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Tuesday, 31 December 2013

वर्ष 2014 न्याय का वर्ष




2014 का कैलेंडर हमारी आज़ादी के साक्षी वर्ष 1947 के समान है| तारीख के साथ दिन,वार और जयंतियां सब एक ही तारीख में एक समान पड़ रहे हैं। एक और खास बात यह है कि दोनों वर्षों का प्रारंभ बुधवार और समाप्ति भी बुधवार से ही हो रही। विशेषज्ञ के मुताबिक यह हैप्पी क्लोन कैलेंडर है। नए साल के कैलेंडर में जरा भी फर्क नहीं है। इस तरह कहा जा सकता है कि आजादी का वर्ष लौट आया है। उल्लेखनीय है कि 1947 को देश आजाद हुआ था। इस लिहाज से इस वर्ष का एक-एक दिन, तिथि व समय काफी अहमियत रखता है। दोनों वर्षो की शुरुआत बुधवार से हुई और समाप्ति का दिन भी बुधवार ही है।
15 अगस्त, 1947 को जिस दिन आजादी मिली, उस दिन भी शुक्रवार था। नए साल में भी यह तारीख शुक्रवार को पड़ रही है। 1947 और 2014 का कैलेंडर एक जैसा होने के बाद भी त्योहारों की तिथि और वार अलग-अलग हैं। 1947 में महाशिवरात्रि 18 फरवरी, होली 6 मार्च, रक्षाबंधन 31 अगस्त, दशहरा 24 अक्टूबर व दिवाली 12 नवंबर को थी, जबकि 2014 में महाशिवरात्रि 27 फरवरी, होली 17 मार्च, रक्षाबंधन 10 अगस्त, दशहरा 4 अक्टूबर व दिवाली 23 अक्टूबर को होगी। मंगलवार की आधी रात बारह बजते ही 70 साल पहले देश के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज 1947 का आईना बना कैलेंडर 2014 में इतिहास दोहराएगा। वर्ष 1947 के कैलेंडर और वर्ष 2014 के कैलेंडर में जरा भी फर्क नहीं है। न तारीख में अंतर, न दिन में। ग्रह व नक्षत्रों की स्थिति भी एक जैसी। उत्सुकता इस बात को लेकर ज्यादा है कि वर्ष 1947 ब्रि‌टिश हुकूमत को देश से बाहर करने में गवाह बना था।
ज्योतिषाचार्य के मुताबिक आने वाला साल राजपाठ में परिवर्तन के योग बना रहा है। आने वाले वर्ष में हमें ऐसे बदलाव देखने को मिलेंगे जो हमारे जीवन को सामाजिक राजनैतिक और आर्थिक तौर पर ऐसा बदलेंगे जिसकी हमने कामना भी नहीं की होगी| राजनैतिक आकाश में एक नए जननायक का उदय होगा जो समाज और देश को नयी दिशा और दशा देगा| गृह नक्षत्र की चाल बताते है कि ये वर्ष देश और मानव जीवन दोनों के लिए उत्साह लाने वाला साबित होगा| ये वर्ष न्याय वर्ष के तौर पर इतिहास में अपनी पहचान बनाएगा| कई बड़ी हस्तियों का पतन होगा तो कई ऐसे नायक सामने आएंगे जो देश का नाम विश्व में रौशन करेंगे| न सिर्फ देश बल्कि दुनिया के लिए भी ये वर्ष भाड़ी उथल पुथल वाला साबित होगा| हाँ ये उथल पुथल सुखद सन्देश देने वाली होगी| ये वर्ष अपने घटनाक्रमों के चलते अनंत वर्षों तक जाना जायेगा| उनके मुताबिक देश में ऐसे नायक का जन्मा होगा जो भ्रस्ट तंत्र को उखाड़ने के लिए जन मानस को खड़ा करेगा| राजनैतिक शुद्धि, सामाजिक शुद्धि की ओर ये वर्ष कदम उठाने वाला है| फिलहाल 2014 इतिहास के जिन्दा होने जैसा अनुभव लाने वाला है|
बीते 62 बरस की सियासत में कभी यह सवाल नहीं उभरा कि राजनीतिक विचारधारायें बेमानी लगने लगी हैं। संविधान के सामाजिक सरोकार नहीं हैं। सत्ता सरकार और हर घेरे में ताकतवर की अंटी में बंधी पड़ी है। लेकिन पहली बार 2013 के दिल्ली चुनाव परिणाम से बनी सत्ता ने महात्मा गांधी की उस लकीर पर ध्यान देने को मजबूर किया जो नेहरु के एतिहासिक भाषण को सुनने की जगह बंद अंधेरे कमरे में बैठकर 15 अगस्त 1947 को महात्मा गांधी ने ही खींची थी। तो क्या मौजूदा वक्त में समूची राजनीतिक व्यवस्था को सिरे से उलटने का वक्त आ गया है। या फिर देश की आवाम अब प्रतिनिधित्व की जगह सीधे भागेदारी के लिये तैयार है। यह सवाल इसलिये बड़ा है क्योंकि एक तरफ दिल्ली में ना तो कोई ऐसा महकमा है और ना ही कोई ऐसी जरुरत जो पहली बार नयी सरकार के दरवाजे पर इस उम्मीद और आस से दस्तक ना दे रही हो, जिसे पूरा करने के लिये सियासी तिकड़म को ताक पर रखना आना चाहिये। पानी, बिजली, खाना, शिक्षा, इलाज,घर और स्थायी रोजगार। ध्यान दें तो बीते 62 बरस की
सियासत के यही आधार रहे । और 1952 में पहले चुनाव से लेकर 2014 के लिये बज रही तुतहरी में भी सियासी गूंज इन्ही मुद्दों की है। तो क्या बीते 62 बरस से देश वहीं का वहीं है। हर किसी को लग सकता है कि देश को बहुत बदला है । काफी तरक्की देश ने की है । लेकिन बारीकी से देश के संसदीय खांचे में सियासी तिकड़म को समझे तो हालात 1952 से भी बदतर नजर आ सकते हैं। फिर 2013 के दिल्ली चुनाव परिणाम से होने वाले असर को समझना आसान होगा। देश के पहले आम चुनाव 1952 में कुल वोटर 17 करोड 32 लाख थे। और इनमें से 10 करोड़ 58 लाख वोटरों ने वोट डाले थे। और जिस कांग्रेस को चुना उसे 4 करोड़ 76 लाख लोगों ने वोट डाले गये। वहीं 2009 में कुल 70 करोड़ वोटर थे। इनमें से सिर्फ 29 करोड़ वोटरों ने वोट डाले। और जो कांग्रेस सत्ता में आयी उसे महज 11 करोड़ वोटरों ने वोट दिये। जबकि 1952 के वक्त के चार भारत 2009 में जनसंख्या के लिहाज से भारत है। तो पहला सवाल जिस तादाद में 1952 में पानी, शिक्षा , बिजली, खाना, इलाज , घर या रोजगार को लेकर तरस रहे थे 2013 में उससे कही ज्यादा भारतीय नागरिक उन्हीं न्यूतम मुद्दों को लेकर तरस रहे हैं। तो फिर संसदीय राजनीतिक सत्ता कैसे और किस रुप में आम आदमी के हक में रही।
2014 के लिये यह सोचना कल्पना हो सकता कि 21 मई 2014 को जब देश में नयी सरकार शपथ लें तो वह वाकई आम आदमी के मैनिफेस्टो पर बनी सरकार हो। जहां राजनीतिक विचारधारा मायने ना रखे। जहा वामपंथी या दक्षिणपंथी धारा मायने ना रखे। जहां जातीय राजनीति या धर्म की राजनीति बेमानी साबित हो। और देश के सामने यही सवाल हो पहली बार हर वोटर को जैसे वोट डालने का बराबर अधिकार है वैसे ही न्यूनतम जरुरत से जुड़े आधे दर्जन मुद्दो पर भी बराबर का अधिकार होगा। तो पानी हो या बिजली या फिर इलाज या शिक्षा । और रोजगार या छत । इस दायरे में देश में मौजूदा अर्थव्यवस्था के दायरे में अगर वाकई प्रति व्यक्ति आय 25 से 30 हजार रुपये सालाना हो चुकी है । तो फिर उसी आय के मुताबिक ही सार्वजनिक वितरण नीति काम करेगी। सरकार के आंकड़े कहते है कि देश में प्रति व्यक्ति आय हर महीने के ढाई हजार रुपये पार कर चुके है तो फिर इस दायरे में तो हर परिवार को उतनी सुविधा यू ही मिल जानी चाहिये जो सब्सिडी या राजनीतिक पैकेज के नाम पर सियासी अर्थव्यवस्था करती है। यह सीख 2013 से निकल कर 2014 के लिये इसलिये दस्तक दे रही है क्योंकि दिल्ली चुनाव में जो जीते है वह पहली बार सरकार चलाने के लिये सत्ता तक चुनाव जीत कर नहीं पहुंचे बल्कि समाज में जो वंचित है, उन्हें उनके अधिकारों को पहुंचाने की शपथ लेकर पहुंचे हैं। और पारंपरिक राजनीति के लिये यह सोच इसलिये खतरनाक है क्योंकि यह परिणाम हर अगले चुनाव में कही ज्यादा मजबूत होकर उभर सकते हैं। क्योंकि 2014 के चुनाव के वक्त देश में कुल 75 से 80 करोड़ तक वोटर होंगे। और पारंपरिक राजनीति को सत्ता में आने के लिये 12 से 15 करोड वोटर की ही
जरुरत पड़ेगी। लेकिन यह आंकडे तब जब देश में 35 से 37 करोड़ तक ही वोट पड़ें । लेकिन आम आदमी की भागेदारी ने अगर दिल्ली की तर्ज पर 2014 में समूचे देश में वोट डाले तो वोट डालने वालों का आंकड़ा 45 से 50 करोड़ तक पहुंच सकता है। यानी जो पारंपरिक राजनीति 12 से 15 करोड तक के वोट से सत्ता में पहुंचने का ख्वाब देख रही है, उसके सामानांतर झटके में आम आदमी 8 से 10 करोड़ नये वोटरो के साथ खड़ा होगा और जब पंरपरा टूटती दिखेगी तो 5 करोड़ वोटर से ज्यादा वोटर जो जातीय या धर्म के आसरे नहीं बंधा है या खुद को हर बार छला हुआ महसूस करता है, वह भी खुद को बदल सकता है। तब देश में एक नया सवाल खड़ा होगा क्या वाकई काग्रेस -भाजपा या क्षत्रपो की फौज अपने राजनीतिक तौर तरीको को बदलगी। क्योंकि आम आदमी की अर्थव्यवस्था को जातीय खांचे या वोट बैंक की राजनीति या फिर मुनाफा बनाकर सरकार को ही कमीशन पर रखने वाली निजी कंपनियो या कारपोरेट की अर्थव्यवस्था से अलग होगी । तब क्या विकास का सवाल पीछे छूट जायेगी। या फिर 1991 में विकास के नाम पर जिस कारपोरेट या निजी कंपनियो के साथ सियासी गठजोड ने उड़ान भरी उसपर ब्रेक लग जायेगा । यह सवाल आपातकाल से लेकर मंडल-कंमडल या खुली बाजार अर्थव्यवस्था के दायरे में बदली सत्ता के दौर में मुश्किल हो सकता है। लेकिन 2013 के बाद यह सवाल 2014 में मुश्किल इसलिये नहीं है क्योंकि अरविन्द केजरीवाल ने कोई राजनीतिक विचारधारा खिंच कर खुद पर ही सत्ता को नहीं टिकाया है बल्कि देश के सामने सिर्फ एक राह बनायी है कि कैसे आम आदमी सत्ता पलट कर खुद सत्ताधारी बन सकता है । इसलिये दिल्ली में केजरीवाल फेल होते हैं या पास सवाल यह नहीं है। सवाल सिर्फ इतना है कि 2013 के दिल्ली चुनाव परिणाम ने 2014 के चुनाव को लेकर एक आस एक उम्मीद पैदा की है कि आम आदमी अगर चुनाव को आंदोलन की तर्ज पर लें तो सिर्फ वोट के आसरे वह 62 बरस पुरानी असमानता की लकीर को मिटाने की दिशा में बतौर सरकार पहली पहल कर सकता है।

