अन्ना हजारे के करीबी सहयोगी जस्टिस संतोष हेगड़े ने ठीक कहा है कि ‘आप’ की सरकार बनी तो खुश था, अब निराश हूं। यह देश के हम जैसे करोड़ों लोगों की भावना का प्रतिबिंब है। संतोष हेगड़े कहते हैं कि किसी की ओर से धारा 144 का उल्लंघन किया जाना गैरकानूनी है, चाहे वह मुख्यमंत्री ही क्यों न हों? पुलिस प्रशासन के नियंत्रण को लेकर कोई विवाद है, तो बातचीत के जरिए या कोर्ट जाकर मसले को सुलझाया जा सकता है। इनके अलावा, कांग्रेस-भाजपा सहित कई दूसरे दलों के लोग भी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के हालिया धरना-प्रदर्शन को ‘नौटंकी’करार देने से बाज नहीं आते। हालांकि, ‘आप’ के संयोजक दिल्ली के मुख्यमंत्री अरिवंद केजरीवाल कहते हैं कि देश की राजनीति बदल गई है। कांग्रेस, भाजपा और मीडिया वाले भी समझ लें कि अब राजनीति ऐसी ही होगी। जिसे आप नौटंकी कह रहे हैं वही असली जनतंत्र है। इन लोगों को समझना चाहिए कि देश का पॉलिटिकल डिस्कोर्स बदल रहा है। शहर में इतने अपराध को सहन नहीं किया जाएगा।
वहीं, दूसरी ओर कुछ लोगों का यह भी कहना है कि सच तो यह भी है कि ‘आप’ के नेताओं के उत्साह की दाद देनी होगी, क्योंकि मंत्री लोग पुलिस के काम में अक्सर हस्तक्षेप तभी करते हैं, जबकि उन्हें उससे कोई गलत काम करवाने होते हैं (जैसा कि पूर्व गृह सचिव ने गृहमंत्री पर आरोप लगाया है) जबकि ‘आप’ के मंत्री सही काम के लिए दखलंदाजी कर रहे थे। लेकिन यहां मूल प्रश्न यह है कि सही काम के लिए क्या सही तरीका अपनाया गया था? यदि तरीका गलत हो तो सही काम भी खटाई में पड़ जाता है। यह गलती उत्साह के आधिक्य और अनुभव की कमी के कारण हुई है। इसके अलावा ‘आप’ की सरकार से कोई पूछे कि कोई सेनापति सीमांत पर पहुंचकर गोलियां दागता है, क्या? क्या उसे अपने जवानों पर विश्वास नहीं है? यदि आपको अपनी पुलिस और अफसरों पर विश्वास नहीं है तो आप सरकार कैसे चलाएंगे? क्या अपराधियों को पकड़वाने के लिए मुख्यमंत्री और अन्य मंत्री रात भर गलियों के चक्कर लगाते रहेंगे? यदि हां तो दिन में सरकार कौन चलाएगा? सरकार चलाना और आंदोलन चलाना, दो अलग-अलग बाते हैं। इसके अलावा अफ्रीकी महिलाओं के साथ जो दुर्व्यवहार हुआ और उनकी जांच के नाम पर अस्पताल में उनकी जो बेइज्जती हुई, उसके लिए कौन जिम्मेदार होगा? अफ्रीकी देशों के अखबारों में भारत की बदनामी का खामियाजा कौन भुगतेगा? यह सरकार तो दिल्ली प्रदेश की है लेकिन बदनामी पूरे भारत की हो रही है। कहीं ऐसा तो नहीं कि डेनमार्क की महिला के साथ हुए बलात्कार की खबर को दबाने के लिए यह स्वांग रचा गया था? यदि ऐसा है तो आम आदमी पार्टी जल्दी ही अपने आपको आम नौटंकी पार्टी बना लेगी।
हालिया धरना-प्रदर्शन और उसकी समाप्ति को लेकर भी कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं।
बहुत अधिक दिन नहीं बीते हैं। चंद सप्ताह पहले की बात है। आम आदमी पार्टी की सदस्यता लेने के लिए लोग उमड़ से पड़े थे और अब हालात कुछ ऐसे हैं कि 'आप' के प्रचंड समर्थक भी कह रहे हैं कि उनका नेतृत्व जरूरी मुद्दों से भटक रहा है। बीते दिनों 'आप' में शामिल होने वाले महत्वपूर्ण लोगों में से एक कैप्टन जीआर गोपीनाथ ने भी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के तौर तरीकों की कड़ी आलोचना की है। विमानन क्षेत्र की कंपनी एयर डक्कन के संस्थापक कैप्टन गोपीनाथ को इस बात का श्रेय दिया जाता है कि उन्होंने सस्ती विमानन सेवा मुहैया कराकर भारत के आम आदमी को हवाई यात्रा कराई। "'आप' में हाल में शामिल हुए सदस्य इस बात को लेकर फिक्रमंद हैं कि पार्टी विकास विरोधी और कम्युनिस्ट समर्थक करार दिए जाने के खतरे की कीमत पर चलाई जा रही है। 'आप' के कट्टर समर्थक रहे मध्य वर्ग के पढ़े लिखे लोगों का समर्थन खोने का भी खतरा है, जिन्होंने इसे सत्ता में पहुँचाया।
ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि अगर ह्यआपह्ण (जो बार-बार उसके मंत्री या नेता सत्ता में आने के पहले कहते रहे हैं) पहले की कांग्रेसी सरकार पर, जिन आरोपों की सीढ़ी चढ़ कर सत्ता में आयी, उसे खुलासा कर, शीला दीक्षित, कांग्रेस सरकार या भाजपा के दोषी लोगों को जेल पहुंचाये, तो एक नयी शुरूआत होगी। यह मूल काम छोड़ कर ह्यआपह्ण अपनी सरकार को शहीद बनाने के लिए यह आंदोलन अगर चला रही है, तो देश की राजनीति में जो उम्मीद की किरण पैदा हुई है, वह धुंध में बदल जायेगी। ह्यआपह्ण की विफलता, देश में बदलाव के सपनों को ही आनेवाले कई दशकों के लिए खत्म कर देगी। आज जब भारत को बचाने-मजबूत बनाने के लिए दिल्ली में मजबूत सरकार चाहिए, तब यह अराजकता देश को कहां पहुंचायेगी?
