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Thursday, 24 December 2015

सारा देश ही मेरा घर है, मुझे सारे देश को बनाना है...वाजपेयी जी के जन्मदिन पर उन्हें बधाई

बेनकाब चेहरे हैं, दाग बड़े गहरे हैं
टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूं... गीत नहीं गाता हूं

लगी कुछ ऐसी नज़र बिखरा शीशे सा शहर
अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूं
गीत नहीं गाता हूं



 

पीठ मे छुरी सा चांद, राहू गया रेखा फांद
मुक्ति के क्षणों में बार बार बंध जाता हूं
गीत नहीं गाता हूं


पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के जन्मदिन पर उन्हें बधाई

साल 2014 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को जन्मदिन का बेशकीमती तोहफा मिला. यह तोहफा था देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित किए जाने का ऐलान.

Wednesday, 11 November 2015

दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें

दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें । बुराई की हार, खुशियों का त्यौहार प्यार की बौछार, मिठाईयो की बहार । 
दिवाली के इस शुभ अवसर पर, आप सभी को मिले खुशियाँ अपार ॥

Wednesday, 21 October 2015

आप और आप के परिवार को विजयादशमी की शुभकामनांए

किसी की जीत किसी की हार बन गई।
वो विजय आज त्यौहार बन गई,
मुझे भी लड़ना है, 
और जीतना है, 
मेरे अंदर के रावण से 
बाहर के अनेकों रावणों पर विजय पानी है,
मुझे भी विजयदशमी मनानी है।
 बुराई पर अच्छाई की जीत के पावन पर्व पर सभी देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं। आप और आप के परिवार को विजयादशमी की शुभकामनांए.

Thursday, 17 September 2015

हमारे प्रधानमंत्री को जन्मदिन की गर्मजोशी भरी बधाई


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को पूर्वांचल विकास मोर्चा की तरफ से जन्मदिन की बधाई. हम उनके अच्छे स्वास्थ्य और उनकी लंबी आयु की कामना करता हूं. देश की सेवा करने के लिए ईश्वर आपको लंबी आयु दे.

समावेशी विकास यात्रा पर निकल पड़े हैं श्री नरेंद्र मोदी




भारत के लोकप्रिय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी को जन्मदिन पर हार्दिक बधाई। यह संयोग है कि आज सृष्टि के शिल्पी भगवान विश्वकर्मा की भी पूजा है। हम गौरवान्वित हैं कि हम सृष्टि के शिल्पी के साथ नए भारत के शिल्पकार माननीय नरेंद्र मोदी जी का भी जन्मदिन मना रहे हैं।
नरेंद्र मोदी को अपने बाल्यकाल से कई तरह की विषमताओं एवं विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ा है, किन्तु अपने उदात्त चरित्रबल एवं साहस से उन्होंने तमाम अवरोधों को अवसर में बदल दिया, विशेषकर जब उन्होने उच्च शिक्षा हेतु कॉलेज तथा विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। उन दिनों वे कठोर संद्यर्ष एवं दारुण मन:ताप से घिरे थे, परन्तु् अपने जीवन- समर को उन्होंने सदैव एक योद्धा- सिपाही की तरह लड़ा है। आगे क़दम बढ़ाने के बाद वे कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखते, साथ-साथ पराजय उन्हें स्वीकार्य नहीं है। अपने व्यक्तित्व की इन्हीं विशेषताओं के चलते उन्होंने राजनीति शास्त्र विषय के साथ अपनी एम.ए की पढ़ाई पूरी की।
नरेन्द्र मोदी ने 26 मई 2014 को भारत के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और वे भारत के प्रथम प्रधानमंत्री हैं जिनका जन्म आजादी के बाद हुआ है। ऊर्जावान, समर्पित एवं दृढ़ निश्चय वाले नरेन्द्र मोदी एक अरब से अधिक भारतीयों की आकांक्षाओं और आशाओं के द्योतक हैं।
मई 2014 में अपना पद संभालने के बाद से ही प्रधानमंत्री मोदी चहुंमुखी और समावेशी विकास की यात्रा पर निकल पड़े हैं जहां हर भारतीय अपनी आशाओं और आकांक्षाओं को पूरा कर सके। वे ‘अंत्योदय’, अर्थात, अंतिम व्यक्ति तक सेवा पहुंचाने के सिद्धांत से अत्यधिक प्रेरित हैं। नवीन विचारों और पहल के माध्यम से सरकार ने यह सुनिश्चित किया है कि प्रगति की रफ्तार तेज हो और हर नागरिक को विकास का लाभ मिले। अब शासन मुक्त है, इसकी प्रक्रिया आसान हुई है एवं इसमें पारदर्शिता आई है।
पहली बार प्रधानमंत्री जन-धन योजना के माध्यम से अभूतपूर्व बदलाव आया है जिसके अंतर्गत यह सुनिश्चित किया गया है कि देश के सभी नागरिक वित्तीय तंत्र में शामिल हों। कारोबार को आसान बनाने के अपने लक्ष्य को केंद्र में रखकर ‘मेक इन इंडिया’ के उनके आह्वान से निवेशकों और उद्यमियों में अभूतपूर्व उत्साह और उद्यमिता के भाव का संचार हुआ है। ‘श्रमेव जयते’ पहल के अंतर्गत श्रम सुधारों और श्रम की गरिमा से लघु और मध्यम उद्योगों में लगे अनेक श्रमिकों का सशक्तिकरण हुआ है और देश के कुशल युवाओं को भी प्रेरणा मिली है।
पहली बार भारत सरकार ने भारत के लोगों के लिए तीन सामाजिक सुरक्षा योजनाओं की शुरुआत की और साथ-ही-साथ बुजुर्गों को पेंशन एवं गरीबों को बीमा सुरक्षा देने पर भी ध्यान केंद्रित किया है। जुलाई 2015 में प्रधानमंत्री ने डिजिटल इंडिया बनाने के उद्देश्य से डिजिटल इंडिया मिशन की शुरुआत की ताकि प्रौद्योगिकी की मदद से लोगों के जीवन में बेहतर बदलाव लाए जा सकें।
2 अक्टूबर 2014 को महात्मा गांधी की जयंती पर प्रधानमंत्री ने ‘स्वच्छ भारत मिशन - देशभर में स्वच्छता के लिए एक जन-आंदोलन’ की शुरुआत की। इस अभियान की व्यापकता एवं इसका प्रभाव ऐतिहासिक है।
नरेन्द्र मोदी की विदेश नीति से संबंधित विभिन्न पहल में विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत की वैश्विक मंच पर वास्तविक क्षमता एवं भूमिका की छाप दिखती है। उन्होंने सभी सार्क देशों के राष्ट्राध्यक्षों की उपस्थिति में अपने कार्यकाल की शुरुआत की। संयुक्त राष्ट्र महासभा में दिए गए उनके भाषण की दुनिया भर में प्रशंसा हुई। नरेन्द्र मोदी भारत के ऐसे प्रथम प्रधानमंत्री बने जिन्होंने 17 वर्ष के लंबे अंतराल के बाद नेपाल, 28 वर्ष बाद ऑस्ट्रेलिया, 31 वर्ष बाद फिजी और 34 वर्ष बाद सेशेल्स की द्विपक्षीय यात्रा की। पदभार ग्रहण करने के बाद से नरेन्द्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र, ब्रिक्स, सार्क और जी-20 शिखर सम्मेलनों में भाग लिया, जहां अनेक प्रकार के वैश्विक, आर्थिक और राजनैतिक मुद्दों पर भारत के कार्यक्रमों एवं विचारों की जबर्दस्त सराहना की गई। जापान की उनकी यात्रा से भारत-जापान संबंधों में एक नए युग की शुरुआत हुई। वे मंगोलिया की यात्रा करने वाले प्रथम भारतीय प्रधानमंत्री हैं और चीन व दक्षिण कोरिया की उनकी यात्राएं भारत में निवेश लाने की दृष्टि से कामयाब रही हैं। फ्रांस और जर्मनी की अपनी यात्रा के दौरान वे यूरोप के साथ निरंतर जुड़े रहे।
श्री नरेन्द्र मोदी ने अरब देशों के साथ मजबूत संबंधों को काफी महत्व दिया है। अगस्त 2015 में संयुक्त अरब अमीरात की उनकी यात्रा 34 साल में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली यात्रा थी जिसके दौरान उन्होंने खाड़ी देशों के साथ भारत की आर्थिक भागीदारी को बढ़ाने के लिए व्यापक स्तर पर पहल की। जुलाई 2015 में श्री मोदी ने पांच मध्य एशियाई देशों का दौरा किया। यह यात्रा अपने-आप में खास एवं विशेष रही। भारत और इन देशों के बीच ऊर्जा, व्यापार, संस्कृति और अर्थव्यवस्था जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण समझौते हुए।
ऑस्ट्रेलिया के राष्ट्रपति टोनी अबॉट, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरिसेना एवं रूस के राष्ट्रपति ब्लादीमीर पुतिन सहित विश्व के कई अन्य नेताओं ने भारत का दौरा किया है एवं इन दौरों से भारत व इन देशों के बीच सहयोग सुधारने में सफलता मिली है। वर्ष 2015 के गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रपति बराक ओबामा प्रमुख अतिथि के रूप में भारत दौरे पर आए जो भारत-अमेरिका संबंधों के इतिहास में पहली बार हुआ है। अगस्त 2015 में भारत ने एफआईपीआईसी शिखर सम्मेलन की मेजबानी की जिसमें प्रशांत द्वीप समूह के शीर्ष नेताओं ने भाग लिया। इस दौरान प्रशांत द्वीप समूह के साथ भारत के संबंधों से जुड़े महत्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा की गई।
किसी भी एक दिन को “अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस” के रूप में मनाए जाने के नरेन्द्र मोदी के आह्वान को संयुक्त राष्ट्र में जबर्दस्त समर्थन प्राप्त हुआ। पहली बार विश्व भर के 177 देशों ने एकजुट होकर 21 जून को “अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस” के रूप में मनाए जाने का संकल्प संयुक्त राष्ट्र में पारित किया।
उनका जन्म 17 सितम्बर 1950 को गुजरात के छोटे से शहर में हुआ जहां वे गरीब किन्तु स्नेहपूर्ण परिवार में बड़े हुए। जीवन की आरंभिक कठिनाइयों ने न केवल उन्हें कठिन परिश्रम का मूल्य सिखाया बल्कि उन अपरिहार्य दुखों से भी परिचित कराया जिससे आम जनों को अपने दैनिक जीवन में गुजरना पड़ता है। इससे उन्हें अल्पायु में ही स्वयं को आमजन एवं राष्ट्र की सेवा में समर्पित करने की प्रेरणा मिली। प्रारंभिक वर्षों में उन्होंने राष्ट्र निर्माण के लिए समर्पित राष्ट्रवादी संगठन, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के साथ कार्य किया एवं इसके उपरांत वे राज्य स्तर व राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय जनता पार्टी संगठन के साथ कार्य करते हुए राजनीति से जुड़ गए।
वर्ष 2001 में वे अपने गृह राज्य गुजरात के मुख्यमंत्री बने। उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में चार गौरवपूर्ण कार्यकाल पूरे किए। उन्होंने विनाशकारी भूकंप के दुष्प्रभावों से जूझ रहे गुजरात को विकास रुपी इंजन के रूप में परिवर्तित कर दिया जो आज भारत के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है।
नरेन्द्र मोदी एक जन-नेता हैं जो लोगों की समस्याओं को दूर करने तथा उनके जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। उन्हें लोगों के बीच जाना, उनकी खुशियों में शामिल होना तथा उनके दुखों को दूर करना बहुत अच्छा लगता है। जमीनी स्तर पर लोगों के साथ गहरा निजी संपर्क होने के साथ-साथ वे ऑनलाइन भी उपलब्ध हैं। तकनीक के प्रति प्रेम एवं उसमें समझ रखने वालों नेताओं में वे भारत के सबसे बड़े राजनेता हैं। वेबसाइट के माध्यम से लोगों तक पहुंचने और उनके जीवन में बदलाव लाने के लिए वे हमेशा कार्यरत हैं। वे सोशल मीडिया, जैसे - फेसबुक, ट्विटर, गूगल प्लस, इन्स्टाग्राम, साउंड क्लाउड, लिंक्डइन, वीबो तथा अन्य प्लेटफार्म पर भी काफी सक्रिय हैं।
राजनीति के अलावा नरेन्द्र मोदी को लेखन का भी शौक है। उन्होंने कई पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें कविताएं भी शामिल हैं। वे अपने दिन की शुरुआत योग से करते हैं। योग उनके शरीर और मन के बीच सामंजस्य स्थापित करता है एवं बेहद भागदौड़ की दिनचर्या में उनमें शांति का संचार करता है।

