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Friday, 31 May 2013

नक्सल समस्या से निपट रहे हैं रमनः राजनाथ



भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने छत्तीसगढ़ में नक्सल समस्या से निपटने के लिए रमन सिंह सरकार प्रशंसा की है। भाजपा अध्यक्ष ने दावा किया कि केन्द्र सरकार से पर्याप्त सहायता नहीं मिलने के बावजूद छत्तीसगढ़ सरकार स्थिति से प्रभावी तरीके से निपट रही है। सिंह ने कांग्रेस पर इस संवेदनशील मुद्दे पर राजनीति करने का आरोप लगाया और कहा कि केन्द्र से अपेक्षित सहायता नहीं मिलने के बाद भी रमन सिंह सरकार ने नक्सल समस्या से निपटने के लिये प्रभावी तरीके से काम किया।


भाजपा अध्यक्ष आज यहां मप्र भाजपा द्वारा आयोजित दो दिवसीय ‘ग्राम नगर केन्द्र पालक संयोजक सम्मेलन’ को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि 25 मई को कांग्रेस की रैली पर किये गये हमले के बाद भाजपा ने राष्ट्रीय स्तर पर अपना जेल भरो आंदोलन स्थगित कर दिया था, लेकिन कांग्रेसी नेता भाजपा पर ही आरोप लगाने लगे। नक्सली समस्या को देश के सामने एक गंभीर चुनौती बताते हुए सिंह ने एक सर्वेक्षण का हवाला दिया और कहा कि 51 प्रतिशत लोगों का विश्वास है कि भाजपा समस्याओं से अच्छी तरह निपटती है। सिंह ने कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार ने कांग्रेस नेताओं पर नक्सली हमले की घटना की न्यायिक जांच की घोषणा कर दी है और उसकी रिपोर्ट आने पर सच्चाई सबके सामने आ जायेगी।

राजनाथ ने प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह पर कथित कोयला घोटाले में शामिल होने का आरोप लगाते हुए कहा कि जिस समय यह घोटाला हुआ उस समय कोयला मंत्रालय प्रधानमंत्री के पास ही था। उन्होंने केन्द्र में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी सहित राजग सरकार की प्रशंसा करते हुए कहा कि इनमें से किसी के भी खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगे हैं। उन्होंने मध्य प्रदेश में एक रुपये किलो गेहूं एवं दो रुपये किलो चावल सहित शिवराज सिंह सरकार द्वारा लोगों के कल्याण के लिये चलायी गई योजनाओं की प्रशंसा करते हुए दावा किया कि यहां तीसरी बार भाजपा की सरकार बनाने से काई नहीं रोक सकता। मध्य प्रदेश के भाजपा संगठन द्वारा पालक संयोजक सम्मेलन आयोजित करने की प्रशंसा करते हुए सिंह ने कहा कि लोग इन दिनों चुनाव प्रबंध की बात करते हैं। लेकिन यदि मतदान केन्द्र का प्रबंधन हो तो 80 प्रतिशत चुनाव वैसे ही जीत लिया जाता है। इस अवसर पर लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज, पूर्व भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी तथा भाजपा के राष्ट्रीय संगठन मंत्री रामलाल आदि मौजूद थे।