Monday, 30 December 2013

भारतवासियों को नए वर्ष कि हार्दिक शुभकामनायें - पूर्वांचल विकास मोर्चा


सभी भारतवासियों को आने वाले नए साल कि शुभकामनाओं के साथ मैं उकना ध्यान बीते वर्ष कि कुछ विशेष घटनाओं पर ले जाना चाहता हूँ। २०१३ काफी उथल पुथल भरा साल रहा है।  जहाँ एक तरफ कांग्रेस को ४ राज्यों के विधानसभा चुनावों में करारी शिकश्त मिली और उसका सूपड़ा साफ़ हो गया वही दूसरी ओर आम आदमी पार्टी को दिल्ली में अप्रत्याशित सफलता मिली। यह साल भाजपा के लिए भी काफी अच्छा रहा और उन्हें चुनावों मैं भरी सफलता मिली।  जहाँ कांग्रेस को अपने कुशाशन और भ्रस्टाचार कि वजह से नुकसान उठाना पड़ा वहीँ भाजपा ने मोदी को आगे करके और गुजरात मॉडल को जनता के सामने रख कर जनता का विश्वास जीता।
इस साल के शरुआत मैं ही चीन ने लद्दाख के दौलत बेग ओल्डी हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया लेकिन भारत सरकार नपुंसक कि तरह टालमटोल करती रही , यही नहीं पाकिस्तान ने जब हमारे दो सैनिकों कि हत्या कर दी और एक का तो सर ही काट ले गए तो भी सरकार को शर्म नहीं आयी और आज तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है।  यह कांग्रेस कि कमजोर विदेश और रक्षा नीतियों का ही परिणाम है।  महगाईं से पूरे साल जनता तस्त्र रही है और अभी भी कम होने का नाम नहीं ले रही हालत यह कि प्याज के दाम १०० रुपये किलो तक पहुँच गए और आम जनता के लिए तो एक वक्त कि रोटी भी कहानी मुश्किल हो गया है और ऊपर से कांग्रेसी नेता जले पर नमक छिड़कते हुए कहते हैं कि १२ रुपये मैं थाली मिल जाती है उस पर एक और कदम आगे बढ़ते हुए मोंटेक सिंह अहवालिआ तो यहाँ तक कह देते हैं कि दिन २५ रुपये खर्च करने वाला आदमी गरीब नहीं है।
यह सब बाते कोग्रेस का असली चेहरा ही उजागर करती है। क्यों कि जबसे ये सत्ता मैं आये हैं तबसे देश का बंटाधार कर रहे हैं और जब इन्हे मोदी से चुनौती मिली तो सभी के सभी बौखला गए और आये दिन राहुल गांधी से मोदी कि तुलना करने लगे है।  अब जब कि देश के सामने इनकी पोल खुल गयी है और ये साबित हो गया है कि राष्ट्रीय और अनतराष्ट्रीय हर मोर्चे पर विफल हो चुकी सोनिया और टीम का गुजरात को विश्व के मानचित्र पर लेन वाले मोदी से कोई तुलना नहीं तो लोग लोक सभा चुनावों में  मोदी को चुनेंगे ऐसा में आशा है। आने वाला साल सबके लिए मंगलमय हो।   जय हिन्द जय भारत

