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Friday, 13 September 2013

मोदी की ताजपोशी तय


वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के विरोध के बावजूद भाजपा ने नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करना तय कर लिया है। खबरों के मुताबिक इसी के चलते मोदी अहमदाबाद से दिल्ली आ रहे हैं। वह वहां से तीन बजे फ्लाइट से निकलेंगे। मुहूरत निकल गया है। पटाखे, लड़ियां और फुलझड़ियां मंगाई जा चुकी हैं। मीडिया की निर्भया कांड में सजा सुनाये जाने की व्यसस्ता के बीच मोदी नाम के ऐलान की तैयारी प्राथमिक तौर पर पूरी की जा चुकी है। शाम को पांच बजे भाजपा संसदीय बोर्ड की बैठक बुलाई गई है। संसदीय बोर्ड की बैठक में लालकृष्ण आडवाणी आयें आ न आयें। उनका विरोध जारी रहे या बंद हो जाए। अब कुछ रूकनेवाला नहीं है। शाम पांच बजे संसदीय बोर्ड की बैठक के बाद छह सवा छह बजे के आस पास मीडिया की भारी भरकम मोजूदगी में पीएम इन वेटिंग का कैंडिडेट बदल जाएगा। आडवाणी की बजाय मोदी अब भाजपा के नये पीएम इन वेटिंग घोषित कर दिये जाएंगे।
हालांकि इसके बावजूद भी आडवाणी से मेल मुलाकात का दौर जारी है। कल भी नितिन गडकरी ने उनसे मुलाकात की थी आज भी मुलाकात कर रहे हैं। भाजपा के भीतर कोशिश है कि मोदी के नाम पर आडवाणी की सहमति ले ली जाए। लेकिन आडवाणी खुद क्या राजनीतिक चाल सोचकर बैठे हैं यह तो संसदीय बोर्ड की बैठक में आने या न आने पर निर्भर करेगा। वैसे राजनाथ सिंह के फरमान के बाद भी भाजपा संसदीय बोर्ड के एक वरिष्ठ सदस्य डॉ मुरली मनमोहर जोशी अनुपस्थित रह सकते हैं। खबर है कि वे सागर की तरफ रवाना हो गये हैं।
लेकिन तैयारियों में कोई कमी नहीं है। शाम को भाजपा कार्यालय पर खुद मोदी की मौजूदगी भी रह सकती है। और केवल केन्द्रीय कार्यालय में ही नहीं बल्कि राज्यों के कार्यालयों में भी शाम को जलसे करने का एलर्ट भेजा गया है और सभी वरिष्ठ पदाधिकारियों को भाजपा कार्यालयों में मौजूद रहने का निर्देश भी दिया गया है। जो इस बात का संकेत है कि शाम को भाजपा अपना भविष्य घोषित कर देगी।

Thursday, 5 September 2013

पेट्रोल की फ़िज़ूलख़र्ची पर कौन लगाएगा लगाम



केंद्र सरकार भले ही पेट्रोल की खपत रोकने के लिए नए-नए सुझावों पर विचार कर रही है, लेकिन तेल की सरकारी फ़िज़ूलख़र्ची पर लगाम नहीं लगा पा रही है. सरकार के पास अधिकारियों के पेट्रोल ख़र्च में कटौती का कोई आइडिया नहीं है. दिल्ली में रहने वाले मंत्रियों, सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों का साल भर के पेट्रोल, डीजल बिल करीब 3 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया है. मंत्रियों, सरकारी अधिकारियों के तेल खपत के आंकड़े सरकार अलग से जारी नहीं करते. इनको ऑफ़िस खर्च में शामिल माना जाता है.

टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक 2011-12 में केंद्र सरकार के मंत्रियों और अधिकारियों का ऑफ़िस खर्च करीब 5 हजार 2 सौ करोड़ रुपये रहा, जिनमें स्टेशनरी से लेकर ऑफ़िस का चाय-पानी तक शामिल है, लेकिन इनमें ज्यादातर हिस्सा पेट्रोल-डीजल का है. दिल्ली में केंद्र सरकार के मंत्रियों के अलावा सचिव स्तर के 70 अधिकारियों, 131 एडिशनल सेक्रेटरी, 525 ज्वाइंट सेक्रेटरी और एक हजार दो सौ डायरेक्टर्स को सरकारी कारें मिली हुई हैं. अगर इनको करीब 200 लीटर पेट्रोल हर महीने मिलता है तो सिर्फ दिल्ली में केंद्र सरकार और उनके मातहत हर महीने 2 लाख 65 हजार लीटर पेट्रोल फूंक रहे हैं.