Saturday, 5 September 2015

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं

भगवान श्रीकृष्ण को प्रेम का अवतार माना जाता है। उन्होंने इस दुनिया को प्रेम का सच्चा पाठ पढ़ाया।

जब-जब भी असुरों के अत्याचार बढ़े हैं और धर्म का पतन हुआ है तब-तब भगवान ने पृथ्वी पर अवतार लेकर सत्य और धर्म की स्थापना की है।

इसी कड़ी में भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि को अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में भगवान कृष्ण ने अवतार लिया।

चूँकि भगवान स्वयं इस दिन पृथ्वी पर अवतरित हुए थे अतः इस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी अथवा जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। इस दिन स्त्री-पुरुष रात्रि बारह बजे तक व्रत रखते हैं। इस दिन मंदिरों में झाँकियाँ सजाई जाती हैं और भगवान कृष्ण को झूला झुलाया जाता है।

प्रेम के प्रतीक भगवान् के जन्मदिन को सच्ची लगन एवं प्रेम भावना के साथ अपने पूरे परिवार के साथ मनाएं।
जय श्रीकृष्ण ........ जय श्रीकृष्ण.........जय श्रीकृष्ण........जय श्रीकृष्ण  

अजीत कुमार पाण्डेय,  राष्टीय अध्यक्ष- पूर्वांचल विकास मोर्चा

Friday, 14 August 2015

सभी देश वासियों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनायें

आजकल हम लोगों के लिए 15 अगस्त एक छुट्टी मात्र ही तो रह गया है। इस दिन हम स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं और बाकी पूरे साले उस आज़ादी का दुरूपयोग करते हैं।

कहीं सुना था कि 68 साल में क्या बदला। कुछ ख़ास नहीं पहले अँगरेज़ यहां से पैसा लूट कर विदेश ले जाते थे और आज हम खुद अपना धन लूट कर विदेशों में जमा करते हैं। हमारे देश का कड़वा सत्य यही है कि यहां देशप्रेम सिर्फ किताबों और फिल्मों में ही दिखता है।

चाहे रिश्वत देना हो या लेना, सड़क पर चलना हो या थूकना, दो सेकंड में किसी की भी माता जी और बहन जी तक पहुँच जाना, दंगे कराना और उसके मज़े लेना, बलात्कारियों में धर्म ढून्ढ लेना ये है हमारा और आपका आज़ाद भारत।

ऑस्ट्रेलिया में 90 टन की ट्रेन को 50-60 लोग मिलकर झुका देते हैं ताकि एक आदमी की जिंदगी बच जाए और यहां हज़रत निजामुद्दीन पर एक आदमी 40 टन की ट्रेन के नीचे डेढ़ घंटे फंसे रहने के बाद मर जाता है।

अरे हमारा बस चले तो सड़क चलते आदमी के ऊपर ही गाडी चढ़ा दें। क्या ये वही सपनों का भारत है जो आज से 67 साल पहले देखा गया था? कब तक हम आर्यभट्ट के '0' को रोते रहेंगे।

कब तक अपनी संस्कृति की दुहाई देते रहेंगे। आज का भारत क्या सच में आज़ाद भारत है? इतने प्रयासों, मुश्किलों और बलिदानों के बाद मिली इस आज़ादी की क़द्र होनी चाहिए मुझे। मुझे सच में गर्व होना चाहिए हिन्दुस्तानी होने पर और हिन्दुस्तानियोंके बीच रहने पर।

मेरी और आपकी, हम सबकी कुछ छोटी-छोटी जिम्मेदारियाँ हैं इस देश के प्रति। एक बार जरा सोचियेगा जरूर क्योंकि सिर्फ नेता नहीं चलाते देश हम सब भी उसके सहभागी हैं!