मौत का नया फरमान



छत्तीसगढ़ के जिस सुकमा जिले में नक्सलियों ने घात लगाकर प्रदेश के वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं सहित 27 लोगों की हत्या कर दी थी, अब उसी सुकमा के कलेक्टर को कथित रूप से नक्सलियों की ओर से एक लाल खत प्राप्त हुआ है। बेहद टूटी फूटी हिन्दी में लिखी इस चिट्ठी में सीपीआई (माओवादी) की दरभा जिला कमेटी ने चेतावनी दी है कि वह अभी और कत्लेआम करेगी। 30 मई को जिला कलेक्टर कार्यालय में रिसिव किये गये इस पत्र में उन लोगों के नाम लिखे गये हैं जिन्हें नक्सली अपना अगला निशाना बनाएंगे।
कलेक्टर सुकमा को लाल सलाम करते हुए लिखे इस पत्र में लिखा गया है कि "तुम्हारे राज्य सरकार और केन्द्र सरकार को दरभा घाटी में सलवा जुड़ुम का जवाब मिल गया होगा। सलवा जुड़ुम के लोगों को और पुलिस के मददगारों को हम ऐसे ही दण्ड देंगे।" पत्र में आगे लिखा गया है कि सुकमा में अभी भी सलवा जुड़ुम और पुलिस के मददगारों को दंड देना बाकी है।
इस चिट्ठी में उन लोगों के नाम लिखे गये हैं जिन्हें कथित तौर पर नक्सली अभी दण्ड देना चाहते हैं। नक्सलियों की इस चिट्ठी में जो नाम लिखे गये हैं उसमें सलवा जुड़ुम के स्थानीय नेताओं के नाम लिखे गये हैं। इसके साथ ही उनके मददगारों की पहचान करके उनके भी नाम लिखे गये हैं और कहा गया है इन नेताओं और उनके मददगारों को नक्सली जल्द ही सजा सुनाएंगे।
परिस्थितियों की संवेदनशीलता देखते हुए, कथित रूप से नक्सलियों की ओर से लिखी गई इस चिट्ठी में लिखे नामों का खुलासा तो हम नहीं कर सकते लेकिन माओवादियों ने दो पेज की अपनी चिट्ठी में सुकमा जिला कलेक्टर के जरिए अपनी छह मांग सामने रखी है। माओवादियों की ओर से लिखी गई इस चिट्ठी में मांग की गई है कि
सीआरपीएफ को बस्तर से हटाया जाए
निर्दोष गांववालों को मारना बंद करो
आपरेशन ग्रीन हण्ट बंद करो
विकास यात्रा परिवर्तन यात्रा बंद करो
एडसमेटा में हुए फर्जी मुटभेड़ में शामिल सीआरपीएफ के ऊपर मर्डर केस दर्ज करो
हमारे निर्दोष साथियों को जेल से रिहा करो

भारत के इस निर्माण पर ‘शक’: नरेंद्र मोदी


गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी एक बार फिर केंद्र सरकार पर जमकर बरसे। अहमदाबाद में कल एक कार्यक्रम में मोदी ने कांग्रेस और यूपीए सरकार को निशाने पर लेते हुए जमकर खरी खोटी सुनाई। मोदी ने सीबीआई के दुरुपयोग से लेकर नक्सली हमले को लेकर सरकार पर सवाल खड़े किए। लेकिन खास तौर पर मोदी ने टीवी पर चल रहे सरकार का गुणगान करने वाले विज्ञापनों ‘भारत निर्माण’ को लेकर सरकार पर हमला बोला।
मोदी ने कांग्रेस सरकार के भारत निर्माण कैंपेन पर उंगली उठाई। भारत निर्माण में हक है मेरा के जुमले के जवाब में मोदी ने कहा कि भारत निर्माण पर शक है मेरा। अहमदाबाद में हजारों कांग्रेसी कार्यकर्ताओं के बीजेपी में शामिल होने के मौके पर मोदी ने इस सरकारी विज्ञापन की खिल्ली उड़ाते हुए सरकार को निशाना बनाया। गौरतलब है कि इन दिनों यूपीए सरकार पूर्व की एनडीए सरकार की तर्ज पर विज्ञापन कैंपेन चला रही है। तब एनडीए सरकार ने शाइनिंग इंडिया का नारा दिया था, अब यूपीए सरकार ने भारत निर्माण का नारा दिया है। लेकिन उस वक्त शाइनिंग इंडिया का नारा बीजेपी को ले डूबा था। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि भारत निर्माण का नारा कांग्रेस के कितने काम आता है।