प्रधानमंत्री बनने के सपने नहीं देखता



 भाजपा इस समय जहां नरेंद्र मोदी को पार्टी का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने को लेकर दुविधा में पड़ी हुई है, वहीं गुजरात के मुख्यमंत्री ने आज कहा कि वह इस शीर्ष पद के सपने नहीं देख रहे हैं और 2017 तक राज्य की सेवा के लिए मिले जनादेश का सम्मान करेंगे. मोदी ने कहा , मैंने इस तरह के सपने कभी नहीं देखें (प्रधानमंत्री बनने के), ना ही मैं इस तरह का सपना देखना जा रहा हूं. गुजरात की जनता ने मुझे 2017 तक अपनी सेवा करने का जनादेश दिया है और मुझे यह पूरी ताकत के साथ करना है.

उनकी टिप्पणी खासा मायने रखती है क्योंकि उन्हें औपचारिक तौर पर प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने में हो रही देरी को लेकर इसे उनकी नाखुशी के प्रदर्शन के तौर पर देखा जा सकता है. भाजपा के चुनाव प्रचार समिति के प्रमुख मोदी ने छात्रों के साथ मुलाकात के दौरान कहा, जो कुछ बनने का सपना देखते हैं वे अंत में खुद को तबाह कर लेते हैं. किसी को कुछ बनने का सपना नहीं देखना चाहिए, बल्कि कुछ करने का सपना देखना चाहिए.गुजरात के मुख्यमंत्री और बीजेपी चुनाव प्रचार समिति के अध्यक्ष नरेंद्र मोदी ने कहा है कि वह प्रधानमंत्री बनने के सपने नहीं देखते.अहमदाबाद के एक कार्यक्रम में जब एक छात्र ने मोदी से सवाल किया तो उन्होंने कहा, "जो सपना देखता है बर्बाद हो जाता है." मुख्य विपक्षी पार्टी बीजेपी में प्रधानमंत्री पद के प्रबल उम्मीदवार माने जाने वाले मोदी ने कहा कि गुजरात के लोगों ने उन्हें साल 2017 तक का काम दे रखा है.

मोदी के इस बयान के अलग-अलग मायने निकाले जा रहे हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मोदी ने ऐसा कह कर पार्टी के भीतर यह पैगाम देने की कोशिश की है कि वे पीएम का उम्मीदवार बनने के लिए ललायित नहीं हैं. यानि वह खुद अपनी पीएम पद की दावेदारी पेश नहीं कर रहे हैं, बल्कि पार्टी के भीतर से उनकी दावेदारी पेश की जाए. दूसरी ओर कांग्रेस ने मोदी के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि उन्होंने पहले ही हार मान ली है. कांग्रेस के सांसद जगदंबिका पाल ने एबीपी न्यूज़ कहा कि मोदी जानते हैं कि वह कुछ नहीं कर पाएंगे इसलिए वह पहले ही हार मान गए हैं.

मैं परफेक्ट हिंदूः पर्रिकर



 गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर ने कहा है कि गोवा के कैथोलिक सांस्कृतिक रूप से हिंदू हैं और सांस्कृतिक अर्थों में भारत एक हिंदू राष्ट्र है। पर्रिकर ने 'न्यूयार्क टाइम्स' के इंडिया ब्लॉग को दिए एक साक्षात्कार में यह बात कही, जो बुधवार को प्रकाशित हुआ।
पर्रिकर ने कहा कि सांस्कृतिक अर्थों में भारत एक हिंदू राष्ट्र है। गोवा में रहने वाले कैथोलिक भी सांस्कृतिक रूप से हिंदू हैं क्योंकि धार्मिक पक्ष के अलावा उनकी अन्य प्रथाएं ब्राजील के कैथोलिकों से मेल नहीं खातीं। गोवा के कैथोलिकों की सोच व प्रथाएं हिंदुओं से मेल खाती हैं।
गोवा की 15 लाख लोगों की आबादी का 30 प्रतिशत हिस्सा कैथोलिक आबादी है। 57 वर्षीय पर्रिकर ने कहा कि वह एक संपूर्ण हिंदू हैं लेकिन यह उनका निजी विश्वास है और इसका उनकी सरकार से कोई लेना-देना नहीं है। मैं हिंदू राष्ट्रवादी नहीं हूं, जैसा कि कुछ टीवी मीडिया में समझा जाता है। न ही मैं ऐसा व्यक्ति हूं जो तलवार निकालकर मुसलमानों को कत्ल कर सकता है। पर्रिकर ने कहा कि मेरे मुताबिक इस प्रकार का व्यवहार हिंदू व्यवहार नहीं है। हिंदू किसी पर हमला नहीं करते, वे केवल आत्मरक्षा करते हैं। हमारा इतिहास यही है।