जय हिन्द! जय भारत!
अजीत कुमार पाण्डेय
राष्टीय अध्यक्ष,  पूर्वांचल विकास मोर्चा
सभी देश वासियों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई
 एवं शुभकामनायें
आजकल हम लोगों के लिए 15 अगस्त एक छुट्टी मात्र ही तो रह गया है। इस दिन हम स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं और बाकी पूरे साले उस आज़ादी का दुरूपयोग करते हैं। कहीं सुना था कि 68 साल में क्या बदला। कुछ ख़ास नहीं पहले अँगरेज़ यहां से पैसा लूट कर विदेश ले जाते थे और आज हम खुद अपना धन लूट कर विदेशों में जमा करते हैं। हमारे देश का कड़वा सत्य यही है कि यहां देशप्रेम सिर्फ किताबों और फिल्मों में ही दिखता है। चाहे रिश्वत देना हो या लेना, सड़क पर चलना हो या थूकना, दो सेकंड में किसी की भी माता जी और बहन जी तक पहुँच जाना, दंगे कराना और उसके मज़े लेना, बलात्कारियों में धर्म ढून्ढ लेना ये है हमारा और आपका आज़ाद भारत। ऑस्ट्रेलिया में 90 टन की ट्रेन को 50-60 लोग मिलकर झुका देते हैं ताकि एक आदमी की जिंदगी बच जाए और यहां हज़रत निजामुद्दीन पर एक आदमी 40 टन की ट्रेन के नीचे डेढ़ घंटे फंसे रहने के बाद मर जाता है। अरे हमारा बस चले तो सड़क चलते आदमी के ऊपर ही गाडी चढ़ा दें। क्या ये वही सपनों का भारत है जो आज से 67 साल पहले देखा गया था? कब तक हम आर्यभट्ट के '0' को रोते रहेंगे। कब तक अपनी संस्कृति की दुहाई देते रहेंगे। आज का भारत क्या सच में आज़ाद भारत है? इतने प्रयासों, मुश्किलों और बलिदानों के बाद मिली इस आज़ादी की क़द्र होनी चाहिए मुझे। मुझे सच में गर्व होना चाहिए हिन्दुस्तानी होने पर और हिन्दुस्तानियोंके बीच रहने पर। मेरी और आपकी, हम सबकी कुछ छोटी-छोटी जिम्मेदारियाँ हैं इस देश के प्रति। एक बार जरा सोचियेगा जरूर क्योंकि सिर्फ नेता नहीं चलाते देश हम सब भी उसके सहभागी हैं!
जय हिन्द! जय भारत!
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सभी देश वासियों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई
 एवं शुभकामनायें
आजकल हम लोगों के लिए 15 अगस्त एक छुट्टी मात्र ही तो रह गया है। इस दिन हम स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं और बाकी पूरे साले उस आज़ादी का दुरूपयोग करते हैं। कहीं सुना था कि 68 साल में क्या बदला। कुछ ख़ास नहीं पहले अँगरेज़ यहां से पैसा लूट कर विदेश ले जाते थे और आज हम खुद अपना धन लूट कर विदेशों में जमा करते हैं। हमारे देश का कड़वा सत्य यही है कि यहां देशप्रेम सिर्फ किताबों और फिल्मों में ही दिखता है। चाहे रिश्वत देना हो या लेना, सड़क पर चलना हो या थूकना, दो सेकंड में किसी की भी माता जी और बहन जी तक पहुँच जाना, दंगे कराना और उसके मज़े लेना, बलात्कारियों में धर्म ढून्ढ लेना ये है हमारा और आपका आज़ाद भारत। ऑस्ट्रेलिया में 90 टन की ट्रेन को 50-60 लोग मिलकर झुका देते हैं ताकि एक आदमी की जिंदगी बच जाए और यहां हज़रत निजामुद्दीन पर एक आदमी 40 टन की ट्रेन के नीचे डेढ़ घंटे फंसे रहने के बाद मर जाता है। अरे हमारा बस चले तो सड़क चलते आदमी के ऊपर ही गाडी चढ़ा दें। क्या ये वही सपनों का भारत है जो आज से 67 साल पहले देखा गया था? कब तक हम आर्यभट्ट के '0' को रोते रहेंगे। कब तक अपनी संस्कृति की दुहाई देते रहेंगे। आज का भारत क्या सच में आज़ाद भारत है? इतने प्रयासों, मुश्किलों और बलिदानों के बाद मिली इस आज़ादी की क़द्र होनी चाहिए मुझे। मुझे सच में गर्व होना चाहिए हिन्दुस्तानी होने पर और हिन्दुस्तानियोंके बीच रहने पर। मेरी और आपकी, हम सबकी कुछ छोटी-छोटी जिम्मेदारियाँ हैं इस देश के प्रति। एक बार जरा सोचियेगा जरूर क्योंकि सिर्फ नेता नहीं चलाते देश हम सब भी उसके सहभागी हैं!
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सभी देश वासियों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई
 एवं शुभकामनायें
आजकल हम लोगों के लिए 15 अगस्त एक छुट्टी मात्र ही तो रह गया है। इस दिन हम स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं और बाकी पूरे साले उस आज़ादी का दुरूपयोग करते हैं। कहीं सुना था कि 68 साल में क्या बदला। कुछ ख़ास नहीं पहले अँगरेज़ यहां से पैसा लूट कर विदेश ले जाते थे और आज हम खुद अपना धन लूट कर विदेशों में जमा करते हैं। हमारे देश का कड़वा सत्य यही है कि यहां देशप्रेम सिर्फ किताबों और फिल्मों में ही दिखता है। चाहे रिश्वत देना हो या लेना, सड़क पर चलना हो या थूकना, दो सेकंड में किसी की भी माता जी और बहन जी तक पहुँच जाना, दंगे कराना और उसके मज़े लेना, बलात्कारियों में धर्म ढून्ढ लेना ये है हमारा और आपका आज़ाद भारत। ऑस्ट्रेलिया में 90 टन की ट्रेन को 50-60 लोग मिलकर झुका देते हैं ताकि एक आदमी की जिंदगी बच जाए और यहां हज़रत निजामुद्दीन पर एक आदमी 40 टन की ट्रेन के नीचे डेढ़ घंटे फंसे रहने के बाद मर जाता है। अरे हमारा बस चले तो सड़क चलते आदमी के ऊपर ही गाडी चढ़ा दें। क्या ये वही सपनों का भारत है जो आज से 67 साल पहले देखा गया था? कब तक हम आर्यभट्ट के '0' को रोते रहेंगे। कब तक अपनी संस्कृति की दुहाई देते रहेंगे। आज का भारत क्या सच में आज़ाद भारत है? इतने प्रयासों, मुश्किलों और बलिदानों के बाद मिली इस आज़ादी की क़द्र होनी चाहिए मुझे। मुझे सच में गर्व होना चाहिए हिन्दुस्तानी होने पर और हिन्दुस्तानियोंके बीच रहने पर। मेरी और आपकी, हम सबकी कुछ छोटी-छोटी जिम्मेदारियाँ हैं इस देश के प्रति। एक बार जरा सोचियेगा जरूर क्योंकि सिर्फ नेता नहीं चलाते देश हम सब भी उसके सहभागी हैं!
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 एवं शुभकामनायें
आजकल हम लोगों के लिए 15 अगस्त एक छुट्टी मात्र ही तो रह गया है। इस दिन हम स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं और बाकी पूरे साले उस आज़ादी का दुरूपयोग करते हैं। कहीं सुना था कि 68 साल में क्या बदला। कुछ ख़ास नहीं पहले अँगरेज़ यहां से पैसा लूट कर विदेश ले जाते थे और आज हम खुद अपना धन लूट कर विदेशों में जमा करते हैं। हमारे देश का कड़वा सत्य यही है कि यहां देशप्रेम सिर्फ किताबों और फिल्मों में ही दिखता है। चाहे रिश्वत देना हो या लेना, सड़क पर चलना हो या थूकना, दो सेकंड में किसी की भी माता जी और बहन जी तक पहुँच जाना, दंगे कराना और उसके मज़े लेना, बलात्कारियों में धर्म ढून्ढ लेना ये है हमारा और आपका आज़ाद भारत। ऑस्ट्रेलिया में 90 टन की ट्रेन को 50-60 लोग मिलकर झुका देते हैं ताकि एक आदमी की जिंदगी बच जाए और यहां हज़रत निजामुद्दीन पर एक आदमी 40 टन की ट्रेन के नीचे डेढ़ घंटे फंसे रहने के बाद मर जाता है। अरे हमारा बस चले तो सड़क चलते आदमी के ऊपर ही गाडी चढ़ा दें। क्या ये वही सपनों का भारत है जो आज से 67 साल पहले देखा गया था? कब तक हम आर्यभट्ट के '0' को रोते रहेंगे। कब तक अपनी संस्कृति की दुहाई देते रहेंगे। आज का भारत क्या सच में आज़ाद भारत है? इतने प्रयासों, मुश्किलों और बलिदानों के बाद मिली इस आज़ादी की क़द्र होनी चाहिए मुझे। मुझे सच में गर्व होना चाहिए हिन्दुस्तानी होने पर और हिन्दुस्तानियोंके बीच रहने पर। मेरी और आपकी, हम सबकी कुछ छोटी-छोटी जिम्मेदारियाँ हैं इस देश के प्रति। एक बार जरा सोचियेगा जरूर क्योंकि सिर्फ नेता नहीं चलाते देश हम सब भी उसके सहभागी हैं!
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 एवं शुभकामनायें
आजकल हम लोगों के लिए 15 अगस्त एक छुट्टी मात्र ही तो रह गया है। इस दिन हम स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं और बाकी पूरे साले उस आज़ादी का दुरूपयोग करते हैं। कहीं सुना था कि 68 साल में क्या बदला। कुछ ख़ास नहीं पहले अँगरेज़ यहां से पैसा लूट कर विदेश ले जाते थे और आज हम खुद अपना धन लूट कर विदेशों में जमा करते हैं। हमारे देश का कड़वा सत्य यही है कि यहां देशप्रेम सिर्फ किताबों और फिल्मों में ही दिखता है। चाहे रिश्वत देना हो या लेना, सड़क पर चलना हो या थूकना, दो सेकंड में किसी की भी माता जी और बहन जी तक पहुँच जाना, दंगे कराना और उसके मज़े लेना, बलात्कारियों में धर्म ढून्ढ लेना ये है हमारा और आपका आज़ाद भारत। ऑस्ट्रेलिया में 90 टन की ट्रेन को 50-60 लोग मिलकर झुका देते हैं ताकि एक आदमी की जिंदगी बच जाए और यहां हज़रत निजामुद्दीन पर एक आदमी 40 टन की ट्रेन के नीचे डेढ़ घंटे फंसे रहने के बाद मर जाता है। अरे हमारा बस चले तो सड़क चलते आदमी के ऊपर ही गाडी चढ़ा दें। क्या ये वही सपनों का भारत है जो आज से 67 साल पहले देखा गया था? कब तक हम आर्यभट्ट के '0' को रोते रहेंगे। कब तक अपनी संस्कृति की दुहाई देते रहेंगे। आज का भारत क्या सच में आज़ाद भारत है? इतने प्रयासों, मुश्किलों और बलिदानों के बाद मिली इस आज़ादी की क़द्र होनी चाहिए मुझे। मुझे सच में गर्व होना चाहिए हिन्दुस्तानी होने पर और हिन्दुस्तानियोंके बीच रहने पर। मेरी और आपकी, हम सबकी कुछ छोटी-छोटी जिम्मेदारियाँ हैं इस देश के प्रति। एक बार जरा सोचियेगा जरूर क्योंकि सिर्फ नेता नहीं चलाते देश हम सब भी उसके सहभागी हैं!
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सभी देश वासियों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई
 एवं शुभकामनायें
आजकल हम लोगों के लिए 15 अगस्त एक छुट्टी मात्र ही तो रह गया है। इस दिन हम स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं और बाकी पूरे साले उस आज़ादी का दुरूपयोग करते हैं। कहीं सुना था कि 68 साल में क्या बदला। कुछ ख़ास नहीं पहले अँगरेज़ यहां से पैसा लूट कर विदेश ले जाते थे और आज हम खुद अपना धन लूट कर विदेशों में जमा करते हैं। हमारे देश का कड़वा सत्य यही है कि यहां देशप्रेम सिर्फ किताबों और फिल्मों में ही दिखता है। चाहे रिश्वत देना हो या लेना, सड़क पर चलना हो या थूकना, दो सेकंड में किसी की भी माता जी और बहन जी तक पहुँच जाना, दंगे कराना और उसके मज़े लेना, बलात्कारियों में धर्म ढून्ढ लेना ये है हमारा और आपका आज़ाद भारत। ऑस्ट्रेलिया में 90 टन की ट्रेन को 50-60 लोग मिलकर झुका देते हैं ताकि एक आदमी की जिंदगी बच जाए और यहां हज़रत निजामुद्दीन पर एक आदमी 40 टन की ट्रेन के नीचे डेढ़ घंटे फंसे रहने के बाद मर जाता है। अरे हमारा बस चले तो सड़क चलते आदमी के ऊपर ही गाडी चढ़ा दें। क्या ये वही सपनों का भारत है जो आज से 67 साल पहले देखा गया था? कब तक हम आर्यभट्ट के '0' को रोते रहेंगे। कब तक अपनी संस्कृति की दुहाई देते रहेंगे। आज का भारत क्या सच में आज़ाद भारत है? इतने प्रयासों, मुश्किलों और बलिदानों के बाद मिली इस आज़ादी की क़द्र होनी चाहिए मुझे। मुझे सच में गर्व होना चाहिए हिन्दुस्तानी होने पर और हिन्दुस्तानियोंके बीच रहने पर। मेरी और आपकी, हम सबकी कुछ छोटी-छोटी जिम्मेदारियाँ हैं इस देश के प्रति। एक बार जरा सोचियेगा जरूर क्योंकि सिर्फ नेता नहीं चलाते देश हम सब भी उसके सहभागी हैं!
जय हिन्द! जय भारत!
- See more at: http://vmwteam.blogspot.in/2015/08/blog-post_86.html#sthash.6xpq1c4B.dpuf
सभी देश वासियों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई
 एवं शुभकामनायें
आजकल हम लोगों के लिए 15 अगस्त एक छुट्टी मात्र ही तो रह गया है। इस दिन हम स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं और बाकी पूरे साले उस आज़ादी का दुरूपयोग करते हैं। कहीं सुना था कि 68 साल में क्या बदला। कुछ ख़ास नहीं पहले अँगरेज़ यहां से पैसा लूट कर विदेश ले जाते थे और आज हम खुद अपना धन लूट कर विदेशों में जमा करते हैं। हमारे देश का कड़वा सत्य यही है कि यहां देशप्रेम सिर्फ किताबों और फिल्मों में ही दिखता है। चाहे रिश्वत देना हो या लेना, सड़क पर चलना हो या थूकना, दो सेकंड में किसी की भी माता जी और बहन जी तक पहुँच जाना, दंगे कराना और उसके मज़े लेना, बलात्कारियों में धर्म ढून्ढ लेना ये है हमारा और आपका आज़ाद भारत। ऑस्ट्रेलिया में 90 टन की ट्रेन को 50-60 लोग मिलकर झुका देते हैं ताकि एक आदमी की जिंदगी बच जाए और यहां हज़रत निजामुद्दीन पर एक आदमी 40 टन की ट्रेन के नीचे डेढ़ घंटे फंसे रहने के बाद मर जाता है। अरे हमारा बस चले तो सड़क चलते आदमी के ऊपर ही गाडी चढ़ा दें। क्या ये वही सपनों का भारत है जो आज से 67 साल पहले देखा गया था? कब तक हम आर्यभट्ट के '0' को रोते रहेंगे। कब तक अपनी संस्कृति की दुहाई देते रहेंगे। आज का भारत क्या सच में आज़ाद भारत है? इतने प्रयासों, मुश्किलों और बलिदानों के बाद मिली इस आज़ादी की क़द्र होनी चाहिए मुझे। मुझे सच में गर्व होना चाहिए हिन्दुस्तानी होने पर और हिन्दुस्तानियोंके बीच रहने पर। मेरी और आपकी, हम सबकी कुछ छोटी-छोटी जिम्मेदारियाँ हैं इस देश के प्रति। एक बार जरा सोचियेगा जरूर क्योंकि सिर्फ नेता नहीं चलाते देश हम सब भी उसके सहभागी हैं!
जय हिन्द! जय भारत!
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Friday, 7 August 2015

