी जा रही है और बिहार की राजनीति में इसे एक भूकंप के तौर पर देखा जा रहा है.बिहार में कांग्रेस की स्थिति काफी कमज़ोर है और ऐसे में उस पार्टी के दो नेताओं का मोदी से मिलना बहुत कुछ कहता है.वैसे बिहार में जेडीयू सरकार से बीजेपी के अलग होने के बाद वहां की राजनीति काफी गर्म है और ऐसे में साधु-मोदी की मुलाकात काफी अहम हो जाती है.

आजादी आजाद हुई



आजादी आजाद हुई रे परवाने,
आ जल्दी वो भाग रही है अनजाने।
आजादी में है रहना जोर लगाओ,
आबादी से है कहना शोर मचाओ।
पीछे-पीछे दौड़ लगाओ पकड़ो तो,
जो बांहों में ताकत हो तो जकड़ो तो।
जो ना दौड़े तो न बनेंगे अफसाने,
आ जल्दी वो भाग रही है अनजाने।।

वीरों ने था जो पकड़ा खून बहा था,
अत्याचारों को सबने खूब सहा था।
गोली खाई थी सबने लाल मरा था,
अंग्रेजों ने भारत से माल भरा था।
जंजीरों में कैद रही थी हतभागी,
जंजीरों से मुक्त हुई तो उड़ भागी।
गांधी जी से जीवन जीना सब जाने,
आ जल्दी वो भाग रही है अनजाने।।

नेताओं ने था ललकारा तब जागे,
अंग्रेजों ने भारत छोड़ा सब भागे।
वो आजादी भाग रही है सब जानो,
बर्बादी भी जाग रही है तुम जानो।
लोगों की है फूट रही किस्मत देखो,
राहों में ही लूट रही अस्मत देखो।
आजादों से जन्म रहे हैं मनमाने,
आ जल्दी वो भाग रही है अनजाने।।

नेता जो मासूम बना घूम रहा है,
जैचंदों से चांद दिखा चूम रहा है।
कानूनों को ढाल बना के मदमाता,
मासूमों सा हाल बता के शरमाता।
संदेशों को ना समङो तो रब जाने,
आ जल्दी वो भाग रही है अनजाने।।

Monday, 12 August 2013

चिदंबरम कुरियन के बीच तकरार





एक अप्रत्याशित घटनाक्रम में आज राज्यसभा में प्रक्रिया को लेकर वित्त मंत्री पी चिदंबरम और उपसभापति पीजे कुरियन के बीच तकरार हो गई जिसके चलते सदन की कार्यवाही करीब एक घंटे तक बाधित रही। यह तकरार तब शुरू हुई जब कुरियन ने सदन में विपक्ष के नेता अरूण जेटली को जम्मू कश्मीर के हिंसा प्रभावित किश्तवाड़ इलाके की स्थिति पर अपनी बात रखने के लिए कहा। इससे पहले भाजपा सदस्यों ने जोरदार मांग की थी कि इस मुद्दे पर जेटली को बोलने दिया जाए क्योंकि रविवार को उन्हें किश्तवाड़ जाने की अनुमति नहीं दी गई थी।

इस बीच, चिदंबरम ने कहा कि वह इस मुद्दे पर बयान देना चाहते हैं और उन्हें पहले अनुमति दी जानी चाहिए। कुरियन ने कहा कि चूंकि वह पहले ही जेटली को अपनी बात रखने की अनुमति दे चुके हैं लिहाजा वित्त मंत्री जेटली के बाद बयान दे सकते हैं। उन्होंने चिदंबरम से कहा कि अगर उन्हें बयान देना था तो उन्हें इसकी सूचना पहले देनी चाहिए थी। इस पर चिदंबरम ने नाराजगी जताते हुए कहा ‘यह बिल्कुल नयी प्रक्रिया है। मैं सम्मानजनक तरीके से इस पर अपना विरोध दर्ज कराना चाहता हूं।’ कांग्रेस के अहमद पटेल, अंबिका सोनी और सत्यव्रत चतुर्वेदी ने चिदंबरम की बात का समर्थन करते हुए आसन से कहा कि सरकार को इस मुद्दे पर बयान देने की अनुमति पहले दी जानी चाहिए।

बहरहाल, कुरियन अपनी बात पर कायम रहे और कहा, ‘मैं जब यहां आया तो मैंने विपक्ष के नेता को बोलने की अनुमति दी। मुझे सरकार की ओर से कोई सूचना नहीं मिली थी। आपको पहले सूचित करना चाहिए था। मैंने विपक्ष के नेता को अपनी बात रखने की अनुमति दे दी है।’ दूसरी ओर चिदंबरम आसन के फैसले पर लगातार अपना विरोध जताते रहे। भाजपा सदस्यों ने आसन के फैसले पर सत्तारूढ़ दल की आपत्तियों को लेकर विरोध जताया। इस पर हंगामा शुरू हो गया जिसके कारण कुरियन ने दोपहर 12 बज कर करीब दस मिनट पर बैठक आधे घंटे के लिए स्थगित कर दी।

Saturday, 10 August 2013

रॉबर्ट वाड्रा की फर्जी डील !





हरियाणा के गांव में राबर्ट वाड्रा का भूमि सौदा एक बार फिर कांग्रेस पार्टी और उसकी अध्यक्ष के लिए परेशानी का सबब बनता दिख रहा है। भंडाफोड़ करने वाले आईएएस अधिकारी अशोक खोमका ने आरोप लगाया है कि वाड्रा ने गुड़गांव में 3.53 एकड़ जमीन के दस्तावेजों में फर्जीवाड़ा किया और वाणिज्यिक कालोनी के लाइसेंस पर बड़ा मुनाफा हासिल किया। वाड्रा-डीएलएफ सौदे की जांच के संदर्भ में पिछले वर्ष अक्तूबर में हरियाणा सरकार की ओर से गठित की गई तीन सदस्यीय जांच समिति के समक्ष विस्तृत जवाब पेश किया। समझा जाता है कि खेमका ने वाड्रा पर आरोप लगाया है कि उन्होंने गुड़गांव के शिकोहपुर गांव में 3.53 एकड़ जमीन के लिए फर्जी लेनदेन किया।
हरियाणा के चर्चित आईएएस अशोक खेमका ने रॉबर्ट वाड्रा की जमीन के सौदे के मामले में अपनी रिपोर्ट हरियाणा सरकार को सौंप दी है। इस रिपोर्ट के मुताबिक कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद और प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा ने गुड़गांव में गलत दस्तावेजों के जरिए जमीन का सौदा किया। मामला गुड़गांव के शिकोहपुर में साढ़े तीन एकड़ जमीन का है। ये वही जमीन है जिसके सौदे की जांच करने के बाद आईएएस खेमका ने जमीन की रजिस्ट्री को ही रद्द कर दिया था।
इस मामले में खेमका ने 21 मई को ही 100 पन्नों की रिपोर्ट हरियाणा सरकार की बनाई 3 सदस्यीय जांच कमेटी को सौंपी है। आपको बता दें कि वाड्रा और डीएलएफ के बीच डील में हुई कथित धांधली के आरोप लगने के बाद हरियाणा सरकार ने अक्टूबर 2012 में जांच कमेटी गठित की थी।
यूं तो रॉबर्ट वाड्रा उस समय से ही चर्चा में आ गए थे जब उन्होंने सोनिया गांधी की बेटी प्रियंका गाँधी से शादी की थी। रॉबर्ट वाड्रा का दरअसल हैंडीक्राफ्ट आइटम्स और कस्टम आभूषणों का कारोबार है और उनकी कंपनी का नाम है आर्टेक्स एक्सपोर्ट्स. इसके अलावा भी रॉबर्ट वाड्रा की कई कंपनियों में भागीदारी है। रॉबर्ट वाड्रा उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद शहर में पैदा हुए। उनके पिता राजेंद्र वाड्रा पीतल व्यवसायी थे और माँ स्कॉटलैंड की रहने वाली है। रॉबर्ट वाड्रा और प्रियंका गांधी की मुलाकात 1991 में दिल्ली में एक कॉमन फ्रेंड के घर पर हुई थी।
बाद में दोनों की नज़दीकियां बढ़ीं और दोनों ने 18 फरवरी, 1997 को शादी कर ली। भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन चला रहे अरविंद केजरीवाल ने रॉबर्ट वाड्रा पर आरोप लगाया कि एक बड़े रियल एस्टेट डेवलपर डीएलएफ़ समूह ने गलत तरीकों से रॉबर्ट वाड्रा को 300 करोड़ रुपयों की संपत्तियां कौड़ियों के दामों में दे दीं। इसके अलावा इस बात का भी खुलासा हुआ की वाड्रा ने हरियाणा में कई संपत्तियां खरीदीं जिसमें नियमों की अनदेखी की गई। रॉबर्ट वाड्रा मोटर साइकिलों और कारों के भी शौकीन हैं। कहा जाता है कि वाड्रा के पास कई शानदार विदेशी कारों के अलावा मोटर साइकिलें भी हैं।

