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Wednesday, 28 May 2014

सबसे बड़े महारथी, सबड़े बड़े `लड़ैया`


दुनिया के महानतम संतों में शुमार होनेवाले स्वामी विवेकानंद को वेद की एक सूक्ति बड़ी प्रिय थी और इसका जिक्र उन्होंने युवाओं को प्रेरित करने के लिए बार-बार किया है। उतिष्ठित, जाग्रत, प्राप्य वरान्निबोधत् यानी उठो जागो और तबतक चलते रहो जबतक की लक्ष्य की प्राप्त नहीं हो जाए। यह सूक्ति वह युवाओं को प्रेरित करने के लिए कहते थे। वेदों की एक और सूक्ति की तरफ चलते हैं - `चरैवेति-चरैवेति` यानी चलते रहो, चलते रहो। यानी जीवन रूकने का नहीं बल्कि चलने का नाम है और मकसद तो चलने से ही हासिल होता है। यानी हर स्थिति और परिस्थिति में आगे ही बढ़ते जाने का नाम जीवन है। जीवन में निराश और हताश होकर लक्ष्य की प्राप्ति नहीं की जा सकती। जो हमारा समय निकल गया उसकी चिंता छोड़े। जो जीवन शेष बचा है उसके बारे में विचार करे।

..ये दोनों सूक्तियां आज लोकसभा चुनाव के परिणामों के मद्देनजर सबसे बड़े महारथी, सबड़े बड़े `लड़ैया`, सियासी विजेता नरेंद्र मोदी पर लागू होती है। उन्होंने आज देश की सबसे बड़ी सियासी जीत को हासिल करने के साथ ही यह साबित कर दिया कि उन्हें जीतने और विजय श्री के वरण करने तक रुकने या आराम फरमाने का शौक नहीं है। यह कहना गलत नहीं होगा कि मोदी 65 साल के करीब है लेकिन चुनाव में उन्होंने एक युवा जैसी ऊर्जा से लबरेज होकर लड़ाई लड़ी, चुनाव प्रचार किया और सबको अचंभित कर दिया। अंतत: जीत बीजेपी की हुई और कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई। मोदी के नेतृत्व में बीजेपी केंद्र की सत्ता पर काबिज हो गई ओर भगवा परचम लहरा दिया। 1984 के बाद पहली बार लोकसभा चुनाव में किसी पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिला है। यानी 30 साल बाद किसी पार्टी को स्पष्ट बहुमत हासिल हुई जो यह बताता है कि देश की जनता सही मायने में कांग्रेस से मुक्ति चाहती थी और देश की सियासत में बदलाव लाना चाहती थी।

केंद्र की सियासत में इस प्रचंड ऐतिहासिक जीत के कई मायने है जहां मोदी की अगुवाई में बीजेपी ना सिर्फ सत्ता पर काबिज हुई बल्कि उसने कांग्रेस का घमंड चकनाचूर कर दिया और परिवारवाद की परंपरा को खत्म कर दिया। बीजेपी इस बार के चुनाव में पहली बार अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए बहुमत के आंकड़े को अपने दम पर हासिल कर लिया। एनडीए को मोदी की अगुवाई में इतनी शानदार जीत हासिल होगी यह किसी ने सोचा भी नहीं था। लेकिन मोदी मैजिक और मोदी की लहर का असर इस बार सबपर भारी पड़ा और अंतत: इन सबने मोदी की विजय की पटकथा सियासी पटल पर लिखी दी।

नरेंद्र मोदी ने कई बार अपने चुनावी भाषणों में कहा था कांग्रेस इस बार के चुनाव में खाता तक नहीं खोल पाएगी। राजस्थान, गुजरात और गोवा इन तीन राज्यों में जो मोदी ने कहा वैसा ही हुआ। राजस्थान में 25,गुजरात में 26 और गोवा में 2 सीटों पर बीजेपी ने काबिज होकर कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया। चुनाव में मोदी आंधी की तरह नहीं सुनामी की तरह आए और कांग्रेस को बहाकर सत्ता से किनारे कर दिया।

