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Saturday, 24 January 2015

आत्ममंथन और आत्मगौरव का बेहतर दिन


हम विविध, विभिन्न बोली, भाषा, रंगरूप, रहन-सहन, खाना-पान, जलवायु में होने के बावजूद एकी संस्कृति की माला पिरोये हुए हैं। हमारे लोकतंत्र के प्रहरी अपने इस अवसर सपने को परिपक्वता के साथ मजबूत दीवार एवरेस्ट की चोटी से ऊंचा बना लिया है। कई उतार-चढ़ाव आए, आपातकाल भी देखा लेकिन भारत की सार्वभौमिकता बरकरार है। जनतंत्र-गणतंत्र की प्रौढ़ता को हम पार कर रहे हैं लेकिन आम जनता को उसके अधिकार, कर्तव्य, ईमानदारी समझाने में पिछड़े, कमजोर, गैर जिम्मेदार साबित हो रहे हैं। चूंकि स्वयं समझाने वाला प्रत्येक राजनीतिक पार्टियां, नेता स्वयं ही कर्तव्य, ईमानदारी से अछूते, गैर जिम्मेदार हैं।
इसलिए असमानता की खाई गहराती जा रही है और असमानता, गैरबराबरी बढ़ गई है। जबकि बराबरी के आधार पर ही समाज की उत्पत्ति हुई थी। 1947 में गांधी जी, ने भी बराबरी का बात कही थी लेकिन लोलुप अमानवीयता की हदें पार कर जनतंत्र-गणतंत्र को रौंद रहे हैं।
हर वर्ष 26 जनवरी एक ऐसा दिन है जब प्रत्‍येक भारतीय के मन में देश भक्ति की लहर और मातृभूमि के प्रति अपार स्‍नेह भर उठता है। ऐसी अनेक महत्‍वपूर्ण स्‍मृतियां हैं जो इस दिन के साथ जुड़ी हुई है। यही वह दिन है जब जनवरी 1930 में लाहौर ने पंडित जवाहर लाल नेहरु ने तिरंगे को फहराया था और स्‍वतंत्र भारतीय राष्‍ट्रीय कांग्रेस की स्‍थापना की घोषणा की गई थी। 26 जनवरी 1950 वह दिन था जब भारतीय गणतंत्र और इसका संविधान प्रभावी हुए। यही वह दिन था जब 1965 में हिन्‍दी को भारत की राजभाषा घोषित किया गया।
गणतंत्र दिवस के जश्न का सफर कई दौर से गुजरा है। कभी राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद बग्घी में बैठकर परेड में हिस्सा लेने पहुंचते थे। एक दौर ऐसा भी आया जब प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने खुद परेड की अगुवाई की। पहले 5 साल तक तो यही तय नहीं था कि गणतंत्र दिवस समारोह कहां मनाया जाए। 1955 से तय हुआ कि परेड राजपथ से निकलेगी और लालकिले तक जाएगी। आजादी के बाद तत्कालीन गवर्नर सी. राजगोपालाचारी ने सुबह 10 बजकर 18 मिनट पर भारत को गणराज्य घोषित किया। छह मिनट के भीतर डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने पहले राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली। गणतंत्र दिवस समारोह पहले से तय था। दोपहर 2 बजकर 30 मिनट पर राजेंद्र बाबू बग्घी में सवार होकर गवर्मेंट हाउस (राष्ट्रपति भवन) से निकले। कनॉट प्लेस जैसे नई दिल्ली के इलाकों का चक्कर लगाते हुए 3 बजकर 45 मिनट पर पुराने किले के पास स्थित नेशनल स्टेडियम पहुंचे। यह मैदान तब इरविन स्टेडियम कहलाता था। राजेंद्र बाबू जिस शाही बग्घी में सवार हुए थे वह 35 साल पुरानी थी। छह ऑस्ट्रेलियाई घोड़े उनकी बग्घी को खींच रहे थे। पहले समारोह के लिए प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इंडोनेशिया के तत्कालीन राष्ट्रपति सुकर्णो को न्यौता दिया था। परेड स्थल पर राष्ट्रपति राजेंद्र बाबू को शाम के वक्त 31 तोपों की सलामी दी गई थी।
