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Wednesday, 17 April 2013

भारतीय जनता पार्टी




भारतीय जनता पार्टी की स्थापना 1980 में की गई थी। इससे पहले 1977 से 1979 तक इसे 'जनता पार्टी' के साथ के 'भारतीय जनसंघ' और उससे पहले 1951 से 1977 तक 'भारतीय जनसंघ' के नाम से जाना जाता था। भारतीय जनता पार्टी के इतिहास को तीन अलग-अलग हिस्सों में बांटा जा सकता है. भारतीय जनता पार्टी का गठन पुर्नगठित जनसंघ के रूप में 6 अप्रैल, 1980 को सम्पन्न हुआ था। इसके प्रथम अध्यक्ष के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी को चुना गया था। इस दल में अधिकांश सदस्य भूतपूर्व जनसंघ के शामिल हुए, जिसका 1977 में जनता पार्टी में विलय हो गया था। इसके साथ ही कुछ गैर जनसंघी भी इसमें शामिल हुए। इस दल के गठन के बाद जो चुनाव हुये, उसमें इस दल को अपेक्षाकृत सफलता नहीं मिली और 1984 के लोकसभा के आम चुनाव में इस दल के दो सदस्य लोकसभा के लिए निर्वाचित किये गये। 1989 में चुनाव तथा 1991 के लोकसभा के मध्यावधि चुनाव में इस दल को पर्याप्त सफलता मिली।
'भारतीय जनसंघ' की स्थापना श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1951 में की थी। पार्टी को पहले आम चुनाव में कोई ख़ास सफलता नहीं मिली, लेकिन इसे अपनी पहचान स्थापित करने में कामयाबी ज़रुर प्राप्त हो गई थी। भारतीय जनसंघ ने शुरु से ही कश्मीर की एकता, गौ-रक्षा, ज़मींदारी प्रथा और परमिट-लाइसेंस-कोटा राज आदि समाप्त करने जैसे मुद्दों पर विशेष रूप से ज़ोर दिया था। कांग्रेस का विरोध करते हुए जनसंघ ने राज्यों में अपना संगठन फैलाने और उसे मज़बूती प्रदान करने का काम प्रारम्भ किया, लेकिन चुनावों में पार्टी को आशा के अनुरूप कामयाबी प्राप्त नहीं हुई। कांग्रेस का विरोध करने के लिए जनसंघ ने जयप्रकाश नारायण का समर्थन भी किया। जयप्रकाश नारायण ने श्रीमती इंदिरा गांधी के ख़िलाफ़ नारा दिया कि "सिंहासन हटाओ कि जनता आती है।" 1975 में इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की। इस दौरान दूसरी विपक्षी पार्टियों की तरह जनसंघ के भी हज़ारों कार्यकर्ताओं और नेताओं को जेल में डाला गया। 1977 में आपातकाल की समाप्ति के बाद हुए चुनावों में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। तब मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने और भारतीय जनसंघ के अटल बिहारी वाजपेयी को विदेश मंत्री और लालकृष्ण आडवाणी को सूचना और प्रसारण मंत्री बनाया गया। लेकिन ये सरकार अधिक दिनों तक टिक नहीं सकी, क्योंकि आपसी गुटबाज़ी और लड़ाई की वजह से सरकार तीस माह में ही गिर गई।1980 के चुनावों में विभाजित जनता पार्टी की हार हुई। भारतीय जनसंघ, जनता पार्टी से पृथक हो गया और अब उसने अपना नया नाम 'भारतीय जनता पार्टी' रख लिया। इस समय पार्टी संसट के दौर से गुजर रही थी। अटल बिहारी वाजपेयी को पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया। दिसंबर, 1980 में मुंबई में भारतीय जनता पार्टी का पहला अधिवेशन हुआ। भाजपा ने कांग्रेस के साथ अपने विरोध को जारी रखा और पंजाब और श्रीलंका को लेकर तत्कालीन इंदिरा गांधी की सरकार की आलोचना की।
विश्वनाथ प्रताप सिंह ने पिछड़ी जातियों और जनजातियों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने के लिए मंडल आयोग की सिफ़ारिशें लागू कीं। भाजपा को ऐसा लगने लगा कि वे अपना वोट बैंक खड़ा करना चाहते हैं। इसीलिए अब भाजपा ने हिंदुत्व के मुद्दे को दोबारा उठाया। पार्टी ने अयोध्या में 'बाबरी मस्जिद' की जगह राम मंदिर बनाने की बात कही। इस प्रकार हिंदू वोट बैंक को इकठ्ठा रखने की कोशिश की गई, जिसके मंडल रिपोर्ट आने के बाद बँट जाने का ख़तरा पैदा हो गया था। अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा भी की। उनकी गिरफ़्तारी के बाद भाजपा ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया। इसके बाद 1991 में हुए चुनावों में प्रचार के दौरान ही राजीव गांधी की हत्या कर दी गई। भाजपा को इन चुनावों में 119 सीटों पर विजय मिली। इसका बड़ा श्रेय अयोध्या मुद्दे को जाता था। कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला, लेकिन पी. वी. नरसिंहराव अल्पमत की सरकार चलाते रहे। भाजपा ने सरकार का विरोध किया। शेयर घोटाले और आर्थिक उदारीकरण को लेकर उसने सरकार को घेरना लगातार जारी रखा।
1996 के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी के रुप में उभरी। राष्ट्रपति डॉक्टर शंकरदयाल शर्मा ने अटल बिहारी वाजपेयी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया। लेकिन लोकसभा में बहुमत साबित न कर पाने की वजह से उनकी सरकार सिर्फ़ 13 दिन में गिर गई। बाद में कांग्रेस के बाहरी समर्थन से बनीं एच.डी. देवगौड़ा और इंद्र कुमार गुजराल की सरकारें भी कार्यकाल पूरा करने में असमर्थ रहीं। 1998 में एक बार फिर आम चुनाव हुए। इन चुनावों में भाजपा ने क्षेत्रीय पार्टियों से गठबंधन और सीटों का तालेमल किया। ख़ुद पार्टी को 181 सीटों पर जीत हासिल हुई। अटल बिहारी वाजपेयी एक बार फिर प्रधानमंत्री बने, लेकिन गठबंधन की एक प्रमुख सहयोगी जयललिता की एआईएडीएमके के समर्थन वापस लेने से वाजपेयी सरकार गिर गई। 1999 में एक बार फिर आम चुनाव हुए। इन चुनावों को भाजपा ने 23 सहयोगी पार्टियों के साथ साझा घोषणा-पत्र पर लड़ा और गठबंधन को "राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन" (एन.डी.ए.) का नाम दिया। एनडीए को पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ। अटल बिहारी वाजपेयी फिर प्रधानमंत्री बनाये गये। वे सही मायनों में पहले ग़ैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे।

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