रॉबर्ट वाड्रा की फर्जी डील !





हरियाणा के गांव में राबर्ट वाड्रा का भूमि सौदा एक बार फिर कांग्रेस पार्टी और उसकी अध्यक्ष के लिए परेशानी का सबब बनता दिख रहा है। भंडाफोड़ करने वाले आईएएस अधिकारी अशोक खोमका ने आरोप लगाया है कि वाड्रा ने गुड़गांव में 3.53 एकड़ जमीन के दस्तावेजों में फर्जीवाड़ा किया और वाणिज्यिक कालोनी के लाइसेंस पर बड़ा मुनाफा हासिल किया। वाड्रा-डीएलएफ सौदे की जांच के संदर्भ में पिछले वर्ष अक्तूबर में हरियाणा सरकार की ओर से गठित की गई तीन सदस्यीय जांच समिति के समक्ष विस्तृत जवाब पेश किया। समझा जाता है कि खेमका ने वाड्रा पर आरोप लगाया है कि उन्होंने गुड़गांव के शिकोहपुर गांव में 3.53 एकड़ जमीन के लिए फर्जी लेनदेन किया।
हरियाणा के चर्चित आईएएस अशोक खेमका ने रॉबर्ट वाड्रा की जमीन के सौदे के मामले में अपनी रिपोर्ट हरियाणा सरकार को सौंप दी है। इस रिपोर्ट के मुताबिक कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद और प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा ने गुड़गांव में गलत दस्तावेजों के जरिए जमीन का सौदा किया। मामला गुड़गांव के शिकोहपुर में साढ़े तीन एकड़ जमीन का है। ये वही जमीन है जिसके सौदे की जांच करने के बाद आईएएस खेमका ने जमीन की रजिस्ट्री को ही रद्द कर दिया था।
इस मामले में खेमका ने 21 मई को ही 100 पन्नों की रिपोर्ट हरियाणा सरकार की बनाई 3 सदस्यीय जांच कमेटी को सौंपी है। आपको बता दें कि वाड्रा और डीएलएफ के बीच डील में हुई कथित धांधली के आरोप लगने के बाद हरियाणा सरकार ने अक्टूबर 2012 में जांच कमेटी गठित की थी।
यूं तो रॉबर्ट वाड्रा उस समय से ही चर्चा में आ गए थे जब उन्होंने सोनिया गांधी की बेटी प्रियंका गाँधी से शादी की थी। रॉबर्ट वाड्रा का दरअसल हैंडीक्राफ्ट आइटम्स और कस्टम आभूषणों का कारोबार है और उनकी कंपनी का नाम है आर्टेक्स एक्सपोर्ट्स. इसके अलावा भी रॉबर्ट वाड्रा की कई कंपनियों में भागीदारी है। रॉबर्ट वाड्रा उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद शहर में पैदा हुए। उनके पिता राजेंद्र वाड्रा पीतल व्यवसायी थे और माँ स्कॉटलैंड की रहने वाली है। रॉबर्ट वाड्रा और प्रियंका गांधी की मुलाकात 1991 में दिल्ली में एक कॉमन फ्रेंड के घर पर हुई थी।
बाद में दोनों की नज़दीकियां बढ़ीं और दोनों ने 18 फरवरी, 1997 को शादी कर ली। भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन चला रहे अरविंद केजरीवाल ने रॉबर्ट वाड्रा पर आरोप लगाया कि एक बड़े रियल एस्टेट डेवलपर डीएलएफ़ समूह ने गलत तरीकों से रॉबर्ट वाड्रा को 300 करोड़ रुपयों की संपत्तियां कौड़ियों के दामों में दे दीं। इसके अलावा इस बात का भी खुलासा हुआ की वाड्रा ने हरियाणा में कई संपत्तियां खरीदीं जिसमें नियमों की अनदेखी की गई। रॉबर्ट वाड्रा मोटर साइकिलों और कारों के भी शौकीन हैं। कहा जाता है कि वाड्रा के पास कई शानदार विदेशी कारों के अलावा मोटर साइकिलें भी हैं।

Friday, 9 August 2013

‘समाजवाद’ का गंदा सियासी चेहरा!

साल 2014 के आम चुनाव को नजदीक आते देख देश में एक बार फिर से वोटों के सौदागरों के बीच जंग तेज होती जा रही है। एक तरफ बहुसंख्यक समाज के हितों की दुहाई देने वाली पार्टी है तो दूसरी तरफ उसके मुकाबले तमाम ऐसी छोटी-बड़ी जमातें, जो परिवारवाद और जातिवाद की नींव पर खड़ी हैं और छद्म धर्मनिरपेक्षता की दुहाई देते हुए सामाजिक ताने-बाने और गंगा-जमुनी तहज़ीब को तार-तार करने पर उतारु हैं।

ताज़ा मामला दुर्गा शक्ति नागपाल का है, जिसे उत्तर प्रदेश की समाजवादी सरकार ने एक संप्रदाय विशेष के कथित पूजा स्थल की दीवार को गिरवाने का आरोप लगाकर निलंबित कर दिया है। देश के राजनीतिक दल, सामाजिक संगठन या कोई व्यक्ति, अगर संविधान और कानून की परवाह किए बगैर वोट की राजनीति करता है, तो उसे एक बार माफ किया जा सकता है, लेकिन जब संविधान की शपथ लेकर सत्ता में आई पार्टी ही, संविधान और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की धज्जियां उड़ाते हुए वोट बैंक बढ़ाने में जुट जाए तो फिर देश का क्या होगा और क्या इस तरह के कामों में जुटी सरकार या शासन को कानून का शासन कहा जा सकता है?

