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Wednesday, 24 December 2014

महान विभूति को सर्वोच्च सम्मान


पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और महामना मदन मोहन मालवीय को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किए जाने की घोषणा की गई है। केंद्रीय कैबिनेट ने दोनों को यह सम्मान देने का फैसला 25 दिसंबर को वाजपेयी के 90वें जन्मदिन से एक दिन पहले किया है। मालवीय का जन्मदिन भी 25 दिसंबर को ही पड़ता है। राष्ट्रपति भवन की ओर से जारी बयान में कहा गया कि राष्ट्रपति बेहद हर्ष के साथ पंडित मदन मोहन मालवीय ( मरणोपरांत) और अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न से सम्मानित करते हैं।


इस निर्णय के बाद भारत रत्न पुरस्कार प्राप्त करने वालों की संख्या 45 हो गई है। पिछले वर्ष क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर और वैज्ञानिक सीएनआर राव को इस सम्मान के लिए चुना गया था। 1998 से 2004 के बीच देश के प्रधानमंत्री रहे वाजपेयी अपनी उम्र संबंधी अस्वस्थता के चलते पिछले कुछ समय से सार्वजनिक जीवन से दूर हैं। उन्हें एक महान राजनेता और अक्सर भाजपा का उदारवादी चेहरा कहा जाता है जिसका विरोधी भी सम्मान करते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अटल बिहारी वाजपेयी और पंडित मदन मोहन मालवीय को भारत रत्न सम्मान दिए जाने की घोषणा पर खुशी जताई है। वाजपेयी को कई ठोस पहल करने का श्रेय दिया जाता है जिनमें भारत और पाकिस्तान के बीच मतभेदों को कम करने का उनका प्रयास, स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना आदि प्रमुख रूप से शामिल हैं। वाजपेयी, कांग्रेस पार्टी से बाहर के पहले ऐसे नेता हैं जो सबसे अधिक लंबे समय तक भारत के प्रधानमंत्री पद पर आसीन रहे। वाजपेयी के आलोचकों ने भी उन्हें आरएसएस का ‘‘मुखौटा’’ मानने के बावजूद उनके बारे में हमेशा अच्छी बातें कहीं। घोषणा का स्वागत करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा, श्श्पंडित मदन मोहन मालवीय और श्री अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न दिया जाना बेहद खुशी की बात है। इन महान विभूतियों को देश के सर्वोच्च सम्मान से नवाजा जाना राष्ट्र सेवा में उनके योगदान का उचित मान्यता है।’’ उन्होंने कहा, श्श्अटलजी हर किसी के प्रिय हैं। एक पथप्रदर्शक, एक प्रेरणा और दिग्गजों के बीच दिग्गज हैं। भारत के प्रति उनका योगदान अतुलनीय है।’’ मालवीय के बारे में मोदी ने कहा, श्श्पंडित मदन मोहन मालवीय को एक असाधारण विद्वान और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में याद किया जाता है जिन्होंने लोगों के बीच में राष्ट्रीय चेतना की ज्योति प्रज्ज्वलित की।’’ वाजपेयी को देश के महान वक्ताओं में से एक बताते हुए केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी उपस्थिति दर्ज करायी और दक्षिणपूर्वी एशिया में शांति के प्रति प्रतिबद्ध रहे। तृणमूल कांग्रेस की नेता और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और जदयू नेता नीतीश कुमार ने भी इस फैसले का स्वागत किया। कांग्रेस ने भी वाजपेयी और मालवीय को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किए जाने की घोषणा का स्वागत किया, लेकिन साथ ही उम्मीद जताई कि राजग सरकार इन दोनों द्वारा दिखाये गये ‘‘राज धर्म’’ और ‘‘धर्मनिरपेक्षता’’ के पथ का अनुसरण करेगी। पार्टी ने यह टिप्पणी संभवतरू 2002 के गुजरात दंगों के समय मोदी को ‘‘राजधर्म’ का पालन करने की वाजपेयी की सलाह के संदर्भ की।
महामना मदन मोहन मालवीय का व्यक्तित्व बहुत ही अद्भुत था। जीवन को कोई क्षेत्र ऐसा नहीं था जहां उन्होंने अपनी विद्वता का अद्भुत व अतुलनीय प्रदर्शन न किया हो। पत्रकारिता के क्षेत्र में मालवीय जी के व्यक्तित्व का समग्र रूप हमें दिखाई देता है। मालवीय जी का पत्रकारिता व लेखन कार्य का शुभारंभ सन् 1907 में हुआ। जब बसंत पंचमी के दिन उन्होंने अपने राजनैतिक और सांस्कृतिक विचारों के प्रसार के लिए अभ्युदय नाम का साप्ताहिक पत्र निकालना प्रारंभ किया। उन्होंने दो वर्ष पत्र का स्वयं संपादन किया। उनके संपादकत्व में श्अभ्युदयश् सदा निःस्वार्थ निर्भीक और नम्र रहा। अमीर और गरीब सभी के लिए अभ्युदय समान रहा। शिष्टाचार को अभ्युदय ने कभी नहीं छोड़ा। एक सच्चे ब्राह्मण के रूप में जो उपदेश उन्होंने दिये उसमें भारतीय आत्मा और संस्कृति बसती थी। सन् 1909 में मालवीय जी ने अपने मित्रों के सहयोग से विजयादशमी के दिन 24 अक्टूबर से अंग्रेजी दैनिक लीडर का प्रकाशन प्रारंभ किया। इस कार्य में मोती लाल नेहरू ने भी योगदान दिया। लगभग 10 वर्षों तक लीडर ने निःस्वार्थ भाव बड़े लगन से सेवा की। मालवीय जी के लेखों में सच्ची देशभक्ति स्वदेशी की भावना सच्ची राजभक्ति राष्ट्रीयता, स्वराज्य पर स्पष्ट रूप से विचार परिलक्षित होते हैं। उन्हीं के अथक प्रयासों से ही 1910 में हिंदी पाक्षिक मर्यादा प्रयाग से निकलना प्रारंभ हुआ। 1933 में हिंदी साप्ताहिक सनातन धर्म के संस्थापक तथा कुछ वर्षों तक इन पत्रों के संपादक रहे। यह मालवीय जी के प्रयासों का ही परिणाम था कि हिंदुस्तान का हिंदी संस्करण भी 1936 में प्रारंभ हो गया। सन 1910 के प्रारंभ में ही मालवीयजी ने डटकर विरोध किया। उन्होंने कहा कि केवल तीन-चार दिन की सूचना के बाद शीघ्रता से विधेयक को पास कराना अनुचित है। 6 अगस्त 1910 को मालवीय जी ने प्रेस विधेयक के विरोध में भाषण दिया था। पत्रकारिता के क्षेत्र में उन्होंने मौलिकता एवं नवीनता के मानदंड स्थापित किये। लेखन में उनकी विशिष्ट भाषा शैली थी। वे कठिन शब्दों का प्रयोग नहीं करते थे।
अपनी वाणी के ओज और ठोस फैसले लेने के लिए विख्यात वाजपेयी को भारत-पाकिस्तान मतभेदों को दूर करने की दिशा में ठोस कदम उठाने का श्रेय दिया जाता है। अपने इन ठोस कदमों के साथ वह भाजपा के ‘राष्ट्रवादी राजनीतिक एजेंडे’ से परे जाकर एक व्यापक फलक के राजनेता के रूप में जाने जाते हैं। कांग्रेस के बाहर देश के सर्वाधिक लंबे समय तक प्रधानमंत्री पद पर आसीन रहने वाले वाजपेयी को अक्सर भाजपा का उदारवादी चेहरा कहा जाता है। उनके आलोचक हालांकि उन्हें आरएसएस का ऐसा ‘‘मुखौटा’’ बताते रहे हैं जिनकी सौम्य मुस्कान उनकी पार्टी के हिंदुवादी समूहों के साथ संबंधों को छुपाए रखती है। 1999 की वाजपेयी की पाकिस्तान यात्रा की उनकी ही पार्टी के ‘कट्टरवादी नेताओं’ ने आलोचना की थी लेकिन वह बस पर सवार होकर किसी विजेता की तरह लाहौर पहुंचे। वाजपेयी की इस राजनयिक सफलता को भारत-पाक संबंधों में एक नए युग की शुरूआत की संज्ञा देकर सराहा गया। लेकिन यह दूसरी बात है कि पाकिस्तानी सेना ने गुपचुप अभियान के जरिए अपने सैनिकों की कारगिल में घुसपैठ करायी और इसके बाद दोनों पक्षों के बीच छिड़े संघर्ष में पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी।
भाजपा के चार दशक तक विपक्ष में रहने के बाद वाजपेयी 1996 में पहली बार प्रधानमंत्री बने लेकिन संख्या बल में मात खाने से उनकी सरकार महज 13 दिन ही चल सकी। आंकड़ों ने एक बार फिर वाजपेयी के साथ लुकाछिपी का खेल खेला और स्थिर बहुमत नहीं होने के कारण 13 महीने बाद 1999 की शुरूआत में उनके नेतृत्व वाली दूसरी सरकार भी गिर गई। अन्नाद्रमुक प्रमुख जे जयललिता द्वारा केंद्र की भाजपा की अगुवाई वाली गठबंधन सरकार से समर्थन वापस लेने के कारण वाजपेयी सरकार धराशायी हो गयी। लेकिन 1999 के चुनाव में वाजपेयी पिछली बार के मुकाबले एक अधिक स्थिर गठबंधन सरकार के मुखिया बने जिसने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया। गठबंधन राजनीति की मजबूरियां ही कहिए कि भाजपा को अपने मूल से जुड़े मुद्दों को पीछे धकेलना पड़ा। इन्हीं मजबूरियों के चलते जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा समाप्त करने, अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण करने और समान नागरिक संहिता लागू करने जैसे उसके चिर प्रतीक्षित मुद्दे ठंडे बस्ते में चले गए। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय फलक पर जवाहरलाल नेहरू की शैली और स्तर के नेता के रूप में सम्मान पाने वाले वाजपेयी का प्रधानमंत्री के रूप में 1998.99 का कार्यकाल साहसिक और दृढ़निश्चयी फैसलों के वर्ष के रूप में जाना जाता है। इसी अवधि के दौरान भारत ने मई 1998 में पोखरण में श्रृंखलाबद्ध परमाणु परीक्षण किए। वाजपेयी के करीबी लोगों का कहना है कि उनका मिशन पाकिस्तान के साथ संबंधों को सुधारना था और इसके बीज उन्होंने 70 के दशक में मोरारजी देसाई की सरकार में बतौर विदेश मंत्री रहते हुए ही रोपे थे। लाहौर शांति उपायों के विफल रहने के बाद वर्ष 2001 में वाजपेयी ने जनरल परवेज मुशर्रफ के साथ ऐतिहासिक आगरा शिखर वार्ता की एक और पहल की लेकिन वह भी विफल रही।
छह दिसंबर 1992 को अयोध्या में कार सेवकों द्वारा बाबरी मस्जिद को गिराए जाने की घटना वाजपेयी के लिए इस बात की अग्नि परीक्षा थी कि धर्मनिरपेक्षता के पैमाने पर वह कहां खड़े हैं। उस समय वाजपेयी लोकसभा में विपक्ष के नेता थे। वाजपेयी के विश्वासपात्र सहयोगी लालकृष्ण आडवाणी और अधिकतर भाजपा नेताओं ने विध्वंस का समर्थन किया लेकिन वाजपेयी ने स्पष्ट शब्दों में इसकी निंदा की। उनकी निजी निष्ठा पर कभी गंभीर सवाल नहीं किए गए लेकिन हथियार रिश्वत कांडों ने उनकी सरकार में भ्रष्टाचार को उजागर किया और ऐसा वक्त भी आया जब उनके फैसलों पर शकांए जाहिर की गयीं।
वाजपेयी एक जाने माने कवि भी हैं और उनके पार्टी सहयोगी अक्सर उनकी रचनाओं को उद्धृत करते हैं। 25 दिसंबर 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर में उनका जन्म हुआ। उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी और मां कृष्णा देवी हैं। वाजपेयी का संसदीय अनुभव पांच दशकों से भी अधिक का विस्तार लिए हुए है। वह पहली बार 1957 में संसद सदस्य चुने गए थे। ब्रिटिश औपनिवेशक शासन का विरोध करने के लिए किशोरावस्था में वाजपेयी कुछ समय के लिए जेल गए लेकिन स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने कोई मुख्य भूमिका अदा नहीं की। हिंदू राष्ट्रवादी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और जन संघ का साथ पकड़ने से पहले वाजपेयी कुछ समय तक साम्यवाद के संपर्क में भी आए। बाद में दक्षिणपंथी संगठनों से जुड़ाव के बाद जनसंघ और तत्पश्चात भाजपा के साथ उनके घनिष्ठ संबंधों की शुरूआत हुई। 1950 के दशक की शुरूआत में आरएसएस की पत्रिका को चलाने के लिए वाजपेयी ने कानून की पढ़ाई बीच में छोड़ दी। बाद में उन्होंने आरएसएस में अपनी राजनीतिक जड़ें जमायीं और भाजपा की उदारवादी आवाज बनकर उभरे।