Tuesday, 3 September 2013

सरकारी खजाने का बढ़ता घाटा खतरनाक

बीते कई दिनों से रुपये की बेदम होती चाल पर अर्थव्यवस्था को पलीता लग रहा है, जिसका खामियाजा निश्चित तौर पर आने वाले दिनों में देश के आम लोगों को भुगतना होगा। हालत ये है कि आज रुपया दुनिया की सबसे कमजोर मुद्रा में से एक हो गई है। ऐसे में सरकारी खजाने का बढ़ता घाटा खतरनाक स्‍तर तक जा सकता है।


.कमजोर होती अर्थव्‍यवस्‍था को लेकर न तो सरकार को कुछ सूझ रहा है और न ही रुपये में ऐतिहासिक गिरावट को थामने के कोई कारगर उपाय नजर आ रहे हैं। न जानें यह रुपया कहां जाकर ठहरेगा। जानकारों के अनुसार, आजादी के बाद से रुपये में इतनी तेज गिरावट कभी नहीं देखी गई। आजादी को बीते 67 साल हो गए और रुपया भी पूरी तरह `आजाद` होकर कुलांचे मारने लगा। एक समय तो ऐसा भी आया जब रुपया आजादी के सालों की गिनती को भी बेमानी कर गया।

सरकार की ओर से बीते दिनों आए बयानों से यह कयास लगाया जाने लगा कि देश 1991 की तरह आर्थिक बदहाली के दौर में पहुंच चुका है। तभी तो एक बार फिर सोना गिरवी रखने की बात की जा रही है। देश में एक तरह से `आर्थिक इमरजेंसी` के हालात पैदा होते दिखने लगे हैं। रुपये का क्या स्तर होगा, इस पर सरकार कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं है। ऐसी दयनीय स्थिति में भारतीय अर्थव्यवस्था में दीर्घकालिक क्षमता नजर नहीं आ रही है।

रुपये की मजबूती को लेकर सरकार के प्रयास क्‍या हाल है, इसकी बानगी रिजर्व बैंक के गवर्नर एक वक्‍तव्‍य से लग जाती है। रिजर्व बैंक के गवर्नर ने मौजूदा आर्थिक हालात के लिए सीधे सरकार की ढुलमुल वित्तीय नीतियों को जिम्मेदार ठहराया। उन्‍होंने सीधे तौर पर कहा कि रुपये के अवमूल्यन के पीछे घरेलू संरचनात्मक कारक ही मूल वजह है। यानी रुपये की मौजूदा हाल के लिए यह सरकार ही जिम्‍मेवार है।

वहीं, सरकार इसे पूरी तरह झुठलाने पर आमदा है और घरेलू तथा विदेशी कारकों को इसके लिए जिम्‍मेवार ठहरा रही है। आर्थिक नरमी एवं उच्च मुद्रास्फीति के लिए सरकार के ढीले राजकोषीय रुख को भी जिम्मेदार ठहराया गया। विदित है कि देश का राजकोषीय घाटा बीते कई सालों से बढ़ता ही जा रहा है, मगर सरकार को इससे कोई फर्क ही नहीं पड़ा।

सरकार की कुछ `चुनावी` योजनाओं ने भी अर्थव्‍यवस्‍था को नुकसान पहुंचाने में कसर नहीं छोड़ी है। बीते दिनों खाद्य सुरक्षा बिल संसद में पारित किया गया। इस बिल के अमल में आने के बाद देश के ऊपर लाखों करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा। जाहिर है कि एक तरफ राजकोषीय घाटा सुरसा की मुंह की तरह बढ़ रहा है और ऊपर से ऐसी योजनाओं के क्रियान्‍वयन से वित्‍तीय खजाने पर भारी बोझ पड़ेगा। ऐसे में अर्थव्‍यवस्‍था की हालत और बिगड़ेगी। खाद्य सुरक्षा विधेयक ने भी वित्‍तीय बाजार को चिंता में डाल दिया।