अजित कुमार पाण्डेय ( अध्यक्ष ) पूर्वांचल विकास मोर्चा

पूर्वांचल विकास मोर्चा की तरफ से आप सभी को नए साल की हार्दिक बधाई

नव वर्ष के आगमन पर हार्दिक बधाई।
नव वर्ष शुभ हो।
नव वर्ष आपके जीवन मे उमग लाये।
नया साल आपको नया अनुभव दे।
नव वर्ष आपके लिये हितकारी हो।
नव वर्ष मे हर कदम पर आपको सफलता मिले।
नव वर्ष मे आप फले, फूले।
नया साल आपके लिये लाभदायक हो।
नया साल आपके लिये नयी खुशिया लाये।
नया साल आपको नया उत्साह प्रदान करे।
नव वर्ष सुख- सम्रध्धि से भरपूर हो।
नव वर्ष मे आपकी सभी मनोकामनाये पूरी हो।
नव वर्ष मे भाग्य सदैव आपका साथ दे।
नव वर्ष मे आपकी दिन दोगुनी रात चौगुनी तरक्की हो।
**** अजित कुमार पाण्डेय ( अध्यक्ष ) पूर्वांचल विकास मोर्चा  की तरफ से आप सभी को नए साल की हार्दिक बधाई

Friday, 27 December 2013

केजरीवाल जी को दिल्ली के ७वे मुख्यमंत्री बनने कि हार्दिक बधाई



केजरीवाल कांग्रेस के साथमिल कर सरकार तो बनाने में कामयाब हो गए लेकिन ये सरकार चलती कितनी दिन है ये देखना दिलचस्प होगा। केजरीवाल चुनावों के पहले और बाद भी यही राग अलापरहे थे कि वो न भाजपा न ही कांग्रेस को समर्थन देंगे न ही उनसे समर्थन लेंगे।  लेकिन भाजपा के सरकार बनाने से मन कर देने के बाद उन्होंने कांग्रेस से हाथ मिला लिया और जिस पार्टी के खिलाफ ही उनका पूरा आंदोलन था और जिन मुद्दों पर उन्हें चुनावों मैं सफलता हाथ लगी उन सब बातों को भूल कर उन्होंने कांग्रेस से हाथ मिला लिया जो यही जाहिर करता है कि केजरीवाल भी सत्ता के भूखे हैं और ईमानदारी के ढोंग करते हैं।  हलाकि उन्होंने और उनके पार्टी के अन्य लोगो ने जनता कि आँखों मैं खूब धुल झोकी और अंत तक कांग्रेस से हाथ न मिलाने कि बात करते रहे और कुमार विश्वास ने तो कांग्रेस को दो मुह साप तक कह डाला लेकिन आखिर में उसी दो मुहे साप को गले लगा लिया।  केजरीवाल ने किसी तरह जोड़ तोड़ के सरकार तो बना ली लेकिन अपनी बैटन से वो अभी ही मुकरने लग गए हैं।  पहले तो वो सरकार बनने के दस दिनों के अंदर ही बिजली के दाम घटाने कि और मुफ्त पानी देने कि बात कर रहे थे लेकिन अब वो इन बातो से बचने कि कोशिश कर रहे हैं और ऑडिट का हवाला दे रहे हैं कि कम से कम तीन महीने तो बिजली कम्पनियों का ऑडिट करने मैं लग जायेगा।  क्या उनको यह बात पहले नहीं पता थी या अभी पता लगी , निश्चित है कि उन्होंने सिर्फ चुनाव जीतने के लिए इन सब वादों का उपयोग किया, वैसे भी वो वादों से पलटना काफी अच्छे से जानते हैं।  अन्ना के साथ आंदोलन करते समय भी वो यही राग अलाप रहे थे कि उनका आंदोलन गैर राजनितिक होगा ,लेकिन आंदोलन कि सफलता देख उनकी नीयत बदल गयी और उन्होंने पहले तो अन्ना का आंदोलन हाइजैक किया फिर पार्टी भी बना ली।  अभी सरकार पूरी तरह से बनी भी नहीं है कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के लोगो के बीच वाक्युद्ध शुरू हो गया है , कोई किसी को दोमुहा साप और चोर बता रहा है तो कोई भाषा कि गरिमा सिखा रहा है।  जो भी हो कोग्रेस के समर्थन देने के पुराने ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए और आम आदमी पार्टी के बदलते हुए सुरों को देखते हुए इस सरकार का ज्यादा दिन चल पाना मुश्किल लगता है।

अजित कुमार पाण्डेय ( अध्यक्ष ) पूर्वांचल विकास मोर्चा 

Wednesday, 25 December 2013

युगपुरूष अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिन पर हार्दिक शुभकामना







पूर्वांचल विकास मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अजीत कुमार पाण्डेय ने कहा कि अपनी पांच दशक लंबी राजनीतिक पारी में  भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी  ने विपक्ष के सशक्त स्वर से लेकर देश के प्रधानमंत्री के पद तक का गौरवमयी सफर तय किया. वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए के शासनकाल को कई विशेषज्ञ आर्थिक वृद्धि तथा अवसंरचना निर्माण के लिहाज से सफलताओं भरा वर्ष मानते हैं. यदि भाजपा के पास अटलजी जैसा सर्वसमावेशी व्यक्तित्व नहीं होता, तो ऐसा गंठबंधन बनना मुश्किल हो जाता. यदि स्वार्थवश कुछ दल इकट्ठे हो जाते भी, तो उन्हें टूटने में ज्यादा समय नहीं लगता. यह अटलजी के व्यक्तित्व की खूबी ही थी कि शरद यादव, नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, फारूक जैसे लोग भी उनकी सरकार में सहर्ष काम करते रहे.इतिहास में व्यक्ति की अहम भूमिका होती है. अमेरिका में जॉर्ज वाशिंगटन, अब्राहम लिंकन, सोवियत संघ में लेनिन. ऐसे सैकड़ों उदाहरण विद्यमान हैं. वाजपेयी को उन राजनेताओं में गिना जाना चाहिए, जिनका व्यक्तित्व उन्हें अलग पहचान देता रहा. राजनीति में विचारधारा एवं मूल्य के अतिरिक्त जो तीसरा सबसे महत्वपूर्ण आयाम होता है, वह है पात्रता. जो व्यक्ति अपने व्यवहार और सामाजिक सरोकारों में पारदर्शिता से जीवन जीता है, वह स्वाभाविक तरीके से जनप्रिय बन जाता है. सिर्फ विचारधारा और मूल्यों की बात करनेवाला व्यक्ति एक दायरे में सिमट कर रह जाता है. अटल बिहारी वाजपेयी आधुनिक भारत की उन शख्सीयतों में से हैं, जिन्होंने राजनीति में रहने की अपनी सार्थकता को अपने विचार और व्यवहार दोनों से स्थापित किया.