देश की मौजूदा नौजवान पीढ़ी और लगभग सभी गैर समाजवादी पार्टी, राजनैतिक दल दुर्गा नागपाल के साथ खड़े हैं। सरकार को शायद The Place Of Worship (Special provisions) act 1991 और 2009 में Union of India versus State of Gujarat and Others मामले में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से पारित आदेश की भी संभवत: पूरी जानकारी नहीं है। अगर ऐसा होता तो एक संप्रदाय विशेष के वोट के लिए उत्तर प्रदेश की सरकार एक कर्मठ प्रशासनिक अधिकारी के खिलाफ दमनात्मक कार्रवाई नहीं करती।

दुर्गा शक्ति नागपाल को उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा के कादलपुर गांव की ग्राम सभा की ज़मीन पर अवैध तरीके से बन रही मस्जिद की दीवार गिराने के तथाकथित आदेश की सज़ा मिली और आनन-फानन में सरकार ने बिना यथास्थिति की जानकारी लिए एसडीएम को निलंबित कर दिया। बाद में जब जिलाधिकारी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि दुर्गा शक्ति नागपाल ने दीवार गिराने के आदेश ही नहीं दिए थे तो ये कहा जाने लगा कि जिलाधिकारी ने रिपोर्ट समय से नहीं दी, अगर ऐसा होता तो सरकार किसी भी कार्रवाई से पहले विचार करती। हालांकि कई जगह स्थानीय लोगों के हवाले से ये रिपोर्ट्स भी सामने आईं कि उनके गांव में सांप्रदायिक तनाव के हालात बने ही नहीं थे। ना तो उस दीवार के गिराने से पहले ना ही बाद में। सरकार इस मसले पर कहती रही है कि उनके पास स्थानीय इंटेलीजेंस की जानकारी थी कि इलाके में तनाव फैल सकता है।

अगर सरकार के तर्क को ही सही माना जाए तो सवाल ये उठता है कि बिना जिलाधिकारी की रिपोर्ट के एक प्रशासनिक अधिकारी को निलंबित कैसे कर दिया गया, आखिर इतनी जल्दी क्या थी? वहीं इसी हफ्ते पुराने लखनऊ के कई इलाकों में एक ही संप्रदाय के दो फिरकों के बीच हुए दंगों समेत पिछले सवा साल में दर्जन भर जिलों में हुए सांप्रदायिक दंगों के पहले इतनी मुस्तैदी क्यों नहीं दिखाई गई और दंगों के दौरान वहां तैनात कितने पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की गई।

2009 में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक किसी भी सार्वजनिक सड़क, पार्क या फिर जगहों पर किसी भी तरह का धार्मिक निर्माण नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने 29 सितंबर 2009 को दिए गए अपने इसी फैसले में निर्देश दिए थे कि जिलाधिकारी इस आदेश का पालन कराएं।

अगर हम राज्य सरकार की दलीलों को ही सही मानें तो भी दुर्गा शक्ति नागपाल ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का ही पालन कराया है। ऐसे में एसडीएम दुर्गा शक्ति नागपाल के काम को लेकर प्रोत्साहित करने के बदले उन्हें निलंबित करना सरकार की कार्यशैली पर ही सवाल खड़े करता है।