इस अवसर के महत्‍व को दर्शाने के लिए हर वर्ष गणतंत्र दिवस पूरे देश में बड़े उत्‍साह के साथ मनाया जाता है, और राजधानी, नई दिल्‍ली में राष्‍ट्र‍पति भवन के समीप रायसीना पहाड़ी से राजपथ पर गुजरते हुए इंडिया गेट तक और बाद में ऐतिहासिक लाल किले तक शानदार परेड का आयोजन किया जाता है। यह आयोजन भारत के प्रधानमंत्री द्वारा इंडिया गेट पर अमर जवान ज्‍योति पर पुष्‍प अर्पित करने के साथ आरंभ होता है, जो उन सभी सैनिकों की स्‍मृति में है जिन्‍होंने देश के लिए अपने जीवन कुर्बान कर दिए। इसे शीघ्र बाद 21 तोपों की सलामी दी जाती है, राष्‍ट्रपति महोदय द्वारा राष्‍ट्रीय ध्‍वज फहराया जाता है और राष्‍ट्रीय गान होता है। इस प्रकार परेड आरंभ होती है।
महामहिम राष्‍ट्रपति के साथ एक उल्‍लेखनीय विदेशी राष्‍ट्र प्रमुख आते हैं, जिन्‍हें आयोजन के मुख्‍य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया जाता है। राष्‍ट्रपति महोदय के सामने से खुली जीपों में वीर सैनिक गुजरते हैं। भारत के राष्‍ट्रपति, जो भारतीय सशस्‍त्र बल, के मुख्‍य कमांडर हैं, विशाल परेड की सलामी लेते हैं। भारतीय सेना द्वारा इसके नवीनतम हथियारों और बलों का प्रदर्शन किया जाता है जैसे टैंक, मिसाइल, राडार आदि। इसके शीघ्र बाद राष्‍ट्रपति द्वारा सशस्‍त्र सेना के सैनिकों को बहादुरी के पुरस्‍कार और मेडल दिए जाते हैं जिन्‍होंने अपने क्षेत्र में अभूतपूर्व साहस दिखाया और ऐसे नागरिकों को भी सम्‍मानित किया जाता है जिन्‍होंने विभिन्‍न परिस्थितियों में वीरता के अलग-अलग कारनामे किए। इसके बाद सशस्‍त्र सेना के हेलिकॉप्‍टर दर्शकों पर गुलाब की पंखुडियों की बारिश करते हुए फ्लाई पास्‍ट करते हैं। सेना की परेड के बाद रंगारंग सांस्‍कृतिक परेड होती है। विभिन्‍न राज्‍यों से आई झांकियों के रूप में भारत की समृद्ध सांस्‍कृतिक विरासत को दर्शाया जाता है। प्रत्‍येक राज्‍य अपने अनोखे त्‍यौहारों, ऐतिहासिक स्‍थलों और कला का प्रदर्शन करते है। यह प्रदर्शनी भारत की संस्‍कृति की विविधता और समृद्धि को एक त्‍यौहार का रंग देती है।
विभिन्‍न सरकारी विभागों और भारत सरकार के मंत्रालयों की झांकियां भी राष्‍ट्र की प्र‍गति में अपने योगदान प्रस्‍तुत करती है। इस परेड का सबसे खुशनुमा हिस्‍सा तब आता है जब बच्‍चे, जिन्‍हें राष्‍ट्रीय वीरता पुरस्‍कार हाथियों पर बैठकर सामने आते हैं। पूरे देश के स्‍कूली बच्‍चे परेड में अलग-अलग लोक नृत्‍य और देश भक्ति की धुनों पर गीत प्रस्‍तुत करते हैं। परेड में कुशल मोटर साइकिल सवार, जो सशस्‍त्र सेना कार्मिक होते हैं, अपने प्रदर्शन करते हैं। परेड का सर्वाधिक प्रतीक्षित भाग फ्लाई पास्‍ट है जो भारतीय वायु सेना द्वारा किया जाता है। फ्लाई पास्‍ट परेड का अंतिम पड़ाव है, जब भारतीय वायु सेना के लड़ाकू विमान राष्‍ट्रपति का अभिवादन करते हुए मंच पर से गुजरते हैं। राज्‍यों में होने वाले आयोजन अपेक्षाकृत छोटे स्‍तर पर होते हैं और ये सभी राज्‍यों की राजधानियों में आयोजित किए जाते हैं। यहां राज्य के राज्‍यपाल तिरंगा झंडा फहराते हैं। समान प्रकार के आयोजन जिला मुख्‍यालय, उप संभाग, तालुकों और पंचायतों में भी किए जाते हैं।
