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Thursday, 30 October 2014

सरदार पटेल की जयंती यानी राष्ट्रीय एकता दिवस



नरेंद्र मोदी सरकार ने देश को एकजुट करने के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल के प्रयास के प्रति श्रद्धांजलि के तौरपर उनकी जयंती को ‘राष्ट्रीय एकता दिवस’ के तौर पर मनाने का निर्णय लिया है।सरदार वल्लभभाई पटेल को श्रद्धांजलि देने संबंधी कार्यक्रम यहां संसद मार्ग के पटेल चौक पर किया जाएगा। सभी बड़े शहरों, जिला मुख्यालय शहरों एवं ग्रामीण क्षेत्रों में अन्य स्थानों पर भी ‘रन फॉर यूनिटी’ का आयोजन किया जाएगा जिसमें समाज के सभी वर्ग खासकर कॉलेज, एनसीसी और एनएसएस के युवक हिस्सा लेंगे। राष्ट्रीय राजधानी में राजपथ पर विजय चौक से इंडिया गेट तक ‘रन फॉन यूनिटी’ आयोजित किया जाएगा। इस अवसर पर सभी सरकारी कार्यालयों, सार्वजनिक उपक्रमों एवं अन्य संस्थानों में शपथ ग्रहण समारोह का भी आयोजन किया जाएगा। गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि यह अवसर हमारे राष्ट्र को एकता, अखंडता, तथा सुरक्षा के सामने खड़े वास्तविक एवं भारी खतरों के प्रति अपनी ताकत एवं दृढता के प्रति फिर से निश्चय प्रकट करने का मौका प्रदान करेगा।
सभी जिलों में एकता दिवस मनाने की तैयारियां की जा रही है। 31 अक्तूबर को लौह पुरूष के जन्मदिन को खास बनाने की तैयारी है। इस दौरान स्वतंत्रता आंदोलन और देश के एकीकरण में सरदार पटेल के योगदान पर व्याख्यान भी आयोजित किए जाएंगे। स्कूलों की छात्र-छात्राएं हाथों में राष्ट्रीय एकता दिवस का बैनर लिए मार्च पास्ट भी करेंगे। इस दिन छात्र-छात्राओं के लिए स्कूल कैम्पस में स्वतंत्रता संग्राम पर क्विज प्रतियोगिता,पेंटिंग व सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाएगा। सभी सरकारी कार्यालय, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम और अन्‍य सार्वजनिक संस्‍थान राष्‍ट्रीय एकता दिवस मनाने के लिए शपथ ग्रहण समारोह का आयोजन करेंगे। मानव संसाधन विकास मंत्रालय से यह अनुरोध किया गया है कि वे स्‍कूलों और कॉलेजों के छात्रों को देश की एकता और अखंडता को बनाये रखने के प्रयास करने के लिए प्रेरित करने हेतु राष्‍ट्रीय एकता दिवस पर शपथ दिलाने के लिए उपयुक्‍त दिशा-निर्देश जारी करें।
भारत सरकार के सभी मंत्रालयों/विभागों और सभी राज्‍य सरकारों/केन्‍द्रशासित प्रदेशों के प्रशासकों से इस अवसर पर ‘शपथ ग्रहण समारोह’, समाज के सभी वर्गों के लोगों को शामिल करते हुए ‘एकता के लिए दौड़’, संध्‍या में पुलिस, केन्‍द्रीय सशस्‍त्र पुलिस बलों और अन्‍य संगठनों जैसे राष्‍ट्रीय कैडेट कोर (एनसीसी), राष्‍ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस), स्‍काउट एवं गाइड और होम गार्ड द्वारा मार्च पास्‍ट आदि सहित उचित तरीकों से उपयुक्‍त कार्यक्रमों का आयोजन करने का अनुरोध किया गया है।

Monday, 27 October 2014

आशा और विश्वास का महापर्व छठ


संतान सुख की आशा और छठ मइया पर विश्वास के साथ व्रती 48 घंटे का निर्जला उपवास रखते हैं। इसी आस्था के साथ घाटों पर भीड़ उमड़ती है। इसे लेकर तैयारी शुरू हो गई है। सूर्य उपासना का पर्व डाला छठ सोमवार से शुरू हो गया। महिलाओं ने सायंकाल चने की दाल, लौकी की सब्जी तथा हाथ की चक्की से पीसे आटे की पूड़ी खाया। मंगलवार को खरना है। इस दिन दिन में व्रत रखकर सायंकाल रोटी व गन्ने का रस अथवा गुड़ की बनी खीर खाएंगी। चार दिवसीय इस पर्व को लेकर महिलाओं में उत्साह देखा जा रहा है। प्रथम दिन से ही सूर्य की पूजा शुरू हो गई है। चार दिवसीय इस पर्व की तैयारी भी व्यापक रूप से की जा रही है। पर्व में प्रयुक्त होने वाले सामानों की अस्थाई दुकानें भी लग गई हैं। वहां खरीदने के लिए महिलाओं की भीड़ पहुंच रही है। सूप, दौरी, चलनी के अलावा मिट्टी के पात्रों की भी खूब खरीदारी की जा रही है। यह खरीदारी देर रात तक होती है, इसलिए शहर ही नहीं गांवों के बाजार तथा कस्बों में भी चहल-पहल बढ़ गई है।