क्या सुषमा स्वराज के बयान से निकलेगी कोई राह?

सुषमा स्वराज ने ‘ललितगेट’ कांड में अपनी सफाई पेश करते हुए लोकसभा में भावपूर्ण वक्तव्य दिया। वे तर्क दोहराए, जो इस मामले में वे अपने बचाव में पेश करती रही हैं। सारांश यह कि उनकी मंशा ललित मोदी की नहीं, बल्कि उनकी कैंसर पीड़ित पत्नी की मदद करने की थी। फिर भी उन्होंने ब्रिटिश अधिकारियों से मोदी को यात्रा दस्तावेज देने की पैरवी नहीं की, बल्कि महज यह कहा कि अगर उन्होंने ऐसा किया तो उससे भारत से ब्रिटेन के रिश्तों पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। 


 दुख जताया कि उनके विपक्षी ‘दोस्त’ उनका पक्ष सुनने तक को तैयार नहीं हैं और उनसे पूछा कि उन्होंने क्या गलत किया है। इसके बाद रामचरितमानस का हवाला देते हुए दार्शनिक अंदाज में कहा कि हानि-लाभ, जीवन-मरण, यश-अपयश आदि मनुष्य नहीं बल्कि विधि यानी ईश्वर के हाथ में हैं। मगर उनके लिए अफसोस यह रहा कि इन बातों को सुनने के लिए अधिकतर विपक्षी सदस्य सदन में नहीं थे। 

कांग्रेस और कई अन्य विपक्षी दल पहले ही अपना फैसला सुना चुके हैं कि विदेश मंत्री का आचरण नैतिक रूप से गलत था, क्योंकि उनके पति एवं बेटी के पेशेवर हित ललित मोदी से जुड़े थे। कांग्रेस तो यह दावा करने तक गई है कि स्वराज ने भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत ‘अपराध’ किया। 

अतः विपक्ष स्वराज की कोई बात सुनने से पहले उनका इस्तीफा चाहता है। जबकि भाजपा की तरफ से कहा जा चुका है कि वह ‘यूपीए नहीं है’, अतः कोई इस्तीफा नहीं होगा। यानी दोनों पक्ष अपने रुख के चरम बिंदु पर हैं। इस पर कायम रहते मेल-मिलाप की कोई सूरत नहीं निकल सकती। इस रुख में बदलाव की गुंजाइश इसलिए नहीं बन रही है, क्योंकि मसले को गुण-दोष के आधार पर देखने की बजाय सियासी स्वार्थ से प्रेरित होने की प्रवृत्ति राजनीतिक समुदाय पर अधिक हावी है। 

दुर्भाग्यपूर्ण है कि दोनों पक्षों ने प्रत्यक्ष आपसी संवाद तोड़ रखा है। यह लोकतंत्र की मूल भावना के विरुद्ध है। इसके बावजूद यह रेखांकित करने का पहलू है कि स्वराज का स्वर टकराव भरा नहीं था। इसे सकारात्मक नज़रिया माना जाएगा। दोनों पक्ष ऐसा दृष्टिकोण अपनाएं तो अटूट लगते वर्तमान गतिरोध के बीच भी राह निकल सकती है। 

क्या यह संभव नहीं है कि प्रधानमंत्री विपक्षी नेताओं की बैठक बुलाएं, जिसमें दोस्ताना माहौल में खुल कर बात हो? फिलहाल देश समाधान की आस में है, ताकि राष्ट्र हित से जुड़े विधायी कार्य पूरे हो सकें।

Tuesday, 21 July 2015

मोदी का मौन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी हाजिर जवाबी के लिए जाने जाते हैं, लेकिन आज जब वे मॉनसून सत्र की कार्यवाही में शरीक होने के लिए संसद भवन पहुंचे तो पत्रकारों के सवालों को अनसुना कर अपनी चुप्पी जारी रखी. पत्रकारों ने मोदी से एक के बाद एक कई सवाल किए, लेकिन मोदी हल्की मुस्कुराहट के साथ पत्रकारों के सवालों को अनसुना करते रहे.

एक पत्रकार ने मोदी से पूछा कि करप्शन के सवाल पर आपका क्या कहना है? मोदी ने इस सवाल को जैसे ही अनसुना किया, दूसरा सवाल दाग़ दिया गया. दूसरा सवाल था कि क्या आपको सत्र के सुचारू रुप से चलने की उम्मीद है? मोदी इस सवाल पर भी खामोश रहे. वे सवाल सुनते रहे, और अपनी गर्दन इधर से उधर हिलाते रहे. इसी बीच तीसरा सवाल किया गया कि कांग्रेस ने स्थगन प्रस्ताव के लिए नोटिस दिया है. क्या सरकार बहस के लिए तैयार है? मोदी ने इस सवाल पर अपनी खामोशी जारी रखी. पत्रकार सवाल किए जा रहे थे और उनके पीछे खड़े मंत्रीगण मुस्कुरा रहे थे. लेकिन पत्रकार भी अपने सवाल जारी रखे हुए थे. अगला सवाल किया गया कि जमीन बिल पर आपका क्या कहना है?