गणतंत्र दिवस का आयोजन कुल मिलाकर तीन दिनों का होता है और 27 जनवरी को इंडिया गेट पर इस आयोजन के बाद प्रधानमंत्री की रैली में एनसीसी केडेट्स द्वारा विभिन्‍न चौंका देने वाले प्रदर्शन और ड्रिल किए जाते हैं। सात क्षेत्रीय सांस्‍कृतिक केन्‍द्रों के साथ मिलकर संस्‍कृति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा हर वर्ष 24 से 29 जनवरी के बीच ‘’लोक तरंग - राष्‍ट्रीय लोक नृत्‍य समारोह’’ आयोजित किया जाता है। इस आयोजन में लोगों को देश के विभिन्‍न भागों से आए रंग बिरंगे और चमकदार और वास्‍तविक लोक नृत्‍य देखने का अनोखा अवसर मिलता है।
बीटिंग द रिट्रीट गणतंत्र दिवस आयोजनों का आधिकारिक रूप से समापन घोषित करता है। सभी महत्‍वपूर्ण सरकारी भवनों को 26 जनवरी से 29 जनवरी के बीच रोशनी से सुंदरता पूर्वक सजाया जाता है। हर वर्ष 29 जनवरी की शाम को अर्थात गणतंत्र दिवस के बाद अर्थात गणतंत्र की तीसरे दिन बीटिंग द रिट्रीट आयोजन किया जाता है। यह आयोजन तीन सेनाओं के एक साथ मिलकर सामूहिक बैंड वादन से आरंभ होता है जो लोकप्रिय मार्चिंग धुनें बजाते हैं। ड्रमर भी एकल प्रदर्शन (जिसे ड्रमर्स कॉल कहते हैं) करते हैं। ड्रमर्स द्वारा एबाइडिड विद मी (यह महात्‍मा गांधी की प्रिय धुनों में से एक कहीं जाती है) बजाई जाती है और ट्युबुलर घंटियों द्वारा चाइम्‍स बजाई जाती हैं, जो काफी दूरी पर रखी होती हैं और इससे एक मनमोहक दृश्‍य बनता है। इसके बाद रिट्रीट का बिगुल वादन होता है, जब बैंड मास्‍टर राष्‍ट्रपति के समीप जाते हैं और बैंड वापिस ले जाने की अनुमति मांगते हैं। तब सूचित किया जाता है कि समापन समारोह पूरा हो गया है। बैंड मार्च वापस जाते समय लोकप्रिय धुन ‘’सारे जहां से अच्‍छा बजाते हैं। ठीक शाम 6 बजे बगलर्स रिट्रीट की धुन बजाते हैं और राष्‍ट्रीय ध्‍वज को उतार लिया जाता हैं तथा राष्‍ट्रगान गाया जाता है और इस प्रकार गणतंत्र दिवस के आयोजन का औपचारिक समापन होता हैं।
भारत के संविधान को लागू किए जाने से पहले भी 26 जनवरी का बहुत महत्त्व था। 26 जनवरी को विशेष दिन के रूप में चिह्नित किया गया था, 31 दिसंबर सन् 1929 के मध्‍य रात्रि में राष्‍ट्र को स्वतंत्र बनाने की पहल करते हुए लाहौर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन पंडित जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में हु‌आ जिसमें प्रस्ताव पारित कर इस बात की घोषणा की ग‌ई कि यदि अंग्रेज़ सरकार 26 जनवरी, 1930 तक भारत को उपनिवेश का पद (डोमीनियन स्टेटस) नहीं प्रदान करेगी तो भारत अपने को पूर्ण स्वतंत्र घोषित कर देगा। 26 जनवरी, 1930 तक जब अंग्रेज़ सरकार ने कुछ नहीं किया तब कांग्रेस ने उस दिन भारत की पूर्ण स्वतंत्रता के निश्चय की घोषणा की और अपना सक्रिय आंदोलन आरंभ किया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के इस लाहौर अधिवेशन में पहली बार तिरंगे झंडे को फहराया गया था परंतु साथ ही इस दिन सर्वसम्मति से एक और महत्त्वपूर्ण फैसला लिया गया कि प्रतिवर्ष 26 जनवरी का दिन पूर्ण स्वराज दिवस के रूप में मनाया जाएगा। इस दिन सभी स्वतंत्रता सेनानी पूर्ण स्वराज का प्रचार करेंगे। इस तरह 26 जनवरी अघोषित रूप से भारत का स्वतंत्रता दिवस बन गया था। उस दिन से 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त होने तक 26 जनवरी स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता रहा।