देश के सर्वाधिक करिश्माई नेता अटल बिहारी वाजपेयी

भारत के सर्वाधिक करिश्माई नेताओं में शुमार अटल बिहारी वाजपेयी का देश के राजनीतिक पटल पर एक ऐसे विशाल व्यक्तित्व वाले राजनेता के रूप में सम्मान किया जाता है जिनकी व्यापक स्तर पर स्वीकार्यता है और जिन्होंने तमाम अवरोधों को तोड़ते हुए 90 के दशक में राजनीति के मुख्य मंच पर भाजपा को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

इसे वाजपेयी के व्यक्तित्व का ही आकर्षण ही कहा जाएगा कि नए सहयोगी दल उस भाजपा के साथ जुड़ते गए जिसे अपने दक्षिणपंथी झुकाव के कारण उस जमाने, खासतौर से बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद राजनीतिक रूप से ‘अछूत’ माना जाता था। अपनी वाणी के ओज और ठोस फैसले लेने के लिए विख्यात वाजपेयी को भारत. पाकिस्तान मतभेदों को दूर करने की दिशा में ठोस कदम उठाने का श्रेय दिया जाता है। अपने इन ठोस कदमों के साथ वह भाजपा के ‘राष्ट्रवादी राजनीतिक एजेंडे’ से परे जाकर एक व्यापक फलक के राजनेता के रूप में जाने जाते हैं।

कांग्रेस के बाहर देश के सर्वाधिक लंबे समय तक प्रधानमंत्री पद पर आसीन रहने वाले वाजपेयी को अक्सर भाजपा का उदारवादी चेहरा कहा जाता है। उनके आलोचक हालांकि उन्हें आरएसएस का ऐसा ‘मुखौटा’ बताते रहे हैं जिनकी सौम्य मुस्कान उनकी पार्टी के हिंदुवादी समूहों के साथ संबंधों को छुपाए रखती है। 1999 की वाजपेयी की पाकिस्तान यात्रा की उनकी ही पार्टी के ‘कट्टरवादी नेताओं’ ने आलोचना की थी लेकिन वह बस पर सवार होकर किसी विजेता की तरह लाहौर पहुंचे।

वाजपेयी की इस राजनयिक सफलता को भारत-पाक संबंधों में एक नए युग की शुरूआत की संज्ञा देकर सराहा गया। लेकिन यह दूसरी बात है कि पाकिस्तानी सेना ने गुपचुप अभियान के जरिए अपने सैनिकों की कारगिल में घुसपैठ करायी और इसके बाद दोनों पक्षों के बीच छिड़े संघर्ष में पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी।

भाजपा के चार दशक तक विपक्ष में रहने के बाद वाजपेयी 1996 में पहली बार प्रधानमंत्री बने लेकिन संख्या बल में मात खाने से उनकी सरकार महज 13 दिन ही चल सकी। आंकड़ों ने एक बार फिर वाजपेयी के साथ लुकाछिपी का खेल खेला और स्थिर बहुमत नहीं होने के कारण 13 महीने बाद 1999 की शुरूआत में उनके नेतृत्व वाली दूसरी सरकार भी गिर गई।

अन्नाद्रमुक प्रमुख जे जयललिता द्वारा केंद्र की भाजपा की अगुवाई वाली गठबंधन सरकार से समर्थन वापस लेने के कारण वाजपेयी सरकार धराशायी हो गई। लेकिन 1999 के चुनाव में वाजपेयी पिछली बार के मुकाबले एक अधिक स्थिर गठबंधन सरकार के मुखिया बने जिसने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया।

गठबंधन राजनीति की मजबूरियां ही कहिए कि भाजपा को अपने मूल से जुड़े मुद्दों को पीछे धकेलना पड़ा। इन्हीं मजबूरियों के चलते जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा समाप्त करने, अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण करने और समान नागरिक संहिता लागू करने जैसे उसके चिर प्रतीक्षित मुद्दे ठंडे बस्ते में चले गए।

राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय फलक पर जवाहरलाल नेहरू की शैली और स्तर के नेता के रूप में सम्मान पाने वाले वाजपेयी का प्रधानमंत्री के रूप में 1998. 99 का कार्यकाल साहसिक और दृढ़निश्चयी फैसलों के वर्ष के रूप में जाना जाता है। इसी अवधि के दौरान भारत ने मई 1998 में पोखरण में श्रंखलाबद्ध परमाणु परीक्षण किए।

वाजपेयी के करीबी लोगों का कहना है कि उनका मिशन पाकिस्तान के साथ संबंधों को सुधारना था और इसके बीज उन्होंने 70 के दशक में मोरारजी देसाई की सरकार में बतौर विदेश मंत्री रहते हुए ही रोपे थे। लाहौर शांति उपायों के विफल रहने के बाद वर्ष 2001 में वाजपेयी ने जनरल परवेज मुशर्रफ के साथ ऐतिहासिक आगरा शिखर वार्ता की एक और पहल की लेकिन वह भी विफल रही।

छह दिसंबर 1992 को अयोध्या में कार सेवकों द्वारा बाबरी मस्जिद को गिराए जाने की घटना वाजपेयी के लिए इस बात की अग्नि परीक्षा थी कि धर्मनिरपेक्षता के पैमाने पर वह कहां खड़े हैं। उस समय वाजपेयी लोकसभा में विपक्ष के नेता थे। वाजपेयी के विश्वासपात्र सहयोगी लालकृष्ण आडवाणी और अधिकतर भाजपा नेताओं ने विध्वंस का समर्थन किया लेकिन वाजपेयी ने स्पष्ट शब्दों में इसकी निंदा की।

उनकी निजी निष्ठा पर कभी गंभीर सवाल नहीं किए गए लेकिन हथियार रिश्वत कांडों ने उनकी सरकार में भ्रष्टाचार को उजागर किया और ऐसा वक्त भी आया जब उनके फैसलों पर शकांए जाहिर की गईं। वाजपेयी एक जाने माने कवि भी हैं और उनके पार्टी सहयोगी अक्सर उनकी रचनाओं को उद्धृत करते हैं।

25 दिसंबर 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर में उनका जन्म हुआ। उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी और मां कृष्णा देवी हैं। वाजपेयी का संसदीय अनुभव पांच दशकों से भी अधिक का विस्तार लिए हुए है। वह पहली बार 1957 में संसद सदस्य चुने गए थे। ब्रिटिश औपनिवेशक शासन का विरोध करने के लिए किशोरावस्था में वाजपेयी कुछ समय के लिए जेल गए लेकिन स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने कोई मुख्य भूमिका अदा नहीं की।

हिंदू राष्ट्रवादी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और जन संघ का साथ पकड़ने से पहले वाजपेयी कुछ समय तक साम्यवाद के संपर्क में भी आए। बाद में दक्षिणपंथी संगठनों से जुड़ाव के बाद जनसंघ और तत्पश्चात भाजपा के साथ उनके घनिष्ठ संबंधों की शुरूआत हुई। 1950 के दशक की शुरुआत में आरएसएस की पत्रिका को चलाने के लिए वाजपेयी ने कानून की पढ़ाई बीच में छोड़ दी। बाद में उन्होंने आरएसएस में अपनी राजनीतिक जड़ें जमाईं और भाजपा की उदारवादी आवाज बनकर उभरे।