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के धरने को खत्म करवाने में कुछ खास लोगों ने भूमिका निभाई। इस धरने को लेकर एक हद तक अड़ गए केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे और केजरीवाल के बीच 'समझौता' करवाने में दिल्ली के उपराज्यपाल और पुरानी दिल्ली के वाशिंदे नजीब जंग को ही आखिर आगे आना पड़ा। 21 जनवरी की रात में जिस तरह से धरना अचानक खत्म हुआ है, उससे साफ है कि शहर में गंभीर तनाव का कारण बन रहे इस धरने को खत्म करवाने में पर्दे के पीछे कुछ लोगों ने अपना रोल जरूर अदा किया है। मुख्यमंत्री केजरीवाल इससे पूर्व सुबह तक गृह मंत्री शिंदे की नींद उड़ाने की बात कर रहे थे। इसके अलावा उन्होंने यह भी धमकी दी थी कि अगर हमारी मांगें नहीं मानी गईं, तो आम आदमी पार्टी के लाखों कार्यकर्ता रेल भवन पर पहुंच जाएंगे। लेकिन दिन चढ़ते-चढ़ते मामला बदलने लगा और दोपहर बाद पुलिस और पार्टी कार्यकर्ताओं की भिड़ंत और उसके बाद उपजे हालात और कुछ खास लोगों की इस धरने को खत्म करवाने की पहल ने सारा तनाव खत्म करा दिया और शाम ढलते ही केजरीवाल ने धरना वापस लेने की घोषणा कर डाली। इस मामले में पुरानी दिल्ली के मटियामहल से विधायक शोएब इकबाल और आम आदमी पार्टी के एक पदाधिकारी ने मध्यस्थता की भूमिका अदा की। बताते हैं कि कड़ी पुलिस व्यवस्था के कारण आम लोगों के धरना स्थल तक न पहुंचने, पुलिस और आप कार्यकर्ताओं र्ओं के विरोध और मीडिया द्वारा धरने के खिलाफ रिपोर्टिंग के बाद आम आदमी पार्टी के 'दिमागदार' लोग खासे 'विचलित' हो गए। इससे पूर्व पार्टी नेताओं की विधायक और अपनी पार्टी के पदाधिकारी द्वारा धरने को खत्म करने को लेकर उपराज्यपाल नजीब जंग से बातचीत चल रही थी। असल में शोएब इकबाल इसलिए बीच में आए, क्योंकि कुछ दिन पूर्व वह ‘आप’ में शामिल होने का संकेत दे चुके थे। इस कवायद के बीच उपराज्यपाल ने गृह मंत्री से मामले को सुलझाने की गुजारिश की, जिसके बाद दो पुलिस आॅफिसरों को छुट्टी पर भेजने का निर्णय लिया गया। खास बात यह रही कि इस सुलझते मामले की सूचना देने के लिए दोपहर करीब 3 बजे शोएब इकबाल धरनास्थल पर पहुंचे। उन्होंने मामले की सारी जानकारी आप टीम को बताई। इसके बाद आप टीम ने प्रेस क्लब में बैठक कर धरना खत्म करने पर विचार किया। मामले को आगे बढ़ाने के लिए उपराज्यपाल ने शाम करीब 7 बजे अरविंद केजरीवाल से गणतंत्र दिवस की सुरक्षा को देखते हुए धरना खत्म करने की अपील की और यह भी बताया कि दो पुलिस आॅफिसरों मालवीय नगर के एसएचओ और पहाड़गंज के पीसीआर ड्यूटी इंचार्ज को अवकाश पर भेजा जा रहा है। इतना होने के कुछ देर बाद केजरीवाल ने धरनास्थल पर ही अपना धरना खत्म करने की घोषणा की। माना जा रहा है कि 'पुरानी दिल्ली के लोग' अगर धरने को लेकर अगर पहल न करते तो धरना आगामी दिनो में बवाल का कारण बन सकता था।
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