अपने ताबड़तोड़ चुनाव प्रचार अभियान के दौरान विकास को अपना मुख्य मुद्दा बनाते हुए मोदी ने देश की युवा शक्ति ,मध्यवर्ग और ग्रामीण लोगों को ‘बदलाव की बयार ’ लाने का भरोसा दिलाने के लिए संपर्क साधने की पुरजोर कोशिश की और शायद उनकी यही कोशिश रंग लाई हालांकि बीच बीच में कभी कभार भगवा ताकतों के कुछ पसंदीदा विषयों को उठाकर मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने की कोशिशें भी उनके अभियान में दिखीं । एक कुशल योजनाकार मोदी ने ,रेलवे स्टेशन पर चाय बेचने वाले से लेकर भारत का एक लोकप्रिय नेता बनने तक का सफर बड़ी सफलता से पूरा किया हालाकि उनके बहुत से विरोधी उनके इस दावे से सहमत नहीं हैं कि वे कभी चाय भी बेचा करते थे । भाजपा ने उनके नेतृत्व में जबरदस्त बहुमत प्राप्त करने का ऐसा कारनामा अंजाम दिया है जैसा 1984 में राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने 400 से ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज कर किया था और ऐसा इस बीच कोई भी अन्य दल नहीं कर पाया ।

13 सितंबर 2013 को मोदी को बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार का दायित्व पार्टी ने दिया। उसके बाद वह ऐसा जुटे कि विजय गाथा की पटकथा लिखने के बाद ही रुके। 2014 के लोकसभा चुनावों की घोषणा हुई। 26 मार्च 2014 को मां वैष्‍णो देवी के आशीर्वाद के बाद उन्होंने विजय रैली का शुभारंभ किया । मां से उन्होंने आशीर्वाद लिया और जुट गए चुनाव प्रचार के विजय अभियान में। पहली रैली उन्होंने जम्मू-कश्मीर में की और अपनी आखिरी रैली पूर्वी उत्‍तर प्रदेश में बलिया में की जो 1857 की क्रांति के नायक मंगल पांडेय की भूमि है।

एक महीने के भीतर 12 दौर में 1350 स्‍थानों पर 3डी रैलियां संबोधित कीं। इस दौरान रैलिया, 3डी सभायें, चाय पे चर्चा आदि को मिला कर मोदी ने लगभग 5800 कार्यक्रम किये | 3 लाख किलोमीटर की यात्रा कर पूरे भारतवर्ष में 440 कार्यक्रम और रैलियां संबोधित की। इसमें भारत विजय रैलियां भी शामिल हैं जिनकी शुरुआत 26 मार्च 2014 से हुई थी । साथ ही इस दौरान भारत विजय 3डी रैलियों के रूप में एक ओर अभिनव प्रयोग हुआ। 3डी रैलियों के प्रति लोगों का उत्साह गजब का था।

मोदी बिना रुके, बिना थके अनवरत मेहनत करते रहे। आलम यह था कि वह एक दिन में चार से लेकर छह रैलियों तक को संबोधित कर रहे थे। कई हफ्तों तक उनका गला बैठ गया। फिर भी वह सियासात की बेहतरी की खातिर चिल्लाते रहे, गरजते रहे, जनता से वोट देने की अपील करते रहे। उनका चुनावी अभियान किसी मैराथन से कम नहीं था। मोदी ने अपने धुंआधार प्रचार अभियान से लोकसभा चुनाव प्रचार का रिकार्ड ब्रेक कर दिया। मोदी ने इस दौरान देश भर में तीन लाख किलोमीटर से अधिक दूरी तय कर एक अनूठा रिकार्ड बना दिया। कुल 5827 कार्यक्रमों में भाग लिया।