बाजार में यह भरोसा नहीं है कि सरकार अपने राजकोषीय घाटे पर नियंत्रण लगा सकेगी। बाजार को आशंका है कि इससे सरकारी खजाने पर जबरदस्त असर पड़ेगा क्योंकि खाद्य सुरक्षा के लिए भारी सब्सिडी की जरूरत पड़ेगी। कुछ आर्थिक जानकार यह कहने को मजबूर हैं कि इस तरह की योजनाओं ने रुपये को रसातल में जाने को मजबूर किया है। आज देश की आर्थिक हालत ऐसी नहीं है कि फिर से किसी नई योजना के मद में आने वाले खर्च का बड़ा बोझ आसानी से सहा जा सके। साथ ही, सरकार ने आने वाले दिनों में लाखों करोड़ रुपये सब्सिडी देने का भी लक्ष्‍य तय कर रखा है।


रुपये में लगातार गिरावट के पीछे कई कारण हो सकते हैं। कारण चाहे जो भी हों, मगर विशेषज्ञों का मानना है कि इसमें और गिरावट हो सकती है। जिक्र योग्‍य है कि जनवरी में रुपया प्रति डॉलर 55 के स्तर पर था और आज यह 18 फीसदी लुढ़कर 65-66 के स्‍तर पर पहुंच गया है। एक समय तो रुपया 69 का आंकड़ा छूने के करीब था। महज एक सप्ताह में ही रुपये में करीब पांच फीसदी गिरावट दर्ज की गई।

जोकि कई सालों के बाद ऐसा देखने को मिला। वैसे दुनिया की कई उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों में मुद्रा कई वर्षों के निचले स्तर तक कमजोर हो गया, लेकिन रुपये में सर्वाधिक कमजोरी रही। यह तीन महीने में 15 फीसदी अवमूल्यन का शिकार हुआ है। खाद्य सुरक्षा बिल, डॉलर की भारी मांग, सोने के दाम में तेजी और कच्चे तेल की कीमतों में उछाल भी रुपये की कीमत के लिए जिम्मेदार हो सकता है।


इसमें कोई संशय नहीं है कि खराब घरेलू और वैश्विक हालात ने रुपये पर ऐसा पलीता लगाया है कि यह डॉलर के मुकाबले बेदम हो रहा है। भारतीय मुद्रा की इज्जत बचाने के लिए रिजर्व बैंक पिछले कई महीनों से बाजार में डॉलर झोंक रहा है, पर बात बनती नहीं दिख रही है। जिसकी खींझ आरबीआई गवर्नर के बयान से साफ मिल जाती है। प्रत्‍यक्ष रूप से उन्‍होंने सरकार की योजनाओं और क्रियाकलापों को कठघरे में खड़ा कर दिया।


हो सकता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की संरचनागत खामियां भी रुपये के अवमूल्यन का एक बड़ा कारण हो। खैर जो भी हो, इसके पीछे ठोस आर्थिक कारण तो है ही। आज भारतीय अर्थव्यवस्था में संरचनागत समस्याओं के कारण निवेश और विकास बाधित हो रहा है। इसे ठीक करने के प्रयास से बाजार तथा रुपये की गिरावट थम सकती है। मौजूदा समय में चालू खाता घाटा पिछले पांच सालों में 10 गुणा बढ़ गया है। चालू खाता घाटा से आशय यह है कि निर्यात से देश को जितनी राशि मिल रही है, उससे कहीं अधिक राशि आयात के कारण बाहर जा रही है।

पांच साल पहले यह घाटा आठ अरब डॉलर था, जो आज 90 अरब डॉलर हो गया है। इस घाटे से विदेशी पूंजी भंडार पर दबाव बढ़ गया। जिक्र योग्‍य है कि विदेशी पूंजी भंडार का उपयोग रिजर्व बैंक रुपये में स्थिरता बनाए रखने में करता है।

आज देश का विकास दर कम है, चालू खाता घाटा अधिक है। ऐसे में जब तक भारतीय अर्थव्यवस्था में स्थिरता नहीं आती और जब तक वैश्विक बाजार में अनुकूल माहौल नहीं होगा, रुपये में गिरावट का दौर जारी रहेगा। ऐसे में रोजमर्रा की जरूरतों की सभी चीजें महंगा हो जाएंगी। लोगों का जीवन स्‍तर बेहतर होने के बजाय कमतर होगा। उनकी बचत कम होगी। आखिरकार पूरी अर्थव्‍यवस्‍था को इसका नुकसान उठाना पड़ेगा।

रुपये में जरूरत से ज्यादा गिरावट क्‍या अस्थायी साबित होगी? यह हम ही नहीं, सभी देशवासी कामना करेंगे कि रुपये की गिरती चाल पर तत्‍काल ब्रेक लगे ताकि देश की आर्थिक स्थिति सुधरने के साथ साथ आम जनजीवन भी राहत पा सके।