Thursday, 8 August 2013

चुप रहने का बेशर्म इतिहास



प्रवीण गुगनानी


आज फिर भारत शोक संतृप्त है और शर्मसार भी! हैरान भी है और परेशान भी!! निर्णय के मूड में भी है और अनिर्णय के झंझावात में भी!!! पाकिस्तान की शैतानी सेना और आतंकवादियों की ढाल बनी सेना ने पुंछ सेक्टर में एक बार फिर आक्रामक होकर हमारे पांच सैनिकों की ह्त्या कर दिया और हमारा देश इन वीर शहीदों की लाशों पर आंसू बहा रहा है. रात के अंधेरे में छिपकर किये गये इस कायराना हमले में पाकिस्तान ने जिस प्रकार हमारे सैनिकों की नृशंस ह्त्या की उससे हमारे प्रधानमन्त्री, विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री इस अवसर पर सदा की भांति किंकर्तव्यविमूढ़ हो गएँ हैं. इसके बाद भी वे बेतुके बयान और बेहयाई भरे हाव भाव का प्रदर्शन करनें में बिलकुल भी रूक नहीं रहे हैं.
एक बार फिर हमारी इन तीनों मंत्रियों की राष्ट्रीय टोली स्थितियों को सैन्य या राजनयिक चतुराई भरी आक्रामकता के स्थान पर केवल निराशाजनक, बेवकूफियों भरें और आक्रामकता विहीन आचरण का प्रदर्शन कर रही है. हमारे रक्षा मंत्री एंटोनी ने तो बाकायदा दोहरे अर्थ निकालने वाला आधिकारिक वक्तव्य संसद में दिया और पाकिस्तान को भाग निकलने का सटीक मौका देकर देश को हाथ मलते रहनें के लिए मजबूर कर दिया. मनमोहन सिंग के प्रधानमंत्रित्व काल के एक दशक में हमनें न जानें कितनें ही पाकिस्तानी दंश झेल लिए किन्तु प्रत्येक सैन्य और राजनयिक दंश का जवाब भारत ने केवल अपनी तथाकथित समझदारी से ही दिया है; कहना न होगा कि पाकिस्तान के सामनें हम भीरु, दब्बू और कमजोर आचरण की एक लम्बी श्रंखला प्रस्तुत कर विश्व समुदाय के सामनें अपनी स्थिति को खराब और दुर्बल कर चुकें हैं.
पाकिस्तान के साथ सम्बंधों के सन्दर्भ में हम शिमला समझौते की बात करें या इसके बाद इसी विषय पर जारी घोषणा पत्र पर पाकिस्तानी धोखे की बात करें, साठ के दशक में पाकिस्तानी सैन्य अभियानों के साथ साथ कश्मीर से छेड़छाड़ के दुष्प्रयासों की बात करें या 2003 के युद्ध विराम की बात करें या संसद पर हमलें और मुंबई के धमाकों को याद करें या हमारे दो सैनिकों की ह्त्या कर उनकी सर कटी लाश हमें देने के दुस्साहस की बात करें या इस परिप्रेक्ष्य में हुए कितनें ही पाकिस्तानी घातों और भारतीय अभियानों की बात करें तो हमारें पास केवल धोखें खानें और चुप्पी रख लेनें का बेशर्म इतिहास ही तो बचता है! 1971 में पाकिस्तान के विभाजन के समय जैसे कुछेक अवसर ही आये हैं जब हम भारतीय अपनी आँखें ऊँची कर पाये हैं, अन्यथा घटनाओं के आईने से तो इतिहास हमें शायद ही क्षमा कर पाए.
हम हमारें पिछलें पैसठ वर्षों के इतिहास पर न जाएँ और पिछले लगभग एक वर्ष की घटनाओं की ही समीक्षा कर लें तो हमें लगेगा कि हमें भूलने की बीमारी हो गई है या हमारी स्मृति लोप बेशर्मी की हद तक हो गया है. पिछलें वर्ष हुई भारत-पाकिस्तान के बीच घटी इन घटनाओं की समीक्षा हमें निराशा के गहरें सागर में डुबो सकती है किन्तु फिर भी हमें इन्हें पढना, बोलना और समझना ही होगा क्योंकि इतिहास को पढ़कर आत्मलोचन और आत्मावलोकन कर लेनें से ही हम भविष्य के लिए तैयार हो पायेंगे. इन घटनाओं से हमें यह पता चलता है कि हमारा केन्द्रीय नेतृत्व कितना आत्ममुग्ध, पंगु, बेशर्म और बेगैरत गो गया है. जरा याद कीजिये इन शर्मनाक घटनाओं को-
सितम्बर, 2012- मीनार-ए-पाकिस्तान पर विदेश मंत्री
हमारे विदेश मंत्री एस.एम. कृष्णा पाकिस्तानी प्रवास के दौरान मीनार-ए-पाकिस्तान पर तफरीह के लिए पहुँच गए थे. यही वह स्थान है जहां 1940 में पृथक पाकिस्तान जैसा देशद्रोही, भारत विभाजक प्रस्ताव पारित हुआ था. एक देश का भाषण दूसरे देश में भूल से पढ़कर भद्द पिटवाने वाले हमारे विदेश मंत्री कृष्णा जी को और उनके स्टाफ को यह पता होना चाहिए था कि द्विराष्ट्र के बीजारोपण करनें वाले इस स्थान पर उनके जाने से राष्ट्र के दो टुकड़े हो जाने की हम भारतीयों की पीड़ा बढ़ जायेगी और हमारें राष्ट्रीय घांव हरे हो जायेंगे. देशवासियों की भावनाओं का ध्यान हमारें विदेश मंत्री कृष्ण को होना ही चाहिए था जो अंततः उन्हें नहीं रहा और पाकिस्तान ने उन्हें कूटनीतिपूर्वक इस स्थान पर ले जाकर हमें इतिहास न पढने, न स्मरण रखने वाले राष्ट्र का तमगा दे डाला. हमारे विदेश मंत्री को ध्यान रखना चाहिए कि भारत-पाकिस्तान के परस्पर सम्बंध कोई अन्य दो सामान्य राष्ट्रों के परस्पर सम्बंधों जैसे नहीं हैं; हमारी बहुत सी नसें किसी पाकिस्तानी हवा के भी छू भर लेनें से हमें ह्रदय विदारक कष्ट दे सकती है या हमारें स्वाभिमान को तार तार कर सकती है!! हैरानी है कि इस बात को हमारा गली मोहल्लें में क्रिकेट खेलनें वाला नौनिहाल जानता है उसे तथाकथित विद्वान् विदेश मंत्री एस. एम. कृष्णा नहीं समझ पाए.
अक्तूबर 2012– चीन ने पाकिस्तानी बंदरगाह ग्वादर का अधिग्रहण किया भारत रहा चुप
चीन और पाकिस्तान के सामनें जिस प्रकार भारतीय विदेश और रक्षा नीति विफल हो रही है वह बेहद शर्मनाक है. इस दोनों देशों का कूटनीतिक समन्वय तोड़ना भी भारत की प्राथमिकता में होना चाहिए जो नहीं है. पाक स्थित ग्वादर बंदरगाह के चीनियों द्वारा अधिग्रहण और उसकी विशाल विकास योजनाओं के समाचारों की पुष्टि से भारत को सचेत होना चाहिए था किन्तु भारत ने वैश्विक स्तर पर और चीन के सामनें व्यवस्थित विरोध प्रकट नहीं किया. चीन के साथ हो रहे ७० अरब डालर के व्यापार का संतुलन पचास अरब डालर घाटे का है अर्थात हम चीन को पचास अरब डालर के आयत के सामनें मात्र २० अरब डालर का ही निर्यात कर पातें हैं अर्थ स्पष्ट है कि चीन को हमारी अधिक आवश्यकता है, किन्तु इस तथ्य का भी हम लाभ नहीं उठा पायें हैं. फलस्वरूप भारतीय दृष्टि से सामरिक महत्व के ठिकाने या तो चीन के कब्जे में चलें जायेंगे या उसकी सीधी निगरानी में रहने को मजबूर हो जायेंगे जो कि दीर्घ काल में सैन्य दृष्टि से हानिकारक होगा.
नवम्बर, 2012: अतीत भूलो क्रिकेट खेलो
नवम्बर में जब पूरा भारत पाक के विरुद्ध उबल रहा था, हमारी सेनायें संघर्ष कर रही थी, पाक प्रशिक्षित आतंकवादी पुरे देश में ग़दर कर रहे थे और सामान्य जनता पाक में हो रहे हिन्दुओं पर अत्याचारों के कारण उससे घृणा कर रही थी और पाक के साथ आर पार के मूड में थी न कि क्रिकेट खेलनें के तब हमारें गृह मंत्री ने बयान दिया कि हमारें देश को अतीत को भूल कर पाक के साथ क्रिकेट खेलना चाहिए!! पाकिस्तान से क्रिकेट खेलनें के लिए भारत की जनता को सार्वजनिक रूप से यह बयान देते समय शिंदे जी लगता है सचमुच भारत के प्रति पाकिस्तान की कड़वाहट, अपमान और छदम कारस्तानियों को भूल गएँ थे. भारतीय गणराज्य के केन्द्रीय गृह मंत्री होने के नाते यह निकृष्ट सलाह देते समय शिंदे जी को एक आम भारतीय के इस प्रश्न का जवाब देते न बना था कि “भारत पाकिस्तान सम्बन्धों के सबसे ताजा कुछ महीनों पहले के उस प्रसंग को हम कैसे भूल जाएँ जिसमें पाकिस्तान की खूबसूरत विदेश मंत्रीं हिना की जुबान पर यह धोखे से सच आ गया था कि “आतंकवाद पाकिस्तान का अतीत का मंत्र था, आतंकवाद भविष्य का मंत्र नहीं है”. अनजाने ही सही पर यह कड़वा और बदसूरत सच हिना रब्बानी की हसीं जुबाँ पर आ ही गया था और पाकिस्तानी कूटनीतिज्ञों ने भी इस धोखे से निकल पड़े इस बयान को लेकर अन्दरखानें हिना की लानत मलामत भी की थी. तब इस बात को देशवासी तो अवश्य याद कर रहे थे और गृह मंत्री जी से भी आग्रह कर रहे थे कि भले ही ये सभी कुछ आप भूल जाएँ और खूब मन ध्यान से क्रिकेट खेलें और खिलाएं किन्तु ऐसा परामर्श कहीं भूल से भी देश के रक्षा मंत्री को न दे बैठें नहीं तो अर्थ का अनर्थ हो जाएगा!!
तब भारतीय अवाम ने सुशील शिंदें से यह पूछा था कि पाकिस्तानी धन बल और मदद से कश्मीर में विध्वंस कर रहे अलगाव वादी संगठन अहले हदीस के हुर्रियत और आई. एस. आई. से सम्बन्ध और इसकी 600 मस्जिदों और 120 मदरसो से पूरी घाटी में अलगाव फैलाने की बात तो हमारा अतीत नहीं वर्तमान है तो अब क्या हमें क्रिकेट खेलनें के लिए वर्तमान से भी आँखें चुराना होगी? क्रिकेट की थोथी खुमारी के लिए क्या हम वास्तविकताओं से मुंह मोड़ कर शुतुरमुर्ग की भाँति रेत में सर छुपा लें? कश्मीर की शांत और सुरम्य घाटी में युवकों की मानसिकता को जहरीला किसने बनाया? किसने इनके हाथों में पुस्तकों की जगह अत्याधुनिक हथियार दिए है? किसने इस घाटी को अशांति और संघर्ष के अनहद तूफ़ान में ठेल दिया है?
इस चुनौतीपूर्ण वर्तमान को हम भूल जाएँ तो कैसे और उस षड्यंत्रों से भरे अतीत को छोड़ें तो कैसे शिंदे जी जिसमें अन्तराष्ट्रीय मंचों से लेकर भारत के कण कण पर कश्मीर के विभाजन, कब्जे और आक्रमण की इबारत पाकिस्तान ने लिख रखी है? दिल्ली, मेरठ और लखनऊ की गलियों में ठेला चलाते और निर्धनतापूर्ण जीवन जीते उन निर्वासित कश्मीरी पंडितों की पीड़ा को हम कैसे भूलें जो करोड़ो अरबों रूपये वार्षिक की उपज उपजाने वालें केसर खेतों के मालिक थे? तब देश की आत्मा ने शिंदे से यही और केवल यही कहा था कि शिंदे जी हम अतीत और वर्तमान की हमारी छलनी, रक्त रिसती और वेदना भरी राष्ट्रीय पदेलियों के घावों को भूलना नहीं बल्कि उन्हें देखते रहना और ठीक करना चाहते हैं और आपको भी इस राष्ट्र की इस आम राय से हम राय हो जाना चाहिए!
कृपया इतिहास को न केवल स्मृतियों में ताजा रखें बल्कि उसे और अच्छे और प्रामाणिक ढंग से लिपिबद्ध करें! शिवाजी से लेकर महाराणा प्रताप और लक्ष्मी बाई के गौरवपूर्ण इतिहास से लेकर बाबरों, मुगलों, गजनवियों, अफजलों और कसाबों के षड्यंत्रों को हमें याद रखना भी रखना होगा और आने वाली पीढ़ी को व्यवस्थित लिपिबद्ध करके भी देना होगा क्योंकि क्रिकेट हमारी प्राथमिकता हो न हो किन्तु राष्ट्रवाद का आग्रह और राष्ट्र के दुश्मनों की पहचान और उनसें उस अनुरूप व्यवहार हमारी राष्ट्रीय प्राथमिकता है और रहेगी.