उन्होंने बीते साल सितंबर महीने से अब तक 25 राज्यों में 437 जनसभाओं को संबोधित किया और 1350 3डी रैलियों में शिरकत की। 5827 सार्वजनिक कार्यक्रमों के जरिये मोदी ने करीब 10 करोड़ लोगों तक अपनी पहुंच बनाई। मोदी का यह प्रचार अभियान ‘ऐतिहासिक’ और ‘अभूतपूर्व’ कहा जा सकता है। इस दौरान वह देश के हर राज्य और बड़े शहर में जा पहुंचे। पूरे देश को नाप लिया। मोदी चलते गए, बढ़ते गए और उन्होंने आखिरकार मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री बनकर ही दम लिया।

मोदी ने इस ऐतिहासिक जीत के बाद ट्वीट कर कहा भी- `यह जीत भारत की है और अच्छे दिन आनेवाले हैं।` मोदी की वेबसाइट उनके संकल्प को हर क्लिक पर और हर पल दोहराती नजर आती है- `सौगंध मुझे इस मिट्टी की मैं देश नहीं मिटने दूगा । मै देश नहीं झुकने दूंगा।` अब जनता ने देश का नेतृत्व मोदी के हाथों देकर उन्हें प्रधानमंत्री का दायित्व सौंप दिया है। अब देश की जनता के सामने उम्मीदें मोदी की नीति और नीयत से होंगी। उन मुश्किलों से निजात दिलाने से होंगी जो जनता चाहती है। मोदी हर कसौटी पर खरा उतरेंगे यह उम्मीदें सबको होंगी।


Friday, 23 May 2014

मांझी नहीं लगा पाएंगे जदयू की नैया पार!

मांझी नहीं लगा पाएंगे जदयू की नैया पार!

बिहार में नतीश कुमार के इस्तीफे के बाद मांझी को सीएम बनाने पर एक बार फिर सियासत शुरू हो गई है.. लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद जदयू ने इस बार महादलित कार्ड खेलकर दलितों को लुभाने का पैंतरा खेला है.. लेकिन शायद नीतीश के इस फैसले से बिहार की काफी जनता निराश भी है.. क्यों कि जनता ने अगर मोदी को पूर्ण बहुमत की सरकार दी है..तो नीतीश के इस फैसले का गलत असर पड़ सकता है... सवाल ये उठने लगा है की क्या उन्हें दलित होने की वजह से इस कुर्सी के लिए चुना गया है.. और क्या ऐसा करके जनता  दल यूनाइटेड ने दलित कार्ड नहीं खेला है ? मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देकर नीतीश कुमार ये दिखाना चाहते हैं कि पार्टी के सभी विधायक उनके साथ हैं.. इसके पहले मीडिया में इस बात को लेकर चर्चा थी कि  कई विधायक और मंत्री भारतीय जनता पार्टी से मिले हुए हैं.. वहीं भाजपा नेता ये दावा कर रहे थे कि वे जब चाहें नीतीश सरकार को गिरा सकते हैं..लेकिन इसके साथ ही एक सवाल ये भी खड़ा होता है कि अगर पार्टी विधायक दल की बैठक में इस्तीफे की घोषणा करते तो क्या ज़्यादा बेहतर नहीं होता

 
नीतीश के लिए कबसे शुरू काला दिन?

पूरे देश में चल रही मोदी की लहर ने ये तो साबित कर दिया कि.. ये लहर नहीं थी ये तो सुनामी थी..जिसका असर लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद दिखा..कि बीजेपी ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई..और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बन गए... फिलहाल जदयू के लिए उसी दिन से काला दिन शुरू हो गया था जब उसने बीजेपी से अपना पुराना नाता तोड़ा था.. साथ ही नीतीश का भी पीएम बनने का जो सपना था वो उसी दिन से अधूरा रह गया.. ऐसे में अब देखने वाली बात ये होगी कि बिहार में जीतन राम मांझी जदयू की नैया कैसे पार लगाते हैं... इस पर सबकी नजरें हैं...