Tuesday, 28 May 2013

मनमोहन के सवाल पर मौन हो गया प्रशासन

प्रधानमंत्री मनोहन सिंह भी छत्तीसगढ़ में हुए कांग्रेसी नेताओं के कत्लेआम से बहुत आहत है. आमतौर पर बहुत कम बोलनेवाले मनमोहन सिंह रविवार को रायपुर के राजभवन में गृहराज्यमंत्री की मौजूदगी में अधिकारियों की बैठक में कुछ ऐसा बोल गये कि बाकी लोगों की बोलती बंद हो गई और राजभवन में बुलाई गई बैठक खत्म कर दी गई.
बैठक के दौरान मनमोहन सिंह ने अधिकारियों से सवाल कर लिया कि "इसके लिए कौन जिम्मेदार है?" मनमोहन सिंह ने जब यह जानना चाहा कि इतनी बड़ी घटना को अंजाम दे दिया गया और किसी को भनक तक नहीं लगी तो अधिकारियों को सांप सूंघ गया. किसी के पास प्रधानमंत्री के इस सवाल का कोई जवाब नहीं था. इसके बाद बैठक खत्म क दी गई.
असल में प्रधानमंत्री ने जो सवाल किया वही इस घटना के बाद का सबसे बड़ा सवाल बना हुआ है कि नक्सलियों ने इतनी बड़ी घटना को अंजाम दे दिया और प्रशासन को कानोकान खबर तक न हुई. खुफिया एजंसियों को इस बात की बिल्कुल भनक क्यों नहीं लगी? जानकार बताते हैं कि इतनी बड़ी घटना को अंजाम देने के लिए नक्सलियों ने बड़े पैमाने पर पहल की होगी और मोबलाइजेशन किया होगा. आखिर क्या कारण है कि राज्य सरकार को इतने बड़े मोबलाइजेशन की भनक तक नहीं लगी. बताते हैं कि शनिवार को जिस वक्त कांग्रेसी नेताओं के इस कत्लेआम को अंजाम दिया गया उस वक्त खुद मुख्यमंत्री रमन सिंह अपनी यात्रा पर थे. शाम को चार सवा चार बजे की सभा खत्म करने के बाद मुख्यमंत्री रमन सिंह अपने वाहन में पहुंचे तो उन्हें कुछ ऐसा पता चला कि उनके होश उड़ गये. तत्काल उन्होंने आगे की सभी सभाएं निरस्त कर दी और रायपुर के लिए वापस लौट गये.

मुख्यमंत्री रमन सिंह पर आरोप लग रहा है कि उनकी यात्राओं के लिए तो सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किये गये हैं लेकिन कांग्रेसी नेताओं द्वारा की जा कही परिवर्तन यात्रा की सुरक्षा व्यवस्था का कोई खास इंतजाम नहीं किया गया था. सवाल नाजायज नहीं है. लेकिन बीते कुछ महीनों से जिस तरह से मक्सली वारदातों में कमी आई थी उससे प्रशासन भी संभवत: थोड़ा सुस्त हो गया था और रमन सिंह भी बंदूक की बजाय बातचीत से समाधान निकालने की बात करने लगे थे.
लेकिन अब इस घटना के बाद केन्द्र जिस तरह से बौखलाया है उससे बोली पर बंदूकों की गोली का भारी पड़ना तय है. खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी यही कहा है कि दोषियों को किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ा जाएगा.

Saturday, 25 May 2013

9 साल की 'कामयाबी' भी कांग्रेसियों में नहीं भर पा रहा है नया जोश!

यूपीए सरकार ने नौ वर्ष पूरे कर लिए हैं। यूपीए-2 की पारी का चौथा रिपोर्ट कार्ड जारी हो चुका है। विपक्ष के तमाम कटाक्षों और जली-कटी टिप्पणियों के बाद भी सरकार के रणनीतिकारों ने जमकर उपलब्धियों का जश्न मना लिया है। देश को यह बता दिया है कि मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने कैसे वैश्विक आंधी-तूफानों के बीच से भारत की आर्थिक नैया को पार लगा लिया है?

सो, यह अवसर मातम करने का नहीं, बल्कि जमकर जश्न मनाने का है। क्योंकि, और भी कई क्षेत्रों में सरकार ने जो उपलब्धियां की हैं, वे कोई कमतर नहीं हैं। यूपीए प्रमुख सोनिया गांधी ने बुधवार को एक बार फिर दोहरा दिया है कि पूरी कांग्रेस, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ मजबूती से खड़ी है। कुछ लोग कांग्रेस और प्रधानमंत्री के बीच मतभेदों की अफवाहें उड़ाते रहे हैं, लेकिन इसे सिर्फ कोरी हवाबाजी ही समझा जाए। कांग्रेस प्रमुख की इस जोरदार अपील से भी पार्टी के अंदर शायद ही कोई नई ऊर्जा पैदा हो पाई हो?

