हमारा राष्ट्रीय ध्वज वर्तमान में जिस स्वरूप में दिख रहा है कि उसे बनने में कई साल लगे थे। जानिए कितने ध्वजों को बदलने के बाद सामने आया था तिरंगा?स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पिंगली वेंकैया ने एक बार कांग्रेस अधिवेशन के दौरान महात्मा गांधी को भारत के राष्ट्रीय ध्वज के लिए सुझाव दिया। गांधी जी को ये विचार पसंद आया। वेंकैया ने पांच साल तक तीस देशों के ध्वजों पर रिसर्च की और साल 1921 में दो रंगों वाले लाल और हरे रंग के झंडे को पेश किया।जालंधर के हंसराज ने इसमें चक्र बनाने का सुझाव दिया था। गांधी जी कहने पर इसमें सफेद रंग भी जोड़ा गया। साल 1931 करांची के अखिल भारतीय सम्मेलन में केसरिया, सफेद और हरे रंग के साथ इस ध्वज फहराया गया। लेकिन इसके पहले भारत के कई ध्वज बन चुके हैं जो बाद में बदले गए। पहला राष्ट्रीय ध्वज 7 अगस्त 1906 को पारसी बागान चौक (ग्रीन पार्क) कलकत्ता में फहराया गया था जिसे अब कोलकाता कहते हैं। इस ध्वज को लाल, पीले और हरे रंग की क्षैतिज पट्टियों से बनाया गया था। दूसरे ध्वज को पेरिस में मैडम कामा और 1907 में उनके साथ निर्वासित किए गए कुछ क्रांतिकारियों ने फहराया था (कुछ के अनुसार 1905 में)। यह ध्वज बर्लिन में हुए समाजवादी सम्मेलन में भी फहराया गया था। तीसरा ध्वज 1917 में डॉ. एनी बिसेंट और लोकमान्य तिलक ने घरेलू शासन आंदोलन के दौरान फहराया। इस ध्वज में 5 लाल और 4 हरी क्षैतिज पट्टियां एक के बाद एक और सप्तऋषि के अभिविन्यास में इस पर बने सात सितारे थे। बांयी और ऊपरी किनारे पर (खंभे की ओर) यूनियन जैक था। एक कोने में सफेद अर्धचंद्र और सितारा भी था। साल 1931 ध्वज के इतिहास में एक यादगार साल है। तिरंगे ध्वज को हमारे राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया। यह ध्वज जो वर्तमान स्वरूप का पूर्वज है, केसरिया, सफेद और मध्य में गांधी जी के चलते हुए चरखे के साथ था। इस ध्वज यह दर्शाया गया कि इसका कोई साम्प्रदायिक महत्व नहीं है। तिरंगे के वर्तमान स्वरूप को 22 जुलाई 1947 में हुई संविधान सभा की बैठक में अपनाया गया।
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