इस दिन व्रतधारी दिनभर उपवास करते हैं और शाम में भगवान सूर्य को खीर-पूड़ी, पान-सुपारी और केले का भोग लगाने के बाद खुद खाते हैं. यह व्रत काफी कठिन होता है. पूरी पूजा के दौरान किसी भी तरह की आवाज नहीं होनी चाहिए. खासकर जब व्रती प्रसाद ग्रहण कर रही होती है और कोई आवाज हो जाती हो तो खाना वहीं छोड़ना पड़ता है और उसके बाद छठ के खत्म होने पर ही वह मुंह में कुछ डाल सकती है. इससे पहले एक खर यानी तिनका भी मुंह में नहीं डाल सकती इसलिए इसे खरना कहा जाता है. खरना के दिन खीर के प्रसाद का खास महत्व है और इसे तैयार करने का तरीका भी अलग है. मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी जलाकर यह खीर तैयार की जाती है. प्रसाद बन जाने के बाद शाम को सूर्य की आराधना कर उन्हें भोग लगाया जाता है और फिर व्रतधारी प्रसाद ग्रहण करती है. इस पूरी प्रक्रिया में नियम का विशेष महत्व होता है. शाम में प्रसाद ग्रहण करने के समय इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि कहीं से कोई आवाज नहीं आए. ऐसा होने पर खाना छोड़कर उठना पड़ता है.
छठ, सूर्य की आराधना का पर्व है। वैदिक ग्रन्थ में सूर्य को देवता मानकर विशेष स्थान दिया गया है। प्रात: काल में सूर्य की पहली किरण और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण का नमन किया जाता है। सूर्य की उपासना भारतीय समाज में ऋग्वैदिक काल से होती आ रही है। सूर्य की उपासना के महत्व को विष्णु,भागवत और ब्र±ा पुराण में बताया गया है। वैज्ञानिक मान्यता के अनुसार षष्ठी को एक विशेष खौगोलीय घटना होती है। इस समय सूर्य की पराबैंगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती है। इसके संभावित कुप्रभाव से रक्षा करने का सामथ्र्य पूजा पाठ में होता है।
छठ पर्व की शुरूवात को लेकर अनेक कथानक हैं। आध्यात्मिक कथा के अनुसार ब्रह्मा की मानस पुत्री प्रकृति देवी की आराधना कर संतान की रक्षा की कामना की जाती है। कार्तिक मास की षष्ठी व स#मी को वेदमाता गायत्री का जन्म हुआ था। उनकी आराधना के लिए शाम को अस्त और सुबह उदय होते सूर्य को अघ्र्य देकर कामना की जाती है। यह भी कहा जाता है कि राजा प्रियव्रत और रानी मालिनी को कोई संतान नहीं थी। इससे राजा व्यथित होकर खुदकुशी करने जा रहा था। तभी षष्ठी देवी प्रकट हुई। उन्होेंने राजा से संतान सुख के लिए षष्ठी देवी की पूजा करने के लिए कहा। राजा ने देवी की आज्ञा मानकर कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि को षष्ठी देवी की पूजा थी। प्रियव्रत को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। तब से छठ व्रत का अनुष्ठान चला आ रहा है। एक अन्य मान्यता के अनुसार भगवान श्रीराम 14 साल का वनवास खत्म होने पर अयोध्या लौट आए।
कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्य देवता की पूजा की। तब से जनमानस में ये पर्व मान्य हो गया।