शहीदों का अंतिम संस्कार, नहीं पहुंचे नीतीश



आज सुबह पाक हमले में अपनी जान गंवाने वाले बिहार के चार सपूतों और मराठा रेजीमेंट एक जवान का अंतिम सरकार कर दिया गया. लेकिन अंतिम सरकार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के उपस्थित न होने के कारण उन्हें निंदा का शिकार होना पड रहा है.

गौरतलब है कि कल रात जब इन शहीदों का शव पटना एयरपोर्ट लाया गया, तो उनकी अगुवाई में मुख्यमंत्री तो दूर प्रदेश का कोई मंत्री भी नहीं पहुंचा. प्राप्त जानकारी के अनुसार मुख्यमंत्री अभी दिल्ली गये हुए हैं. प्रदेश सरकार की इस बेरुखी ने उन्हें विपक्ष की निंदा का केंद्र बना दिया है.

भाजपा नेता गिरिराज ने नीतीश सरकार पर निशाना साधते हुए उन्हें संवेदनहीन मुख्यमंत्री घोषित कर दिया है. उन्होंने कहा कि इतना संवेदनहीन मुख्यमंत्री उन्होंने अपने जीवन में नहीं देखा. मात्र दस लाख रुपये मुआवजा घोषित कर देने से इन शहीदों को सम्मान नहीं मिलेगा, बल्कि उनके परिजनों के साथ खडा होना सरकार के लिए जरूरी है.

शहीद हुए सैनिकों से ऐसी बेरुखी को लेकर लोगों में काफी नाराजगी है. पटना एयरपोर्ट पर सुशील मोदी और गिरिराज सिंह समेत बीजेपी के कई नेता और कार्यकर्ता पहुंचे थे. इन लोगों का आरोप है कि नीतीश सरकार संवेदनहीन है. इससे पहले जवानों के शव पुंछ से जम्मू लाए जाने पर वहां भी कोई अधिकारी या मंत्री नहीं पहुंचा था.

एयरफोर्स का विशेष विमान शहीदों विजय राय (बिहटा), शंभू शरण सिंह (भोजपुर), प्रेमनाथ सिंह (छपरा) और रघुनंदन (छपरा) के शवों को लेकर बुधवार रात 10 बजे पटना एयरपोर्ट पहुंचा. स्टेट हैंगर में सेना की सलामी के बाद जवानों के शवों को उनके पैतृक गांवों के लिए रवाना कर दिया गया. एयरपोर्ट पर बिहार सरकार के किसी भी मंत्री के न आने को लेकर रात 11 बजे जब एबीपी न्‍यूज के रिपोर्टर ने कई मंत्रियों के घर पर दस्तक दी.

नीतीश ने पाक से दोस्‍ती का राग अलापा




पाकिस्तान के कायराना हमले से देश गुस्से में है। शहीद जवानों के घर पर मातम है, लेकिन बिहार के सीएम नीतीश कुमार इतना कुछ हो जाने के बावजूद पाकिस्तान से दोस्ती का राग अलाप रहे हैं। जब पूरा देश गुस्से में शहीद जवानों के साथ खड़ा है और धोखेबाज पाक पर कड़ी कार्रवाई की मांग कर रहा है, तब नीतीश कुमार का ऐसा बयान चौकाने वाला है। बिहार के मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार का कहना है, 'नवाब शरीफ भारत से अच्‍छे संबंध रखना चाहते हैं। अभी वहां नई सरकार बनी है, हमें उन्‍हें समय देना चाहिए।'

बिहार के छपरा में मातम, आरा में भी गुस्से की लहर, दानापुर में भी ना'पाक' करतूत से मातम। मातम में डूबे इन लोगों के इस गुस्से और दुख से बिहार के सीएम नीतीश कुमार कुछ अलग ही राय रखते हैं। क्या बिहार के सीएम को नापाक हमले की हकीकत नहीं मालूम? क्या अपने ही सूबे के गम में डूबे हुए इन लोगों के आंसू और दर्द की नीतीश को परवाह नहीं? इतने बड़े विश्वासघात और नापाक करतूत के बावजूद नीतीश किस मुगालते में हैं? यह समझना वाकई बहुत मुश्किल है, हालांकि बीजेपी ने भी मौका लपकने में कोई देरी नहीं की और नीतीश को कांग्रेसी मानसिकता से ग्रसित करार दिया।

देश को मिले इस दर्द पर यह वक्त राजनीति का नहीं है, लेकिन ऐसे वक्त में नीतीश की नरमी कहीं ना कहीं यह सवाल जरूर उठा गई कि आखिर कब तक हमारे राजनेता नापाक करतूतों पर नरमी दिखाते रहेंगे। अवाम भी यही पूछ रही है, आखिर कब जागेंगे हम...?
पुंछ में शहीद हुए जवानों पर हमारे राजनेताओं के अजब बोल सुनने को मिल रहे हैं। मंत्री-नेता अपने बयानों से जवानों की शहादत का मजाक उड़ा रहे हैं। बिहार के ग्रामीण कार्यमंत्री भीम सिंह ने ऐसा ही एक बयान देकर शहीदों की शहादत का मजाक उड़ाया है। भीम सिंह ने कहा है कि सेना और पुलिस में लोग शहीद होने के लिए ही जाते हैं। हालांकि नीतीश कुमार की फटकार के बाद मंत्रीजी ने अपने बयान पर माफी मांग ली और कहा कि मेरा बयान तोड़-मरोड़कर पेश किया गया।
जब भीम सिंह से बिहार के जवानों की शहादत के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि लोग सेना और पुलिस में शहीद होने के लिए ही जाते हैं। जब पत्रकारों ने ये पूछा कि बिहार का कोई मंत्री जवानों के अंतिम संस्कार में क्यों नहीं गया, तो उन्होंने उल्टा सवाल दागते हुए कहा कि क्या आपके माता-पिता शहीद के अंतिम संस्कार में गए थे।
उधर, बीजेपी प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन ने कहा कि इस तरह का बयान शहीदों का अपमान है और इसके लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भीम को तुरंत बर्खास्त कर देना चाहिए। उन्होंने कहा भीम सिंह क्या कहना चाहते हैं कि सैनिक मरने के लिए और नेता राज करने के लिए होते हैं। उन्होंने कहा कि अगर आप किसी को सांत्वना नहीं दे सकते तो उसके जख्मों पर नमक तो नहीं छिड़कना चाहिए।
गौरतलब है कि सीमा पर पाक हमले में मारे गए पांच जवानों में से एक शहीद प्रेम नाथ का अंति‍म संस्कांर आज सुबह छपरा में कर दिया गया। बिहार सरकार की ओर से कहा गया था कि शहीदों का अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा, लेकिन प्रेम नाथ के अंति‍म संस्कार में बि‍हार सरकार का एक भी मंत्री नहीं पहुंचा। वहीं बिहार रेजीमेंट के चारों शहीद जवानों का पार्थिव शरीर जब पटना एयरपोर्ट पर पहुंचा तो बिहार सरकार का कोई भी नुमाइंदा मौजूद नहीं था।