क्योंकि, 79 पृष्ठों का खूबसूरत रिपोर्ट कार्ड तमाम जमीनी हकीकतों को ठेंगा सा दिखा रहा है। ये बात कांग्रेस के जमीनी कार्यकर्ता, ‘24 अकबर रोड’ और ‘10 जनपथ’ की गणेश परिक्रमा करने वालों से कहीं ज्यादा अच्छी तरह से समझ रहे हैं। अनौपचारिक बातचीत में कांग्रेस के एक युवा सांसद कहते हैं कि सरकार का सालाना रिपोर्ट कार्ड एक औपचारिक कवायद ही साबित होता है। क्योंकि, पिछले चार सालों से देश का आम आदमी लगातार बढ़ रही महंगाई से जूझ रहा है। वह इससे राहत चाहता है। क्योंकि, वह साल-दर-साल के वायदों से बहुत ऊब गया है। उसे अब गुस्सा आने लगा है। खासतौर पर इसलिए क्योंकि, उसे कुछ-कुछ पता होने लगा है कि इस महंगाई की जड़ में कहीं न कहीं बड़े घोटालों और भ्रष्टाचार की भूमिका है। जिसे हमारी सरकार रोक नहीं पा रही है। पार्टी के कार्यकर्ता क्षेत्र में उनसे सवाल करते हैं कि वे इन मुद्दों पर जनता को क्या सफाई दें? हम लोग कार्यकर्ताओं के इन ज्वलंत सवालों का सटीक जवाब खुद ही नहीं दे पा रहे।
   
कांग्रेस सूत्रों के अनुसार, पार्टी के कुछ रणनीतिकारों ने सुझाव दिया है कि सरकार के चौथे रिपोर्ट कार्ड को बड़ी संख्या में वितरित करा दिया जाए। ताकि, लोगों को यह पता चले कि सरकार ने कितनी उपलब्धियां अपने खाते में जोड़ी हैं? लेकिन, तमाम नेता इस रणनीति को ठीक नहीं मान रहे। वे यही कह रहे हैं कि रिपोर्ट कार्ड का वितरण तो मीडिया तक ठीक है, लेकिन आम लोगों के बीच इस रिपोर्ट कार्ड का असर प्रतिगामी भी हो सकता है। क्योंकि, इस रिपोर्ट में उसे अपने बुनियादी सवालों का जवाब नहीं मिल रहा। 22 मई की शाम सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने यूपीए-2 का चौथे साल का आखिरी रिपोर्ट कार्ड जारी कर दिया। कार्यकर्ताओं में दम भरने के लिए पार्टी प्रमुख ने यहां तक कह दिया कि कार्यकर्ताओं को किसी मुद्दे पर मुंह छिपाने की जरूरत नहीं है। क्योंकि, सरकार ने ढेरों अच्छे काम किए हैं।
  
जबकि, लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज लगातार यह कह रही हैं कि यूपीए-2 की चार सालों की सबसे बड़ी उपलब्धि यही है कि वह सीबीआई की मदद से चलती आ रही है। यूपीए सरकार के औपचारिक जश्न के कुछ घंटे पहले ही भाजपा नेतृत्व ने सरकार को जमकर कोसा था। यहां तक कह डाला कि सरकार को जरा भी शर्म हो, तो उसे जश्न की जगह पूरे देश से माफी मांगनी चाहिए। क्योंकि, इन चार सालों में घोटालों और नियोजित भ्रष्टाचार के नए रिकॉर्ड बने हैं। इससे देश में निराशा का वातावरण बन गया है। इस सरकार के दौर में प्रधानमंत्री पद की गरिमा एकदम गिरी है। सच्चाई तो यह है कि सरकार के नीतिगत फैसले ‘7 रेसकोर्स रोड’ से न होकर ‘10 जनपथ’ से होते हैं। इस हकीकत को दुनिया जान गई है।
   
राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली यहां तक कह चुके हैं कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, भले बड़े अर्थशास्त्री हों। लेकिन, उनकी सरकार की अर्थव्यवस्था को लकवा-सा मार गया है। प्रधानमंत्री, ईमानदार छवि के   जरूर रहे हैं, लेकिन उनका ताजा रिकॉर्ड यह है कि वे हर घोटाले को दबाने की कोशिश करते हैं। इस सरकार की विदेश नीति इतनी पिलपिली हो गई है कि पड़ोसी देशों में भी हमारी छवि ‘दब्बूपन’ की होती जा रही है। इसी के चलते छोटा-सा देश मालद्वीव भी भारत को आंख दिखाने की हिम्मत करने लगा है। वरिष्ठ कांग्रेसी नेता एवं संसदीय कार्य मामलों के मंत्री कमलनाथ कहते हैं कि प्रमुख विपक्षी दल भाजपा नेतृत्व, लगता है राजनीतिक रूप से हीन भावना का शिकार हो गया है। शायद, इसीलिए उसे सरकार के हर कामकाज में सिर्फ नकारात्मक पहलू ही दिखते हैं। अच्छा यही रहेगा कि भाजपा के नेता पहले अपने गिरेबां में झांककर देखें कि क्या वे सचमुच मुख्य विपक्षी दल की सही भूमिका निभा पा रहे हैं?

लोकसभा चुनाव अगले साल होने हैं। इसकी तैयारियों के लिए सभी प्रमुख दलों में राजनीतिक होड़ शुरू हो गई है। 2009 के मुकाबले अब यूपीए गठबंधन की तस्वीर भी काफी बदल गई है। क्योंकि, कांग्रेस के दो प्रमुख सहयोगी दल, तृणमूल कांग्रेस और द्रमुक उससे दूर हो चुके हैं। नई भूमिका में इन दलों के क्षत्रपों ने कांग्रेस के खिलाफ आक्रामक रणनीति अपना ली है। तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो एवं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी खुलकर कह रही हैं कि आम आदमी के नाम पर वोट लेने वाली कांग्रेस, अमीरों की भलाई के लिए ज्यादा काम कर रही है। इस तरह से इस पार्टी के नेता देश के आम आदमी के साथ सबसे बड़ी राजनीतिक ठगी करने में लगे हैं। उनकी कोशिश है कि सेक्यूलर विपक्ष एकजुट होकर यूपीए सरकार से जनता को मुक्ति दिलाए। अपने गृह राज्य पश्चिम बंगाल में वे कांग्रेस और वाममोर्चा, दोनों को करारा सबक सिखाने की तैयारी कर रही हैं। उन्होंने संकेत दिए हैं कि उचित अवसर आने पर वे देश के तमाम सेक्यूलर क्षत्रपों से साझा रणनीति बनाने की बात करेंगी।

द्रमुक सुप्रीमो एम. करुणानिधि ने अभी अपने सभी रणनीतिक पत्ते नहीं खोले हैं। उन्होंने यह जरूर कहा है कि लोकसभा के चुनाव में वे किसी भी हालत में फिर से कांग्रेस से हाथ नहीं मिलाएंगे। क्योंकि, इस पार्टी के बड़े नेताओं ने उनकी पार्टी के साथ तमाम राजनीतिक गैर-इंसाफी की है। केंद्र की सरकार ने तमिलों के भावनात्मक मुद्दों की भी परवाह नहीं की। ऐसे में, जरूरी हो गया है कि तमिलनाडु की जनता कांग्रेस को करारा सबक सिखा दे। मनमोहन सरकार, तृणमूल कांग्रेस और द्रमुक के समर्थन वापसी के बाद से लोकसभा में अल्पमत में हैं। सपा और बसपा के बाहरी समर्थन से ही सरकार का अस्तित्व बरकरार है। लेकिन, चुनावी राजनीति के समीकरणों के चलते सपा और बसपा से भी कांग्रेस के रिश्ते ज्यादा अच्छे नहीं रहे। इस बार तो सपा नेतृत्व ने यूपीए-2 के चौथे जश्न में औपचारिक हिस्सेदारी भी नहीं की। बसपा सुप्रीमो मायावती भी इस जश्न से दूर ही रहीं, लेकिन उन्होंने यूपीए के डिनर में अपने दो सिपहसालारों को जरूर भेज दिया था।