राजनीति में वाजपेयी की शुरुआत 1942-45 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान स्वतंत्रता सेनानी के रूप में हुई थी। उन्होंने कम्युनिस्ट के रूप में शुरूआत की लेकिन हिंदुत्व का झंडा बुलंद करने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सदस्यता के लिए साम्यवाद को छोड़ दिया। संघ को भारतीय राजनीति में दक्षिणपंथी माना जाता है। इसी दौरान वाजपेयी भारतीय जनसंघ के संस्थापक श्याम प्रसाद मुखर्जी के करीबी अनुयायी और सहयोगी बन गए।

जब मुखर्जी ने 1953 में कश्मीर में राज्य में प्रवेश के लिए परमिट लेने की व्यवस्था के खिलाफ आमरण अनशन किया तो वाजपेयी उनके साथ थे। मुखर्जी ने परमिट व्यवस्था को कश्मीर की यात्रा करने वाले भारतीय नागरिकों के साथ ‘तुच्छ’ व्यवहार करार दिया था। साथ ही उन्होंने मुस्लिम बहुल आबादी होने के कारण कश्मीर को विशेष दर्जा दिए जाने के खिलाफ भी आमरण अनशन किया था।

मुखर्जी के अनशन और विरोध की परिणति परमिट व्यवस्था समाप्त करने और कश्मीर के भारतीय संघ में विलय की प्रक्रिया तेज किए जाने के रूप में हुई। लेकिन कई सप्ताह की जेलबंदी, बीमारी और कमजोरी के चलते मुखर्जी का निधन हो गया। इन सारी घटनाओं ने युवा वाजपेयी के मन पर गहरी छाप छोड़ी। मुखर्जी की विरासत को आगे बढ़ाते हुए वाजपेयी ने 1957 में अपना पहला चुनाव लड़ा और जीता।

भारतीय जनसंघ के नेता के रूप में उन्होंने इसके राजनीतिक दायरे, संगठन और एजेंडे का विस्तार किया। अपनी युवावस्था के बावजूद वाजपेयी जल्द ही विपक्ष में एक सम्मानित हस्ती बन गए जिनकी तर्कशक्ति और बुद्धिमत्ता के उनके विरोधी भी कायल होने लगे। उनकी व्यापक अपील ने उभरते राष्ट्रवादी सांस्कृतिक आंदोलन को सम्मान, पहचान और स्वीकार्यता दिलाई।

Thursday, 30 October 2014

सरदार पटेल की जयंती यानी राष्ट्रीय एकता दिवस



नरेंद्र मोदी सरकार ने देश को एकजुट करने के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल के प्रयास के प्रति श्रद्धांजलि के तौरपर उनकी जयंती को ‘राष्ट्रीय एकता दिवस’ के तौर पर मनाने का निर्णय लिया है।सरदार वल्लभभाई पटेल को श्रद्धांजलि देने संबंधी कार्यक्रम यहां संसद मार्ग के पटेल चौक पर किया जाएगा। सभी बड़े शहरों, जिला मुख्यालय शहरों एवं ग्रामीण क्षेत्रों में अन्य स्थानों पर भी ‘रन फॉर यूनिटी’ का आयोजन किया जाएगा जिसमें समाज के सभी वर्ग खासकर कॉलेज, एनसीसी और एनएसएस के युवक हिस्सा लेंगे। राष्ट्रीय राजधानी में राजपथ पर विजय चौक से इंडिया गेट तक ‘रन फॉन यूनिटी’ आयोजित किया जाएगा। इस अवसर पर सभी सरकारी कार्यालयों, सार्वजनिक उपक्रमों एवं अन्य संस्थानों में शपथ ग्रहण समारोह का भी आयोजन किया जाएगा। गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि यह अवसर हमारे राष्ट्र को एकता, अखंडता, तथा सुरक्षा के सामने खड़े वास्तविक एवं भारी खतरों के प्रति अपनी ताकत एवं दृढता के प्रति फिर से निश्चय प्रकट करने का मौका प्रदान करेगा।
सभी जिलों में एकता दिवस मनाने की तैयारियां की जा रही है। 31 अक्तूबर को लौह पुरूष के जन्मदिन को खास बनाने की तैयारी है। इस दौरान स्वतंत्रता आंदोलन और देश के एकीकरण में सरदार पटेल के योगदान पर व्याख्यान भी आयोजित किए जाएंगे। स्कूलों की छात्र-छात्राएं हाथों में राष्ट्रीय एकता दिवस का बैनर लिए मार्च पास्ट भी करेंगे। इस दिन छात्र-छात्राओं के लिए स्कूल कैम्पस में स्वतंत्रता संग्राम पर क्विज प्रतियोगिता,पेंटिंग व सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाएगा। सभी सरकारी कार्यालय, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम और अन्‍य सार्वजनिक संस्‍थान राष्‍ट्रीय एकता दिवस मनाने के लिए शपथ ग्रहण समारोह का आयोजन करेंगे। मानव संसाधन विकास मंत्रालय से यह अनुरोध किया गया है कि वे स्‍कूलों और कॉलेजों के छात्रों को देश की एकता और अखंडता को बनाये रखने के प्रयास करने के लिए प्रेरित करने हेतु राष्‍ट्रीय एकता दिवस पर शपथ दिलाने के लिए उपयुक्‍त दिशा-निर्देश जारी करें।
भारत सरकार के सभी मंत्रालयों/विभागों और सभी राज्‍य सरकारों/केन्‍द्रशासित प्रदेशों के प्रशासकों से इस अवसर पर ‘शपथ ग्रहण समारोह’, समाज के सभी वर्गों के लोगों को शामिल करते हुए ‘एकता के लिए दौड़’, संध्‍या में पुलिस, केन्‍द्रीय सशस्‍त्र पुलिस बलों और अन्‍य संगठनों जैसे राष्‍ट्रीय कैडेट कोर (एनसीसी), राष्‍ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस), स्‍काउट एवं गाइड और होम गार्ड द्वारा मार्च पास्‍ट आदि सहित उचित तरीकों से उपयुक्‍त कार्यक्रमों का आयोजन करने का अनुरोध किया गया है।

Monday, 27 October 2014

आशा और विश्वास का महापर्व छठ


संतान सुख की आशा और छठ मइया पर विश्वास के साथ व्रती 48 घंटे का निर्जला उपवास रखते हैं। इसी आस्था के साथ घाटों पर भीड़ उमड़ती है। इसे लेकर तैयारी शुरू हो गई है। सूर्य उपासना का पर्व डाला छठ सोमवार से शुरू हो गया। महिलाओं ने सायंकाल चने की दाल, लौकी की सब्जी तथा हाथ की चक्की से पीसे आटे की पूड़ी खाया। मंगलवार को खरना है। इस दिन दिन में व्रत रखकर सायंकाल रोटी व गन्ने का रस अथवा गुड़ की बनी खीर खाएंगी। चार दिवसीय इस पर्व को लेकर महिलाओं में उत्साह देखा जा रहा है। प्रथम दिन से ही सूर्य की पूजा शुरू हो गई है। चार दिवसीय इस पर्व की तैयारी भी व्यापक रूप से की जा रही है। पर्व में प्रयुक्त होने वाले सामानों की अस्थाई दुकानें भी लग गई हैं। वहां खरीदने के लिए महिलाओं की भीड़ पहुंच रही है। सूप, दौरी, चलनी के अलावा मिट्टी के पात्रों की भी खूब खरीदारी की जा रही है। यह खरीदारी देर रात तक होती है, इसलिए शहर ही नहीं गांवों के बाजार तथा कस्बों में भी चहल-पहल बढ़ गई है।

इस दिन व्रतधारी दिनभर उपवास करते हैं और शाम में भगवान सूर्य को खीर-पूड़ी, पान-सुपारी और केले का भोग लगाने के बाद खुद खाते हैं. यह व्रत काफी कठिन होता है. पूरी पूजा के दौरान किसी भी तरह की आवाज नहीं होनी चाहिए. खासकर जब व्रती प्रसाद ग्रहण कर रही होती है और कोई आवाज हो जाती हो तो खाना वहीं छोड़ना पड़ता है और उसके बाद छठ के खत्म होने पर ही वह मुंह में कुछ डाल सकती है. इससे पहले एक खर यानी तिनका भी मुंह में नहीं डाल सकती इसलिए इसे खरना कहा जाता है. खरना के दिन खीर के प्रसाद का खास महत्व है और इसे तैयार करने का तरीका भी अलग है. मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी जलाकर यह खीर तैयार की जाती है. प्रसाद बन जाने के बाद शाम को सूर्य की आराधना कर उन्हें भोग लगाया जाता है और फिर व्रतधारी प्रसाद ग्रहण करती है. इस पूरी प्रक्रिया में नियम का विशेष महत्व होता है. शाम में प्रसाद ग्रहण करने के समय इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि कहीं से कोई आवाज नहीं आए. ऐसा होने पर खाना छोड़कर उठना पड़ता है.
छठ, सूर्य की आराधना का पर्व है। वैदिक ग्रन्थ में सूर्य को देवता मानकर विशेष स्थान दिया गया है। प्रात: काल में सूर्य की पहली किरण और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण का नमन किया जाता है। सूर्य की उपासना भारतीय समाज में ऋग्वैदिक काल से होती आ रही है। सूर्य की उपासना के महत्व को विष्णु,भागवत और ब्र±ा पुराण में बताया गया है। वैज्ञानिक मान्यता के अनुसार षष्ठी को एक विशेष खौगोलीय घटना होती है। इस समय सूर्य की पराबैंगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती है। इसके संभावित कुप्रभाव से रक्षा करने का सामथ्र्य पूजा पाठ में होता है।
छठ पर्व की शुरूवात को लेकर अनेक कथानक हैं। आध्यात्मिक कथा के अनुसार ब्रह्मा की मानस पुत्री प्रकृति देवी की आराधना कर संतान की रक्षा की कामना की जाती है। कार्तिक मास की षष्ठी व स#मी को वेदमाता गायत्री का जन्म हुआ था। उनकी आराधना के लिए शाम को अस्त और सुबह उदय होते सूर्य को अघ्र्य देकर कामना की जाती है। यह भी कहा जाता है कि राजा प्रियव्रत और रानी मालिनी को कोई संतान नहीं थी। इससे राजा व्यथित होकर खुदकुशी करने जा रहा था। तभी षष्ठी देवी प्रकट हुई। उन्होेंने राजा से संतान सुख के लिए षष्ठी देवी की पूजा करने के लिए कहा। राजा ने देवी की आज्ञा मानकर कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि को षष्ठी देवी की पूजा थी। प्रियव्रत को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। तब से छठ व्रत का अनुष्ठान चला आ रहा है। एक अन्य मान्यता के अनुसार भगवान श्रीराम 14 साल का वनवास खत्म होने पर अयोध्या लौट आए।
कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्य देवता की पूजा की। तब से जनमानस में ये पर्व मान्य हो गया।

