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Saturday, 15 March 2014

मीडिया को क्यों धमका रहा है केजरीवाल?

इससे बड़ी विडंबना और कोई नहीं हो सकती कि जिस दल के उभार में मीडिया की खासी भूमिका रही वही अब उसे न केवल धमका रहा है, बल्कि नेता विशेष के हाथों का खिलौना बता रहा है। पता नहीं आम आदमी पार्टी के नेता मीडिया से क्या चाहते हैं, लेकिन इसमें दोराय नहीं कि उन्होंने खबरों में बने रहने का जरिया खोज लिया है।

वह कुछ न कुछ ऐसा करते या कहते ही रहते हैं जिससे मीडिया और खासकर टेलीविजन चैनलों में छाए रहें। शायद उन्होंने अपना रवैया बदलने और अपनी ही कही बातों से मुकरने में भी महारत हासिल कर ली है। आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने नागपुर में एक समूह के बीच मीडिया को बिका हुआ करार देते हुए यह भी कहा कि अगर वह सत्ता में आए तो मीडियावालों को जेल भेजेंगे।

जब उनका यह बयान सार्वजनिक हुआ तो वह उससे साफ मुकर गए, लेकिन दिल्ली में उनके समर्थकों ने मीडिया के खिलाफ मोर्चा संभाल लिया और कुछ कथित प्रसंगों के जरिये यह साबित करने की कोशिश की कि मीडिया वाकई बिका हुआ है और नरेंद्र मोदी का बढ़-चढ़कर प्रचार करने में जुटा है। आम आदमी पार्टी के इन नेताओं ने मीडियाकर्मियों को यह भी समझाने की कोशिश की कि उन्हें किस तरह काम करना चाहिए और विरोधी दलों के नेताओं से किस तरह के सवाल पूछने चाहिए।

इन नेताओं में कुछ पूर्व पत्रकार भी थे, लेकिन वे केजरीवाल को सही और शेष सबको गलत करार देने के लिए अतिरिक्त मेहनत करते ही दिखे।
आम आदमी पार्टी को मीडिया से कुछ शिकायतें हो सकती हैं-ठीक वैसे ही जैसे चुनाव के मौके पर करीब-करीब हर दल को रहती हैं, क्योंकि सभी की यही चाहत होती है कि उसके बारे में ज्यादा से ज्यादा दिखाया-बताया जाए और वह भी उसकी उपलब्धियों और लोकप्रियता को।

यह संभव नहीं है, क्योंकि मीडिया को राजनीतिक दलों और नेताओं के सभी पक्षों पर निगाह डालनी होती है। ऐसा लगता है कि आम आदमी पार्टी यह चाहती है कि जिस तरह वह अन्य मामलों में अपने हिसाब से नियम-कानून तय करने में लगी हुई है वैसे ही मीडिया के लिए भी अपनी पसंद की कोई आचार संहिता न केवल बनाना चाहती है, बल्कि उसे तत्काल प्रभाव से लागू भी करना चाहती है।

इस दल की ओर से पेड न्यूज के मामले को भी उछालने की कोशिश की जा रही है, लेकिन बिना किसी तथ्य और प्रमाण के। नि:संदेह पेड न्यूज एक बुराई है और उसके खिलाफ हर किसी को खड़ा होना चाहिए, लेकिन अपनी आलोचना से घबराकर इस मामले को बेवजह तूल देने का भी कोई मतलब नहीं। आम आदमी पार्टी के नेता तो खोजबीन और स्टिंग आपरेशन करने में माहिर हैं।

आखिर वे जो कुछ कह रहे हैं उसके पक्ष में कोई प्रमाण प्रस्तुत क्यों नहीं कर पा रहे हैं? कुछ समय पहले इस दल का यह कहना था कि हमारा उद्देश्य हंगामा करना नहीं, बल्कि सूरत बदलना है, लेकिन ऐसा लगता है कि उसका मकसद हंगामा करते रहना ही है। इस दल के नेता हंगामों के जरिये ही सनसनी फैलाना चाहते हैं और उसके आधार पर अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करना चाहते हैं। इन तौर-तरीकों से राजनीति और शासन में किसी सार्थक बदलाव की आशा नहीं की जा सकती।

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