इन सवालों को अनसुना करके मोदी मुड़े और चल दिए. अब सवाल किया जा रहा है कि आखिर मोदी अपनी चुप्पी कब तोड़ेंगे?

Tuesday, 23 June 2015

ललितगेट कांड में मोदी सरकार ने दांव पर लगाई साख



विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के राजनीतिक जीवन पर ललितगेट कांड का दूरगामी असर पड़ने जा रहा है। सुप्रशासन और पारदर्शिता के जिस मुद्दे पर भाजपा बहुमत से चुनाव जीतकर सत्ता में आई थी, इस कांड ने उसी पर सवालिया निशान लगा दिए हैं। इसका असर खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि पर भी पड़ा है। सवाल पूछे जाने लगे हैं कि आखिर क्या बात है कि जनता के चहेते प्रधानमंत्री, जिन्होंने दिल्ली के सत्ताकुलीनों के खिलाफ लड़ाई छेड़कर देशवासियों का भरपूर समर्थन पाया था, अब खुद उसी सत्ता-संरचना का बचाव करने लगे हैं? लोग जानना चाहते हैं, लेकिन अपने से पूर्ववर्ती 'मौन मोहन" की तरह नरेंद्र मोदी ने भी अभी तक इस बारे में अपने 'मन की बात" देशवासियों से साझा नहीं की है।

भाजपा ने अभी तक तो अपनी इन दो कद्दावर महिला नेत्रियों का जमकर बचाव किया है। शायद उसका आकलन यह है कि जल्द ही यह स्कैंडल भुला दिया जाएगा और दूसरी खबरें उस पर हावी हो जाएंगी। अवाम की याददाश्त कमजोर होती है और मीडिया की याददाश्त तो अवाम से भी कमजोर होती है। ऐसे कई तरीके हैं, जिनकी मदद से देश में फीलगुड का माहौल पैदा कर इस कांड को भुलाया जा सकता है, जैसे कि बीमा और पेंशन संबंधी सामाजिक सुरक्षा योजनाएं, फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में इजाफा करके किसानों की आमदनी बढ़ाना, बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं में सार्वजनिक निवेश के माध्यम से रोजगार के अवसर निर्मित करना या छोटे उद्यमियों को आसान कर्ज की सुविधा मुहैया कराना वगैरह-वगैरह। हो सकता है यह एक नेक सोच हो, लेकिन इसमें एक गड़बड़ यह है कि घोटालों को भले ही कुछ देर के लिए भुला दिया जाए, लेकिन वे कभी खत्म नहीं होते हैं। यूपीए सरकार से अच्छी तरह इस बात को भला कौन जान सकता है कि घोटाले चुटकी बजाते ही कभी भी फिर उठ खड़े होते हैं।

यही कारण है कि बेल्लारी के रेड्डी बंधुओं के घोटाले को भले ही फिलवक्त भुला दिया गया हो, लेकिन अब ललितगेट कांड के बाद पार्टी के भीतर सुषमा स्वराज के विरोधियों द्वारा उन्हें फिर से उठाया जाएगा, क्योंकि सुषमा को रेड्डी बंधुओं की 'गॉडमदर" कहा जाता था। जब सुषमा दिल्ली की मुख्यमंत्री हुआ करती थीं, तब बताया जाता है कि उन्होंने दाउद इब्राहीम के सहयोगी माने जाने वाले रोमेश शर्मा की मदद की थी। लेकिन शर्मा के मामले की जांच कर रहे आयकर अधिकारी का रातोंरात तबादला करवा दिया गया था। सूचनाओं के इस डिजिटल युग में कोई घटना पूरी तरह से मरती नहीं है, और कोई नहीं जानता अतीत की किस घटना का भूत कब फिर से जीवित होकर हमें सताने लगेगा।

कम ही लोगों को इस बात में भरोसा है कि ललित मोदी की मदद के लिए ब्रिटिश सरकार को फोन लगाने से पहले स्वराज ने प्रधानमंत्री से राय-मशविरा किया था। ललित मोदी, जिनके खिलाफ 16 मामले दर्ज हैं, से सुषमा की दोस्ती 15 साल पुरानी है। बताया जाता है कि जब अटल सरकार के समय सुषमा केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री थीं, तब से ही ललित मोदी से उनकी मित्रता रही है और मोदी उनकी मदद से एक प्रसारण एजेंसी चला रहे थे। इसके बावजूद अगर सुषमा ने ब्रिटिश सरकार से बात करके अपने पुराने दोस्त की मदद की तो इसमें अप्रत्याशित कुछ नहीं है। वास्तव में, नेताओं, नौकरशाहों, कारोबारियों, मीडिया के प्रभावशाली लोगों के बीच आपसी मदद के लेनदेन की ऐसी घटनाएं नई दिल्ली में आमतौर पर होती ही रहती हैं। और 'हितों के टकराव" की घटनाएं तो इतनी आम हैं कि कोई उन पर टिप्पणी तक नहीं करता। वैसे भी, सत्ताधीशों के लिए केवल अपना लाभ सर्वोपरि होता है, जनहित से उन्हें कोई लेनादेना नहीं होता।

Thursday, 18 June 2015

बिहार की राजनीति का रावण कौन?

बिहार में राम कौन और रावण कौन ? इसको जानने के लिए पहले विभीषण के किरदार को समझना जरूरी है. विभीषण लंका के राजा रावण का सबसे छोटा भाई था. सीता माता को लेकर जब वानरों की सेना के साथ भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई की तो विभीषण ने रावण का साथ न देकर राम का साथ दिया था. अंत में सबके सब मारे गए और सिर्फ विभीषण ही जिंदा बचे थे.

अब बिहार की राजनीति में नीतीश मांझी को विभीषण बताकर क्या कहना चाहते हैं ये तो वहीं जाने लेकिन कथा कहानियों में सत्य यही है कि रावण का साथ छोड़कर विभीषण राम के खेमे में आए थे. और बिहार का सत्य ये है कि कल तक नीतीश के भरोसेमंद रहे मांझी अब नीतीश का साथ छोड़कर बीजेपी के साथ खड़े हैं. नीतीश कुमार ने लोकसभा चुनाव में हार के बाद इस्तीफा देकर पिछले साल मांझी को सीएम बनाया था. उस वक्त पार्टी में किसी ने कल्पना नहीं की थी कि नीतीश मांझी को अपना उत्तराधिकारी बनाएंगे. लेकिन ऐसा हुआ. लेकिन 10 महीने बाद ही इस साल फरवरी में मांझी से मोहभंग हो गया. अब उन्हीं मांझी को विभीषण बताकर निशाना साध रहे हैं.

नीतीश ने मांझी को विभीषण कहा तो बीजेपी के तमाम नेता राशन पानी के साथ नीतीश पर चढ़ गए. ये बताने के लिए कि मांझी विभीषण हैं तो नीतीश बिहार की राजनीति के रावण. सुशील कुमार मोदी से लेकर केंद्रीय मंत्री रामकृपाल यादव तक सबने नीतीश को बारी बारी से रावण बताया. और बीजेपी खेमे को राम. मांझी खुद भी चुप नहीं हैं. मुजफ्फरपुर गए तो पत्रकारों से कह दिया कि वो विभीषण हैं और नीतीश की लंका को चुनाव में जलाकर दिखाएंगे. ऐसा नहीं कि बिहार के इस ‘राजनीतिक रामायण’ में विरोधियों ने लालू को अलग रखा है. जीतन राम मांझी की पार्टी लालू को कुंभकर्ण (रावण का मंझला भाई) बता रही है.

रावण बताने की ये लड़ाई पुरानी है. पिछले साल लोकसभा चुनाव के बाद जब विधानसभा के उपचुनाव में लालू-नीतीश की जोड़ी को जीत मिली थी तब नीतीश ने बीजेपी की तुलना रावण से की थी. नीतीश ने तब केंद्र सरकार पर हमला बोलते हुए कहा था कि जब रावण का घमंड नहीं रहा तो फिर बीजेपी क्या चीज है ?  तब बीजेपी हारी हुई थी और उनके पास हमले के जवाब का मौका नहीं था. अब बीजेपी को मौका मिला है तो नीतीश के बयान के जरिए ही पार्टी उन्हें रावण बताने में जुटी है.

असल में इस राजनीतिक रामायण की लड़ाई के पीछे भी वोट बैंक का ही गणित है. मांझी बिहार की राजनीति के केंद्र में इसलिए हैं क्योंकि नीतीश कुमार मांझी को राजनीति से आउट बताने में जुटे हैं और बीजेपी मांझी के सहारे महादलित वोट बैंक पर पकड़ और मजबूत करना चाहती है. बिहार में करीब 16 फीसदी महादलित वोट हैं. जब मांझी मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने महादलित समुदाय में अपनी पकड़ मजबूत कर ली थी. बीजेपी को उम्मीद है कि मांझी के सहारे वो नीतीश के भरोसेमंद महादलित वोट बैंक में सेंध लगाकर उन्हें नुकसान पहुंचा सकते हैं. बीजेपी इसीलिए मांझी को भरपूर भाव दे रही है. लेकिन नीतीश मांझी को बिहार में आज कोई फैक्टर नहीं बताकर उनका कद कम करना चाहते हैं.

लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या वाकई में बीजेपी के लिए मांझी विभीषण साबित हो पाएंगे ? मांझी बिहार में आज जाति विशेष के प्रतीक भर बनकर रह गए हैं. विवादित बयानों की वजह से भी मांझी की छवि विवादित बन चुकी है. आज की राजनीतिक परिस्थिति में इस बात को लेकर शक है कि वो किसी का भविष्य बना सकते हैं. लेकिन बिगाड़ने की स्थिति में कमोबेश जरूर हैं. नीतीश से बागी होकर जो विधायक मांझी के साथ खड़े थे उनमें से ज्यादा बीजेपी के साथ जाने को तैयार खड़े हैं. मुट्टी भर लोग मांझी के साथ बचे हैं. ये वो लोग हैं जो अपने वोट बैंक और स्थानीय कारणों से बीजेपी के टिकट पर नहीं लड़ना चाहते. लेकिन जिनकी राजनितिक मजबूरी नहीं हैं वो सीधे सीधे बीजेपी के टिकट पर लड़ने को तैयार हैं. जो राजनीति परिस्थिति बन रही है उसमें मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा को बीजेपी अधिकतम 10-12 सीटें लड़ने को दे सकती है.
 बीजेपी की कोशिश है कि मांझी खुद चुनाव न लड़ें और एनडीए उम्मीदवारों का प्रचार करें. ऐसा उसी परिस्थिति में संभव है जब मांझी के परिवार से किसी को चुनाव का टिकट मिलेगा. अब देखना पड़ेगा कि नीतीश के लिए विभीषण बन चुके मांझी बीजेपी खेमे के लिए विभीषण साबित हो पाते हैं या नहीं.

Saturday, 28 March 2015

'भारत रत्न' हुए अटल बिहारी वाजपेयी



 भारत रत्न का सम्मान राष्ट्रपति भवन में दिए जाने की परंपरा है, लेकिन बीमारी के चलते राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने प्रोटोकॉल से हटकर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को  कृष्ण मेनन मार्ग स्थित उनके घर पर भारत रत्न से सम्मानित किया। करिश्माई नेता, ओजस्वी वक्ता और प्रखर कवि के रुप में प्रख्यात वाजपेयी को साहसिक पहल के लिए भी जाना जाता है, जिसमें प्रधानमंत्री के रुप में उनकी 1999 की ऐतिहासिक लाहौर बस यात्रा शामिल है, जब पाकिस्तान जाकर उन्होंने वहां के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साथ लाहौर घोषणा पर हस्ताक्षर किए। 1998 से 2004 तक देश के प्रधानमंत्री रहे वाजपेयी बीमारी के चलते काफी समय से सार्वजनिक जीवन से दूर हैं। इस ऐतिहासिक मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, गृह मंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी व अन्य नेता भी मौजूद थे। इस मौके पर वाजपेयी का एक फोटो भी जारी किया गया। कई साल बाद वाजपेयी का कोई फोटो नजर आया है।
ग्वालियर में 25 दिसंबर 1924 को जन्मे वाजपेयी पहले जनसंघ फिर बीजेपी के संस्थापक अध्यक्ष रहे। 955 में उन्होंने जनसंघ के टिकिट पर पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए। 1957 में जनसंघ ने उन्हें तीन लोकसभा सीटों लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से चुनाव लड़ाया। इनमें से बलरामपुर (जिला गोण्डा, उत्तर प्रदेश) से चुनाव जीतकर वह पहली बार लोकसभा पहुंचे। 1977 में केंद्र में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार बनी। वाजपेयी उस सरकार में विदेश मंत्री बनाए गए। इस दौरान उन्होंने संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन में हिन्दी में भाषण दिया। ऐसा करने वाले वह देश के पहले नेता थे।वाजपेयी अपना कार्यकाल पूरा करने वाले एकमात्र गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री हैं। 1998 में वे देश के दसवें प्रधानमंत्री बने।वाजपेयी ने 2005 में सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया था। वाजपेयी की सेहत काफी समय खराब चल रही है।
वाजपेयी राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ कवि भी हैं। 'मेरी इक्यावन कविताएं' अटल जी का प्रसिद्ध काव्यसंग्रह है। जगजीत सिंह के साथ उन्होंने दो एलबम 'नई दिशा' (1999) और 'संवेदना' (2002) भी रिलीस कीं। वाजपेयी लंबे समय तक राष्ट्रधर्म, पांचजन्य और वीर-अर्जुन आदि पत्र-पत्रिकाओं के संपादक रहे।
तीन बार प्रधानमंत्री रहे वाजपेयी देश के ऐसे पहले प्रधानमंत्री बने, जिनका कांग्रेस से कभी नाता नहीं रहा। साथ ही वह कांग्रेस के अलावा के किसी अन्य दल के ऐसे प्रधानमंत्री रहे, जिन्होंने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से गहरे से जुडे होने के बावजूद वाजपेयी की एक धर्मनिरपेक्ष और उदारवादी छवि है। उनकी लोकप्रियता भी दलगत सीमाओं से परे है। पहले 13 दिन तक, फिर 13 महीने और फिर पूरे पांच साल तक। वाजपेयी इकलौते नेता थे, जो जब बोलना शुरू करते थे तो सदन का हर सदस्य बिना शोर शराबे की उनकी बात सुनता था। उनकी भाषण कला के मुरीद देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी रहे। वाजपेयी मंझे हुए राजनेता रहे तो कोमल हृदय कवि भी। तमाम मुद्दों पर उनकी कलम से निकली कविताएं सीधे लोगों के दिल तक पहुंची।
वाजपेयी और प्रसिद्ध शिक्षाविद् एवं स्वतंत्रता सेनानी महामना मदन मोहन मालवीय को भारत रत्न देने की घोषणा 24 दिसम्बर को की गई थी। इत्तेफाक की बात यह है कि वाजपेयी और मालवीय दोनों का जन्मदिन 25 दिसंबर है। वाजपेयी का जन्म इस तारीख को 1924 में और मालवीय का जन्म 1861 को हुआ था। महामना को मरणोपरांत इस पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा है। उनके परिजनों को 30 मार्च को राष्ट्रपति भवन में यह पुरस्कार दिया जाएगा। वाजपेयी और महामना इस पुरस्कार से नवाजे जाने वाली 44वीं व 45वीं हस्ती हैं।

Monday, 16 February 2015

Poorvanchal vs Bhartiya Janta Party


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Wednesday, 11 February 2015

केजरीवाल के लिए तैयार है कांटों की सेज!

दिल्ली विधानसभा चुनावों में महज दो साल पुरानी आम आदमी पार्टी ने केंद्र और 10 से अधिक राज्यों में शासन करने वाली भारतीय जनता पार्टी को पटखनी दे दी है। दिल्ली ने भी दिसंबर 2013 में ‘आप’ को पूर्ण बहुमत ना दे पाने की अपनी भूल सुधार ली है। अब बारी अरविंद केजरीवाल की है। उन्हें 49 दिनों में की गई अपनी गलतियों को भी सुधारने के साथ-साथ दिल्लीवासियों से किए गए अपने वायदे पूरे करने को कांटों की इस सेज पर चलना होगा।
kejriwal14कठिन होगा DDA से तालमेल बिठाना
दरअसल, आप के मुख्य वायदों में शामिल जनलोकपाल बिल, पूर्ण राज्य का दर्जा, आवसीय योजना, कानून व्यवस्था, पूरी दिल्ली को सीसीटीवी कैमरों व वाईफाई से युक्त करने सहित अन्य कामों के लिए बजट या मंजूरी उसके सबसे बड़े मौजूदा राजनैतिक प्रतिद्वंद्वी भाजपा की मोदी सरकार से ही मिलेगी।
सिर्फ बड़े मुद्दों का सवाल ही नहीं है। बड़ा चुनावी मुद्दा रहे अनाधिकृत कॉलोनियों को अधिकृत करने, उनके विकास कार्य, बजट के अभाव में पूर्वी दिल्ली, उत्तरी व दक्षिणी दिल्ली नगर निगमों में सालों व महीनों से अटकी वृद्धा व विधवा पेंशन व अन्य गली-मुहल्ले के छोटे कामकाज के लिए भी केजरीवाल के सामने संकट खड़ा हो सकता है। वहीं, बिजली-पानी का भी दिल्ली में आपूर्ति करना मुश्किल भरा कदम साबित हो सकता है।
गर्मी में पानी की समस्या से जूझना होगा
हरियाणा की भाजपा सरकार अगर मुनक नहर में पानी नहीं छोड़ती है तो गर्मी में पानी की समस्या से भी जूझना पड़ेगा। दिल्ली के विकास को लेकर बना दिल्ली विकास प्राधिकरण से भी तालमेल बिठाना कठिन होगा। क्योंकि यह प्राधिकरण सीधे तौर पर केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय के अधीन है।
दिल्ली में एतिहासिक जीत के बाद भले ही केजरीवाल भाजपा के कब्जे वालीं नगर निगम की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाकर वहां कब्जा कराने की कोशिश करें, लेकिन यह भी 2017 तक संभव नहीं होगा, क्योंकि 2017 में नगर निगम में चुनाव होने के बाद ही सत्ता परिवर्तन संभव है।
अपने वायदों का जवाब जनता व मीडिया को देना होगा
वर्ष 2013 में 28 विधानसभा सीटें आने के बाद कांग्रेस के समर्थन से जब केजरीवाल ने सरकार बनाई थी तो जनलोकपाल के मुद्दे पर उन्होंने 49 दिनों में सरकार छोड़ दी। उन्हें भगौड़ा बताने वाले विपक्ष ने यह मुद्दा इस चुनाव में भी कायम रखा।
जानकारों की माने तो जनलोकपाल सहित अन्य मुद्दों पर पूर्ण बहुमत मिलने पर केजरीवाल सरकार इस बार योजनाबद्ध तरीके से इंतजार तो कर सकती है लेकिन उसे जनता व मीडिया के बीच अपने वायदों का जवाब समय-समय पर देना होगा।
कानून- व्यवस्था होगी सबसे बड़ा इश्यू 
तमाम बजट व योजनाएं एलजी के माध्यम से केंद्र सरकार से मंजूरी के बिना न मिलने के अलावा केंद्र के ही अधीन कानून व्यवस्था भी एक बड़ा इश्यू है। वैसे भी प्रचार के दौरान भाजपा नेता मंच से यह बोलते रहे कि केंद्र के बाद राज्य की सरकार जनता बनाती है तो ही सभी काम हो आसानी से हो सकेंगे।

