Translate

Thursday, 6 March 2014

विघटनकारी, अराजक और छद्म है केजरीवाल

गांधी के नाम पर राजनीति करने वाले केजरीवाल और उनके समर्थक अपने आचरण के जरिए, गांधीवादी मूल्यों और सिद्धांतों की रोज तिलांजलि देते नज़र आ रहे हैं। गुजरात, दिल्ली, लखनऊ सहित देश के अलग-अलग हिस्सों में आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं की तोड़फोड़ और हिंसक प्रदर्शनों से एक बार फिर ये बात साबित हुई है कि केजरीवाल और उनके साथियों का मक़सद सिर्फ और सिर्फ अराजकता फैलाकर अपना राजनीतिक एजेंडा पूरा करना है।

गुजरात की राजधानी अहमदाबाद में आज सुबह, सड़क जाम करके अराजकता फैलाने की कोशिश कर रहे केजरीवाल को महज़ कुछ मिनट के लिए डिटेन किया गया था। लेकिन उस कार्रवाई के खिलाफ़ केजरीवाल ने अपने समर्थकों के जरिये जिस तरह से दिल्ली और लखनऊ में बीजेपी दफ्तर पर तोड़फोड़ करवाई है, वो कहीं से भी स्वस्थ्य राजनीतिक परंपरा नहीं हो सकती।

गांधी ने लंबे राजनीतिक जीवन में कभी भी हिंसा और अराजकता को बढ़ावा नहीं दिया। कई मौके ऐसे आए, जब गांधी जी ने अपने आंदोलन को हिंसक होने से बचाने के लिए, उसे स्थगित करना ज़्यादा मुनासिब समझा। सामाजिक सद्भाव कायम करने और उसे बनाए रखने के लिए, गांधी ने अपने प्राण तक की आहूति दे दी। लेकिन अराजक और सांप्रादायिक ताकतों से कभी समझौता नहीं किया।

आज गांधी के नाम पर व्यवस्था बदलाव के लिए निकले अरविंद केजरीवाल सत्ता के लिए एक तरफ परोक्ष रूप से कांग्रेस से गठबंधन करते दिख रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ मौलाना तौकीर और प्रमोद कृष्णन जैसे सांप्रदायिक और संदिग्ध व्यक्तित्व वाले लोगों के साथ गलबहियां कर रहे हैं।
मौलाना तौकीर और प्रमोद कृष्णन का इतिहास किसी से छिपा नहीं है। कांग्रेस के दिग्विजय सिंह से इन लोगों की नज़दीकियां भी जग जाहिर है।

उत्तर प्रदेश के बरेली में पिछले साल हुए दंगे में, मौलाना तौकीर रज़ा की भूमिका आज भी पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज है। ठीक उसी तरह से राजस्थान के अज़मेर में हुए बम धमाके के आरोपी के साथ प्रमोद कृष्णन के रिश्ते भी पिछले दिनों सुर्खियों में रहे हैं। दिलचस्प बात ये है कि, इन दो नेताओं ने `HUM` हिंदुस्तान यूनाइटेड मूवमेंट पार्टी का ऐलान कर दिया है। साथ ही नरेंद्र मोदी के खिलाफ़ अरविंद केजरीवाल की उम्मीदवारी के समर्थन की घोषणा भी कर दी।किस राह पर केजरी


HUM के संयोजक प्रमोद कृष्णन का तो ये भी कहना है, कि बीजेपी विरोधी सभी राजनीतिक दलों को नरेंद्र मोदी के मुकाबले, केजरीवाल को समर्थन देना चाहिए। और केजरीवाल के खिलाफ अपना उम्मीदवार नहीं उतारना चाहिए। कांग्रेस की मदद से दिल्ली में लगभग 40 दिन तक सरकार चलाकर केजरीवाल और उनके साथी पहले ही बेनकाब हो गए हैं। अपनी प्रशासनिक अक्षमता और अराजकता के लिए भी केजरीवाल कुख्यात हो चुके हैं।

नरेंद्र मोदी के बढ़ते प्रभाव से खुद को बगैर लड़े पराजित मान चुकी कांग्रेस पार्टी, केजरीवाल, तौकीर रज़ा, प्रमोद कृष्णन सरीखे सांप्रदायिक, अराजक और संदिग्ध ताकतों के ज़रिए, 2014 के चुनावी महासमर में अपनी नैया को डूबने से बचाने की कोशिश में लगी है। ऐसी स्थिति में देश की आवाम को ऐसे विघटनकारी, अराजक और छद्म वेश में घूम रहे सामाजिक कार्यकर्ताओं और धर्मगुरुओं से सजग रहने की जरूरत है।

No comments:

Post a Comment