Wednesday, 22 October 2014

सबके जीवन में खुशहाली लाए दिवाली



संस्कार की रंगोली सजे,
विश्वास के दीप जले,
आस्था की पूजा हो,
सद्भाव की सज्जा हो,
स्नेह की धानी हो,
प्रसन्नता के पटाखे,
प्रेम की फुलझड़ियां जलें,
आशाओं के अनार चलें,
ज्ञान का वंदनवार हो,
विनय से दहलीज सजे,
सौभाग्य के द्वार खुले,
उल्लास से आंगन खिले,
दीपावली का अर्थ है दीपों की पंक्ति। दीपावली शब्द ‘दीप’ एवं ‘आवली’ की संधिसे बना है। आवली अर्थात पंक्ति, इस प्रकार दीपावली शब्द का अर्थ है, दीपोंकी पंक्ति। भारतवर्षमें मनाए जानेवाले सभी त्यौहारों में दीपावलीका सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात् ‘अंधेरे से ज्योति अर्थात प्रकाश की ओर जाइए’ यह उपनिषदोंकी आज्ञा है। इसे सिख, बौद्ध तथा जैन धर्म के लोग भी मनाते हैं।ख्1, माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा श्री रामचंद्र अपने चैदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे।ख्2, अयोध्यावासियों का ह्रदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से उल्लसित था। श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीए जलाए। कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी। तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं। यह पर्व अधिकतर ग्रिगेरियन कैलन्डर के अनुसार अक्टूबर या नवंबर महीने में पड़ता है। दीपावली दीपों का त्योहार है। इसे दीवाली या दीपावली भी कहते हैं। दीवाली अँधेरे से रोशनी में जाने का प्रतीक है। भारतीयों का विश्वास है कि सत्य की सदा जीत होती है झूठ का नाश होता है। दीवाली यही चरितार्थ करती है- असतो माऽ सद्गमय, तमसो माऽ ज्योतिर्गमय। दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है। कई सप्ताह पूर्व ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती है। लोग अपने घरों, दुकानों आदि की सफाई का कार्य आरंभ कर देते हैं। घरों में मरम्मत, रंग-रोगन, सफेदी आदि का कार्य होने लगता हैं। लोग दुकानों को भी साफ सुथरा का सजाते हैं। बाजारों में गलियों को भी सुनहरी झंडियों से सजाया जाता है। दीपावली से पहले ही घर-मोहल्ले, बाजार सब साफ-सुथरे व सजे-धजे नजर आते हैं।
दीपावली पर लक्ष्मीजी का पूजन घरों में ही नहीं, दुकानों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों में भी किया जाता है। कर्मचारियों को पूजन के बाद मिठाई, बर्तन और रुपये आदि भी दिए जाते हैं। दीपावली पर कहीं-कहीं जुआ भी खेला जाता है। इसका प्रधान लक्ष्य वर्ष भर के भाग्य की परीक्षा करना है।

ठसवबाुनवजम-वचमद.हप िइस दिन धन के देवता कुबेरजी, विघ्नविनाशक गणेशजी, राज्य सुख के दाता इन्द्रदेव, समस्त मनोरथों को पूरा करने वाले विष्णु भगवान तथा बुद्धि की दाता सरस्वती जी की भी लक्ष्मी के साथ पूजा करें।
इस प्रथा के साथ भगवान शंकर तथा पार्वती के जुआ खेलने के प्रसंग को भी जोड़ा जाता है, जिसमें भगवान शंकर पराजित हो गए थे। जहां तक धार्मिक दृष्टि का प्रश्न है, आज पूरे दिन व्रत रखना चाहिए और मध्यरात्रि में लक्ष्मी-पूजन के बाद ही भोजन करना चाहिए। जहां तक व्यवहारिकता का प्रश्न है, तीन देवी-देवों महालक्ष्मी, गणेशजी और सरस्वतीजी के संयुक्त पूजन के बावजूद इस पूजा में त्योहार का उल्लास ही अधिक रहता है। इस दिन प्रदोष काल में पूजन करके जो स्त्री-पुरुष भोजन करते हैं, उनके नेत्र वर्ष भर निर्मल रहते हैं। इसी रात को ऐन्द्रजालिक तथा अन्य तंत्र-मन्त्र वेत्ता श्मशान में मन्त्रों को जगाकर सुदृढ़ करते हैं। कार्तिक मास की अमावस्या के दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर की तरंग पर सुख से सोते हैं और लक्ष्मी जी भी दैत्य भय से विमुख होकर कमल के उदर में सुख से सोती हैं। इसलिए मनुष्यों को सुख प्राप्ति का उत्सव विधिपूर्वक करना चाहिएं।
लक्ष्मी जी के पूजन के लिए घर की साफ-सफाई करके दीवार को गेरू से पोतकर लक्ष्मी जी का चित्र बनाया जाता है। लक्ष्मीजी का चित्र भी लगाया जा सकता है।
संध्या के समय भोजन में स्वादिष्ट व्यंजन, केला, पापड़ तथा अनेक प्रकार की मिठाइयाँ होनी चाहिए। लक्ष्मी जी के चित्र के सामने एक चैकी रखकर उस पर मौली बांधनी चाहिए।
इस पर गणेश जी की व लक्ष्मी जी की मिट्टी या चांदी की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए तथा उन्हें तिलक करना चाहिए। चैकी पर छरू चैमुखे व 26 छोटे दीपक रखने चाहिए और तेल-बत्ती डालकर जलाना चाहिए। फिर जल, मौली, चावल, फल, गुड़, अबीर, गुलाल, धूप आदि से विधिवत पूजन करना चाहिए।
पूजा पहले पुरुष करें, बाद में स्त्रियां। पूजन करने के बाद एक-एक दीपक घर के कोनों में जलाकर रखें। एक छोटा तथा एक चैमुखा दीपक रखकर लक्ष्मीजी का पूजन करें।
इस पूजन के पश्चात तिजोरी में गणेश जी तथा लक्ष्मी जी की मूर्ति रखकर विधिवत पूजा करें।
अपने व्यापार के स्थान पर बहीखातों की पूजा करें। इसके बाद जितनी श्रद्धा हो घर की बहू-बेटियों को रुपये दें।
लक्ष्मी पूजन रात के समय बारह बजे करना चाहिए।
दुकान की गद्दी की भी विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए।
रात को बारह बजे दीपावली पूजन के बाद चूने या गेरू में रूई भिगोकर चक्की, चूल्हा, सिल-बट्टा तथा सूप पर तिलक करना चाहिए।
रात्रि की ब्रह्मबेला अर्थात प्रातरूकाल चार बजे उठकर स्त्रियां पुराने सूप में कूड़ा रखकर उसे दूर फेंकने के लिए ले जाती हैं तथा सूप पीटकर दरिद्रता भगाती हैं।
सूप पीटने का तात्पर्य है- श्आज से लक्ष्मीजी का वास हो गया। दुख दरिद्रता का सर्वनाश हो।श् फिर घर आकर स्त्रियां कहती हैं- इस घर से दरिद्र चला गया है। हे लक्ष्मी जी! आप निर्भय होकर यहाँ निवास करिए।

पूर्वांचल विकास मोर्चा की तरफ से दीपावली पर देशवासियों को बधाई

नई दिल्ली : पूर्वांचल विकास मोर्चा की तरफ से अजित कुमार पाण्डेयने दीपावली के मौके पर देशवासियों को को बधाई दी है। 

देशवासयिों को दीपावली की बधाई देने के साथ ही पाण्डेय ने लोगों से आग्रह किया है कि वे अपने परिवार और दोस्तों के साथ ई-शुभकामनाएं साझा करें।
उन्होंने कहा कि इस त्यौहारी मौसम के दौरान हर्ष और उल्लास को साझा करें। अपने परिवार और दोस्तों के साथ दिवाली की ई-शुभकामनाएं साझा करें।

Friday, 3 October 2014

पूर्वांचल विकास मोर्चा की तरफ से हार्दिक शुभकामनाएं और बधाईयां



दशहरा यानी विजयदशमी हिंदुओं का एक प्रमुख त्योहार है। अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को इसका आयोजन होता है। भगवान राम ने इसी दिन रावण का वध किया था। इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। इसीलिए इस दशमी को विजयादशमी के नाम से जाना जाता है।

दशहरा वर्ष की तीन अत्यंत शुभ तिथियों में से एक है, अन्य दो हैं चैत्र शुक्ल की एवं कार्तिक शुक्ल की प्रतिपदा। इसी दिन लोग नया कार्य प्रारंभ करते हैं, शस्त्र-पूजा की जाती है। प्राचीन काल में राजा लोग इस दिन विजय की प्रार्थना कर रण-यात्राा के लिए प्रस्थान करते थे।

इस दिन जगह-जगह मेले लगते हैं। रामलीला का आयोजन होता है। रावण का विशाल पुतला बनाकर उसे जलाया जाता है। दशहरा अथवा विजयदशमी भगवान राम की विजय के रूप में मनाया जाए अथवा दुर्गापूजा के रूप में, दोनों ही रूपों में यह शक्ति-पूजा का पर्व है, शस्त्र पूजन की तिथि है। हर्ष और उल्लास तथा विजय का पर्व है।