दिल्ली सरकार की स्थिति ठीक वैसी ही होती है जैसे की बैंक में लॉकर लिया जाता है। लॉकर के इस्तेमाल में बैंकर व ग्राहक के पास मौजूद दोनों चाबी लगने पर ही लॉकर खुलता है। दिल्ली की सरकार के साथ केंद्र सरकार की चाबी लगे बिना अधिकांश कार्य संभव नहीं है।

Saturday, 24 January 2015

आत्ममंथन और आत्मगौरव का बेहतर दिन


हम विविध, विभिन्न बोली, भाषा, रंगरूप, रहन-सहन, खाना-पान, जलवायु में होने के बावजूद एकी संस्कृति की माला पिरोये हुए हैं। हमारे लोकतंत्र के प्रहरी अपने इस अवसर सपने को परिपक्वता के साथ मजबूत दीवार एवरेस्ट की चोटी से ऊंचा बना लिया है। कई उतार-चढ़ाव आए, आपातकाल भी देखा लेकिन भारत की सार्वभौमिकता बरकरार है। जनतंत्र-गणतंत्र की प्रौढ़ता को हम पार कर रहे हैं लेकिन आम जनता को उसके अधिकार, कर्तव्य, ईमानदारी समझाने में पिछड़े, कमजोर, गैर जिम्मेदार साबित हो रहे हैं। चूंकि स्वयं समझाने वाला प्रत्येक राजनीतिक पार्टियां, नेता स्वयं ही कर्तव्य, ईमानदारी से अछूते, गैर जिम्मेदार हैं।
इसलिए असमानता की खाई गहराती जा रही है और असमानता, गैरबराबरी बढ़ गई है। जबकि बराबरी के आधार पर ही समाज की उत्पत्ति हुई थी। 1947 में गांधी जी, ने भी बराबरी का बात कही थी लेकिन लोलुप अमानवीयता की हदें पार कर जनतंत्र-गणतंत्र को रौंद रहे हैं।
हर वर्ष 26 जनवरी एक ऐसा दिन है जब प्रत्‍येक भारतीय के मन में देश भक्ति की लहर और मातृभूमि के प्रति अपार स्‍नेह भर उठता है। ऐसी अनेक महत्‍वपूर्ण स्‍मृतियां हैं जो इस दिन के साथ जुड़ी हुई है। यही वह दिन है जब जनवरी 1930 में लाहौर ने पंडित जवाहर लाल नेहरु ने तिरंगे को फहराया था और स्‍वतंत्र भारतीय राष्‍ट्रीय कांग्रेस की स्‍थापना की घोषणा की गई थी। 26 जनवरी 1950 वह दिन था जब भारतीय गणतंत्र और इसका संविधान प्रभावी हुए। यही वह दिन था जब 1965 में हिन्‍दी को भारत की राजभाषा घोषित किया गया।
गणतंत्र दिवस के जश्न का सफर कई दौर से गुजरा है। कभी राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद बग्घी में बैठकर परेड में हिस्सा लेने पहुंचते थे। एक दौर ऐसा भी आया जब प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने खुद परेड की अगुवाई की। पहले 5 साल तक तो यही तय नहीं था कि गणतंत्र दिवस समारोह कहां मनाया जाए। 1955 से तय हुआ कि परेड राजपथ से निकलेगी और लालकिले तक जाएगी। आजादी के बाद तत्कालीन गवर्नर सी. राजगोपालाचारी ने सुबह 10 बजकर 18 मिनट पर भारत को गणराज्य घोषित किया। छह मिनट के भीतर डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने पहले राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली। गणतंत्र दिवस समारोह पहले से तय था। दोपहर 2 बजकर 30 मिनट पर राजेंद्र बाबू बग्घी में सवार होकर गवर्मेंट हाउस (राष्ट्रपति भवन) से निकले। कनॉट प्लेस जैसे नई दिल्ली के इलाकों का चक्कर लगाते हुए 3 बजकर 45 मिनट पर पुराने किले के पास स्थित नेशनल स्टेडियम पहुंचे। यह मैदान तब इरविन स्टेडियम कहलाता था। राजेंद्र बाबू जिस शाही बग्घी में सवार हुए थे वह 35 साल पुरानी थी। छह ऑस्ट्रेलियाई घोड़े उनकी बग्घी को खींच रहे थे। पहले समारोह के लिए प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इंडोनेशिया के तत्कालीन राष्ट्रपति सुकर्णो को न्यौता दिया था। परेड स्थल पर राष्ट्रपति राजेंद्र बाबू को शाम के वक्त 31 तोपों की सलामी दी गई थी।
इस अवसर के महत्‍व को दर्शाने के लिए हर वर्ष गणतंत्र दिवस पूरे देश में बड़े उत्‍साह के साथ मनाया जाता है, और राजधानी, नई दिल्‍ली में राष्‍ट्र‍पति भवन के समीप रायसीना पहाड़ी से राजपथ पर गुजरते हुए इंडिया गेट तक और बाद में ऐतिहासिक लाल किले तक शानदार परेड का आयोजन किया जाता है। यह आयोजन भारत के प्रधानमंत्री द्वारा इंडिया गेट पर अमर जवान ज्‍योति पर पुष्‍प अर्पित करने के साथ आरंभ होता है, जो उन सभी सैनिकों की स्‍मृति में है जिन्‍होंने देश के लिए अपने जीवन कुर्बान कर दिए। इसे शीघ्र बाद 21 तोपों की सलामी दी जाती है, राष्‍ट्रपति महोदय द्वारा राष्‍ट्रीय ध्‍वज फहराया जाता है और राष्‍ट्रीय गान होता है। इस प्रकार परेड आरंभ होती है।
महामहिम राष्‍ट्रपति के साथ एक उल्‍लेखनीय विदेशी राष्‍ट्र प्रमुख आते हैं, जिन्‍हें आयोजन के मुख्‍य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया जाता है। राष्‍ट्रपति महोदय के सामने से खुली जीपों में वीर सैनिक गुजरते हैं। भारत के राष्‍ट्रपति, जो भारतीय सशस्‍त्र बल, के मुख्‍य कमांडर हैं, विशाल परेड की सलामी लेते हैं। भारतीय सेना द्वारा इसके नवीनतम हथियारों और बलों का प्रदर्शन किया जाता है जैसे टैंक, मिसाइल, राडार आदि। इसके शीघ्र बाद राष्‍ट्रपति द्वारा सशस्‍त्र सेना के सैनिकों को बहादुरी के पुरस्‍कार और मेडल दिए जाते हैं जिन्‍होंने अपने क्षेत्र में अभूतपूर्व साहस दिखाया और ऐसे नागरिकों को भी सम्‍मानित किया जाता है जिन्‍होंने विभिन्‍न परिस्थितियों में वीरता के अलग-अलग कारनामे किए। इसके बाद सशस्‍त्र सेना के हेलिकॉप्‍टर दर्शकों पर गुलाब की पंखुडियों की बारिश करते हुए फ्लाई पास्‍ट करते हैं। सेना की परेड के बाद रंगारंग सांस्‍कृतिक परेड होती है। विभिन्‍न राज्‍यों से आई झांकियों के रूप में भारत की समृद्ध सांस्‍कृतिक विरासत को दर्शाया जाता है। प्रत्‍येक राज्‍य अपने अनोखे त्‍यौहारों, ऐतिहासिक स्‍थलों और कला का प्रदर्शन करते है। यह प्रदर्शनी भारत की संस्‍कृति की विविधता और समृद्धि को एक त्‍यौहार का रंग देती है।
विभिन्‍न सरकारी विभागों और भारत सरकार के मंत्रालयों की झांकियां भी राष्‍ट्र की प्र‍गति में अपने योगदान प्रस्‍तुत करती है। इस परेड का सबसे खुशनुमा हिस्‍सा तब आता है जब बच्‍चे, जिन्‍हें राष्‍ट्रीय वीरता पुरस्‍कार हाथियों पर बैठकर सामने आते हैं। पूरे देश के स्‍कूली बच्‍चे परेड में अलग-अलग लोक नृत्‍य और देश भक्ति की धुनों पर गीत प्रस्‍तुत करते हैं। परेड में कुशल मोटर साइकिल सवार, जो सशस्‍त्र सेना कार्मिक होते हैं, अपने प्रदर्शन करते हैं। परेड का सर्वाधिक प्रतीक्षित भाग फ्लाई पास्‍ट है जो भारतीय वायु सेना द्वारा किया जाता है। फ्लाई पास्‍ट परेड का अंतिम पड़ाव है, जब भारतीय वायु सेना के लड़ाकू विमान राष्‍ट्रपति का अभिवादन करते हुए मंच पर से गुजरते हैं। राज्‍यों में होने वाले आयोजन अपेक्षाकृत छोटे स्‍तर पर होते हैं और ये सभी राज्‍यों की राजधानियों में आयोजित किए जाते हैं। यहां राज्य के राज्‍यपाल तिरंगा झंडा फहराते हैं। समान प्रकार के आयोजन जिला मुख्‍यालय, उप संभाग, तालुकों और पंचायतों में भी किए जाते हैं।
गणतंत्र दिवस का आयोजन कुल मिलाकर तीन दिनों का होता है और 27 जनवरी को इंडिया गेट पर इस आयोजन के बाद प्रधानमंत्री की रैली में एनसीसी केडेट्स द्वारा विभिन्‍न चौंका देने वाले प्रदर्शन और ड्रिल किए जाते हैं। सात क्षेत्रीय सांस्‍कृतिक केन्‍द्रों के साथ मिलकर संस्‍कृति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा हर वर्ष 24 से 29 जनवरी के बीच ‘’लोक तरंग - राष्‍ट्रीय लोक नृत्‍य समारोह’’ आयोजित किया जाता है। इस आयोजन में लोगों को देश के विभिन्‍न भागों से आए रंग बिरंगे और चमकदार और वास्‍तविक लोक नृत्‍य देखने का अनोखा अवसर मिलता है।
बीटिंग द रिट्रीट गणतंत्र दिवस आयोजनों का आधिकारिक रूप से समापन घोषित करता है। सभी महत्‍वपूर्ण सरकारी भवनों को 26 जनवरी से 29 जनवरी के बीच रोशनी से सुंदरता पूर्वक सजाया जाता है। हर वर्ष 29 जनवरी की शाम को अर्थात गणतंत्र दिवस के बाद अर्थात गणतंत्र की तीसरे दिन बीटिंग द रिट्रीट आयोजन किया जाता है। यह आयोजन तीन सेनाओं के एक साथ मिलकर सामूहिक बैंड वादन से आरंभ होता है जो लोकप्रिय मार्चिंग धुनें बजाते हैं। ड्रमर भी एकल प्रदर्शन (जिसे ड्रमर्स कॉल कहते हैं) करते हैं। ड्रमर्स द्वारा एबाइडिड विद मी (यह महात्‍मा गांधी की प्रिय धुनों में से एक कहीं जाती है) बजाई जाती है और ट्युबुलर घंटियों द्वारा चाइम्‍स बजाई जाती हैं, जो काफी दूरी पर रखी होती हैं और इससे एक मनमोहक दृश्‍य बनता है। इसके बाद रिट्रीट का बिगुल वादन होता है, जब बैंड मास्‍टर राष्‍ट्रपति के समीप जाते हैं और बैंड वापिस ले जाने की अनुमति मांगते हैं। तब सूचित किया जाता है कि समापन समारोह पूरा हो गया है। बैंड मार्च वापस जाते समय लोकप्रिय धुन ‘’सारे जहां से अच्‍छा बजाते हैं। ठीक शाम 6 बजे बगलर्स रिट्रीट की धुन बजाते हैं और राष्‍ट्रीय ध्‍वज को उतार लिया जाता हैं तथा राष्‍ट्रगान गाया जाता है और इस प्रकार गणतंत्र दिवस के आयोजन का औपचारिक समापन होता हैं।
भारत के संविधान को लागू किए जाने से पहले भी 26 जनवरी का बहुत महत्त्व था। 26 जनवरी को विशेष दिन के रूप में चिह्नित किया गया था, 31 दिसंबर सन् 1929 के मध्‍य रात्रि में राष्‍ट्र को स्वतंत्र बनाने की पहल करते हुए लाहौर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन पंडित जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में हु‌आ जिसमें प्रस्ताव पारित कर इस बात की घोषणा की ग‌ई कि यदि अंग्रेज़ सरकार 26 जनवरी, 1930 तक भारत को उपनिवेश का पद (डोमीनियन स्टेटस) नहीं प्रदान करेगी तो भारत अपने को पूर्ण स्वतंत्र घोषित कर देगा। 26 जनवरी, 1930 तक जब अंग्रेज़ सरकार ने कुछ नहीं किया तब कांग्रेस ने उस दिन भारत की पूर्ण स्वतंत्रता के निश्चय की घोषणा की और अपना सक्रिय आंदोलन आरंभ किया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के इस लाहौर अधिवेशन में पहली बार तिरंगे झंडे को फहराया गया था परंतु साथ ही इस दिन सर्वसम्मति से एक और महत्त्वपूर्ण फैसला लिया गया कि प्रतिवर्ष 26 जनवरी का दिन पूर्ण स्वराज दिवस के रूप में मनाया जाएगा। इस दिन सभी स्वतंत्रता सेनानी पूर्ण स्वराज का प्रचार करेंगे। इस तरह 26 जनवरी अघोषित रूप से भारत का स्वतंत्रता दिवस बन गया था। उस दिन से 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त होने तक 26 जनवरी स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता रहा।