Wednesday, 7 August 2013

यह नामर्दों की है सरकार



कल देर रात हुए पाकिस्तानी हमले में पांच सैनिकों के शहीद हो जाने की खबर पर पूरे देश में आक्रोश है. प्रमुख विपक्षी दल भाजपा के नेता रविशंकर प्रसाद सिंह ने इस घटना पर दुख व्यक्त करते हुए कहा कि यह पाकिस्तान की हिमाकत है और हमें इसका जवाब देना होगा. रविशंकर ने कहा कि केंद्र सरकार की दुर्बलता के कारण पाकिस्तान ऐसे हमले कर रहा है. इससे सेना का मनोबल गिरेगा. उन्होंने कहा कि सरकार को कडे कदम उठाने होंगे.वहीं शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत ने कहा कि जब तक हम पाकिस्तानी सेना में घुसकर पांच के बदले पचास नहीं मारेंगे, तब तक वे ऐसी कार्रवाइयों को अंजाम देते रहेंगे. सरकार को आड़े हाथ लेते हुए संजय राउत ने कहा कि सरकार नामर्दों की है. सरकार के अंदर सब ऐसे ही लोग बैठे है.  वहीं कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला ने कहा कि यह घटना दुखद है और सरकार आवश्यक कार्रवाई करेगी. जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी हमले की निंदा की है.
सेना प्रमुख विक्रम सिंह ने आज पाकिस्तानी हमले में मारे गये पांच शहीद जवानों के शवों पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि व्यक्त की।
रक्षा प्रवक्ता एसएन आचार्य ने बताया कि नयी दिल्ली से यहां पहुंचने के तुरंत बाद जनरल सिंह जम्मू में टेक्नीकल एयरपोर्ट पहुंच कर तिरंगे से लपेट कर ताबूत में रखे गये शवों पर माल्यार्पण किया।
उनके अलावा, नार्दन आर्मी थियेटर के वरिष्ठ सैन्य अधिकारी, जीओसी-इन-सी लेफ्टिनेंट जनरल संजीव चाचरा, जीओसी, 16 कॉेर लेफ्टिनेंट जनरल डीएस हुडा, जीओसी, टाइगर डिविजन, मेजर जनरल अश्वनी कुमार और एयर आॅफिसर कमांडिंग एयर कोमोडोर पी ई पटगिया ने भी शहीदों के शवों पर माल्यार्पण किया। माल्यार्पण के बाद, सेना प्रमुख और अन्य अधिकारी सैनिकों के सम्मान में कुछ देर तक मौन खड़े रहे। इस अवसर पर बिगुल बजा कर सेना की एक टुकड़ी ने सलामी दी। एक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी ने बताया कि आज दोपहर लगभग तीन बज कर 45 मिनट पर शव जम्मू से नयी दिल्ली भेजे जायेंगे । बाद में इन शवों को दिल्ली से पटना और पुणे के लिए वायुसेना के विमानों से भेजा जाएगा। उन्होंने बताया कि चार शवों को पटना भेजा जाएगा और एक शव को पुणे भेजा जाएगा।

Monday, 5 August 2013

मानसून सत्र में पास नहीं होगा फूड सिक्योरिटी बिल!



खाद्य सुरक्षा अध्‍यादेश आज संसद में पेश कर दिया गया है. यह विधेयक  खाद्य मंत्री वी के थामस ने पेश किया. खाद्य सुरक्षा अध्यादेश पर समाजवादी पार्टी के  सुप्रीमो मुलायम सिंह ने कहा अगर सरकार किसानों को उनके उत्पाद का लाभ देना सुनिश्चित करे तो हम खाद्य सुरक्षा विधेयक का समर्थन करेंगे

हालांकि संसद के मॉनसून सत्र की पूर्व संध्या पर सपा नेता नरेश अग्रवाल ने स्पष्ट कर दिया कि मौजूदा स्वरुप में यह विधेयक उनकी पार्टी को स्वीकार्य नहीं है और उसमें कुछ संशोधनों की जरुरत है और अगर जरुरत पड़ी तो पार्टी उसके खिलाफ मतदान करेगी. उन्होंने कहा, अगर जरुरत पड़ी तो हम उसके खिलाफ मतदान करेंगे. सपा संप्रग सरकार को बाहर से समर्थन दे रही है. उसके लोकसभा में 22 सांसद हैं और विधेयक को पारित कराने के लिए उसका समर्थन महत्वपूर्ण है. इस विधेयक को संप्रग सरकार निर्णायक भूमिका निभाने वाला बता रही है.

अग्रवाल ने हालांकि इस बात से इंकार किया कि खाद्य सुरक्षा विधेयक पर उनकी पार्टी के रुख का उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा आईएएस अधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल का निलंबन करने के मुद्दे पर कांग्रेस अध्यक्ष द्वारा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भेजे गए पत्र से कोई लेना-देना है. उन्होंने गलत नीतियों पर चलने के लिए संप्रग सरकार पर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि इस तरह के पत्र आम हैं और उनका कोई महत्व नहीं है.संसद के मानसून सत्र के दौरान कांग्रेस के गेम चेंजर प्लान फूड सिक्योरिटी बिल पर ही संकट के बादल मंडराने लगे हैं। समाजवादी पार्टी के सुर जहां समर्थन पर बदल गए हैं वहीं विपक्षी दल भी सरकार का खेल खराब करने पर आमादा हैं।

दुर्गा की शक्ति को लेकर सोनिया गांधी ने पीएम को खत क्या लिखा मॉनसून सत्र में सरकार के सारे समीकरण गड़बड़ाने लगे हैं। अभी तक कांग्रेस का साथ देने की बात कह रही समाजवादी पार्टी के सुर भी तल्ख हो गये। पार्टी ने सोनिया के पसंदीदा फूड सिक्योरिटी बिल को अटकाने की धमकी दे डाली।

शनिवार को ही पीएम ने विपक्ष समेत सभी दलों से फूड बिल पास कराने में मदद की अपील की थी लेकिन अब यूपीए का सहयोग कर रही समाजवादी पार्टी के पलटने से कांग्रेसी खेमा परेशान है। लेकिन सोनिया के खत से दुविधा में पड़े पार्टी नेता दुर्गा के मुद्दे को नजरअंदाज नहीं कर पा रहे। 

जाहिर है, अगर दुर्गा शक्ति पर सियासत यूं ही जारी रही, तो कोई ताज्जुब नहीं कि दुर्गा की ईमानदारी सोनिया के खाने की गारंटी के बिल की बलि ले ले। अगर ऐसा हुआ, तो दुर्गा शक्ति के मामले में दखल कांग्रेस के लिए ही गेम चेंजर साबित हो जायेगा।

बीजेपी सांसद को जहर देकर मारने की साजिश!