वाजपेयी के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि जहां उनके अंदर वैचारिक प्रतिबद्धता कूट-कूट कर भरी रही, वहीं वह अन्य वैचारिक व सामाजिक ताकतों से निरंतर संवाद करते रहे. यह पक्ष वाजपेयी के संबंध में उल्लेखनीय इसलिए हो जाता है कि वे जिस दल व विचार से जुड़े रहे हैं, वह राजनीतिक छुआछूत का शिकार रहा है. आप कल्पना कीजिए 1950 के दशक की, जब जवाहरलाल नेहरू जैसे लोकप्रिय नेता ने बिना प्रमाण और सबूत के संघ को न सिर्फ प्रतिक्रियावादी और दक्षिणपंथी, बल्कि गांधी का हत्यारा भी घोषित कर दिया था. वाजपेयी इस मुकाम पर इस विचारधारा और दल के श्रेष्ठतम प्रवक्ता बन कर उभरे. उन्होंने अपनी राजनीतिक शैली में तीन मार्गो का अनुशरण किया. पहला, कठिन, दुरूह और विवादित विषयों को भी सहजता, सरलता और उदारता के साथ रखने का प्रयास करते रहे. व्यक्ति जब अपने मन, बुद्धि और हृदय से सामाजिक सरोकारों से जुड़ा होता है, तो भाषा अपने आप सहायक के रूप में काम करती जाती है. इसलिए वाजपेयी को एक कुशल वक्ता से कहीं बड़ा और सफल संवादक मानना चाहिए.

भारत में बीते साढ़े छह दशक में दर्जनभर से ज्यादा प्रधानमंत्री हुए, लेकिन मेरी राय में अब तक सिर्फ चार प्रधानमंत्री ऐसे हुए हैं, जिन्हें देश लंबे वक्त तक याद करेगा. ये हैं-जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, पीवी नरसिंहराव व अटल बिहारी वाजपेयी! इन चारों प्रधानमंत्रियों ने अपनी पूर्ण अवधि तक राज किया और भारत के इतिहास-पटल पर ऐसी गहरी लकीरें खींचीं, जिनका प्रभाव कई दशकों तक बना रहेगा. श्रीमती इंदिरा गांधी से मेरा काफी संपर्क रहा. नरसिंहरावजी के साथ घनिष्ट सक्रिय भूमिका निभाने का अवसर मिला और अटलजी के साथ छात्र-काल से बना आत्मीय व पारिवारिक संबंध उनके प्रधानमंत्री काल और बाद में भी बना रहा है. आज अटलजी के जन्मदिन पर कुछ ऐसी बातों की चर्चा, जिनके लिए वे याद किये जाएंगे.

सबसे पहली बात, जिसके लिए अटलजी को सदियों तक याद किया जाएगा, वह है पोखरन का परमाणु-विस्फोट! वह भारतीय संप्रभुता का शंखनाद था. दुनिया की परमाणु-शक्तियां 12 मई, 1998 को बहुत बौखलाईं. उन्होंने अनेक अप्रिय बयान और धमकियां भी जारी कीं, लेकिन यही वह दिन था, जबसे भारत की गणना शक्तिशाली राष्ट्रों में होने लगी. अटलजी ने इंदिराजी का अधूरा काम पूरा किया. यह काम राव साहब करें, यह सलाह मैंने उन्हें चुनाव के तीन-चार माह पहले दी थी. उन्होंने तैयारी भी कर ली थी, लेकिन अंतरराष्ट्रीय दबावों के कारण उन्होंने देर कर दी. वे सोच रहे थे कि दोबारा चुनकर आएंगे, तब करेंगे. अटलजी को जैसे ही मौका मिला, उन्होंने यह चमत्कारी कदम उठा लिया. यह विस्फोट शनिवार शाम को हुआ था. रविवार सुबह उनसे मेरी बात हुई. उसके पहले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से सुबह ही फोन पर मेरी बात हुई. वे लाहौर के अपने मॉडल टाउन वाले बंगलों में उस रात ही लौटे थे. मैंने अटलजी से कहा कि अगले हफ्ते-डेढ़ हफ्ते में ही पाकिस्तान भी परमाणु बम फोड़ेगा, वरना नवाज शरीफ को गद्दी छोड़ना पड़ेगी. अटलजी को विश्वास नहीं हुआ. फिर भी मैंने उनसे कहा कि आप मियां नवाज को फोन कीजिए और उनसे कहिये कि यह भारत का नहीं, तीसरी दुनिया का बम है. आपका भी है और हमारा भी है. इस पर भी पाकिस्तान विस्फोट कर ही दे, तो हमें एक द्विपक्षीय परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) और विषद परमाणु-परीक्षण प्रतिबंध संधि (सीटीबीटी) के लिए तैयार करना चाहिए. पाकिस्तान ने कुछ दिनों बाद हमसे भी बड़ा विस्फोट कर दिया. भारत ने ‘हम पहल नहीं करेंगे’ यानी आगे होकर हम परमाणु हथियार नहीं चलाएंगे, ऐसी रचनात्मक घोषणा की. बाद में मैंने भारत-पाक द्विपक्षीय परमाणु संधि पर एक लेख लिखा, जिसे प्रधानमंत्री कार्यालय ने प्रधानमंत्री के कहने पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार समिति के सभी सदस्यों को भिजवाया. कहने का तात्पर्य यह कि अटलजी अपने से छोटों की बात पर भी ध्यान देनेवाले नेता थे.

अटलजी का दूसरा उल्लेखनीय काम था करीब दो दर्जन दलों की गठबंधन सरकार को पूरे पांच साल तक चला ले जाना. देश का कोई अन्य नेता ऐसा चमत्कार नहीं कर सका. उनके गठबंधन में फारूक अब्दुल्ला की कश्मीरी पार्टी से लेकर जयललिता और एस रामदास की तमिल पार्टियां भी थीं. उन्होंने भाजपा को सचमुच एक राष्ट्रीय पार्टी बना दिया. यदि भाजपा के पास अटलजी जैसा सर्वसमावेशी व्यक्तित्व नहीं होता, तो ऐसा गठबंधन बनना मुश्किल हो जाता. यदि स्वार्थवश कुछ दल इकट्ठे हो जाते भी, तो उन्हें टूटने में ज्यादा समय नहीं लगता. यह अटलजी के व्यक्तित्व की खूबी ही थी कि शरद यादव, नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, फारूक जैसे लोग भी उनकी सरकार में सहर्ष काम करते रहे. उन्होंने जसवंत सिंह, यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी जैसे राजनीति के बाहर से आये लोगों से भी काम लिया. विभिन्न क्षेत्रीय दलों की तरफ से आनेवाले दबावों को वे गद्दीदार कागज की तरह से सोखते रहते थे. उन्होंने भाजपा जैसी विचारधारा में आबद्ध पार्टी को नरम किया और कश्मीर, राममंदिर तथा समान आचार संहिता जैसे विवाद वाले मुद्दों को हाशिये पर डाल दिया. एक अर्थ में उन्होंने अपनी सरकार को शक्तियों के ऐसे विराट गंठबंधन में परिवर्तित कर दिया, जिनसे मिल कर कभी नेहरू की कांग्रेस बनी थी. परमाणु-बम के मामले में उन्होंने इंदिराजी के काम को आगे बढ़ाया, तो विविध शक्ति-समन्वय के मामले में नेहरूजी के काम को नया आयाम दिया. अटलजी ने अपने चातुर्य से यह महत्वपूर्ण बात रेखांकित की कि यदि भारत को भारत की तरह चलाना है तो अपनी पार्टी और सरकार को सर्वसमावेशी बना कर चलाना होगा. वे शासन के संचालन में अपनी विरोधी कांग्रेस पार्टी के कई नेताओं के अनुभवों से लाभ उठाने में भी संकोच नहीं करते थे. उनका स्वभाव इतना अच्छा था कि यदि देश में कोई सर्वदलीय सरकार भी बनती तो मुङो लगता है कि कम्युनिस्ट पार्टियां भी उन्हें दिल से नेता स्वीकार कर लेतीं, चाहे प्रकट तौर पर वे विरोध ही करतीं. इस दृष्टि से अटलजी भावी पीढ़ियों के नेताओं के लिए अनुकरणीय बन गये हैं. इसीलिए मैंने पिछले दिनों एक लेख में लिखा था कि जब तक नरेंद्र मोदी के शरीर में अटलजी की ‘आत्मा’ का प्रवेश नहीं होगा, उनका प्रधानमंत्री बनना और बन कर टिके रहना मुश्किल होगा.