उत्तर प्रदेश के राजनीतिक समीकरणों को देखते हुए सपा सुप्रीमो ने कांग्रेस से अपनी राजनीतिक दूरी बढ़ानी शुरू कर दी है। इसकी वजह से मनमोहन सरकार को संसद में और परेशानी भरे दिन देखने पड़ सकते हैं। पिछले दिनों ही बजट सत्र का दूसरा चरण खत्म हुआ है। संसद सत्र का यह चरण पूरी तौर पर गतिरोध का शिकार रहा। क्योंकि, मुख्य विपक्षी दल भाजपा ने कोयला घोटाले के मामले में प्रधानमंत्री के इस्तीफे के मुद्दे पर अड़ियल रुख अपना लिया था। संकट की इस घड़ी में ‘संकटमोचक’ की भूमिका में मुलायम भी आगे नहीं आए। यूपीए के जश्न से दूरी बनाकर उन्होंने संकेत दे दिए हैं कि आने वाले दिनों में वे सरकार के लिए कोई बड़ा राजनीतिक संकट भी खड़ा कर सकते हैं।

Wednesday, 1 May 2013

मोदी से बैचेनी बढ़ी कांग्रेस की



कर्नाटक विधानसभा में भाजपा की निश्चित हार मान रही है कांग्रेसी नेताओं की बैचेनी बढ़ गयी है. कांग्रेस यह मानकर चल रही थी कर्नाटक चुनाव में उसकी जीत निश्चित है. लेकिन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के कर्नाटक दौरे ने पार्टी को उत्साह से भरकर कार्यकर्ताओं को चुनाव के लिए प्रेरित करने का काम किया है.
मोदी की सभा में कार्यकर्ताओं के उत्साह को देखकर भाजपा की उम्मीद है कि पार्टी फिर से वहां के चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करेगी. कर्नाटक भाजपा अब 2 मई को दो और रैलियों का आयोजन करने जा रही हैं. मोदी की यह रैली मंगलौर और बेलगाम में होंगी.

रविवार को, बेंगलुरु के नैशनल कॉलेज ग्राउंड में भारी जनसमूह को संबोधित करते हुए मोदी ने खूब वाहवाही लूटी. इस दौरान मोदी के भाषण में न तो सांप्रदायिक रंग दिखाई दिया और न ही इसमें हिंदुत्व के बोल सुनाई दिए थे. नरेंद्र मोदी ने कहा कि वह कर्नाटक एक उद्देश्य और योजना लेकर आए हैं.
मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार ने कहा, "कर्नाटक भाजपा खुद को निचले स्तर पर महसूस कर रही थी, पार्टी सम्मान बचाने के लिए 50 सीटों की तरफ ध्यान लगाए बैठी थी लेकिन मोदी के भाषण ने कार्यकर्ताओं को प्रेरित करने का काम किया है.
शुरुआत में, भाजपा मोदी की रैलियों को रोकना चाहती थी क्योंकि राज्य इकाई दुविधा में थी. मोदी की रैली के बाद पार्टी ने महसूस किया है कि कर्नाटक की संवेदनशील जनता उसके फैसले को गलत साबित नहीं होने देगी.
हालांकि, राज्य में पार्टी का एक धड़ा ऐसा भी है जो सोचता है कि मोदी के चाहने वाले उनके ताबड़तोड़ प्रचार न करने से निराश होंगे. राज्य भाजपा अध्यक्ष प्रह्लाद जोशी ने कहा कि कर्नाटक में मोदी की रैली पर फैसला सामूहिक था और इसने हमारे पक्ष में काम भी किया. अब सभी मोदी की रैलियां चाह रहे हैं.
मोदी जहां कार्यकर्ताओं में जोश भरते दिखाई दिए वहीं, वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी अपनी रैलियों में शालीन दिखाई दे रहे हैं.
मोदी के भाषण ने कांग्रेस के कई नेताओं की नींद भी उड़ा दी है. रुखेपन से ही सही लेकिन एक कांग्रेस नेता ने स्वीकर भी किया कि यह चुनावी संभावनाओं पर असर करेगा और साथ ही इससे भाजपा कार्यकर्ताओं का आत्मविश्वास भी मजबूत होगा.
राज्य में कांग्रेस के बड़े नेता सिद्धारमैया इससे सहमत दिखाई नहीं देता. वह कहते हैं कि विधानसभा चुनाव के बजाय मोदी का भाषण लोकसभा चुनाव के दौरान दिया गया भाषण ज्यादा लगा. वह कर्नाटक के स्थानीय मुद्दे ढूंढ ही नहीं सके. मोदी दिल्ली में कांग्रेस के नाम की बीन बजाकर वह एनडीए में प्रधानमंत्री पद के लिए अपनी उम्मीदवारी को मजबूत करने में जुटे हैं.