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Thursday, 22 January 2015

जिनपर की राजनीति, उन्हीं के हाथ रह गए खाली

भाजपा की सूची जारी होने के बाद दिल्ली में रहने वाले प्रवासी पूर्वांचली खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं।
वे इस बात को लेकर हैं नाराज है कि संख्या के आधार पर उन्हें पार्टी ने तरजीह नहीं दी। इतना ही नहीं वैसे लोगों को टिकट दे दिया है जो सदस्यता अभियान में भी सक्रिय नहीं रहे। इस बार पूर्वाचलियों को 70 सीटों में से महज 2 प्रत्याशियों को टिकट मिला है। 

पिछले विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने दिल्‍ली में पूर्वांचलियों की ताकत को समझा था और जितने पूर्वांचलियों को अरविंद की पार्टी ने टिकट दिया था, उनमें से ज्‍यादातर जीतने में सफल रहे थे। भाजपा ने भी पूर्वाचलियों की ताकत को समझा था और पहली बार 5 पूर्वाचलियों को विधानसभा का टिकट दिया था, जिसमें से ज्‍यादातर जीतने में सफल रहे थे। इसी जीत के बाद दिल्‍ली के पूर्वांचली मतदाता भाजपा के लिए महत्‍वपूर्ण हो गए और उसने भोजपुरी के सबसे बडे स्‍टार मनोज तिवारी को उत्‍तर-पूर्वी दिल्‍ली से सांसद बनाया।
मनोज तिवारी तो जीतने में सफल रहे ही, उनका असर अन्‍य सीटों पर भी पड़ा और पूर्वाचली मतदाता गोलबंद होकर भाजपा के पीछे एकजुट हो गया, जिसका परिणाम सामने है। दिल्‍ली में भाजपा ने सबसे पहले पूर्वांचल से लालबिहारी तिवारी को लोकसभा का टिकट दिया था और आपको जानकर आश्‍चर्य होगा कि उस वर्ष भाजपा सातों लोकसभा सीट जीतने में सफल रही थी। लालबिहारी तिवारी के कारण दिल्‍ली के सभी सीटों पर पूर्वांचली मतदाता भाजपा के पक्ष में गोलबंद हो गए थे। लेकिन जब से भाजपा ने पंजाबी-बनिया लॉबी के कारण एक मात्र पूर्वांचली लालबिहारी तिवारी को किनारे लगाया, भाजपा दिल्‍ली में सत्‍ता से दूर होती चली गई। लोकसभा-2014 में भाजपा ने इस गलती को सुधारा और मनोज तिवारी को टिकट दियाा असर देखिए कि फिर एक बार भाजपा दिल्‍ली की सातों लोकसभा सीट जीतने में सफल रही।

छठ पर्व पर दिल्‍ली से बिहार व पूर्वी उप्र की ओर जाने वाली रेलगाडि़यों की संख्‍या के हिसाब से दिल्‍ली में करीब 40 लाख पूर्वांचली मतदाता हैं। कांग्रेस ने केवल एक महाबल मिश्रा के परिवार तक पूर्वांचल को सीमित कर दिया, जिसका शुरु में तो लाभ हुआ, लेकिन अंत में कांग्रेस को बेहद नुकसान हुआ। महाबल मिश्रा को पार्षद, विधायक और 2009 में लोकसभा का उम्‍मीदवार बनाने के कारण लगातार 15 साल कांग्रेस की सरकार रही और पहली बार कांग्रेस 2009 में सातों लोकसभा सीटें जीतने में भी सफल रही थी। लेकिन महाबल मिश्रा के परिवारवाद के कारण पूर्वांचल की जनता कांग्रेस से दूर होती चली गई, जिसका खामियाजा कांग्रेस को बुरी तरह से उठाना पड़ा। यहां तक कि पिछली विधानसभा में महाबल मिश्रा के बेटे विनय मिश्रा तक की चुनाव में हार हुई।

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