Wednesday, 22 October 2014

सबके जीवन में खुशहाली लाए दिवाली



संस्कार की रंगोली सजे,
विश्वास के दीप जले,
आस्था की पूजा हो,
सद्भाव की सज्जा हो,
स्नेह की धानी हो,
प्रसन्नता के पटाखे,
प्रेम की फुलझड़ियां जलें,
आशाओं के अनार चलें,
ज्ञान का वंदनवार हो,
विनय से दहलीज सजे,
सौभाग्य के द्वार खुले,
उल्लास से आंगन खिले,
दीपावली का अर्थ है दीपों की पंक्ति। दीपावली शब्द ‘दीप’ एवं ‘आवली’ की संधिसे बना है। आवली अर्थात पंक्ति, इस प्रकार दीपावली शब्द का अर्थ है, दीपोंकी पंक्ति। भारतवर्षमें मनाए जानेवाले सभी त्यौहारों में दीपावलीका सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात् ‘अंधेरे से ज्योति अर्थात प्रकाश की ओर जाइए’ यह उपनिषदोंकी आज्ञा है। इसे सिख, बौद्ध तथा जैन धर्म के लोग भी मनाते हैं।ख्1, माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा श्री रामचंद्र अपने चैदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे।ख्2, अयोध्यावासियों का ह्रदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से उल्लसित था। श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीए जलाए। कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी। तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं। यह पर्व अधिकतर ग्रिगेरियन कैलन्डर के अनुसार अक्टूबर या नवंबर महीने में पड़ता है। दीपावली दीपों का त्योहार है। इसे दीवाली या दीपावली भी कहते हैं। दीवाली अँधेरे से रोशनी में जाने का प्रतीक है। भारतीयों का विश्वास है कि सत्य की सदा जीत होती है झूठ का नाश होता है। दीवाली यही चरितार्थ करती है- असतो माऽ सद्गमय, तमसो माऽ ज्योतिर्गमय। दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है। कई सप्ताह पूर्व ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती है। लोग अपने घरों, दुकानों आदि की सफाई का कार्य आरंभ कर देते हैं। घरों में मरम्मत, रंग-रोगन, सफेदी आदि का कार्य होने लगता हैं। लोग दुकानों को भी साफ सुथरा का सजाते हैं। बाजारों में गलियों को भी सुनहरी झंडियों से सजाया जाता है। दीपावली से पहले ही घर-मोहल्ले, बाजार सब साफ-सुथरे व सजे-धजे नजर आते हैं।
दीपावली पर लक्ष्मीजी का पूजन घरों में ही नहीं, दुकानों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों में भी किया जाता है। कर्मचारियों को पूजन के बाद मिठाई, बर्तन और रुपये आदि भी दिए जाते हैं। दीपावली पर कहीं-कहीं जुआ भी खेला जाता है। इसका प्रधान लक्ष्य वर्ष भर के भाग्य की परीक्षा करना है।

ठसवबाुनवजम-वचमद.हप िइस दिन धन के देवता कुबेरजी, विघ्नविनाशक गणेशजी, राज्य सुख के दाता इन्द्रदेव, समस्त मनोरथों को पूरा करने वाले विष्णु भगवान तथा बुद्धि की दाता सरस्वती जी की भी लक्ष्मी के साथ पूजा करें।
इस प्रथा के साथ भगवान शंकर तथा पार्वती के जुआ खेलने के प्रसंग को भी जोड़ा जाता है, जिसमें भगवान शंकर पराजित हो गए थे। जहां तक धार्मिक दृष्टि का प्रश्न है, आज पूरे दिन व्रत रखना चाहिए और मध्यरात्रि में लक्ष्मी-पूजन के बाद ही भोजन करना चाहिए। जहां तक व्यवहारिकता का प्रश्न है, तीन देवी-देवों महालक्ष्मी, गणेशजी और सरस्वतीजी के संयुक्त पूजन के बावजूद इस पूजा में त्योहार का उल्लास ही अधिक रहता है। इस दिन प्रदोष काल में पूजन करके जो स्त्री-पुरुष भोजन करते हैं, उनके नेत्र वर्ष भर निर्मल रहते हैं। इसी रात को ऐन्द्रजालिक तथा अन्य तंत्र-मन्त्र वेत्ता श्मशान में मन्त्रों को जगाकर सुदृढ़ करते हैं। कार्तिक मास की अमावस्या के दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर की तरंग पर सुख से सोते हैं और लक्ष्मी जी भी दैत्य भय से विमुख होकर कमल के उदर में सुख से सोती हैं। इसलिए मनुष्यों को सुख प्राप्ति का उत्सव विधिपूर्वक करना चाहिएं।
लक्ष्मी जी के पूजन के लिए घर की साफ-सफाई करके दीवार को गेरू से पोतकर लक्ष्मी जी का चित्र बनाया जाता है। लक्ष्मीजी का चित्र भी लगाया जा सकता है।
संध्या के समय भोजन में स्वादिष्ट व्यंजन, केला, पापड़ तथा अनेक प्रकार की मिठाइयाँ होनी चाहिए। लक्ष्मी जी के चित्र के सामने एक चैकी रखकर उस पर मौली बांधनी चाहिए।
इस पर गणेश जी की व लक्ष्मी जी की मिट्टी या चांदी की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए तथा उन्हें तिलक करना चाहिए। चैकी पर छरू चैमुखे व 26 छोटे दीपक रखने चाहिए और तेल-बत्ती डालकर जलाना चाहिए। फिर जल, मौली, चावल, फल, गुड़, अबीर, गुलाल, धूप आदि से विधिवत पूजन करना चाहिए।
पूजा पहले पुरुष करें, बाद में स्त्रियां। पूजन करने के बाद एक-एक दीपक घर के कोनों में जलाकर रखें। एक छोटा तथा एक चैमुखा दीपक रखकर लक्ष्मीजी का पूजन करें।
इस पूजन के पश्चात तिजोरी में गणेश जी तथा लक्ष्मी जी की मूर्ति रखकर विधिवत पूजा करें।
अपने व्यापार के स्थान पर बहीखातों की पूजा करें। इसके बाद जितनी श्रद्धा हो घर की बहू-बेटियों को रुपये दें।
लक्ष्मी पूजन रात के समय बारह बजे करना चाहिए।
दुकान की गद्दी की भी विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए।
रात को बारह बजे दीपावली पूजन के बाद चूने या गेरू में रूई भिगोकर चक्की, चूल्हा, सिल-बट्टा तथा सूप पर तिलक करना चाहिए।
रात्रि की ब्रह्मबेला अर्थात प्रातरूकाल चार बजे उठकर स्त्रियां पुराने सूप में कूड़ा रखकर उसे दूर फेंकने के लिए ले जाती हैं तथा सूप पीटकर दरिद्रता भगाती हैं।
सूप पीटने का तात्पर्य है- श्आज से लक्ष्मीजी का वास हो गया। दुख दरिद्रता का सर्वनाश हो।श् फिर घर आकर स्त्रियां कहती हैं- इस घर से दरिद्र चला गया है। हे लक्ष्मी जी! आप निर्भय होकर यहाँ निवास करिए।