भारतीय संस्कृति वीरता की पूजक है, शौर्य की उपासक है। व्यक्ति और समाज के रक्त में वीरता प्रकट हो इसलिए दशहरे का उत्सव रखा गया है। दशहरा का पर्व दस प्रकार के पापों- काम, क्रोध, लोभ, मोह मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी के परित्याग की सद्प्रेरणा प्रदान करता है।

दशहरे का सांस्कृतिक पहलू भी है। भारत कृषि प्रधान देश है। जब किसान अपने खेत में सुनहरी फसल उगाकर अनाज रूपी संपत्ति घर लाता है तो उसके उल्लास और उमंग का पारावार नहीं रहता। इस प्रसन्नता का कारण वह भगवान की कृपा को मानता है और उसे प्रकट करने के लिए वह उसका पूजन करता है।

Tuesday, 16 September 2014

HAPPY BIRTHDAY NARENDRA MODI JI

आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जन्‍मदिन है। इस दिन को लेकर उत्‍साह का माहौल है। सबसे पहले पूर्वांचल विकास मोर्चा की तरफ से मैं मोदी जी को हृदिक बधाई देता हूं।

कहते हैं कि राजनीति में सबको सब-कुछ नहीं मिलता है, लेकिन भारतीय राजनीति में नरेंद्र मोदी ऐसे इकलौते राजनेता हैं जिन्होंने जब जो चाहा मिला, भले ही उसे पाने के लिए उन्हें बहुतेरे चुनौतियों का सामना करना पड़ा। अब प्रधानमंत्री के रूप में भी नरेंद्र मोदी के समक्ष बहुतेरे चुनौतियां आएंगी। लेकिन मोदी को करीब से जानने वाले कहते हैं कि मोदी देश के प्रधानमंत्री के रास्ते में आने वाली तमाम चुनौतियों का सामना करेंगे।
.नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने जब अक्तूबर 2001 में मुख्यमंत्री के रूप में पहली बार गुजरात की सत्ता संभाली थी तब किसी ने, शायद खुद मोदी ने भी नहीं सोचा होगा कि एक दिन उन्हें प्रधानमंत्री बनकर भारत सरकार का कार्यभार संभालना पड़ेगा। निश्चित रूप से गुजरात की सत्ता ने ही मोदी को वो आधार दिया जिसके बूते उन्होंने प्रधानमंत्री के पद को पाने तक का सफर तय किया।

दिसंबर 2012 में गुजरात में नरेंद्र मोदी ने जीत की हैट्रिक लगाई थी। यह जीत नरेंद्र मोदी को देश का प्रधानमंत्री बनाने की जीत थी। पिछले डेढ़ दशक से लगातार गुजरात में भाजपा की सरकार है और खास बात यह है कि इन वर्षों में गुजरात ने आर्थिक और सामाजिक दोनों ही मोर्चे पर भारी तरक्की की है।

गुजरात की सफलताएं इतनी प्रभावशाली हैं कि देश क्या दुनिया की निगाहें गुजरात पर आकर ठहर जाती हैं।
निश्चित रूप से नरेंद्र मोदी एक ईमानदार राजनेता हैं। नैतिक जिम्मेदारी के साथ जीते हैं। उनकी प्रशासनिक क्षमता संदेह से परे है। जब वो गुजरात में थे तो विकास के लिए उनकी गिनती देश के काबिल मुख्यमंत्रियों में होती थी। मोदी के नाम पर भाजपा के कार्यकर्ता जोश से भर जाते हैं और सबसे बड़ी बात यह कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भाजपा जिस विचारधारा से ऊर्जा पाती है, मोदी उसके सबसे बड़े प्रतीक पुरुष हैं। मोदी ने इस विचारधारा को नया आयाम दिया है। उन्होंने भाजपा के `हिंदुत्व` को `विकास` से जोड़कर एक नया मॉडल पेश करने की कोशिश की जिसमें वह बेहद सफल रहे।

दरअसल जिस सोमनाथ से लालकृष्ण आडवाणी ने 1989 में राम मंदिर के लिए रथयात्रा शुरू की थी, वहीं से आशीर्वाद लेकर नरेंद्र मोदी ने भी औपचारिक रूप से गुजरात में अपना चुनावी अभियान छह करोड़ गुजरातियों के विकास के नारे के साथ शुरू किया था। यह पहला मौका था जब हिंदुत्व की जमीन पर खड़े नरेंद्र मोदी का छह करोड़ गुजरातियों के विकास का नारा प्रभावी दिखा।


सद्भावना उपवास के बाद मोदी ने गुजरात में किसी मुस्लिम को भाजपा का टिकट नहीं दिया, लेकिन विकास में बराबर की भागीदारी के नाम पर उन्हें भी अपने अभियान में शामिल करने की कोशिश की। इसके अलावा मोदी ने महिलाओं और युवाओं पर सबसे ज्यादा फोकस किया। गुजरात ने अपने पिछले रिकार्ड को तोड़ते हुए 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में मतदान प्रतिशत का नया रिकार्ड बनाया। साल 1995 में विधानसभा चुनावों में रिकार्ड 64.70 फीसदी मतदान हुआ था। तब केशुभाई पटेल भाजपा के मुख्यमंत्री बने थे। 2012 के चुनावों ने
पिछले रिकार्ड को ध्वस्त करते हुए 71.30 फीसदी का नया रिकार्ड कायम किया है। मोदी ने सत्ता की हैट्रिक बनाई।

गोधरा कांड के बाद राज्य भर में भड़के दंगों के बाद साल 2002 के विधानसभा चुनावों में 61.55 फीसदी मतदान हुआ था और भाजपा सत्ता में आई थी। साल 2007 के विधानसभा चुनावों में हालांकि 59.77 फीसदी मतदान दर्ज किया गया था और तब भी भाजपा को सत्ता मिली थी। उस समय भाजपा को कुल 182 में से 117 सीटें मिली थी। कहने का मतलब यह कि मतदान प्रतिशत बढ़ने का तो गुजरात में भाजपा को फायदा होता ही है साथ ही एंटी इनकम्बेंसी फैक्टर के पंख भी इस प्रदेश में आकर कट जाते हैं। नरेंद्र मोदी ने मतदान के अंतिम चरण में मतदान करने से पहले कहा भी था कि गुजरात में प्रो-इनकम्बेंसी फैक्टर काम करता है। गुजरात में भाजपा की भव्य विजय होगी। निश्चित रूप से यह विकास में समाहित हिंदुत्व का एजेंडा ही है जो नरेंद्र मोदी की साख को लगातार बढ़ा रहा है।

दरअसल मोदी हिंदुत्व के जिस एजेंडे को लेकर चल रहे हैं वह वास्तविक हिंदुत्व की परिभाषा से ओतप्रोत है। मोदी के हिंदुत्व एजेंडा को आप सांप्रदायिकता के चश्मे से नहीं देख सकते हैं। नरेंद्र मोदी दरअसल वास्तविक राष्ट्रवाद के आधार पर शासन चलाते हैं और यह सत्य नियम है कि वास्तविक राष्ट्रवाद की बुनियाद पर काम किया जाए तो हिंदुत्व उस राष्ट्र का भविष्य बदल देता है। सोमनाथ मंदिर के सामने ठेला लगाने वाले मुसलमान भाई को इस बात से कोई मतलब नहीं कि प्रदेश में कौन जीत रहा है और कौन हार रहा है। वह मोदी राज में काफी सुरक्षित महसूस करते रहे हैं। असुरक्षा का भाव होने का सवाल अगर उनसे पूछेंगे तो उनका कहना है कि साहब! यहां मंदिर में सब हिंदू ही तो आते हैं। आज तक तो ऐसा कोई भाव नहीं आया।

गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी देश के ऐसे इकलौते राजनेता रहे जो जिंदगी अपनी शर्तों पर जीते हैं और इसी दर्शन के साथ वह तीसरी बार सत्ता में आए। वर्ष 2002 में गुजरात में गोधरा की आग फैली थी तो पूरी दुनिया में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को अछूत मान लिया गया था। देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी उन्हें `राजधर्म` का पालन करने की नसीहत दे डाली थी। ब्रिटेन ने 2002 में द्विपक्षीय सम्बंधों पर रोक लगा दी थी और मार्च-2005 में अमरीका ने मोदी को वीजा देने से इनकार कर दिया था। तब मोदी ने कसम खाई थी कि वह जीते जी अमेरिका की धरती पर कदम नहीं रखेंगे। और फिर मोदी ने गुजरात के परिदृश्य को ऐसे बदला कि गुजरात बना विकास मॉडल और नरेंद्र मोदी बने विकास पुरूष।

नरेंद्र मोदी ने जब अक्तूबर 2001 में मुख्यमंत्री के रूप में पहली बार कार्यभार संभाला था तब गुजरात 26 जनवरी, 2001 को आए विनाशकारी भूकंप की विभीषिका तले दबा हुआ था। तब लगता था मानो गुजरात फिर कभी उठ नहीं पाएगा। लेकिन पुनर्वास और पुनर्निमाण के तेज प्रयासों और पुन: उठ खड़े होने के लोगों के अदम्य साहस और जज्बे से गुजरात विकास के मार्ग पर अग्रसर हो गया। उस दौर में गुजरात के पुनर्वास कार्य को रोल मॉडल के तौर पर स्वीकार किया गया। अपने डेढ़ दशक से अधिक के शासनकाल में मोदी के विकासवादी सोच के कुछ अहम फैसलों ने गुजरात कि किस्मत ही बदल दी।

नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनने से पहले चुनावी अभियान के दौरान अपने भाषणों में अक्सर कहते थे कि कांग्रेस ने देश का भरोसा तोड़ा है। यह `भरोसा` शब्द भी एक चुनौती है नरेंद्र मोदी के लिए। देश की जनता ने आपको प्रचंड बहुमत से जिताकर आपके ऊपर भरोसा किया है।

