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Sunday, 2 February 2014

सिख विरोधी दंगों, कांग्रेस के लिए मुश्किलें




आम चुनाव से पहले कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का टीवी पर दिया गया पहला साक्षात्कार पार्टी को बेहद भारी पड़ रहा है। सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की आशंका से गुजरात दंगों पर बहुत आक्रामक रुख अपनाने से बचती रही कांग्रेस के कंधों पर राहुल की टिप्पणी के बाद सिख दंगों का भूत एक बार फिर सवार हो गया है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 30 साल बाद 1984 के सिख विरोधी दंगों की जांच के लिए विशेष जांच दल गठित करने की उपराज्यपाल नजीब जंग से मांग की है।
केजरीवाल ने कहा कि वह शुक्रवार को दिल्ली मंत्रिमंडल की बैठक में एसआइटी गठन का प्रस्ताव लाएंगे और इस पर चर्चा होगी। भाजपा और अकाली दल ने भी एसआइटी जांच का समर्थन कर कांग्रेस के लिए मुश्किल खड़ी कर दी है। हैरान-परेशान कांग्रेस भी केजरीवाल के इस कदम का विरोध करने की स्थिति में नहीं है और उसने भी कहा कि किसी भी विधिसम्मत जांच का वह समर्थन करेगी।
सिख दंगों का जिन्न कांग्रेस के कंधों पर अपना बोझ बढ़ाता जा रहा है। 1984 में तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के प्रेस एडवाइजर रहे तरलोचन सिंह ने दंगों को होने देने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को जिम्मेदार ठहराकर इस मामले में कांग्रेस के लिए और पेचीदा कर दिया है। वहीं, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की सिख दंगों में कुछ कांग्रेसियों के भी शामिल होने की स्वीकारोक्ति के बाद सिख संगठनों का गुस्सा पार्टी मुख्यालय के दफ्तर तक जा पहुंचा। सिख दंगों की जांच के लिए एसआइटी के गठन की संभावनाएं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पहले ही तलाशनी शुरू कर दी है। वहीं भाजपा और अकाली दल ने 1984 में सिखों के नरसंहार के मुद्दे पर दोषियों को सजा न होने का मुद्दा गरमा कर आम चुनाव से ऐन पहले कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं।तरलोचन सिंह ने दावा किया है कि जब पूरा देश दंगों की आग में जल रहा था तब राष्ट्रपति के कई बार फोन करने के बाद भी राजीव गांधी उपलब्ध नहीं हुए थे। भाजपा और अकाली दल के साथ-साथ इस मामले में आम आदमी पार्टी ने भी कांग्रेस पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। इसने कांग्रेस आलाकमान को बेहद चिंता में डाल दिया है। सबसे बड़ी दिक्कत है कि सिख दंगों की एसआइटी के साथ-साथ अब बटला हाउस कांड की भी जांच की मांग उठने लगी है। जिस ध्रुवीकरण की आशंका में कांग्रेस खुलकर गुजरात के दंगों को नहीं उठा रही थी, उसकी जगह 30 साल पुराना जिन्न सामने आने से पार्टी हैरत में है। समस्या यह है कि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के गुजरात और सिख दंगों की तुलना और कुछ कांग्रेसियों के इसमें शामिल होने की स्वीकारोक्ति पर पार्टी खुलकर कुछ बोल भी नहीं पा रही है। दिल्ली के साथ-साथ पंजाब व अन्य राज्यों में रह रहे सिखों के लिए यह काफी भावनात्मक मुद्दा है। इसलिए पार्टी के सभी प्रवक्ताओं को बेहद संयत रहने के आदेश दिए गए हैं।