अटलजी के कार्यकाल में कई ऐसे महत्वपूर्ण कार्य शुरू हुए, जो रचनात्मकता और नवीनता के लिए जाने जाएंगे. जैसे सड़कों से पूरे देश को जोड़ना. नदियों को भी एक-दूसरे से जोड़ने की योजना उन्होंने बनायी थी. सरकार की कई बीमारू संस्थाओं को उन्होंने गैर-सरकारी बना दिया. यह थोड़े साहस का काम था. उन्होंने नरसिंहराव सरकार की कई पहलों को अंजाम दिया. अर्थव्यवस्था में भी नयी चमक पैदा हुई. महंगाई पर नियंत्रण हुआ. लोगों की आमदनी बढ़ी. करगिल-युद्ध में भी भारत की जीत हुई. सरकार ने संयम से काम लिया. भारत ने पाकिस्तानियों को अपने क्षेत्र से बाहर खदेड़ा, लेकिन उनके क्षेत्र पर कब्जा नहीं किया. सारी दुनिया में भारत की सराहना और पाकिस्तान की निंदा हुई.

उस जमाने में विदेश नीति के क्षेत्र में भी अटलजी ने कुछ ऐसे कदम उठाये, जिनका प्रभाव हमें भावी दशकों में बराबर देखने को मिलेगा. उन्हें यह श्रेय मिलेगा कि उन्होंने अफगानिस्तान को भू-राजनीतिक आजादी दिलायी. मैं इंदिराजी और अफगान राष्ट्रपति सरदार दाऊद खान से 1973 से आग्रह कर रहा था कि वे पाकिस्तान की घेराबंदी खत्म करें. अफगानिस्तान आने-जाने के लगभग सभी प्रमुख मार्ग पाकिस्तान होकर निकलते हैं. पाकिस्तान जब चाहता है, अफगानिस्तान का हुक्का-पानी बंद कर देता है. इससे भारत और अफगानिस्तान के संबंधों में सबसे बड़ी बाधा उपस्थित हो जाती है. अटलजी ने अफगानिस्तान से ईरान की सीमा तक एक पक्की सड़क बनवा दी. यह जरंज-दिलाराम मार्ग ऐसा विकल्प है, जो ईरान की खाड़ी के जरिये अफगानिस्तान को पूरे दक्षिण एशिया से जोड़ देगा. हामिद करजई की सरकार को अन्य क्षेत्रों में सक्रिय सहयोग देने और अफगानिस्तान को दक्षेस का सदस्य बनवाने में भी अटलजी की भूमिका महत्वपूर्ण रही है.

अटलजी ने चाहे करगिल में पाकिस्तान को सबक सिखाया, लेकिन बाद में उन्होंने जनरल परवेज मुशर्रफ की सरकार से अच्छे संबंध बनाने की भरसक कोशिश की. उन्हीं का कूटनीतिक कौशल था कि पाक सरकार ने 2004 में कहा कि वे भारत के विरुद्ध अपनी जमीन का इस्तेमाल आतंकवादियों को नहीं करने देंगे. संसद पर हमला होने के बाद भारत ने सीमांत पर जो शक्ति-प्रदर्शन किया, उसने पाकिस्तान के होश ढीले कर दिये थे. कश्मीर पर मुशर्रफ का रवैया काफी बदल गया था. दोनों कश्मीरों के बीच आवाजाही शुरू हो गयी थी. वीजा के प्रतिबंध कुछ ढीले पड़े थे. लोगों के संबंध आपस में बढ़ने लगे थे. यदि अटलजी एक बार और प्रधानमंत्री रह जाते तो भारत-पाक संबंध शायद हमेशा के लिए सुधर जाते, क्योंकि उन दिनों कई बार मुङो पाकिस्तान जाने का मौका मिला और वहां मैंने पाया कि अटलजी से ज्यादा लोकप्रिय कोई भी अन्य भारतीय नेता नहीं हुआ. यहां तक कि जमाते-इसलामी के नेता भी अटलजी के बारे में संभलकर बोलते थे.

श्रीलंका, नेपाल, बर्मा आदि के बारे में अटलजी ने कई पहल कीं, लेकिन अमेरिका के साथ भारत के संबंधों को सहज पटरी पर लाने का मुख्य श्रेय उन्हीं को है. वे चीन के साथ भी सहज संबंध बनाने को उत्सुक थे. जब वे विदेश मंत्री थे, मोरारजी देसाई की सरकार में, तब भी उन्होंने विशेष प्रयास किया था. संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि उनकी विदेश नीति में भी उनके व्यक्तित्व की गरिमा और उदारता सदा प्रतिबिंबित होती रही. यह होते हुए भी भारत के राष्ट्रहित की कभी उपेक्षा नहीं हुई.
अटलजी की संवेदना और करुणा का सर्वोत्तम उदाहरण तब देखने को मिला, जब 2002 में गुजरात में नरसंहार हुआ. जिस दिन गोधरा में वह दुर्घटना हुई, अफगान राष्ट्रपति हामिद करजई भारत आये हुए थे. हैदराबाद हाउस में राजभोज था. दोपहर लगभग साढ़े तीन बजे हमलोग जब बाहर निकले तब पता चला कि गोधरा में कई लोगों को जिंदा जला दिया गया. उसकी जबर्दस्त प्रतिक्रिया हुई. अटलजी से बराबर बातचीत होती रहती थी. कुछ दिन बादे नवभारत टाइम्स में मेरा लेख छपा, जिसमें मैंने लिखा, ‘गुजरात में राजधर्म का उल्लंघन हो रहा है.’ लेख पढ़ते ही अटलजी ने मुङो फोन किया और जैसा कि उनका स्वभाव है, उन्होंने अतिशय प्रशंसा की. उन्होंने ‘राजधर्म’ के उल्लंघन की बात को कई बार दोहराया और वह आज भी एक मुहावरे की तरह दोहराया जाता है. गुजरात के बारे में अटलजी और मेरे बीच काफी विचार-विमर्श हुआ. बाद में स्वयं गुजरात जाकर अटलजी ने शरणार्थियों के शिविर में भाव-विह्वल होकर जैसे आंसू बहाये, वैसे तो कोई कवि-हृदय ही बहा सकता है. यह आम राजनेताओं या प्रधानमंत्रियों के बस की बात नहीं है.

