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Saturday, 17 December 2016

बीजेपी को महंगा पड़ सकता है मोदी का नोटबंदी फैसला

उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव सिर पर आ चुके हैं, पार्टी कार्यकर्ता नोटबंदी के फैसले पर वोटरों की नाराजगी को लेकर आशंकित हैं. वे काले धन को तो किसी भावनात्मक बात से जोड़ सकते हैं पर डिजिटल पेमेंट को आम जनता में स्वीकार्य कैसे बनायेंगे?

एक ऐसा देश जहां लोगों का बैंकिंग व्यवस्था पर विश्वास कम है, मोबाइल फोन अब भी कौतुक की चीज है, कैशलेस पेमेंट करने के लिए जरूरी इन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं है वहां कोई पार्टी कैसे ग्रामीण जनता को डिजिटल होने के फायदे गिना सकती है.

उससे भी खराब यह कि डिजिटल होने की बात से यह जनता इतनी अनभिज्ञ और अनजान हैं कि तकनीक की ये बातें उनकी समझ में भी नहीं आएंगी. मोदी जैसे जमीन से जुड़े और अनुभवी नेता को इस बात का एहसास तो होगा.

वे यह तो समझते ही होंगे कि विमुद्रीकरण के इस फैसले से जनसाधारण में किस तरह की नाराजगी है और इस फैसले पर और ज्यादा समय तक विरोध का बचाव नहीं किया जा सकता. पहली बार किसी मुद्दे पर विपक्ष मजबूत दिख रहा है. फैसले पर उठे सवालों पर संसद या और किसी बहस में तो बचा जा सकता है पर विधानसभा चुनावों के मद्देनजर जमीन पर काम कर रहे पार्टी कार्यकर्ताओं को इस फैसले से उपजे कैश संकट का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है.

ऐसा भी लगता है कि प्रधानमंत्री ने नोटबंदी के फैसले को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है. जो भी हो वे इसे हर हाल में न्यायोचित ठहराएंगे चाहे इसके लिए कोई भी अव्यवहारिक कदम उठाना पड़े, भले ही उससे मौजूदा मुश्किलें हल होने के बजाय बढ़ ही क्यों न जाएं.

मोदी नाटकीयता और भव्यता पसंद करते हैं, इससे उनकी छवि को फायदा मिलता है. पर इस बार ऐसा लगता है कि स्थितियां उनके काबू से बाहर हो चुकी हैं. पर वे इसे स्वीकार नहीं करना चाहते जिसका नतीजा भविष्य में उनकी पार्टी को भुगतना पड़ सकता है.

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