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Friday, 4 October 2013

गर्त में चला गया गरीबों का मसीहा, लेकिन साख पर कोई ज़्यादा असर नहीं



सामाजिक न्याय के महानायक जिन्होंने पहली बार देश की राजनीति में दलितों और पिछड़ों को पूरी मजबूती के साथ स्थापित किया, आखिरकार सामंती ताकतों की साजिश का शिकार हो गये।

चारा घोटाले मामले में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) प्रमुख लालू प्रसाद यादव को सुनाई गई सज़ा से उनके व्यक्तिगत करियर पर कोई ख़ास नहीं पड़ने वाला है. अदालत ने उन्हें पांच साल की सज़ा सुनाई गई. अब वो चुनाव नहीं लड़ पाएंगे भले ही आगे अपील होगी और मामला चलता रहेगा. उनकी पार्टी तो चलती ही रहेगी. पार्टियां बंद नहीं होती हैं जहां तक उनकी साख का सवाल है उसमें भी ख़ास फ़र्क नहीं पड़ेगा.


..कुछ लोगो का सवाल ये है कि लालू प्रसाद यादव के जेल जाने से राजद कमजोर हुआ या फ़िर उसका अस्तित्व समाप्त हो गया तो इसका सबसे अधिक फ़ायदा भाजपा को होगा। भाजपा को फ़ायदा होने का मतलब यह कि बिहार के अधिकांश यादव किसी भी परिस्थिति में नीतीश कुमार को उनके छद्म कुर्मीवाद के कारण वोट नहीं करेंगे।

यादव मतदाताओं के लिए भाजपा एक महत्वपूर्ण विकल्प के रुप में साबित हो सकता है। इसकी दो वजहें संभव हैं। पहली वजह यह कि भाजपा द्वारा बड़े पैमाने पर यह प्रचारित किया जा रहा है कि एक शुद्र नेता को पीएम पद का उम्मीदवार बनाया गया है, जिनका विरोध मूल रुप से नीतीश कुमार के समर्थक कर रहे हिअ। इसके अलावा धर्म फ़ैक्टर का लाभ लेने की कोशिश की जा रही है।

बहरहाल, समाजिक न्याय के महानायक को जेल भेजने की सामंती और ब्राह्म्णवादी ताकतों की साजिश सफ़ल होती दिख रही है। लेकिन इसका यह मतलब बिल्कुल भी नहीं है कि सामाजिक न्याय का आंदोलन अब कुंद पड़ गया है। जो बीज लालू प्रसाद यादव ने बोया था, वह अब विशाल वृक्ष बन चुका है। आने वाले समय में सामाजिक न्याय का आंदोलन नये रुप में नजर आयेगा।

लालू यादव हार कर भी विपक्ष में होकर भी 18 से 20 फ़ीसदी वोट अपने पास रखते हैं. ये जो इमेज या छवि की बात है यह सब शहरी मध्य वर्ग के लिए मायने रखती है लेकिन शहरी मध्य वर्ग उनका वोटर नहीं है.




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