छत्तीसगढ़ के जांजगीर चम्पा जिले की भाजपा सांसद कमला पाटले को खाने में जहर देकर मारने की साजिश का सनसनीखेज मामला सामने आया है। जांजगीर चाम्पा के पुलिस अधीक्षक आरिफ शेख ने इस संदिग्ध मामले की पुष्टि करते बताया है कि एफआईआर दर्ज कर जांच की जा रही है। जांजगीर पुलिस ने अज्ञात आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है।
पुलिस सूत्रों के अनुसार सांसद पाटले के रसोईये रूपेंद्र कुमार को फोन कर कुछ लोगों ने नहर किनारे बुलाया। उसे एक कैप्सूल दिखाते हुए उन्होंने कहा कि सांसद को खाने में मिलाकर देना है। उसे रुपयों का बंडल दिखाने के साथ काम नहीं करने पर जान से मारने की धमकी दी गई। किसी तरह घबराकर वह वहां से भागने मे कामयाब रहा।
पुलिस को दिए बयान के अनुसार रूपेंद्र वहां से सांसद निवास आने की बजाय रेल लाइन के किनारे बीस पच्चीस किलोमीटर दूर भाग निकला। एक भाजपा कार्यकर्ता ने उसे बदहवास हालत में देखा तो सांसद को सूचना दी। सांसद के सहयोगी उसे वहां से घर लाए जहां उसने घटनाक्रम की जानकारी दी। सांसद की सूचना पर पुलिस अधिकारी कल शाम उनके निवास पहुंचे। इस संदिग्ध मामले में आज एफआईआर दर्ज की गई। सांसद का कहना है कि उनकी किसी से दुश्मनी नहीं है।

शॉटगन का होगा नया ठौर!



यदि यह कहा जाए कि राजनीति में भी कुछ भी स्थायी नहीं होता है, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। कहा जा रहा है कि भाजपा सांसद और अभिनेता  ‘शॉटगन’ यानी शत्रुघ्न सिन्हा  जल्द ही जेडीयू में शामिल हो सकते हैं। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनाव प्रचार समिति के अध्यक्ष बनने के बाद से ही शॉटगन ने अपने तेवर तल्ख कर रहे हैं। पहले मोदी की खिलाफत और उसके बाद नीतीश कुमार की सोहबत में आने के बाद सियासी गलियारों में चर्चा जोरों पर है कि शत्रुघ्न सिन्हा जल्द ही जेडीयू खेमा में शामिल हो सकते हैं।
सूत्रों का कहना है कि जेडीयू की ओर से उन्हें पार्टी में शामिल होने का आमंत्रण मिला है। भाजपा से संबंध टूटने के बाद नीतीश ने उन्हें अपनी सेना में शामिल होने का न्योता दिया है। गौरतलब है कि इसके पहले भी शत्रुघ्न सिन्हा ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद किया था। उन्होंने कहा था कि मोदी को पीएम पद तक पहुंचाने के लिए लालकृष्ण आडवाणी और सुषमा स्वराज जैसे सीनियर नेताओं को किनारे लगाया जा रहा है। सिन्हा ने चेतावनी देते हुए कहा था कि कहीं कोई अपना ही पार्टी के खिलाफ गोल न कर दे। इस बयान के अगले ही दिन वह बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलकर सियासी अटकलों का बाजार गरम कर दिया था।
एक ओर भाजपा जहां बिहारी बाबू के बयान से सकते में है, तो वहीं सूबे की सियासत में इसके कई मायने ढूंढे जा रहे हैं। बाकौल शत्रुघ्न सिन्हा, ‘नीतीश पीएम मेटेरिल हैं। इस पद के लिए उनकी क्षमता पर कोइ सवाल नहीं उठा सकता। वे अपने निजी संबंधों के आधार पर राजग व जदयू के बीच सेतु बनाने की कोशिश करेंगे। हमलोग सत्रह साल तक साथ रहे। अगर आज हम साथ नहीं, तो इसका अर्थ नहीं हो सकता कि हम कल भी एक नहीं होंगे। मेरे बिहार के मुख्यमंत्री के साथ भाई जैसे संबंध हैं, वह मुझे काफी सम्मान देते हैं।’
जाहिर है बिहारी बाबू ने जाने-अनजाने न सिर्फ भाजपा से प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी को खारिज कर दिया, वरन नीतीश कुमार को इस पद का योग्य व्यक्ति बता भाजपा की पसंद पर भी सवाल खड़ा कर दिया है। हालांकि कुछ लोग इसे बिहारी बाबू का पार्टी में हो रही उपेक्षा से जोड़ कर देखते हैं। ऐसे लोगों का मत है कि भाजपा नेतृत्व की ओर से हो रहे अनदेखी की वजह पटना साहिब के सांसद ने इस तरह का बयान दिया। यही कारण है कि शत्रुघ्न सिन्हा अपने मूल बयान से दो दिन बाद ही पलट गए। बावजूद इस प्रकरण को कुछ लोग नरेंद्र ्र मोदी व शत्रुघ्न सिन्हा की निजी दुश्मनी को वजह मानते हैं। कुछ ऐसे भी हैं, जो इसे बिहारी बाबू का प्रदेश भाजपा को तोड़ने की मंशा व पटना साहिब से भाजपा से संसदीय टिकट कटता देख जदयू से जुगाड़ को जोड़ते हैं।
दरअसल, शत्रुघ्न सिन्हा की भाजपा में अब वह हैसियत नहीं है, जिसके बूते पूर्व में वे अगराते रहे हैं। पार्टी में सिने अभिनेता सिन्हा की भूमिका एक स्टार प्रचारक व भीड़-जुटाउ नेता की रही है। नरेन्द्र मोदी ने प्रचार समीति के अध्यक्ष बनने के बाद से पार्टी के स्टार प्रचारक व भीड जुटाने का जिम्मा अपने पाले में रखा है। नरेन्द्र मोदी से शॉटगन के असमान्य रिश्ते की कहानी भी जगजाहिर है, जिसका आगाज अमिताभ बच्चन को गुजरात के ब्रांड एम्बेस्डर बनाए जाने से है। बिहारी बाबू गुजरात के ब्रांड एंबेस्डर के तौर पर खुद को स्वभाविक दावेवार मानते थे। वे भाजपा में थे और बॉलीवुड के बेहतरीन अभिनेताओं में शुमार भी। इनके प्रयास से ही गुजरात में फिल्म सीटी का विकास हुआ। बावजूद इसके, नरेंद्र मोदी ने अतिाभ बच्चन को गुजरात का ब्रांड एम्बेस्डर बना दिया। गौर करने योग्य यह भी है कि अमिताभ बच्चन का जुड़ाव पहले कांग्रेस और बाद में समाजवादी पार्टी से रहा। उनकी अर्द्धांगिनी जया बच्चन आज भी सपा से राज्यसभा में सांसद है।
एक जमाना था कि बिहार में भाजपा के लिए शत्रुघ्न सिन्हा से बड़ा कोई राजनेता नहीं था। स्टार प्रचारकों की सूची में काफी इज्जत के साथ उनका नाम लिया जाता था। जिस भी मंच पर वे चले जाते थे, नेता गदगद हो जाते थे। एनडीए के शासनकाल में जब बिहार  विधानसभा चुनाव में एनडीए सबसे बड़ा गठबंधन बनकर उभरा तो सरकार बनाने का उसे न्योता मिला। उस समय जदयू से ज्यादा सीटें भाजपा के पास थी। भाजपा की तरफ से शत्रुघ्न सिन्हा से भी कहा गया कि वह मुख्यमंत्री बने। लेकिन शत्रुध्न सिन्हा जानते थे कि सरकार अपना बहुमत नहीं साबित कर पाएंगी इस लिए नाक कटवाने के लिए सीएम क्यों बना जाए?
इन तमाम घटनाओं-परिघटनाओं के बीच लाख टके सवाल यह कि बिहारी बाबू को ‘नमो’ के खिलाफत की ताकत मिल कहां से रही है? तो इसका टका सा जवाब है बिहार भाजपा में नरेंन्द्र मोदी के खिलाफ परवान चढता बगावत का सुर। नीतीश कुमार को पीएम मेटेरियल बताने वालों की बढ़ती तादाद और नरेंद्र मोदी के खिलाफ पार्टी में ही उठते बागी सुर यह बताने के लिए काफी है कि भाजपा में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा, जिसका फायदा शत्रुघ्न सिन्हा जैसे नेता को सीधे तौर पर पहुंचा है। न चाहते हुए भी ऐसे बागी नेता अपने को शत्रु के साथ जोड़कर नमो विरोध को व्यापक रंग देने की कोशिश कर रहे हैं।