Tuesday, 24 December 2013

युगपुरुष अटल जी को जन्मदिन कि हार्दिक शुभकामनाये - पूर्वांचल विकास मोर्चा



आज पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी के जन्मदिन पर उनको पूर्वांचल विकास मोर्चा कि तरफ से हार्दिक  बधाई।  २५ दिसम्बर १९२५ को एक साधारण परिवार मैं जन्मे अटल जी भारत के १० वे प्रधानमंत्री बने।  इसके अलावा भी वे विभिन्न सरकारों में कई महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके हैं। अटल जी एक प्रखर वक्ता होने के साथ अपनी ख़ास शैली कि कविताओं के लिए भी जाने जाते हैं।  भारत के प्रधानमन्त्री रहते हुए उन्होंने भारत को विश्व के मानचित्र  पर एक विशेष स्थान दिलाया।  भारत के इस महानसपूत को जन्मदिन पर विशेष बधाई तथा अच्छे स्वास्थ्य कि कामना। अजित कुमार पाण्डेय ( अध्यक्ष ) पूर्वांचल विकास मोर्चा 

Monday, 23 December 2013

हिंदुस्तानी राजनीति के आखिरी करिश्माई राजनेता हैं अटल बिहारी वाजपेयी

अटल बिहारी वाजपेयी यानि एक ऐसा नाम जिसने भारतीय राजनीति को अपने व्यक्तित्व और कृतित्व से इस तरह प्रभावित किया जिसकी मिसाल नहीं मिलती। एक साधारण परिवार में जन्में इस राजनेता ने अपनी भाषण कला, भुवनमोहिनी मुस्कान, लेखन और विचारधारा के प्रति सातत्य का जो परिचय दिया वह आज की राजनीति में दुर्लभ है। सही मायने में वे पं.जवाहरलाल नेहरू के बाद भारत के सबसे करिश्माई नेता और प्रधानमंत्री साबित हुए।

एक बड़े परिवार का उत्तराधिकार पाकर कुर्सियां हासिल करना बहुत सरल है किंतु वाजपेयी की पृष्ठभूमि और उनका संघर्ष देखकर लगता है कि संकल्प और विचारधारा कैसे एक सामान्य परिवार से आए बालक में परिवर्तन का बीजारोपण करती है। शायद इसीलिए राजनैतिक विरासत न होने के बावजूद उनके पीछे एक ऐसा परिवार था जिसका नाम संघ परिवार है।

जहां अटलजी राष्ट्रवाद की ऊर्जा से भरे एक ऐसे महापरिवार के नायक बने, जिसने उनमें इस देश का नायक बनने की क्षमताएं न सिर्फ महसूस की वरन अपने उस सपने को सच किया, जिसमें देश का नेतृत्व करने की भावना थी। अटलजी के रूप में इस परिवार ने देश को एक ऐसा नायक दिया जो वास्तव में हिंदू संस्कृति का प्रणेता और पोषक बना।
.अटलबिहारी बाजपेयी सही मायने में एक ऐसे प्रधानमंत्री थे जो भारत को समझते थे।भारतीयता को समझते थे। राजनीति में उनकी खींची लकीर इतनी लंबी है जिसे पार कर पाना संभव नहीं दिखता। अटलजी सही मायने में एक ऐसी विरासत के उत्तराधिकारी हैं जिसने राष्ट्रवाद को सर्वोपरि माना। देश को सबसे बड़ा माना। देश के बारे में सोचा और अपना सर्वस्व देश के लिए अर्पित किया।


 उनकी समूची राजनीति राष्ट्रवाद के संकल्पों को समर्पित रही। वे भारत के प्रधानमंत्री बनने से पहले विदेश मंत्री भी रहे। उनकी यात्रा सही मायने में एक ऐसे नायक की यात्रा है जिसने विश्वमंच पर भारत और उसकी संस्कृति को स्थापित करने का प्रयास किया।

मूलतः पत्रकार और संवेदनशील कवि रहे अटल जी के मन में पूरी विश्वमानवता के लिए एक संवेदना है। यही भारतीय तत्व है। इसके चलते ही उनके विदेश मंत्री रहते पड़ोसी देशों से रिश्तों को सुधारने के प्रयास हुए तो प्रधानमंत्री रहते भी उन्होंने इसके लिए प्रयास जारी रखे। भले ही कारगिल का धोखा मिला, पर उनका मन इन सबके विपरीत एक प्रांजलता से भरा रहा। बदले की भावना न तो उनके जीवन में है न राजनीति में। इसी के चलते वे अजातशत्रु कहे जाते हैं।

पने समूचे जीवन से अटलजी जो पाठ पढ़ाते हैं उसमें राजनीति कम और राष्ट्रीय चेतना ज्यादा है। सारा जीवन एक तपस्वी की तरह जीते हुए भी वे राजधर्म को निभाते हैं। सत्ता साकेत में रहकर भी वीतराग उनका सौंदर्य है। वे एक लंबी लकीर खींच गए हैं, इसे उनके चाहनेवालों को न सिर्फ बड़ा करना है बल्कि उसे दिल में भी उतारना होगा। उनके सपनों का भारत तभी बनेगा और सामान्य जनों की जिंदगी में उजाला फैलेगा।

 स्वतंत्र भारत के इस आखिरी करिश्माई नेता का व्यक्तित्व और कृतित्व सदियों तक याद किया जाएगा, वे धन्य हैं जिन्होंने अटल जी को देखा, सुना और उनके साथ काम किया है। ये यादें और उनके काम ही प्रेरणा बनें तो भारत को परमवैभव तक पहुंचने से रोका नहीं जा सकता। शायद इसीलिए उनको चाहनेवाले उनकी लंबी आयु की दुआ करते हैं और यह पंक्तियां गाते हुए आगे बढ़ते हैं ‘चल रहे हैं चरण अगणित, ध्येय के पथ पर निरंतर’।

Friday, 13 December 2013

शरद पवार ने पूर्वांचलियों के साथ किया धोखा - अजित पाण्डेय ( अध्यक्ष - पूर्वांचल विकास मोर्चा )