Thursday, 22 January 2015

जिनपर की राजनीति, उन्हीं के हाथ रह गए खाली

भाजपा की सूची जारी होने के बाद दिल्ली में रहने वाले प्रवासी पूर्वांचली खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं।
वे इस बात को लेकर हैं नाराज है कि संख्या के आधार पर उन्हें पार्टी ने तरजीह नहीं दी। इतना ही नहीं वैसे लोगों को टिकट दे दिया है जो सदस्यता अभियान में भी सक्रिय नहीं रहे। इस बार पूर्वाचलियों को 70 सीटों में से महज 2 प्रत्याशियों को टिकट मिला है। 

पिछले विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने दिल्‍ली में पूर्वांचलियों की ताकत को समझा था और जितने पूर्वांचलियों को अरविंद की पार्टी ने टिकट दिया था, उनमें से ज्‍यादातर जीतने में सफल रहे थे। भाजपा ने भी पूर्वाचलियों की ताकत को समझा था और पहली बार 5 पूर्वाचलियों को विधानसभा का टिकट दिया था, जिसमें से ज्‍यादातर जीतने में सफल रहे थे। इसी जीत के बाद दिल्‍ली के पूर्वांचली मतदाता भाजपा के लिए महत्‍वपूर्ण हो गए और उसने भोजपुरी के सबसे बडे स्‍टार मनोज तिवारी को उत्‍तर-पूर्वी दिल्‍ली से सांसद बनाया।
मनोज तिवारी तो जीतने में सफल रहे ही, उनका असर अन्‍य सीटों पर भी पड़ा और पूर्वाचली मतदाता गोलबंद होकर भाजपा के पीछे एकजुट हो गया, जिसका परिणाम सामने है। दिल्‍ली में भाजपा ने सबसे पहले पूर्वांचल से लालबिहारी तिवारी को लोकसभा का टिकट दिया था और आपको जानकर आश्‍चर्य होगा कि उस वर्ष भाजपा सातों लोकसभा सीट जीतने में सफल रही थी। लालबिहारी तिवारी के कारण दिल्‍ली के सभी सीटों पर पूर्वांचली मतदाता भाजपा के पक्ष में गोलबंद हो गए थे। लेकिन जब से भाजपा ने पंजाबी-बनिया लॉबी के कारण एक मात्र पूर्वांचली लालबिहारी तिवारी को किनारे लगाया, भाजपा दिल्‍ली में सत्‍ता से दूर होती चली गई। लोकसभा-2014 में भाजपा ने इस गलती को सुधारा और मनोज तिवारी को टिकट दियाा असर देखिए कि फिर एक बार भाजपा दिल्‍ली की सातों लोकसभा सीट जीतने में सफल रही।

छठ पर्व पर दिल्‍ली से बिहार व पूर्वी उप्र की ओर जाने वाली रेलगाडि़यों की संख्‍या के हिसाब से दिल्‍ली में करीब 40 लाख पूर्वांचली मतदाता हैं। कांग्रेस ने केवल एक महाबल मिश्रा के परिवार तक पूर्वांचल को सीमित कर दिया, जिसका शुरु में तो लाभ हुआ, लेकिन अंत में कांग्रेस को बेहद नुकसान हुआ। महाबल मिश्रा को पार्षद, विधायक और 2009 में लोकसभा का उम्‍मीदवार बनाने के कारण लगातार 15 साल कांग्रेस की सरकार रही और पहली बार कांग्रेस 2009 में सातों लोकसभा सीटें जीतने में भी सफल रही थी। लेकिन महाबल मिश्रा के परिवारवाद के कारण पूर्वांचल की जनता कांग्रेस से दूर होती चली गई, जिसका खामियाजा कांग्रेस को बुरी तरह से उठाना पड़ा। यहां तक कि पिछली विधानसभा में महाबल मिश्रा के बेटे विनय मिश्रा तक की चुनाव में हार हुई।

Thursday, 1 January 2015

पूर्वांचल विकास मोर्चा की तरफ से आप सबको नया साल 2015 की हार्दिक शुभकामनायें

नए साल 2015  शुरू हो चुका है।  2014 इतिहास बन चुका है, लेकिन गुजरे साल ने कई ऐसे संकेत दिए हैं, जिनके आधार पर नया साल अच्‍छा रहने की उम्‍मीद जताई जा सकती है। 

ज़िंदगी का फलसफा भी कितना अजीब है;
शामें कटती नहीं और साल गुज़रते चले जा रहे हैं।
नया साल मुबारक़!



पूर्वांचल विकास मोर्चा की तरफ से आप सबको नया साल 2015 की हार्दिक शुभकामनायें । नूतन बर्ष आपके एवं आपके परिवार के लिए हर्षोल्लास,अच्छा स्वास्थ्य,सम्पन्नता ,सुरक्षा, नव ज्योत्स्ना,नव उल्लास और समृधि लेकर आए ।