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Wednesday, 11 February 2015

केजरीवाल के लिए तैयार है कांटों की सेज!

दिल्ली विधानसभा चुनावों में महज दो साल पुरानी आम आदमी पार्टी ने केंद्र और 10 से अधिक राज्यों में शासन करने वाली भारतीय जनता पार्टी को पटखनी दे दी है। दिल्ली ने भी दिसंबर 2013 में ‘आप’ को पूर्ण बहुमत ना दे पाने की अपनी भूल सुधार ली है। अब बारी अरविंद केजरीवाल की है। उन्हें 49 दिनों में की गई अपनी गलतियों को भी सुधारने के साथ-साथ दिल्लीवासियों से किए गए अपने वायदे पूरे करने को कांटों की इस सेज पर चलना होगा।
kejriwal14कठिन होगा DDA से तालमेल बिठाना
दरअसल, आप के मुख्य वायदों में शामिल जनलोकपाल बिल, पूर्ण राज्य का दर्जा, आवसीय योजना, कानून व्यवस्था, पूरी दिल्ली को सीसीटीवी कैमरों व वाईफाई से युक्त करने सहित अन्य कामों के लिए बजट या मंजूरी उसके सबसे बड़े मौजूदा राजनैतिक प्रतिद्वंद्वी भाजपा की मोदी सरकार से ही मिलेगी।
सिर्फ बड़े मुद्दों का सवाल ही नहीं है। बड़ा चुनावी मुद्दा रहे अनाधिकृत कॉलोनियों को अधिकृत करने, उनके विकास कार्य, बजट के अभाव में पूर्वी दिल्ली, उत्तरी व दक्षिणी दिल्ली नगर निगमों में सालों व महीनों से अटकी वृद्धा व विधवा पेंशन व अन्य गली-मुहल्ले के छोटे कामकाज के लिए भी केजरीवाल के सामने संकट खड़ा हो सकता है। वहीं, बिजली-पानी का भी दिल्ली में आपूर्ति करना मुश्किल भरा कदम साबित हो सकता है।
गर्मी में पानी की समस्या से जूझना होगा
हरियाणा की भाजपा सरकार अगर मुनक नहर में पानी नहीं छोड़ती है तो गर्मी में पानी की समस्या से भी जूझना पड़ेगा। दिल्ली के विकास को लेकर बना दिल्ली विकास प्राधिकरण से भी तालमेल बिठाना कठिन होगा। क्योंकि यह प्राधिकरण सीधे तौर पर केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय के अधीन है।
दिल्ली में एतिहासिक जीत के बाद भले ही केजरीवाल भाजपा के कब्जे वालीं नगर निगम की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाकर वहां कब्जा कराने की कोशिश करें, लेकिन यह भी 2017 तक संभव नहीं होगा, क्योंकि 2017 में नगर निगम में चुनाव होने के बाद ही सत्ता परिवर्तन संभव है।
अपने वायदों का जवाब जनता व मीडिया को देना होगा
वर्ष 2013 में 28 विधानसभा सीटें आने के बाद कांग्रेस के समर्थन से जब केजरीवाल ने सरकार बनाई थी तो जनलोकपाल के मुद्दे पर उन्होंने 49 दिनों में सरकार छोड़ दी। उन्हें भगौड़ा बताने वाले विपक्ष ने यह मुद्दा इस चुनाव में भी कायम रखा।
जानकारों की माने तो जनलोकपाल सहित अन्य मुद्दों पर पूर्ण बहुमत मिलने पर केजरीवाल सरकार इस बार योजनाबद्ध तरीके से इंतजार तो कर सकती है लेकिन उसे जनता व मीडिया के बीच अपने वायदों का जवाब समय-समय पर देना होगा।
कानून- व्यवस्था होगी सबसे बड़ा इश्यू 
तमाम बजट व योजनाएं एलजी के माध्यम से केंद्र सरकार से मंजूरी के बिना न मिलने के अलावा केंद्र के ही अधीन कानून व्यवस्था भी एक बड़ा इश्यू है। वैसे भी प्रचार के दौरान भाजपा नेता मंच से यह बोलते रहे कि केंद्र के बाद राज्य की सरकार जनता बनाती है तो ही सभी काम हो आसानी से हो सकेंगे।

दिल्ली सरकार की स्थिति ठीक वैसी ही होती है जैसे की बैंक में लॉकर लिया जाता है। लॉकर के इस्तेमाल में बैंकर व ग्राहक के पास मौजूद दोनों चाबी लगने पर ही लॉकर खुलता है। दिल्ली की सरकार के साथ केंद्र सरकार की चाबी लगे बिना अधिकांश कार्य संभव नहीं है।

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