आज में यह ब्लॉग मुख्य रूप से पूर्वांचलवासियों से जुडी समस्याओं और और उनकी अनदेखी के ऊपर लिख रहा हूँ।  आजादी के बाद से ही लगातार इस क्षेत्र कि अनदेखी कांग्रेस द्वारा कि जाती रही है।  परिणाम स्वरुप यह क्षेत्र पिछड़ता चला गया।  जिस प्रकार सरकार ने अन्य क्षेत्रों में विकास किया और  इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास किया और शिक्षा, कृषि, भूमि विकास, स्वास्थय आदि अन्य क्षेत्रों में काम किया जिसके परिणाम स्वरुप यह क्षेत्र तो विकसित हो गए लेकिन लगातार अनदेखी कि वजह से पूर्वांचल कि हालत बद से बदतर हो गयी है। लगातार अनदेखी का आलम ये है कि इस क्षेत्र में विकास का कोई नामोनिशान तक नहीं मिलता तथा रोज़गार, कृषि , शिक्षा जैसे बुनियादी क्षेत्रों कि हालत पतली है।  इसकी  वजह से तमाम युवक रोज़गार कि तलाश में अन्य प्रदेशों में पलायन को मजबूर हैं।
इसकी वजह से कुछ ख़ास शहरों में आबादी भी बढ़ती जा रही है और लोग कीड़े मकोड़ो कि तरह झुग्गियों मैं रहनो को मजबूर हैं।  आखिर इतना बड़ा क्षेत्र  होने के बावजूद और तमाम राष्ट्रीय स्तर के  नेता देने के बावजूद भी पूर्वांचल का विकास क्यों नहीं हो पाया ? इसका एक कारण यहाँ का जातीय समीकरण भी है।  कांग्रेस ने आज़दी के बाद से ही लगातार इस में जातीय आधार पर लोगो को बाटने कि साजिश रची जिसमें उसे बसपा , सपा , जदयू का भी खूब साथ मिला।  इन सभी अपने अपने फायदे के लिए इस क्षेत्र का खूब बटवारा किया और यहाँ के लोगो शोषण किया।  गौर फरमाने वाली बात यह है कि आखिर इस क्षेत्र मुलभुत सुविधावों कि कमी इस लिए कि गयी ताकि पूर्वांचली अन्य लोगो से कटे रहे हैं और विकास कि लहर के कारन उनमे एकजुटता न जाये जिसके परिणाम स्वरुप वे  इन लोगो कि गन्दी चालों को समझ जाएँ और इनका वोट बैंक न ख़त्म हो जाये।  इसका उदहारण हमे अन्य पिछड़े क्षेत्रों के अध्ययन से मिल सकता है , जैसे कि पूर्वोत्तर राज्य और जम्मू और कश्मीर। इन सभी जगहों पर कांग्रेस ने स्थानीय दलों के साथ मिल कर जातीय विभाजन किया और धार्मिक उन्नमाद को बढ़ावा दिया।  अभी हाल ही मैं शरद पवार द्वारा पूर्वांचल के लोगो और किसानो के साथ किया गया भेदभाव भी इसी कि कड़ी है। पूर्वांचल के विकास के लिए जरुरी है कि इन्हे एकजुट किया जाये और एक शशक्त आवाज दी जाये और यह काम सिर्फ भारतीय जनता पार्टी के द्वारा ही सम्भव है क्योंकि मुख्य राष्ट्रीय पार्टी होने और अगले लोक सभा चुनावों मैं पक्की जीत जीत मिलने के कारण  पूर्वांचलियों को एकजुट होना होगा उर भारतीय जनता पार्टी को जितना होगा, ताकि इस क्षेत्र का विकास सम्भव होसके।

अजित कुमार पाण्डेय
अध्यक्ष , पूर्वांचल विकास मोर्चा 

Monday, 9 December 2013



यूपीए अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी जी को जन्मदिवस कि हार्दिक शुभकामनाये। में उनके स्वास्थ्य और लम्बी आयु कि कामना करता हूँ।    ( अध्यक्ष ) पूर्वांचल विकास मोर्चा 

Sunday, 8 December 2013

भाजपा का वनवास ख़त्म दिल्ली मैं बनेगी सरकार




आखिरकार भाजपा का १५ वर्षों का वनवास ख़त्म हुआ और अब वह दिल्ली मैं भी सरकार बनाने जा रही है।  चारो राज्यों मैं सफलता से बीजेपी काफी उत्साहित है और लोकसभा चुनाओ में भी पूर्ण बहुमत बनाने का दावा कर रही है।  दिल्ली और राजस्थान मैं कोग्रेस का सूपड़ा साफ़ हो गया है और उसे भारी नुक्सान उठाना पड़ा है , खास तौर पर दिल्ली में तो वह मुख्या विपक्षी दल भी नहीं बन पायी है।  उससे ये हक़ भी आम आदमी पार्टी ने छीन लिया है जिससे कोंग्रेसियों में भारी निराशा छायी हुई है।  अपनी करारी हार से झुँझलाई शीला दीक्षित ने तो वोटरों को कि बेवकूफ बता दिया। वो यह भूल गयीं कि इन्ही वोटरो ने उन्हें १५ वर्षों तक सरकार में बनाये रखा था।  लेकिन अपनी कमजोर नीतियों के कारन उन्हें मुह कि कहानी पड़ी. 

रमन सिंह की छत्तीसगढ़ में हॅट्रिक



छत्तीसगढ़ के विधानसभा के चुनावों में रमन सिंह के नेतृत्व में भाजपा का लगातार तीसरी बार सरकार बनाना इस बात का संकेत है कि भाजपा को लोकसभा के चुनावों मैं भरी बहुमत मिलेगा।  इससे यह बात भी स्पष्ट हो जाती है कि जनता ने कांग्रेस को पूरी तरह नकार दिया है।  चारो विधान सभा चुनावों में मिले बहुमत के लिए भाजपा बधाई के पात्र हैं।  

पूर्वांचलियों की अनदेखी दिल्ली में बीजेपी को पड़ी भारी ---- अध्यक्ष पूर्वांचल विकास मोर्चा

दिल्ली विधान सभा चुनावो में अब तक आये नतीजो से साफ़ हो गया है कि किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिलेगा जिससे किसी भी पार्टी कि सर्कार बनते आसार नहीं नज़र आ रहे।  हलाकि बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी के रूप मैं उभर कर आयी है लेकिन उसके पास भी पूर्ण बहुमत नहीं है  जिसका   मुख्य कारण भारतीय जनता पार्टी द्वारा दिल्ली में पूर्वांचलियों कि अनदेखी रही।  पूर्वी दिल्ली में जहा सबसे ज्यादा करीब ४०% पूर्वांचल वासी रहते है वहाँ बीजेपी कुछ खास नहीं कर पायी और गांधीनगर और लक्ष्मी नगर जैसी सीटे उनके हाथ से निकल गयी।  ज्यादातर सीटों पर बीजेपी को हार मिली।  बीजेपी दिल्ली के क्षेत्रीय समीकरण को समझने में नाकाम रही, जिसका फायदा आम आदमी पार्टी ने भरपूर उठाया।  हलाकि फिर भी बीजेपी सबसे ज्यादा सीटे जीतने में कामयाब रही फिर भी सरकार बनाने के लिए उन्हें काफी मेहनत करनी पड़ेगी।  दिल्ली मोदी का जादू चल गया और भारतीय जनता पार्टी सबसे ज्यादा सीटे जीतने मैं कामयाब हुई।  लेकिन फिर भी सरकार बनाने के लिए उन्हें और सीटो कि जरुरत है।  हालात चाहे जो भी हो लेकिन पूर्वांचलियों कि अनदेखी बीजेपी को बहुत भारी पड़ी है , जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पद सकता है।