आप आएंगे तो भ्रष्टाचार मिट जाएगा, महंगाई खात्म हो जाएगी, बेटियां असुरक्षित नहीं रहेंगी, सर्व धर्म सम्भाव की अस्मिता को ठोस नहीं पहुंचेगी, युवा बेरोजगार नहीं रहेंगे, देश में नक्सली हमला नहीं होगा, सबको बिजली और पीने के पानी का हक आदि-आदि। इन अहम् समस्याओं को लेकर एक ठोस एजेंडा देश के सामने रखना होगा और सिर्फ रखने से नहीं होगा, बल्कि देश की जनता को यह समझ में आना चाहिए कि हां, इस एजेंडे से वाकई उसका, उसके परिवार, समाज और अंतत: देश का भला होगा। तो गुजरात के मुख्यमंत्री से केंद्र सरकार में प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी के लिए `जन भरोसा` को बरकरार रखना होगा।

एक बार फिर मोदी जी जन्मदिन की ढेर सारी बधाइयां

Thursday, 14 August 2014

पूर्वांचल विकास मोर्चा की तरफ से स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई

पूर्वांचल विकास मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अजीत कुमार पाण्डेय ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर सभी नागरिकों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं दी हैं। अपने संदेश में उन्होंने कहा कि इस महत्वपूर्ण अवसर पर हम उन बहादुर स्वतंत्रता सेनानियों को सलाम करते हैं जिनके साहस और बलिदान ने हमें दमनकारी औपनिवेशिक शासन से मुक्त कराया।

एक आधुनिक, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक राज्य बनाने में उनकी नि: स्वार्थ सेवाओं के बलिदान के लिए हम अपने नए लोकतंत्र के निर्माताओं को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

आइए, इस महत्वपूर्ण दिन को मनाने के साथ ही हम सभी एकजुट होकर और शांति, प्रगति और समृद्धि के रास्ते पर देश को आगे ले जाने के लिए सामूहिक रूप से काम करें"।

Monday, 28 July 2014

प्रधानमंत्री से फिर पूर्वांचल बनाने की मांग उठाई

आंध्र प्रदेश का विभाजन कर तेलंगाना राज्य बनाने की मांग पूरी होने के बाद पृथक पूर्वांचल की मांग भी जोर पकड़ने लगी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलकर पूर्वांचल विकास मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अजीत कुमार पाण्डेय ने पूर्वी उत्तर प्रदेश की सात करोड़ जनता के लिए अलग पूर्वाचल राज्य की मांग उठाई है।

पाण्डेय ने कहा, नेपाल से सटे होने के नाते के राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से इसकी संवेदनशीलता और प्रदेश के अन्य क्षेत्रों की तुलना में विकास के हर पैमाने पर पिछड़ेपन के मद्देनजर इस क्षेत्र को अलग राज्य का दर्जा मिले है। लंबे समय से क्षेत्र की जनता की इस मांग के पीछे की भावना का केंद्र सम्मान करे।
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पाण्डेय का तर्क था कि आबादी के लिहाज से देश के सघनतम आबाद ये क्षेत्र आजादी के बाद से ही घोर उपेक्षित है। इतनी बड़ी आबादी के लिए एक अदद केंद्रीय विश्वविद्यालय, केंद्रीय चिकित्सा, प्रोद्यौगिकी और प्रबंधन संस्थान का न होना इसका सबूत है। उद्योगों के लिहाज से भी यह क्षेत्र शून्य है। सार्वजनिक क्षेत्र की एक मात्र इकाई खाद कारखाने को बंद हुए दो दशक से अधिक हो गए। इसके बाद से पूरे क्षेत्र में सार्वजनिक या निजी क्षेत्र की एक भी बड़ी इकाई नहीं लगी। कभी गन्ना यहां की नकदी फसल थी और चीनी उद्योग पहचान, पर सरकारी उपेक्षा के नाते मिलें एक-एक कर बंद होती गई।

सीमावर्ती क्षेत्र होने के नाते यह इलाका राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से भी बेहद संवेदनशील है। ऐसे में जिस तरह उत्तराखंड, झारखंड, छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हुआ और जिस तरह हाल में केंद्रीय कैबिनेट ने तेलंगाना के गठन की सहमति दी उसी तरह अलग पूर्वाचल राज्य के गठन की भी सहमति दे।

रस्तावित पूर्वांचल राज्य में सोनपुर और इलाहाबाद मंडल से लेकर बस्ती मंडल तक कुल 27 जिले, 149 विधानसभा सीटें और 29 लोकसभा की सीटें होंगी। इसकी राजधानी वाराणसी होगी। पूर्वांचल की आठ करोड़ की आबादी में 20 लाख से अधिक शिक्षित बेरोजगार हैं।

Saturday, 12 July 2014

बेहतर आर्थिक प्रबंधन का उदाहरण है यह बजट

पूर्वांचल विकास मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अजीत कुमार पाण्डेय ने बजट को बेहतर आर्थिक प्रबंधन का उदाहरण बताया है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी महँगाई कम करने के प्रयास कर रहे हैं। यह बजट उसी दिशा में एक अच्छा और सार्थक कदम है।

पाण्डेय ने ने कहा कि वर्तमान परिस्थिति में यह अद्भुत बजट है इसमें कोई नया कर नहीं लगाया गया है। बल्कि करों के बोझ को कम किया गया है। कृषि उपकरण जैसी कई जनोपयोगी वस्तुओं पर से कर कम किया गया है। इससे यह वस्तुएँ सस्ती होंगी।

बजट में कृषि, सिंचाई, अधोसंरचना विकास, ग्रामीण विकास, विद्युत, पेयजल आदि सभी क्षेत्रों के लिये पर्याप्त आवंटन किया गया है। नर्मदा-क्षिप्रा लिंक परियोजना लागू करने के बाद अब नर्मदा-गंभीर परियोजना के लिये इस बजट में प्रावधान किया गया है।

बजट में शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तिकरण को ध्यान में रखते हुए समुचित व्यवस्था की गई है। इसमें निवेशकों को आकर्षित करने तथा गरीबों को रोजगार देने के कार्यक्रमों को शामिल किया गया है। अत्यंत आवश्यक वस्तुओं पर से करों को कम कर राहत देने का काम किया गया है। यह बजट समाज के हर वर्ग की बेहतरी का प्रयास है।

Wednesday, 9 July 2014

अमित शाह बने बीजेपी के शहंशाह

राजधानी दिल्ली के 11 अशोका रोड स्थित बीजेपी मुख्यालय में अमित शाह को भारतीय जनता पार्टी का नया अध्यक्ष चुना गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शाह को मिठाई खिलाकर बधाई दी. 2014 के लोकसभा चुनाव में यूपी प्रभारी रहे अमित शाह को अध्यक्ष पद मिलना उनकी सफलता की कहानी कह रहा है. आइए नजर डालते हैं मुंबई में 22 अक्‍टूबर 1994 को जन्‍मे अमित अनिलचंद्र शाह के जीवन से जुड़े उस हर पहलू पर जो आपके लिए जानना जरूरी है.

रईस परिवार से ताल्‍लुक रखते हैं शाह
1.
मोदी के ठीक उलट अमित शाह गुजरात के एक रईस परिवार से ताल्लुक रखते थे.
2.
मनसा में प्लास्टिक के पाइप का पारिवारिक बिजनेस संभालते थे.
3. मेहसाणा में शुरुआती पढ़ाई के बाद बॉयोकेमिस्ट्री की पढ़ाई के लिए अहमदाबाद आए.
4.
अमित शाह ने बॉयोकेमिस्ट्री में बीएससी की, इसके बाद पिता का बिजनेस संभालने में जुट गए.
5. बचपन से ही शाह का संबंध आरएसएस के साथ रहा, कॉलेज के दिनों में वह आरएसएस के स्वयंसेवक बने.
6. 1982 में नरेंद्र मोदी से उनकी पहली मुलाकात हुई.
7. 1983 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े और इस तरह उनका राजनीतिक करियर शुरू हुआ.
8. मोदी से एक साल पहले उन्होंने 1986 में बीजेपी ज्वाइन किया.
9. 1987 में अमित शाह भारतीय जनता युवा मोर्चा के सदस्य बने.
10. 1999 में अहमदाबाद डिस्ट्रिक्ट कोऑपरेटिव बैंक (एडीसीबी) के प्रेसिडेंट चुने गए.
11. 1997 में मोदी ने सरखेज के उपचुनाव में अमित शाह को उतारने की सलाह दी.
12. फरवरी 1997 में उपचुनाव जीतकर शाह विधायक बने.
13. 1998 के चुनाव में उन्होंने चुनाव जीतकर अपनी सीट बरकरार रखी.
14. 1997 से 2012 तक वे सरखेज से विधायक रहे.
15. 2009 में गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के वाइस प्रेसिडेंट बने.
16. 2013 में नरनपुरा से विधायक चुने गए.
17. 2014 में मोदी के पद छोड़ने के बाद GCA के प्रेसिडेंट बने.
18. 2003 से 2010 तक गुजरात सरकार की कैबिनेट में गृहमंत्रालय का जिम्मा संभाला.
19. शाह को पहला बड़ा राजनीतिक मौका मिला 1991 में, जब आडवाणी के लिए गांधीनगर संसदीय क्षेत्र में उन्होंने चुनाव प्रचार का जिम्मा संभाला.
20. इसी तरह का मौका 1996 में भी अमित शाह के पास आया. जब अटल बिहारी वाजपेयी ने गुजरात से चुनाव लड़ना तय किया. मोदी के कहने पर उस चुनाव की पूरी जिम्मेदारी फिर से अमित शाह को ही सौंपी गई. उस समय वाजपेयी पूरे देश में पार्टी का प्रचार कर रहे थे. उन्होंने अपने क्षेत्र में न के बराबर समय दिया. पूरा दारोमदार अमित शाह ने अपने कंधे पर उठाया.
21. 2002 में नरेंद्र मोदी की सरकार बनी में सबसे कम उम्र के अमित शाह को गृह (राज्य) मंत्री बनाया गया.
22. अभी तक अमित शाह ने कुल 42 छोटे-बड़े चुनाव लड़े लेकिन उनमें से एक में उन्होंने हार का सामना नहीं किया.
23. सोहराबुद्दीन शेख की फर्जी मुठभेड़ के मामले में अमित शाह को 2010 में गिरफ्तारी का सामना करना पड़ा. शाह पर आरोपों का सबसे बड़ा हमला खुद उनके बेहद खास रहे गुजरात पुलिस के निलंबित अधिकारी डीजी बंजारा ने किया.
24. 2014 लोकसभा चुनाव में यूपी में बीजेपी प्रभारी रहे, जिसमें उन्‍होंने पार्टी को शानदार सफलता दिलवाई.
25. 9 जुलाई 2014 को बीजेपी के अध्यक्ष चुने गए.