Saturday, 3 August 2013

मोदी हैं ईमानदार, पारदर्शी और उदार



 गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के कुछ महीने बाद अमेरिका के एक रिपब्लिकन सांसद ने उनके ईमानदार, पारदर्शी और उदार शासन की सराहना की और कहा कि यह भारतीय राज्य में भारी निवेश करने के लिए अमेरिकी कंपनियों को आकर्षित कर रहा है. कांग्रेस सदस्य आरोन शॉक ने पीओरिया मैग्जीन के अगस्त संस्करण में कहा, फोर्ड और टाटा मोटर्स जो गुजरात में नए कारखानों में अरबों रुपये का निवेश कर रही हैं, जैसी कंपनियांे के नेतृत्व के साथ बैठक के दौरान मैं यह जानकर प्रभावित हुआ कि इन नीतियों को सद् इच्छा और अमेरिकी कंपनियों के सहयोग से लागू किया जा रहा है.

शॉक ने लिखा, इन कंपनियों ने विशेष तौर पर भारत के इस क्षेत्र को निवेश के लिए इसलिए चुना क्योंकि सरकार ईमानदार, पारदर्शी और उदार है. जब गुजरात सरकार ने सामान बाजार तक पहुंचाने में उनकी मदद के लिए सड़क निर्माण का वायदा किया तो उसने उसे पूरा किया. अहमदाबाद में मार्च में मोदी से मिलने वाले शॉक ने हालांकि अपने लेख में उनके नाम का उल्लेख नहीं किया. उन्होंने लिखा, टेक्सास और कैलिफोर्निया से अधिक आबादी वाले गुजरात ने पिछले कई सालों से 10 प्रतिशत वार्षिक आर्थिक वृद्धि दर्ज की है. कांग्रेस सदस्य ने लिखा, गुजरात में अधिकारियों के साथ बैठक में मैंने पाया कि उनका ध्यान क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार के उन्मूलन पर है जो पूरे देश में फैला है. हाउस वेज एंड मीन्स कमेटी तथा व्यापार से संबंधित इसकी उप समिति के सदस्य शॉक ने कहा, पारदर्शिता बढ़ाने, मामले में राजनीति नहीं करने, नौकरशाही से संबंधित बाधाओं को दूर कर कंपनियों के लिए अच्छा माहौल तैयार करने की उनकी नीतियों के बारे में सुनकर अच्छा लगा. उन्होंने कहा कि गुजरात में सफलता की कहानियां पाई जा सकती हैं, लेकिन दुर्भाग्य से भारत के शेष हिस्सों ने इसका अनुसरण नहीं किया है.

सहयोग करे विपक्षः मनमोहन



पिछले दो-तीन सत्रों में काफी समय बर्बाद होने पर अफसोस व्यक्त करते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आज विपक्षी दलों से कहा कि वे अत्यंत महत्वपूर्ण खाद्य सुरक्षा विधेयक सहित विधायी कायो’ में सहयोग करे. विपक्ष द्वारा उठाये जाने वाले सभी मुद्दों पर चर्चा का वायदा करते हुए प्रधानमंत्री ने उम्मीद जतायी कि सोमवार से शुरु हो रहा संसद का मानसून सत्र रचनात्मक और उत्पादक होगा. सदन की कार्यवाही सुचारु रुप से सुनिश्चित करने के उद्देश्य से लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार द्वारा बुलायी गयी सर्वदलीय बैठक के बाद सिंह ने यहां संवाददाताओं से कहा कि उन्हें उम्मीद है कि यह संसद का रचनात्मक एवं उत्पादक सत्र होगा.

पिछले दो से तीन सत्र में काफी समय बर्बाद हुआ और संसद के समक्ष काफी विधायी कार्य लंबित है. उन्होंने कहा कि हम हर उस मुद्दे पर चर्चा को तैयार हैं, जो विपक्ष को आंदोलित कर सकता है लेकिन हम विपक्ष से सम्मानपूर्वक कहेंगे कि वह आवश्यक विधायी कार्य संपन्न कराने में सरकार का सहयोग करे. संसद के समक्ष विचाराधीन पांच से छह अध्यादेशों में से सिंह ने खाद्य सुरक्षा अध्यादेश को सबसे अधिक महत्वपूर्ण बताया.सिंह ने कहा कि खाद्य सुरक्षा विधेयक सबसे महत्वपूर्ण है और उन्हें उम्मीद है कि संसद पूरी गंभीरता से उसे पारित कर देगी.

Thursday, 1 August 2013

आखिर महंगाई से तिल-तिलकर जनता को मारने का सिलसिला कब तक चलता रहेगा?

अंतरराष्ट्रीय बाजार में दाम बढ़ने की वजह से पेट्रोल के दाम आज 70 पैसे लीटर बढ़ा दिये गये. पिछले दो महीने में पांचवीं बार पेट्रोल के दाम बढ़े हैं. डीजल के दाम में भी 50 पैसे लीटर की वृद्धि की कर दी गई.

महंगाई पर देश की जनता बेकार अपनी ऊर्जा खर्च कर रही है। बहुत चिल्ल-पौं मचाने के बाद सरकार न तो संसद के अंदर सुन रही है और न ही संसद के बाहर। वाकई लोकतंत्र के मायने बदल गए। कई दफा तो ऐसा लगता है कि लोकतंत्र है भी या नहीं। देश की जनता महंगाई की मार से बेहाल है। किचन में गृहिणियां रुआंसा हो रही हैं। लेकिन सरकार थेथरलॉजी देकर कीमतें बढ़ाने की दलील दे रही है। देश की 90 फीसदी जनता इन दिनों यही कह रही है कि सरकार, तुझ पर ऐतबार न रहा।

इसमें केंद्र और राज्य सरकार दोनों ही दोषी हैं। लेकिन बढ़ती महंगाई के लिए सबसे ज्यादा केंद्र सरकार ही जिम्मेदार है। यूपीए सरकार के गठन के बाद न जाने कितनी बार पेट्रोलियम पदार्थों के दाम बढ़े हैं। आखिर सारी महंगाई के कारण यूपीए सरकार को ही क्यों झेलनी पड़ रही है, यह भी शोध का विषय है। संसद में महंगाई विरोधी विपक्ष के हंगामे के बाद भी सरकार नहीं चेती।

आखिर महंगाई से तिल-तिलकर जनता को मारने का सिलसिला कब तक चलता रहेगा?