लेखक- अजित पाण्डेय, राष्ट्रीय अध्यक्ष, पूर्वांचल विकास मोर्चा

Thursday, 22 May 2014

दिल्ली बीजेपी के लिए हर्षवर्धन हर बार बने कर्णधार





दिल्ली बीजेपी के लिए हर्षवर्धन हर बार बने कर्णधार

पेशे से डॉक्टर और राजनीति में अपनी साफ सुथरी छवि के लिए मशहूर दिल्ली बीजेपी के नेता हर्षवर्धन पर बीजेपी एक बार फिर दांव खेलना चाहती है... दिल्ली विधानसभा चुनाव में आप जैसी उभरती नई पार्टी और सत्ताधारी कांग्रेस का सामना करना बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई थी... लेकिन बीजेपी ने दिल्ली में एक बार फिर विजय गोयल को हटाकर हर्षवर्धन पर दांव खेला और बीजेपी दिल्ली विधानसभा चुनाव में पहली बड़ी पार्टी उभरकर निकली..लेकिन अपनी सरकार नहीं बना सकी.. इस बार लोकसभा चुनाव में भी कुछ ऐसा ही हुआ.. लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने जहां एक ओर मोदी के नाम पर पूरे देश में पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता हासिल की..तो वहीं दूसरी ओर दिल्ली में सातो की सातो सीटों पर हर्षवर्धन के नेतृत्व में अपना कब्जा जमाया... बीजेपी के लिए अब हर्षवर्धन मानो जैसे तुरुप का इक्का बन गए हों.. इसलिए बीजेपी में हर्षवर्धन को कैबिनेट में दो मंत्रालय देने की मांग भी उठ गई है... क्यों कि बीजेपी इस बार फिर से दिल्ली में आप और कांग्रेस को मात देकर एक तरफा कब्जा जमाना चाहती है... और कब्जा जमाने के लिए बीजेपी दिल्ली में एक बार फिर हर्षवर्धन के नेतृत्व में चुनाव लड़ने से गुरेज नहीं करेगी...


 कौन हैं डॉक्‍टर हर्षवर्धन

दिल्ली बीजेपी के लिए डॉ. हर्षवर्धन का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं.. पूर्वी दिल्ली की कृष्णानगर सीट से विधायक हर्षवर्धन इस सीट से लगातार चार बार जीत दर्ज कर चुके हैं.. 1993 में पहली बार जीतकर विधानसभा पहुंचे और उन्‍हें दिल्ली के  स्वास्थ्य मंत्री की जिम्मेदारी मिली.. हर्षवर्धन पेशे से डॉक्टर हैं..  उन्होंने जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस और फिर एमएस किया.. और ईएनटी में स्पेशलाइजेशन किया.. उन्होंने दिल्ली में ईएनटी सर्जन के तौर पर प्रैक्टिस शुरू की.. वे दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के सचिव से लेकर प्रेसीडेंट तक के पद पर रहे.. हर्षवर्धन के स्वास्थ्य मंत्री के तौर पर कार्यकाल को आज भी याद किया जाता है... कम उम्र से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हर्षवर्धन ने दिल्ली के चुनाव में बिलकुल सटीक ढंग से पार्टी का नेतृत्व किया.. हर्षवर्धन के करीबी भी  उनके सरल व्यवहार और मिलनसार व्यक्तित्व से खासे प्रभावित रहते हैं.. यही वजह है कि उन्हें समाज के अलग अलग तबकों का समर्थन मिलता है.. उनके  संघ से अच्छे रिश्ते हैं.. दिल्ली भाजपा के वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि हर्षवर्धन को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने से पार्टी को खासा  फायदा हुआ.. साल 2003 के आखिर में उन्हें दिल्ली भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया.. पार्टी को फिर से संगठित करने का श्रेय उनको दिया जाता है...


लेखक - अजीत पाण्डेय, राष्ट्रीय अध्यक्ष, पूर्वांचल विकास मोर्चा