देश के करोड़ों युवाओं में अपार ऊर्जा का संचार करने वाले कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने हालिया औपचारिक टेलिविजन इंटरव्यू से पार्टी कार्यकर्ताओं और युवाओं को निराश किया है। सोशल नेटवर्किंग साइटों पर युवाओं की प्रतिक्रियाएं इस बात का तस्दीक करती हैं। कांग्रेस के रणनीतिकारों ने राहुल की छवि चमकाने के लिए बहुत सोच-विचार कर इस इंटरव्यू की रूपरेखा तैयार की थी, लेकिन राहुल के जवाबों ने खुद कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। कांग्रेस के रणनीतिकारों ने उम्मीद की होगी कि राहुल इस इंटरव्यू के जरिए विभिन्न मसलों पर अपनी राय बेबाकी और प्रभावी तरीके से रखेंगे। वह उन मसलों (भ्रष्टाचार, महंगाई) पर सीधे और स्पष्ट राय रखेंगे जो आगामी लोकसभा चुनाव में लोगों को प्रभावित करने जा रहे हैं। लेकिन वह इन मुद्दों पर बोलने की बजाय महिला सशक्तिकरण, ऊर्जावान युवा, व्यवस्था परिवर्तन और आरटीआई पर ही मुखर रहे। राहुल भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार और इस पद की तरफ रोज एक कदम आगे बढ़ने वाले नरेंद्र मोदी को चुनौती देने से बचते नजर आए। जबकि नरेंद्र मोदी राहुल या कांग्रेस पार्टी को घेरने का एक भी मौका हाथ से छूटने नहीं देते। मोदी ने अपनी हर रैली में राहुल के ऊपर तंज कसा है और कांग्रेस पार्टी को चुनौती दी है। लेकिन राहुल अपने इंटरव्यू में ऐसा कोई भी विमर्श पैदा नहीं कर पाए जो भाजपा या नरेंद्र मोदी के माथे पर शिकन पैदा कर सके। उल्टे राहुल ने 1984 के सिख दंगों में कुछ कांग्रेसी नेताओं की भूमिका की बात स्वीकार कर भाजपा को बैठे-बिठाए मुद्दा दे दिया। दरअसल, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी करीब एक दशक के अपने राजनीतिक करियर में सियासी जोड़-तोड़ और तीन-तिकड़म को सीख नहीं पाए, वह तथ्यों को चतुराई से अपने पक्ष में भी नहीं रख पाते हैं। वह 1984 के सिख दंगों के बारे में कांग्रेस पार्टी की लाइन ही बोल गए होते तो शायद यह झमेला नहीं खड़ा होता। लेकिन बातचीत की रव में राहुल वह सच्चाई बयां कर गए जिससे कांग्रेस पार्टी हमेशा इंकार करती आई है।
राहुल का यह बयान अब उनके और उनकी पार्टी के लिए मुश्किल का सबब बन गया है। राहुल के बयान के खिलाफ दिल्ली में सिख संगठन सड़कों पर उतर आए हैं। प्रदर्शनकारियों की मांग है कि राहुल सीबीआई की सामने पेश हों और उन कांग्रेसी नेताओं के नाम बताएं जो सिख विरोधी दंगों में शामिल थे। दूसरा, राहुल ने अपने इंटरव्यू में 2002 के गुजरात दंगों के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को जिम्मेदार बताया है। राहुल ने कहा कि ‘मोदी उस वक्त राज्य के मुख्यमंत्री थे। 1984 और गुजरात के दंगों में यही मुख्य अंतर है कि गुजरात दंगों में वहां की सरकार शामिल थी।’ गौर करने वाली बात है कि राहुल के इस बयान का विरोध कांग्रेस की सबसे बड़ी सहयोगी पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने किया है। राकांपा नेता प्रफुल्ल पटेल ने कहा है कि मोदी को कानूनी तौर पर क्लीन चिट मिल गई है तो उनपर आरोप लगाना उचित नहीं है। यानी गुजरात दंगे जिसे कांग्रेस पार्टी मोदी के खिलाफ अपना सबसे बड़ा हथियार मानती रही है, इसे आगे भी लेकर चलती रही तो आने वाले समय में उसका अपने ही सहयोगी पार्टियों से टकराव हो सकता है।