पूर्वांचल विकास मोर्चा की तरफ से दीपावली पर देशवासियों को बधाई

नई दिल्ली : पूर्वांचल विकास मोर्चा की तरफ से अजित कुमार पाण्डेयने दीपावली के मौके पर देशवासियों को को बधाई दी है। 

देशवासयिों को दीपावली की बधाई देने के साथ ही पाण्डेय ने लोगों से आग्रह किया है कि वे अपने परिवार और दोस्तों के साथ ई-शुभकामनाएं साझा करें।
उन्होंने कहा कि इस त्यौहारी मौसम के दौरान हर्ष और उल्लास को साझा करें। अपने परिवार और दोस्तों के साथ दिवाली की ई-शुभकामनाएं साझा करें।

Friday, 3 October 2014

पूर्वांचल विकास मोर्चा की तरफ से हार्दिक शुभकामनाएं और बधाईयां



दशहरा यानी विजयदशमी हिंदुओं का एक प्रमुख त्योहार है। अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को इसका आयोजन होता है। भगवान राम ने इसी दिन रावण का वध किया था। इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। इसीलिए इस दशमी को विजयादशमी के नाम से जाना जाता है।

दशहरा वर्ष की तीन अत्यंत शुभ तिथियों में से एक है, अन्य दो हैं चैत्र शुक्ल की एवं कार्तिक शुक्ल की प्रतिपदा। इसी दिन लोग नया कार्य प्रारंभ करते हैं, शस्त्र-पूजा की जाती है। प्राचीन काल में राजा लोग इस दिन विजय की प्रार्थना कर रण-यात्राा के लिए प्रस्थान करते थे।

इस दिन जगह-जगह मेले लगते हैं। रामलीला का आयोजन होता है। रावण का विशाल पुतला बनाकर उसे जलाया जाता है। दशहरा अथवा विजयदशमी भगवान राम की विजय के रूप में मनाया जाए अथवा दुर्गापूजा के रूप में, दोनों ही रूपों में यह शक्ति-पूजा का पर्व है, शस्त्र पूजन की तिथि है। हर्ष और उल्लास तथा विजय का पर्व है।

भारतीय संस्कृति वीरता की पूजक है, शौर्य की उपासक है। व्यक्ति और समाज के रक्त में वीरता प्रकट हो इसलिए दशहरे का उत्सव रखा गया है। दशहरा का पर्व दस प्रकार के पापों- काम, क्रोध, लोभ, मोह मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी के परित्याग की सद्प्रेरणा प्रदान करता है।

दशहरे का सांस्कृतिक पहलू भी है। भारत कृषि प्रधान देश है। जब किसान अपने खेत में सुनहरी फसल उगाकर अनाज रूपी संपत्ति घर लाता है तो उसके उल्लास और उमंग का पारावार नहीं रहता। इस प्रसन्नता का कारण वह भगवान की कृपा को मानता है और उसे प्रकट करने के लिए वह उसका पूजन करता है।