Friday, 6 June 2014

भोजपुरी को ८ वि अधिसूची में शामिल किया जाये - अजित कुमार पाण्डेय ( अध्यक्ष, पूर्वांचल विकास मोर्चा )

काफी समय से भोजपुरी समाज भोजपुरी को भारत की संविधान की ८वि अधिसूची मैं जोड़ने की माग कर रहा है।  आखिर भोजपुरी को राष्ट्रीय भाषा का दर्ज दिलाने के पीछे कारन क्या हैं ? इसके लिए यह समझना जरुरी होगा की देश विदेश मिला कर दुनिया भर मैं लगभग ५५ करोड़ लोग इस भाषा का  प्रयोग करते हैं।  यही नहीं फिजी और मारीशश जैसे देशों मैं तो इसे राष्ट्र्य भाषा का दर्ज मिला हुआ है , तो आखिर मैं यह क्यों नहीं हो सकता ? अगर गौर किया जाये तो यह भाषा पूर्वांचल और bihar मैं मुख्या रूप मैं बोली जाती है। यही नहीं इन क्षेत्रों के लोग दुनिया भर मैं बेस हुए हैं।  ऐसे मैं उनसे संवाद स्थापित करने मैं इस भाषा की अहम भूमिका है।  जब इस भाषा से काफी काम बोले जनि वाली भाषाओँ को यह दर्ज प्राप्त है तो इसे क्यों नहीं ?
लेकिन अब बात अलग है।  भारत के प्रधानमंत्री अब इसी क्षेत्र से सांसद हैं।  हम पूर्वांचल विकास मोर्चा की तरफ से नरेंद्र मोदी जी से इसे भारत के संविधान की ८ वि अभिसूची में शामिल करने की अपील करते हैं।  उम्मीद है प्रधानमंर्ति का ध्यान इस ओर जायेगा क्यों की बिना इस बोली के इस क्षेत्रों के आम लोगो से संवाद जोड़ना उनके लिए भी मुश्किल होगा। 

Tuesday, 3 June 2014

गोपीनाथ मुंडे का जाना, देश को बहुत बड़ा झटका

अभी तो बहुत काम बाकी था मुंडे साहब!
महाराष्ट्र के लाल का असमय जाना
प्रतिभा से मुंडे जी ने तय किया जमीन से आस्मां का सफर
महाराष्ट्र की राजनीति में छाया शून्य


एक पल को लगा कि यह समय थम सा गया जब मैंने सुना कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता गोपीनाथ मुंडे का निधन हो गया। महाराष्ट्र के इस ऊर्जावान नेता की दिल्ली के एयरपोर्ट जाते समय एक दुर्घटना के बाद दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई। 

महाराष्ट्र राज्य से आने वाले मुंडे साहब को उनकी विशेष प्रतिभा के कारण पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने मंत्रिमंडल में जगह दी। यहां पर उनको केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री बनाकर पीएम ने यह जिम्मेदारी दी कि वह गांवों का विकास करें। क्योंकि पीएम साहब जानते हैं कि देश की तरक्की तभी हो सकती जब गांवों का विकास किया जाए। इस काम के लिए मुंडे साहब बेहद काबिल व्यक्ति थे। वह महाराष्ट्र के मराठवाड़ा से आते हैं। महाराष्ट्र में हमने देखा कि विगत समय में किसानों ने सबसे अधिक आत्महत्या की। दरअसल, मुंडे साहब लोगों की नब्ज पकड़ने के लिए जाने जाते थे। वह जानते थे कि कैसे देश के गांवों की बीमारू हालात को सही करके देश को विकास के पथ पर अग्रसर करना है।




बेहद साधारण परिवार में जन्मे गोपीनाथ जी ने अपनी क्षमता के बल पर यह मुकाम हासिल किया। वह भाजपा के अन्य पिछड़ा वर्ग के सशक्त नेता के रूप में विख्यात थे। वह ऐसे नेता थे जो कि कार्यकर्ताओं में काफी लोकप्रिय और काम करने के लिए सदैव आतुर दिखते थे। महाराष्ट्र की राजनीति में मुंडे बीजेपी के लिए संकटमोटचक की तरह थे। वह शिवसेना के साथ अपने रिश्ते मधुर करने के लिए जाने जाते थे। शिवसेना बीजेपी की सबसे पुरानी सहयोगी है, इसलिए उसकी अपेक्षाए भी गाहें बगाहें सामने आ जाती थी। इन अपेक्षाओं को किस तरह से विवाद में पड़ने से बचाना है, इस काम को मुंडे साहब बखूबी किया करते थे। इसलिए उनके जितने मित्र बीजेपी में है। उतने ही करीब दूसरी पार्टियों में है। महाराष्ट्र की राजनिति में मुंडे बीजेपी की धुरी थे। वह शांत स्वभाव के थे और कार्यकर्ताओं के साथ जमीनी स्तर पर काम करते थे।

मुंडे जी ने भाजपा के दिवंगत नेता प्रमोद महाजन की छत्रछाया में महाराष्ट्र की राजनीति में एक के बाद एक उपलब्धियां हासिल कीं। उनका विवाह प्रमोद महाजन की बहन के साथ हुआ था। प्रमोद ने केंद्र में पार्टी की अगुवाई की तो मुंडे साहब ने महाराष्ट्र राज्य में पार्टी के लिए सच्ची श्रद्धा के साथ काम किया। इसका इनाम उन्हें वक्त-2 पर मिलता रहा। उनको पार्टी ने हमेशा तरक्की दी और कुछ लोग यह भी मानते थे कि मुंडे साहब आगे जाकर महाराष्ट्र के सीएम भी हो सकते थे। 

मुंडे साहब का जन्म 12 दिसंबर को 1949 को हुआ था। महाराष्ट्र की राजनिति में बड़े कद के इस नेता ने पांच बार विधानसभा का प्रतिनिधित्व किया था। इस दौरान वह महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष के नेता भी बने। इन कार्यकालों में मनोहर जोशी की सरकार में उप मुख्यमंत्री भी रहे। अपनी चीजों को संजोना और संवारना कोई मुंडे साहब से सीखे। उन्होंने बखूबी अपने को तराशा और आगे बढ़ते रहे। प्रमोद महाजन के निधन के बाद शून्य को भरने के लिए मुंडे साहब ने केंद्र की राजनीति में प्रवेश किया। जहां वह पहली बार बीड संसदीय सीट से सांसद बने। उनको बीड की जनता ने सिर आंखों पर बिठाकर लोकसभा जाने का रास्ता दिया। उसके बाद मोदी जी ने उनकी उपयोगिता को समझते हुए केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जैसा महत्वपूर्ण पद दिया।

दरअसल, महाराष्ट्र की राजनिति में तीन लोग बड़ी शिद्दत से याद किए जाएंगे... वह हैं- प्रमोद महाजन, विलास राव देशमुख और मुंडे साहब। इन्होंने भीड़ से हटकर अपनी एक पहचान बनाई। देखा जाए तो मुंडे साहब का जाना... सिर्फ एक परिवार, एक लोक सभा सीट और एक राज्य का नहीं, यह नुकसान पूरे देश का है जिसे भरने में काफी समय लगेगा।

Monday, 2 June 2014

Condolences On Gopinath Munde Death

It’s a very shocking and sad to know about the death of our friend Gopinath Munde which is very unfurnate for all, in a tragedy, union Minister Gopinath Munde has passed away in a road accident, leaving country to a massive blow.



Death of Mr. Gopinath Munde is a massive lost for the us and for country; we express condolences to Munde ji’s family and stand by them in this hour of grief. My heartfelt condolences to the bereaved family.
Munde Ji was a true leader who came from a backward section society, but he rose to a great height and served people as much as he can. He was the true fighter who always stands for the people and tries to help them in every condition.

 


In Lok Sabha election he had won by a massive margin which shows how much people love him and how much they wants him to be the person who can serve them. His lost is irreparable for country and for BJP.

Its not only difficult, its impossible for the party to fill his gap with any other. Nation has lost a tall leader. Munde was one of the few leaders who had severed country from a long time.

No matter where he is now, but he will always be with us.

Wednesday, 28 May 2014

सबसे बड़े महारथी, सबड़े बड़े `लड़ैया`


दुनिया के महानतम संतों में शुमार होनेवाले स्वामी विवेकानंद को वेद की एक सूक्ति बड़ी प्रिय थी और इसका जिक्र उन्होंने युवाओं को प्रेरित करने के लिए बार-बार किया है। उतिष्ठित, जाग्रत, प्राप्य वरान्निबोधत् यानी उठो जागो और तबतक चलते रहो जबतक की लक्ष्य की प्राप्त नहीं हो जाए। यह सूक्ति वह युवाओं को प्रेरित करने के लिए कहते थे। वेदों की एक और सूक्ति की तरफ चलते हैं - `चरैवेति-चरैवेति` यानी चलते रहो, चलते रहो। यानी जीवन रूकने का नहीं बल्कि चलने का नाम है और मकसद तो चलने से ही हासिल होता है। यानी हर स्थिति और परिस्थिति में आगे ही बढ़ते जाने का नाम जीवन है। जीवन में निराश और हताश होकर लक्ष्य की प्राप्ति नहीं की जा सकती। जो हमारा समय निकल गया उसकी चिंता छोड़े। जो जीवन शेष बचा है उसके बारे में विचार करे।