1984 दंगों में पुलिस या सीबीआइ ने अब तक कुल कितने केस दर्ज किए हैं, कितने मामलों में अभियुक्तों को सजा हो चुकी है और कितने मामलों में आरोपी बरी हुए हैं? ऐसे कितने मामले हैं, जिनमें अभियोजन ने बरी हुए आरोपियों के खिलाफ अपील दायर की और कितने मामले अनट्रेस रहे हैं? यह जानकारी दिल्ली हाई कोर्ट ने दंगा मामले में उम्रकैद की सजा पाए पूर्व पार्षद बलवान खोखर की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए सीबीआइ से मांगी है। वहीं अदालत ने बलवान खोखर की जमानत याचिका पर सुनवाई 12 मार्च तक के लिए टाल दी है।
कांग्रेस को ऐसा लग रहा है कि 1984 के सिख विरोधी दंगों को चर्चा के केंद्र में लाकर राहुल ने मोदी के खिलाफ उसकी रणनीति को कमजोर किया है। आगामी चुनावों तक कांग्रेस गुजरात दंगों को लेकर मोदी पर हमलावर रहती, लेकिन सिख दंगों पर बात होने पर उसे बैकफुट पर आना होगा और मोदी को ‘कम्यूनल’ बताने से पहले उसे खुद को पाक-साफ पेश करना होगा। राहुल के इस पहले औपचारिक इंटरव्यू से कांग्रेसी खेमे में निराशा का माहौल है। राजनीति के जानकारों का कहना है कि राहुल सवालों का जवाब ठीक तरीके से नहीं दे पाए और इंटरव्यू के दौरान कई दफे वह ‘नर्वस’ भी दिखे। बहरहाल, राहुल का यह पहला औपचारिक इंटरव्यू था और इंटरव्यू लेने वाला शख्स भी टेलीविजन की दुनिया का दिग्गज एंकर था। राहुल इस तरह के इंटरव्यू के आदी नहीं हैं। ऐसे में तमाम तैयारियों के बावजूद भी कुछ कोर-कसर बाकी रह जाती है। उम्मीद है कि आने वाले समय में राहुल और कई औपचारिक इंटरव्यू देंगे और तब उनसे इस तरह की चूक नहीं होगी।
उधर, अकाली दल और भाजपा ने भी कांग्रेस पर हमला तेज कर दिया है। अकाली दल के प्रदेशाध्यक्ष मंजीत सिंह जीके ने कहा कि राहुल ने जब दंगों में कांग्रेसियों की संलिप्तता स्वीकार ली है तो अब इसमें माफी नहीं बल्कि दोषियों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। एसआइटी से इसकी जांच की मांग करते हुए मंजीत ने गुरुवार सुबह से 24 अकबर रोड स्थित कांग्रेस मुख्यालय के बाहर धरना देने का एलान भी किया। भाजपा के प्रवक्ता डॉ. सुधांशु त्रिवेदी ने भी केजरीवाल सरकार द्वारा एसआइटी जांच की मांग का स्वागत किया, लेकिन दिल्ली सरकार से अपेक्षा की कि वह कांग्रेस पर कार्रवाई के लिए दबाव भी बनाएगी। वहीं, कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि कांग्रेस किसी भी विधिसम्मत जांच के पक्ष में है।
 बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने वर्ष 1984 के दौरान दिल्ली और बिहार में सिक्ख विरोधी दंगों के लिए तत्कालीन कांग्रेस की केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराया है। इसके अलावा उन्होंने वर्ष 1989 में हुए भागलपुर दंगों के लिए भी कांग्रेस को ही जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने कहा कि इस तरह के दंगों पर सभी को शर्म आती है और सभी का सिर शर्म से झुक जाता है। यह बात उन्होंने मंगलवार को पटना में एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान कहीं। नीतीश ने कहा कि जिस तरह से कांग्रेस 1984 और 1989 के दंगों के उत्तरदायी है ठीक उसी तरह गुजरात में वर्ष 2002 में हुए दंगों के लिए वहां की भाजपा सरकार जिम्मेदार है। उन्होंने साफतौर पर कहा कि यह दोनों पार्टियां इन दंगों से मुंह नहीं फेर सकती हैं, लिहाजा इस विनाशलीला की जिम्मेदारी लेनी होगी, वह इससे बच नहीं सकती हैं।

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