शिवराज सिंह चौहान और वसुंधरा राजे ने मरी बाजी






राजस्थान और मध्य प्रदेश के विधान सभा चुनावो मैं भारतीय जनता पार्टी की भारी जीत तय है. जैसा  कि चुनावी पोल के शुरआती नतीजे बता रहे थे।  कांग्रेस की भरी हार ने यह बता दिया है कि जनता ने कांग्रेस को पूरी तरह नकार दिया है और इसकी मुख्या वहज भ्रष्टाचार ही रहा।  दिल्ली के चुनावो मैं भी शीला सरकार कि जबर्दस्त हार ने साफ़ कर दिया है।  अब जब कि सभी विधान सभा के चनावों के नतीजे लगभग आ चुके हैं  तो इस बात का भी अंदाजा साफ़ तौर से लगाया जा सकता है कि लोक सभा के चुनावो मैं भी जनता भारतीय जनता पार्टी की भारी जीत तय है।  देश कि जनता कांग्रेस के कुशाशन और भ्रष्टाचार से तंग आ गयी है और जिस तरह से सरकार ने राष्ट्रीय मुद्दो कि अनदेखी कि उससे देश मैं एक कांग्रेस के खिलाफ एक लहर आयी और मोदी के सुशाशन को चुना। पिछले कुछ सालों मैं जिस तरह सरकार महगाई और भ्रस्टाचार को बढ़ावा दिया और देश कि आंतरिक और बाह्य सुरक्षा के साथ अनदेखी कि उसका खामियाजा उन्हें लोक सभा के चुनावो मैं भी भुगतना होगा।
राजस्थान मैं गहलोत सरकार राज्य का विकास करने मैं पूरी तरह विफल रही और वसुंधरा राजे ने जिस तरह से एक सछम विपछ कि भूमिका निभायी और स्थानीय मुद्दे उठाये उससे जनता का उनमें विश्वास जगा और उसका परिणाम उन्हें चुनावो मैं भरी के रूप मैं मिला।
मध्य प्रदेश में भी शिवराज सिंह जी भी हैट्रिक लगाने वाले हैं और उनके नेतृत्व में जिस तरह पार्टी ने राज्य का चौतरफा विकास किया उससे साफ़ है जनता अब कांग्रेस और राहुल गांधी के खोखले वादो मैं आने वाली नहीं है।
इन चुनावो ने ये भी साफ़ कर दिया कि जिस तरह से  राहुल गांधी और और नरेंद्र मोदी कि कि तुलना कि जा रही थी उसका अब कोई मतलब नहीं है।  मोदी कि लहर का ही परिणाम है कि कांग्रेस का सूपड़ा  ही साफ़ हो गया है।  अब आने वाले लोक सभा के चुनावो में भी भारतीय जनता पार्टी यही जीत हासिल करती है तो निश्चित रूप से इसका श्रेय मोदी को ही जायेगा।  

Friday, 6 December 2013

मनमोहन और सोनिया को पूर्वांचलियों को धोखा देना पड़ा भारी ----- "अध्यक्ष "पूर्वांचल विकास मोर्चा




चारो राज्यों के शुरुआती रुझानों मे  भारतीय जनता पार्टी कि पक्की होती जीत को देख कर मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी के पसीने छूट गए है।  आलम ये हैं कि कांग्रेस का कोई बड़ा नेता टेलीविज़न पर आने से कतरा  रहा है।  ज्ञातव्य हो कि यही कांग्रेस के बड़े बड़े नेता कल तक न्यूज़ चैनलों पर अपनी जीत के फटे ढोल पीट रहे थे।  लेकिन मतादन के बाद के बदले हालत के बाद जैसे उनकी जुबान ही सील गयी हो। अब जब कि भारतीय जनता पार्टी कि चारो राज्यों में सरकार  बनना तय है तो महमोहन जी को और सोनिया जी को नैतिक आधार पर हार  स्वीकार कर लेनी चाहिए।

डा. हर्षवर्धन के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनाने का मन बना चुकी




दिल्ली में हुए विधान सभा चुनाव में भाजपा रिकार्ड मतों से जीतकर सरकार बनाएगी। दिल्ली विधान सभा चुनाव में कांग्रेस की लोक विरोधी लहर देखने को मिली है। चुनाव के सर्वे भी भाजपा के पक्ष में हुए हैं। दिल्ली की जनता कांग्रेस के कुशासन से दुखी होकर डा. हर्षवर्धन के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनाने का मन बना चुकी है।
इधर चुनाव खत्म हुए, उधर विभिन्न ओपीनियन पोल्स ने भाजपा को दिल्ली में पूर्ण बहुमत प्राप्त करते हुए दिखाया। ओपीनियन पोल्स से उत्साहित होकर भाजपा कार्यकर्ताओं ने सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर एक-दूसरे को बधाई देने शुरू भी कर दी।
उत्साहित हो कर भाजपा के मुख्यमंत्री पद के दावेदार हर्षवर्धन ने भी फेसबुक और ट्विटर से भाजपा कार्यकर्ताओं का धन्यवाद किया। चुनाव के नतीजे आने में अभी दो दिन का समय है, लेकिन ओपीनियन पोल पर भरोसा कर भाजपा ने अपनी जीत पक्की समझ ली है। कार्यकर्ताओं ने जश्न मनाना शुरू कर दिया है। ट्विटर पर भाजपा की जीत टॉप ट्रैंडिग टापिक्स में रही। जिस पर दिन भर लोगों ने ट्विट्स कर एक-दूसरे को जीत की बधाई दी। फेसबुक पर हर्षवर्धन के आफिशयल पेज पर उन्होंने आम जनता और भाजपा कार्याकर्ताओं को धन्यवाद दिया। वोटिंग के बाद से ही भाजपा कार्यकर्ताओं में जबर्दस्त उत्साह देखने को मिल रहा है, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस कार्यालय और कार्यकर्ताओं में मायूसी छाई है।
पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के बाद तमाम चैनलों में दिखाए गए एक्जिट पोल के मुताबिक,  दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा को बढ़त मिलने का अनुमान जताया गया है। साथ ही दिल्ली में पहली बार चुनाव में उतरी 'आप' पार्टी का भी प्रदर्शन काफी अच्छा बताया जा रहा है। इन राज्यों में भाजपा और कांग्रेस के बीच 4-0 की बाजी भाजपा के पक्ष में बताई जा रही है। दिल्ली में बुधवार को हुए विधानसभा चुनाव में मतदाताओं ने रिकॉर्ड तोड़ 67 फीसदी मतदान किया। दिल्ली में इससे पहले कभी इतनी बड़ी संख्या में वोट नहीं डाले गए। इससे पहले सबसे ज्यादा वोटिंग का रिकॉर्ड 1993 का था और उस वक्त दिल्ली में 61 फीसदी वोट पड़े थे। दिल्ली में मतदान के दौरान वोटरों में ऐसा उत्साह देखने को मिला कि शाम 5 बजे के बाद भी करीब पौन दो लाख लोगों ने वोट डाला।

राज्यवार स्थिति इस प्रकार है -
राजस्थान : एक्जिट पोल बता रहा है कि राजस्थान में वोटरों ने कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करने के लिए अपने मत का इस्तेमाल किया है। किसी दल को सत्ता में आने के लिए 100 से ज्यादा सीटों की दरकार होगी और ऐसे में भाजपा को 138 और कांग्रेस के हाथ में मात्र 44 सीटें जाने की संभावना जताई जा रही है।
मध्य प्रदेश : यहां पर माना जा रहा है कि भाजपा के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तीसरी बार सत्ता में आ रहे हैं। यहां पर सरकार बनाने के लिए 115 सीटों पर जीत जरूरी है और एक्जिट पोल के  मुताबिक भाजपा को 144 सीटें और कांग्रेस के हाथ 77 सीटें लग रही हैं।
दिल्ली : दिल्ली की गद्दी पर काबिज होने के लिए किसी दल को 35 सीटें चाहिए और यहां पर भाजपा को 34 सीटें मिलती दिखाई जा रही हैं। वहीं, कांग्रेस को 20 और आम आदमी पार्टी को 13 सीटें हासिल होने की संभावना जताई गई है।
छत्तीसगढ़ : इस राज्य में भी रमन सिंह के नेतृत्व में भाजपा को फिर सत्ता मिल सकती है। सत्ता में काबिज होने के लिए 45 सीटों की जरूरत होगी और एक्जिट पोल के मुताबिक, भाजपा को 50 और कांग्रेस को 37 सीटें मिल सकती हैं।