..ये दोनों सूक्तियां आज लोकसभा चुनाव के परिणामों के मद्देनजर सबसे बड़े महारथी, सबड़े बड़े `लड़ैया`, सियासी विजेता नरेंद्र मोदी पर लागू होती है। उन्होंने आज देश की सबसे बड़ी सियासी जीत को हासिल करने के साथ ही यह साबित कर दिया कि उन्हें जीतने और विजय श्री के वरण करने तक रुकने या आराम फरमाने का शौक नहीं है। यह कहना गलत नहीं होगा कि मोदी 65 साल के करीब है लेकिन चुनाव में उन्होंने एक युवा जैसी ऊर्जा से लबरेज होकर लड़ाई लड़ी, चुनाव प्रचार किया और सबको अचंभित कर दिया। अंतत: जीत बीजेपी की हुई और कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई। मोदी के नेतृत्व में बीजेपी केंद्र की सत्ता पर काबिज हो गई ओर भगवा परचम लहरा दिया। 1984 के बाद पहली बार लोकसभा चुनाव में किसी पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिला है। यानी 30 साल बाद किसी पार्टी को स्पष्ट बहुमत हासिल हुई जो यह बताता है कि देश की जनता सही मायने में कांग्रेस से मुक्ति चाहती थी और देश की सियासत में बदलाव लाना चाहती थी।

केंद्र की सियासत में इस प्रचंड ऐतिहासिक जीत के कई मायने है जहां मोदी की अगुवाई में बीजेपी ना सिर्फ सत्ता पर काबिज हुई बल्कि उसने कांग्रेस का घमंड चकनाचूर कर दिया और परिवारवाद की परंपरा को खत्म कर दिया। बीजेपी इस बार के चुनाव में पहली बार अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए बहुमत के आंकड़े को अपने दम पर हासिल कर लिया। एनडीए को मोदी की अगुवाई में इतनी शानदार जीत हासिल होगी यह किसी ने सोचा भी नहीं था। लेकिन मोदी मैजिक और मोदी की लहर का असर इस बार सबपर भारी पड़ा और अंतत: इन सबने मोदी की विजय की पटकथा सियासी पटल पर लिखी दी।

नरेंद्र मोदी ने कई बार अपने चुनावी भाषणों में कहा था कांग्रेस इस बार के चुनाव में खाता तक नहीं खोल पाएगी। राजस्थान, गुजरात और गोवा इन तीन राज्यों में जो मोदी ने कहा वैसा ही हुआ। राजस्थान में 25,गुजरात में 26 और गोवा में 2 सीटों पर बीजेपी ने काबिज होकर कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया। चुनाव में मोदी आंधी की तरह नहीं सुनामी की तरह आए और कांग्रेस को बहाकर सत्ता से किनारे कर दिया।

अपने ताबड़तोड़ चुनाव प्रचार अभियान के दौरान विकास को अपना मुख्य मुद्दा बनाते हुए मोदी ने देश की युवा शक्ति ,मध्यवर्ग और ग्रामीण लोगों को ‘बदलाव की बयार ’ लाने का भरोसा दिलाने के लिए संपर्क साधने की पुरजोर कोशिश की और शायद उनकी यही कोशिश रंग लाई हालांकि बीच बीच में कभी कभार भगवा ताकतों के कुछ पसंदीदा विषयों को उठाकर मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने की कोशिशें भी उनके अभियान में दिखीं । एक कुशल योजनाकार मोदी ने ,रेलवे स्टेशन पर चाय बेचने वाले से लेकर भारत का एक लोकप्रिय नेता बनने तक का सफर बड़ी सफलता से पूरा किया हालाकि उनके बहुत से विरोधी उनके इस दावे से सहमत नहीं हैं कि वे कभी चाय भी बेचा करते थे । भाजपा ने उनके नेतृत्व में जबरदस्त बहुमत प्राप्त करने का ऐसा कारनामा अंजाम दिया है जैसा 1984 में राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने 400 से ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज कर किया था और ऐसा इस बीच कोई भी अन्य दल नहीं कर पाया ।

13 सितंबर 2013 को मोदी को बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार का दायित्व पार्टी ने दिया। उसके बाद वह ऐसा जुटे कि विजय गाथा की पटकथा लिखने के बाद ही रुके। 2014 के लोकसभा चुनावों की घोषणा हुई। 26 मार्च 2014 को मां वैष्‍णो देवी के आशीर्वाद के बाद उन्होंने विजय रैली का शुभारंभ किया । मां से उन्होंने आशीर्वाद लिया और जुट गए चुनाव प्रचार के विजय अभियान में। पहली रैली उन्होंने जम्मू-कश्मीर में की और अपनी आखिरी रैली पूर्वी उत्‍तर प्रदेश में बलिया में की जो 1857 की क्रांति के नायक मंगल पांडेय की भूमि है।

एक महीने के भीतर 12 दौर में 1350 स्‍थानों पर 3डी रैलियां संबोधित कीं। इस दौरान रैलिया, 3डी सभायें, चाय पे चर्चा आदि को मिला कर मोदी ने लगभग 5800 कार्यक्रम किये | 3 लाख किलोमीटर की यात्रा कर पूरे भारतवर्ष में 440 कार्यक्रम और रैलियां संबोधित की। इसमें भारत विजय रैलियां भी शामिल हैं जिनकी शुरुआत 26 मार्च 2014 से हुई थी । साथ ही इस दौरान भारत विजय 3डी रैलियों के रूप में एक ओर अभिनव प्रयोग हुआ। 3डी रैलियों के प्रति लोगों का उत्साह गजब का था।

मोदी बिना रुके, बिना थके अनवरत मेहनत करते रहे। आलम यह था कि वह एक दिन में चार से लेकर छह रैलियों तक को संबोधित कर रहे थे। कई हफ्तों तक उनका गला बैठ गया। फिर भी वह सियासात की बेहतरी की खातिर चिल्लाते रहे, गरजते रहे, जनता से वोट देने की अपील करते रहे। उनका चुनावी अभियान किसी मैराथन से कम नहीं था। मोदी ने अपने धुंआधार प्रचार अभियान से लोकसभा चुनाव प्रचार का रिकार्ड ब्रेक कर दिया। मोदी ने इस दौरान देश भर में तीन लाख किलोमीटर से अधिक दूरी तय कर एक अनूठा रिकार्ड बना दिया। कुल 5827 कार्यक्रमों में भाग लिया।

उन्होंने बीते साल सितंबर महीने से अब तक 25 राज्यों में 437 जनसभाओं को संबोधित किया और 1350 3डी रैलियों में शिरकत की। 5827 सार्वजनिक कार्यक्रमों के जरिये मोदी ने करीब 10 करोड़ लोगों तक अपनी पहुंच बनाई। मोदी का यह प्रचार अभियान ‘ऐतिहासिक’ और ‘अभूतपूर्व’ कहा जा सकता है। इस दौरान वह देश के हर राज्य और बड़े शहर में जा पहुंचे। पूरे देश को नाप लिया। मोदी चलते गए, बढ़ते गए और उन्होंने आखिरकार मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री बनकर ही दम लिया।

मोदी ने इस ऐतिहासिक जीत के बाद ट्वीट कर कहा भी- `यह जीत भारत की है और अच्छे दिन आनेवाले हैं।` मोदी की वेबसाइट उनके संकल्प को हर क्लिक पर और हर पल दोहराती नजर आती है- `सौगंध मुझे इस मिट्टी की मैं देश नहीं मिटने दूगा । मै देश नहीं झुकने दूंगा।` अब जनता ने देश का नेतृत्व मोदी के हाथों देकर उन्हें प्रधानमंत्री का दायित्व सौंप दिया है। अब देश की जनता के सामने उम्मीदें मोदी की नीति और नीयत से होंगी। उन मुश्किलों से निजात दिलाने से होंगी जो जनता चाहती है। मोदी हर कसौटी पर खरा उतरेंगे यह उम्मीदें सबको होंगी।


Friday, 23 May 2014

मांझी नहीं लगा पाएंगे जदयू की नैया पार!

मांझी नहीं लगा पाएंगे जदयू की नैया पार!

बिहार में नतीश कुमार के इस्तीफे के बाद मांझी को सीएम बनाने पर एक बार फिर सियासत शुरू हो गई है.. लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद जदयू ने इस बार महादलित कार्ड खेलकर दलितों को लुभाने का पैंतरा खेला है.. लेकिन शायद नीतीश के इस फैसले से बिहार की काफी जनता निराश भी है.. क्यों कि जनता ने अगर मोदी को पूर्ण बहुमत की सरकार दी है..तो नीतीश के इस फैसले का गलत असर पड़ सकता है... सवाल ये उठने लगा है की क्या उन्हें दलित होने की वजह से इस कुर्सी के लिए चुना गया है.. और क्या ऐसा करके जनता  दल यूनाइटेड ने दलित कार्ड नहीं खेला है ? मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देकर नीतीश कुमार ये दिखाना चाहते हैं कि पार्टी के सभी विधायक उनके साथ हैं.. इसके पहले मीडिया में इस बात को लेकर चर्चा थी कि  कई विधायक और मंत्री भारतीय जनता पार्टी से मिले हुए हैं.. वहीं भाजपा नेता ये दावा कर रहे थे कि वे जब चाहें नीतीश सरकार को गिरा सकते हैं..लेकिन इसके साथ ही एक सवाल ये भी खड़ा होता है कि अगर पार्टी विधायक दल की बैठक में इस्तीफे की घोषणा करते तो क्या ज़्यादा बेहतर नहीं होता

 
नीतीश के लिए कबसे शुरू काला दिन?

पूरे देश में चल रही मोदी की लहर ने ये तो साबित कर दिया कि.. ये लहर नहीं थी ये तो सुनामी थी..जिसका असर लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद दिखा..कि बीजेपी ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई..और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बन गए... फिलहाल जदयू के लिए उसी दिन से काला दिन शुरू हो गया था जब उसने बीजेपी से अपना पुराना नाता तोड़ा था.. साथ ही नीतीश का भी पीएम बनने का जो सपना था वो उसी दिन से अधूरा रह गया.. ऐसे में अब देखने वाली बात ये होगी कि बिहार में जीतन राम मांझी जदयू की नैया कैसे पार लगाते हैं... इस पर सबकी नजरें हैं...


लेखक- अजित पाण्डेय, राष्ट्रीय अध्यक्ष, पूर्वांचल विकास मोर्चा