Thursday, 22 January 2015

जिनपर की राजनीति, उन्हीं के हाथ रह गए खाली

भाजपा की सूची जारी होने के बाद दिल्ली में रहने वाले प्रवासी पूर्वांचली खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं।
वे इस बात को लेकर हैं नाराज है कि संख्या के आधार पर उन्हें पार्टी ने तरजीह नहीं दी। इतना ही नहीं वैसे लोगों को टिकट दे दिया है जो सदस्यता अभियान में भी सक्रिय नहीं रहे। इस बार पूर्वाचलियों को 70 सीटों में से महज 2 प्रत्याशियों को टिकट मिला है। 

पिछले विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने दिल्‍ली में पूर्वांचलियों की ताकत को समझा था और जितने पूर्वांचलियों को अरविंद की पार्टी ने टिकट दिया था, उनमें से ज्‍यादातर जीतने में सफल रहे थे। भाजपा ने भी पूर्वाचलियों की ताकत को समझा था और पहली बार 5 पूर्वाचलियों को विधानसभा का टिकट दिया था, जिसमें से ज्‍यादातर जीतने में सफल रहे थे। इसी जीत के बाद दिल्‍ली के पूर्वांचली मतदाता भाजपा के लिए महत्‍वपूर्ण हो गए और उसने भोजपुरी के सबसे बडे स्‍टार मनोज तिवारी को उत्‍तर-पूर्वी दिल्‍ली से सांसद बनाया।
मनोज तिवारी तो जीतने में सफल रहे ही, उनका असर अन्‍य सीटों पर भी पड़ा और पूर्वाचली मतदाता गोलबंद होकर भाजपा के पीछे एकजुट हो गया, जिसका परिणाम सामने है। दिल्‍ली में भाजपा ने सबसे पहले पूर्वांचल से लालबिहारी तिवारी को लोकसभा का टिकट दिया था और आपको जानकर आश्‍चर्य होगा कि उस वर्ष भाजपा सातों लोकसभा सीट जीतने में सफल रही थी। लालबिहारी तिवारी के कारण दिल्‍ली के सभी सीटों पर पूर्वांचली मतदाता भाजपा के पक्ष में गोलबंद हो गए थे। लेकिन जब से भाजपा ने पंजाबी-बनिया लॉबी के कारण एक मात्र पूर्वांचली लालबिहारी तिवारी को किनारे लगाया, भाजपा दिल्‍ली में सत्‍ता से दूर होती चली गई। लोकसभा-2014 में भाजपा ने इस गलती को सुधारा और मनोज तिवारी को टिकट दियाा असर देखिए कि फिर एक बार भाजपा दिल्‍ली की सातों लोकसभा सीट जीतने में सफल रही।

छठ पर्व पर दिल्‍ली से बिहार व पूर्वी उप्र की ओर जाने वाली रेलगाडि़यों की संख्‍या के हिसाब से दिल्‍ली में करीब 40 लाख पूर्वांचली मतदाता हैं। कांग्रेस ने केवल एक महाबल मिश्रा के परिवार तक पूर्वांचल को सीमित कर दिया, जिसका शुरु में तो लाभ हुआ, लेकिन अंत में कांग्रेस को बेहद नुकसान हुआ। महाबल मिश्रा को पार्षद, विधायक और 2009 में लोकसभा का उम्‍मीदवार बनाने के कारण लगातार 15 साल कांग्रेस की सरकार रही और पहली बार कांग्रेस 2009 में सातों लोकसभा सीटें जीतने में भी सफल रही थी। लेकिन महाबल मिश्रा के परिवारवाद के कारण पूर्वांचल की जनता कांग्रेस से दूर होती चली गई, जिसका खामियाजा कांग्रेस को बुरी तरह से उठाना पड़ा। यहां तक कि पिछली विधानसभा में महाबल मिश्रा के बेटे विनय मिश्रा तक की चुनाव में हार हुई।

Thursday, 1 January 2015

पूर्वांचल विकास मोर्चा की तरफ से आप सबको नया साल 2015 की हार्दिक शुभकामनायें

नए साल 2015  शुरू हो चुका है।  2014 इतिहास बन चुका है, लेकिन गुजरे साल ने कई ऐसे संकेत दिए हैं, जिनके आधार पर नया साल अच्‍छा रहने की उम्‍मीद जताई जा सकती है। 

ज़िंदगी का फलसफा भी कितना अजीब है;
शामें कटती नहीं और साल गुज़रते चले जा रहे हैं।
नया साल मुबारक़!



पूर्वांचल विकास मोर्चा की तरफ से आप सबको नया साल 2015 की हार्दिक शुभकामनायें । नूतन बर्ष आपके एवं आपके परिवार के लिए हर्षोल्लास,अच्छा स्वास्थ्य,सम्पन्नता ,सुरक्षा, नव ज्योत्स्ना,नव उल्लास और समृधि लेकर आए ।